भानगढ़ रहस्यम (आकर्षण मोहिनी )
आज भानगढ़ के किले में आकर ज्योति बहुत खुश थी । उसे पुरातन जगहों , किलों , मंदिरों आदि घूमने और उनके इतिहास को जानने का बेहद शौक था ।वो कोई भी मौका नही चूकती थी ऐसी जगहों पर जाने का । मध्य प्रदेश के सागर जिले की रहने वाली ज्योति को जब अपने मामाजी के यहाँ राजिस्थान जाने का मौका मिला तो काफी खुश थी । उसने इस किले के बारे बहुत कुछ पढा और सुना था । उसके रहस्य वो अभिशप्तता की कहानी ने उसके मन मे एक उत्सुकता जगा दी थी ।वो स्वयं वहाँ जाकर उस किले को अपनी ऑंखों से देखना चाहती थी ।
जब वो लोग अंदर दाखिल हो रहे थे तब उनकी नज़र सामने लगे बोर्ड पर पड़ी । जिसपर सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद किले के आसपास भी घूमना वर्जित बताया गया था । क्योंकि भानगढ़ का किला अपने दामन में कई कहानियों कई किस्सों को लेकर काफी प्रसिद्ध था । बोर्ड पढकर ज्योति अंदर तक रोमांचित हो गई । पर उसकी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी । वैसे तो सम्पूर्ण भारत के कोई भी पौराणिक स्थल पर इस तरह की कोई भी बात वहाँ के प्रशासन द्वारा कभी नही लिखी गई । भूत प्रेत जैसी चीजों को कभी सरकारी मान्यता नही मिली है । पर भानगढ़ के बारे में स्वयं प्रशासन ने वो बोर्ड लगाया । और सबसे बड़ी बात हर पुराणिक स्थल , धार्मिक धरोहर , की केअर करने वाली एक कमेटी या स्टाफ का ऑफिस वहीं सम्बंधित स्थल पर ही होता है । पर भानगढ़ किले में या उसके आसपास भी कोई ऐसा ऑफिस या स्टाफ मौजूद नही है । बल्कि उससे दूर उस किले की केअर कमेटी का ऑफिस बना है । मतलब प्रशासन भी उस किले के बारे में फैले किस्से कहानियों से अछूता नही था । यही बात उस किले की अभिशप्त छवि को और मजबूत करती है ।
अंदर जाकर उसने हर सम्भव स्थान को गौर से देखा । वो उस किले के बारे में प्रचलित बातों को महसूस करना चाहती थी । कई लोग जो किला घूम कर जा चुके थे । सबने अपने यही अनुभव दिए कि उस किले में कुछ तो ऐसा अवश्य है जो सामान्य बिल्कुल नही कहा जा सकता । कई लोगों को वहां सुनसान जगहोँ पर किसी के होने का एहसास हुआ , किसी को घुंघरुओं की झंकार सुनाई दी । तो किसी को अजीब से चीत्कार करते लोगों की डरावनी आवाज़ें अनुभव हुईं । ज्योति लोगों के इन सभी अनुभवों को अच्छे से पढ़ और सुन चुकी थी । सर्दियों के दिन थे । और सर्दियों में वैसे ही दिन छोटे हो जाते हैं। 6 बजे तक तो अंधेरा ही हो जाता है ।
चारों और घूम-घूम कर वो किले की नक्काशी , सुंदरता , उसकी विशालता को अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर रही थी । अपनी ममेरी बहन मिताली के साथ किले की जगह जगह की तस्वीरें लीं । तस्वीरें लेते लेते वो किले के अंदर कुछ ऐसी जगहों पर चली गई जो पूर्ण रूप से वीरान और सुनसान पड़े थे । जहाँ कोई भी टूरिस्ट नही था । किले घूमने वाले सभी लोग किले के बीच के हिस्से मैदान , और बाहरी कमरों , प्रांगण में बने छोटे छोटे धार्मिक स्थलों तक ही सीमित थे । ज्योति सबकी नजर बचाकर सुनसान जगहों पर चली गई । उन जगहों पर जाते ही उसे वो सब देखकर मन ही मन मे एक अजीब