आज कॉलेज में फंक्शन था तो तैयारिया जोर शोर से चल रही थी। सभी बहुत ही ज्यादा उत्साहित थे। अब बारी आने वाले थी काव्या और रुद्र के ग्रुप की। उन्होंने हिंदुस्तान की एक प्रसिद्ध प्रेम कहानी का चयन किया। क्युंकि मैं राजस्थान से हूँ तो राजस्थान की बड़ी प्यारी सी प्रेम कहानी से परिचित करवाना चाहूँगी जिसका चयन काव्या और रुद्र ने अपने ड्रामे के लिए किया। राजस्थान के प्रसिद्ध सुरवीर शासक पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता की प्रेम कहानी। कन्नोज के शासक जयचंद की पुत्री राजकुमारी संयोगिता और दिल्ली के शासक अनंगदेव के दोहित्र पृथ्वीराज चौहान की ये प्रेम कहानी पूरे हिंदुस्तान में प्रसिद्ध है।
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अनंगदेव के कोई संतान ना होने के कारण अपने राज्य का सारा कार्य भार पृथ्वीराज के कंधों पर डाल देते है।
दिल्ली की सत्ता पृथ्वीराज को सौप देते है। राजकुमारी संयोगिता का भी ननिहाल दिल्ली में होता है। संयोग वश एक दिन दोनों मिलते है और एक दूसरे के प्रेम में पड़ जाते है।
परंतु संयोगिता के पिता जयचंद पृथ्वीराज को पसंद नहीं करते इसी कारण वह राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर रचाते है और भारत के समस्त प्रतापी राजाओं को निमन्त्रित करते है परंतु दिल्ली के सुल्तान पृथ्वीराज को अपनी पुत्री के
स्वयंवर में नहीं बुलाते और उनका उपहास करने के लिए पृथ्वीराज के पुतले को द्वारपाल की जगह खड़ा कर देते है। जब राजकुमारी संयोगिता को इस बारे में पता लगता है तो वह बिना किसी की परवाह किए वरमाला पृथ्वीराज के पुतले के गले में पहना देती है।
जब दिल्ली में बैठे पृथ्वीराज को इस घटना के बारे में पता लगता है तो वह अपनी सेना लेकर कनोज की तरफ कूच करते है और भरे दरबार से राजकुमारी संयोगिता को उठा अपने साथ ले जाते है।
अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए जयचंद ने तुर्की आक्रांता मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज पर हमला करने के लिए प्रेरित करता है। गौरी भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था इसलिए वह दिल्ली पर आक्रमण करता है और सन् 1991 में पृथ्वीराज और गौरी के बीच तराईन का युद्ध होता है जिसमे पृथ्वीराज विजयी होते है।
पर गौरी अपनी हार को स्वीकार नहीं कर पाता और सन् 1992 में फिर दिल्ली पर आक्रमण करता है। इस बार पृथ्वीराज हार जाते है। जब उन्हें बंदी बनाकर गजनी ले जाया गया तो इतिहासकार और पृथ्वीराज का मित्र चंदवरदाई भी उनके साथ था।
अब इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो राम जाने पर चंदवरदाई ने अपनी पुस्तक पृथ्वीराजरासो में लिखा है की पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर थे। जब पृथ्वीराज की गजनी ले जाया गया तो गौरी ने उनकी दोनों आँखें फोड़ डाली थी। तब चंदवरदाई ने एक गौरी की सिंहासन की जगह बताने के लिए एक लाइन कहीं जो राजस्थान के इतिहास में बहुत प्रसिद्ध है
"चार बास चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान"
कहा जाता है की अंधे होने के बाद भी पृथ्वीराज ने इस लाइन को सुन के गौरी को मार डाला था।
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इसी कहानी का जीवंत और सजीव वर्णन किया काव्या की टीम ने।
नायक के रूप में राज को चुना गया और नायिका के रुप में विनी को।
हाँ कह सकते है कि ये पीहू का ही प्लेन था उनको नज़दीक लाने के लिए। पृथ्वीराज का किरदार राज ने उसी रोबिले अंदाज़ में निभाया और विनी ने भी संयोगिता के किरदार में प्राण फुक दिये। उन दोनों की जोड़ी देख दर्शक तालियां बजाए बिना नहीं रह पाए।
जब पृथ्वीराज संयोगिता को अपने साथ ले जा रहे थे तब राज ने अपने किरदार से हट कर कुछ लाइने विनी से अपने प्यार के इज़हार करने के लिए बोल डाली थी। विनी ने भी उसके प्यार भरे निमंत्रण को राजकुमारी संयोगिता के अंदाज़ में स्वीकार किया था। राज ने कहा कि" राजकुमारी संयोगिता ये पृथ्वीराज आपको देखते ही आपसे प्रेम करने लगा था अब आप इज़ाज़त दे तो सारी जिन्दगी आपको दिल्ली की महारानी बनाना चाहेंगे। "
जिस पर विनी ने संयोगिता के ही अंदाज़ में कहा की "ये संयोगिता तो कब से आपके इंतज़ार में थी आपने ही आने मे देर कर दी"
घोड़े पर जाते हुए उनके इस अंदाज़ ने सबको तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। गौरी का किरदार वीर ने निभाया पर ये कह सकते है की सभी किरदारों में इतिहास की जीवंत झलक देखी जा सकती थी।