सा एहसास होने लगा । उस पूरे वातावरण की वो अजीब सी खामोशी जैसे स्वयं में बहुत कुछ समेटे उससे कुछ कह रही हो । शाम होने आई । ऐसी ही जगह पर कुछ चट्टानों के बीच उसे कुछ अजीब सा पत्थर का छोटा सा टुकड़ा दिखा । वो पत्थर और पत्थरों से कुछ भिन्न था । जो ढलते सूरज की रौशनी में कुछ अजीब सा प्रतीत हो रहा था । ज्योति उत्सुकता वश उस पत्थर को नजदीक जाकर देखती है । पहले तो उसने उस अनोखे दिखने वाले पत्थर के टुकड़े की एक फोटो क्लिक की , पर पता नही बाद में उसके मन मे क्या आया कि उसने वो टुकड़ा उठाकर अपने बैग में रख लिया।
धीरे धीरे लोग किले से बाहर होने लगे । ज्योति के मामा मामी और ममेरी बहन मिताली भी उसे वापिस चलने के लिए ढूंढने लगे । जब वो कहीं नही दिखी तो उसका मोबाइल ट्राय किआ ।पर नेटवर्क आउट ऑफ कवरेज ही आया । मिताली और सभी उसे लेकर परेशान होने लगे । सभी चिल्ला चिल्ला कर उसे आवाज़ लगाते हैं ।
उसके कोई रिस्पॉन्स नही देने पर मिताली बोली ।
"" ये ज्योति दीदी का ऐसा ही है । सबके साथ कभी नही रहतीं । आएंगी तो सबके साथ पर बाद में अकेली ही घूमने के नाम पर पता नही कहां गुम हो जातीं है । मुझे थोड़ा थोड़ा डर लग रहा है । जबसे वो बोर्ड पर पढा की शाम होने से पहले किले को खाली कर दें । देखो 5 बज गए । सूरज भी ढलने लगा है । और इनका कहीं पता नही । ""
वो सभी अभी आपस मे बात ही कर रही होतीं हैं कि सामने से ज्योति चली आती है । उसे देखकर सबकी जान में जान आती है ।
"" क्या ज्योति दीदी , आपका नाम ज्योति है इसका मतलब ये नही की आप अंधेरे को नज़रंदाज़ कर दे । बाहर बोर्ड नही पढा आपने । ये किला वैसे ही रहस्यमयी है । अब जल्दी चलिए । सभी लोग जा रहे हैं । ""
मिताली उसका हाथ पकड़ कर सभी के साथ बाहर जाने लगती है । पर ज्योति की आंखों में एक अलग ही चमक थी । वो बार बार मुड़ मुड़ कर उसी किले को देख रही थी । धीरे धीरे अंधकार में छिपता हुआ वो वो किला मानो उससे कुछ कहना चाह रहा हो । जैसे ही पूर्ण रात हुई किले के अंदर का चप्पा चप्पा काले घने अंधेरे के साये में और भी डरावना और भी रहस्यमयी हो गया ।
वापिस लौटते वक्त रास्ते मे सबको भूख लगी । एक जगह एक ठेले पर वहाँ की फेमस दाल पूरी को देखकर सभी की भूख और बढ़ गई । सभी ने पेट भरकर दाल पूरी का आनंद लिया । पर ज्योति ने ज्यादा कुछ नही खाया । और वो अधिकांश समय चुप चुप ही बैठी रही । जैसे उसके दिमाग मे कुछ चल रहा हो ।मिताली को भी ये सब थोड़ा अजीब लगा । क्योंकि ज्योति कभी इतना चुप बैठने वालों में से नही थी । वो तो मस्ती मज़ाक करने वाली एक हँसमुख लड़की थी । सबको लगा कि थक गई होगी इसलिए शांत है ज्यादा बात नही कर रही । जब वो लोग खाना खाकर वहाँ से जाने लगे , तो ज्योति एक बड़े से भारी पत्थर से टकरा गया। वो गिरते गिरते बची । मिताली उसे सम्भालने आगे बढ़ ही रही थी तभी ज्योति गुस्से में आकर उस भारी बड़े से पत्थर को एक लात मारती है । और वो भारी पत्थर अपना छोड़कर लुढ़कता हुआ सीधे पास बने नाले में जा गिरता है । वहाँ मौजूद सभी लोग बड़े आश्चर्य से ज्योति को देखने लगे । वो ठेले वाला पूरी बेलते बेलते अचानक रुक गया । उसके चेहरे के हावभाव हैरानी की सलवटों से घिरने लगे । खुद ज्योति की मामा मामी और मिताली भी ये सब देखकर अचंभित थे । उन लोगों के वहाँ से जाने के बाद ठेले वाले का साथी आश्चर्य से उससे बोला ।
"" वाह गुरु मान गए । जिस पत्थर को आप हम मिलकर भी सरका तक नही पाए वो पत्थर उस लड़की ने ऐसे ठोकर मारकर फेंक दिया जैसे वो गत्ते का बना हो । "" ठेले वाला भी उसकी बात सुनकर आश्चर्य और हैरानी में था ।
रात को अपने कमरे में ज्योति उस पत्थर को बहुत देर तक गौर से देखती रहती है । वो वाकई में कुछ अजीब सा था । था तो वो एक पत्थर का टुकड़ा ही पर बाकी पत्थरों से बिल्कुल भिन्न था । काफी देर तक ज्योति उस पत्थर को देखती रही । उसके बारे में सोचती रही । मिताली ये देखकर ज्योति से कुछ बोली तो नही पर हल्की मुस्कान के साथ गर्दन को झटककर गुड नाईट बोलकर वहीं बगल में सो गई । ज्योति का ध्यान तो जैसे उसी पत्थर में लगा था । फिर जब उबासी आने लगी तो उस पत्थर को बगल में टेबिल पर रख सो गई ।
रात के करीब 3 बजे उसकी नींद अचानक खुलती है । उसे कमरे में किसी के होने का एहसास होता है । वो उठकर देखती है पर कोई दिखाई नही देता । बगल में मिताली बेसुध सोई पड़ी थी । वो पानी पीकर वापिस आंख बंद कर लेट जाती है । तभी उसे लगता है कि कोई उसके गाल को हल्के हल्के से सहला रहा है । वो घबराकर उठकर बैठ जाती है । उसकी आँखों मे डर स्प्ष्ट झलक रहा था । तभी उसकी नज़र पास में टेबिल पर रखे उसी पत्थर पर जाती है । वो अंधेरे में अलग ही चमक रहा था । और उसमें से निकल रही चमकीली किरणों से ऊपर छत पर जो हल्की गोल रौशनी पड़ रही थी उसे देखकर तो ज्योति की चीख निकल गई । ऊपर छत पर पंखे के पास उस पत्थर की चमकीली रौशनी में एक मानवीय चेहरे का काला प्रतिबिंब बन रहा था । जो लगातार इधर उधर ऐसे हिल रहा था जैसे कोई अपना चेहरा गोल गोल घुमा रहा हो । वो प्रतिबिंब पूरा काला था । उसके नाक नक्श कुछ नही थे । पर पूरा मानवीय आकर का वो भयानक काला प्रतिबिंब ज्योति की आंखों की पुतलियों को आश्चर्य से चौड़ा करता गया । वो चीख मारकर वहीं बेहोश हो गई । अवाज़ सुनकर मिताली घबराकर उठ जाती है । उसकी नज़र वहीं पलँग पर आधी लटकी बेहोश ज्योति पर पड़ती है । वो घबरकार लाइट ऑन करती है । लाइट ऑन होते ही उस पत्थर में से चमकीली किरणे निकलना बंद हो जातीं हैं । उसके हिलाने पर भी ज्योति कोई जवाब नही देती । तबतक उसके मामा और मामी भी अवाज़ सुनकर वहाँ आ जाते हैं ।ज्योति को इस हालत में देख कोई कुछ नही समझ पाता । जब पानी के छींटे मारकर उसे होश में लाया जाता है और उससे पूछा जाता है तो वो बुरी तरह काँपने लगती है । सर्दी के मौसम में बुरी तरह पसीने से नहाई ज्योति को देखकर उसकी मामी उसके सर पर हाथ फेरते हुए उससे दोबारा पूछतीं हैं । पर ज्योति अभी भी खामोश सी बुरी तरह काँप रही थी । वो डरके मारे उनसे चिपक जाती है । उसे इतना डरा हुआ देख सबको लगता है कि कोई डरावना भयानक सपना देख लिया होगा । क्योंकि किले के बारे में जो बातें फैली हुईं हैं उससे इसके दिमाग पर कुछ असर हो गया होगा । सुबह तक ठीक हो जायेगी । फिर पूछेंगे की क्या बात है । वो उसी के पास वहीं सो जातीं हैं ।