पर्दे पर चल रहे नाटक के दौरान काव्या और रुद्र दोनों एक दूसरे के पास बैठे रहे और नम आँखों से अपनी मेहनत सफल होते देख रहे थे। जब पृथ्वीराज ने अंधे होकर भी गौरी पर निशाना साधा तो सभी लोग अपनी जगह से खड़े हो तालियां बजाने लगे। काव्या खुशी से रुद्र के गले लग गई। वो इतना खुश थी की उसे अंदाजा भी नहीं रहा की वो रुद्र से लिपट गयी है। इस बार रुद्र भी खुश था तो वो भी उसे पकड़ कर झूम उठा। तभी सारी टीम आ गई और सब चेहकते हुए नाचने लगे। काव्या तो विनी को गोद में उठा के नाचने लग गयी। सब उसके बचपने पर हँस पड़े। फाइनली अब इंतज़ार था उस पल का जब रिसल्ट अनाउंस होने वाला था। पर सब अंदाजा लगा चुके थे की किस टीम को फ़स्ट अवार्ड मिलने वाला है।
चीफ गेस्ट ने विनर टीम का नाम अनाउंस किया तो काव्या और उसकी टीम खुशी से नाच उठे। उनके ड्रामे को सबसे ज्यादा अंक मिले और सबसे ज्यादा अंक पा उन्होंने पहला स्थान हासिल किया था। पूरी टीम खुशी से झूम उठी। रुद्र ने पहली बार अपनी खुशी का जिक्र किया और वो भी सबके साथ मिल नाचने लगा। काव्या उसे देख ठहर सी गयी। उसे आज रुद्र कुछ ज्यादा प्यारा लग रहा था... खडूस रुद्र... नहीं नहीं ये तो कोई मासूम सा बच्चा जान पड़ता है... कितना मासूम...। काव्या ख्यालों में खोयी उसे नाचते हुए देख रही थी। तभी विनी उसे खीच ले गयी और वो भी सबके साथ झूमने लगी।
स्टेज पर काव्या और रुद्र दोनों साथ गए। जब एक लाख का चेक चीफ गेस्ट ने उन्हें दिया तो दोनों ने खुशी भरी आँखो से एक दूजे को देखा और साथ साथ वापस आ गये। सबने बहुत मेहनत की थी तो थक गए और घर जाने की तैयारी करने लगे। प्रिंसिपल सर ने बताया की ट्रिप अगले साल रखी जाएगी जिसमें विजेता टीम की सारी सुविधाए फ्री होगी।
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धीरे धीरे कॉलेज खाली होने लगा। काव्या आज रुद्र के साथ घर जाना चाहती थी क्युंकि वह रुद्र से अपने दिल की बात कहना चाहती थी
विनी ने जब उसे साथ चलने को कहा तो उसने टाल दिया और हँसते हुए कहा की "आज तु राज के साथ जा... कल मिलते है। "ये लाइन उसने बड़े शरारती अंदाज़ में कहा तो विनी मुस्कुराते हुए वहाँ से चल दी।
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काव्या बहुत देर रुद्र का इंतज़ार करती रही। वह जानती थी की रुद्र भी उसे पसंद करता है। अब वह बिना देर किये रुद्र से अपने दिल की बात करना चाहती थी। काव्या के सारे फ्रेंड्स घर चले गए थे। रुद्र जब अपने काम खत्म कर बाहर गेट पर आया तो काव्या को देख चौक गया। रुद्र निशि और अखिल के साथ था। वह हैरान था की काव्या अब तक यहाँ क्या कर रही है।
काव्या उसे देख मुस्कुराती हुई बोली"रुद्र कुछ बात करनी है तुमसे"।
रुद्र बिना उसकी तरफ देखे बोला
"देखो काव्या ज्यादा चिपकू मत बनो... तुम्हें घर जाना चाहिए और तुम यहाँ क्या कर रही हो... कल से कॉलेज की समर वेकेशन है... तुम्हें पता है ना... तो घर क्यों नहीं गयी अब तक... ओह हाँ समझ आया... तुम उस एक लाख रुपये के चेक के लिए रुकी हो न है न ? उसने प्रश्नवाचक दृष्टि काव्या पर डालते हुए कहा।
काव्या को लगा जैसे किसी ने खौलता हुआ तेल उसके कानों में डाल दिया। वह कुछ कहती उससे पहले रुद्र बोला "बता दिया था न तुम्हें की कॉलेज वापस ओपन होने पर पूरी टीम में बराबर हिस्सों में ये रुपये बांट दिये जाएंगे विश्वास नहीं है ना तुम्हें किसी पर... देखो सब चले गए एक तुम यहाँ पहरेदार बन रही.... मै उसी सिलसिले में प्रिंसिपल सर के ऑफिस में था... चिंता मत करो खा नहीं जाऊँगा तुम्हारे पैसे। " रुद्र ने बड़ी बेरुखी से काव्या की तरफ देखते हुए कहा।
बिना काव्या को सुने वह निशि के साथ चला गया ।
अखिल ने काव्या को बोला वह उसे घर तक छोड़ देगा पर काव्या रुआसी हो रुद्र को जाते देखती रही जब वह चला गया आँखों से ओझल हो गया तो आँखों में गंगा लिए वही बैठ गयी। उसकी आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।
वह सोच रही थी की क्या ये वही रुद्र है जिसे उसने थोड़ी देर पहले मासूमियत से नाचते हुए देखा था... जिसने उसे अपनी बाहों में ले अपनी खुशी का इज़हार किया था... कुछ ही देर में इतना कैसे बदल सकता है कोई।
तभी बारिश शुरू हो गयी। वह कॉलेज गेट के पास बैठी रो रही थी। उसे लगा जैसे आज बादल भी उसके साथ रो रहे है। जब रोते रोते थक गयी तब उसे अहसास हुआ की इतनी बारिश में भी उसके कपड़े सूखे है। जब ऊपर देखा तो छाता लिए कोई खड़ा था
कौन था वो शक्स
जानने के लिए पढ़िये उड़ान
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