अगले दिन सुबह जब सभी बाहर हॉल में बैठे चाय पी रहे होते हैं , तभी ज्योति वहाँ आती है । लेकिन आज वो बिल्कुल पहले जैसी लग रही थी । सबसे हंसकर गुड मॉर्निंग की । मिताली से बाते करने लगी । उसको इस तरह पहले के जैसा ही हंसता हुआ देख सभी खुश भी होते हैं और थोड़े हैरान भी । रात को जो ज्योति इतना डरी हुई थी कि कुछ बोल भी नही पा रही थी वो आज सुबह सबसे हंसकर मिल रही थी ।
उसकी मामी उसे पहले जैसा खुश देखकर उससे रात वाली बात पूछ बैठतीं हैं । उनके पूछते ही ज्योति वापिस खामोश हो जाती है । और उनके बीच से उठकर सीधे अंदर कमरे में चली जाती है ।
ये देखकर उसके मामाजी प्रकाश बोलते हैं ।
"" तुम भी हद करती हो मिताली की माँ !!!!!!..उठते ही उससे पूछ लिया । वो रात वाली बात भूल गई होगी । कोई सपना देखा होगा । तुमने उससे पूछकर वो डरावना सपना फिर याद दिला दिया । अरे बाद में पूछ लेतीं । उसे चाय नाश्ता तो कर लेने देंती । बेटा मिताली जाओ अंदर जाकर अपनी दीदी के पास बैठो । उसका चाय नाश्ता कमरे में ही भिजवा देना । और उसे ज्यादा परेशान मत करना पूछ पूछकर । बच्ची है सपने का सदमा लगा होगा । उसे अब वो याद दिलाने की कोई जरूरत नही । वो खुद से कुछ बताए तो ठीक वरना हम में से कोई भी उससे कुछ नही पूछेगा उस बारे में । उनकी बात सभी मान लेते हैं ।
मिताली जैसे ही अंदर चाय और नाश्ता लेकर जाती है । ज्योति उसके हाथ मे वो सब देख बिजली की तेजी से उठकर उससे नाश्ते की प्लेट छीन लेती है । और फर्श पर एक पाँव लंबा और एक पाँव मोड़कर बड़ी बड़ी आँखे निकालते हुए चम्मच को एक तरफ़ फेंककर हाथ से ही ऐसे खाने लगती है । जैसे कोई हब्शी खाता है । मुट्ठी भर भरकर मुँह में ठूंसती है । और हम्म्म्म हम्म्म्म की आवाज़ निकालकर खाते हुए बराबर हिलती रहती है । ये सब देख मिताली बुरी तरह चिल्लाते हुए डरकर बाहर भाग जाती है । मिताली को ऐसे घबराया हुआ देख सभी उसके साथ वापिस कमरे में आते हैं । और वो लोग भी उसे इस तरह ज़मीन पर अजीबोगरीब मुद्रा में बैठ कर खाते हुए सकते में आ जाते हैं । आसपास फर्श पर नाश्ता बिखरा हुआ पड़ा रहता है। जिसे ज्योति बाद में मुंह नीचा कर अपनी जुबान बाहर निकाल पूरा चाटने लगती है । और ऐसे खुश होती है जैसे बहुत दिन बाद खा रही हो । जब नाश्ता खत्म हो जाता है तो वो बैठे बैठे ही ऊपर मुँह करके प्लेट को उनकी तरफ बढाकर मर्दाना अवाज़ में बोलती है ।
"" जा और लेकर आ । जा जल्दी । बहुत भूखा हूँ मै । ह्म्म्म हम्म्म्म आज बरसो बाद इतना अच्छा खाना मिला है ।""
मामी सुलक्षणा के तो पैरों तले जमीन खिसकी हुई थी । उसकी ये हालत देखकर उनको समझते देर नही लगती की इसपर ऊपरी हवा का साया आ चुका है । वो डरते हुए प्रकाश की तरफ देखने लगती हैं । प्रकाश भी अपने स्थान पर जड़ बने हुए उसकी ये हरकते आंखे फाड़ फाड़कर देख रहे थे । इधर जब ज्योति को और भूख लगती है तो वो और तेज़ तेज़ बोलने लगती है ।
"" लेकर आओ मेरे लिए खाना , जल्दी । लेकर आओ जल्दी ।""
वो अपने बाल फैलाये अपने नाखूनों से दीवार को बुरी तरह खुरचने लगती है । और गुस्से में दीवार पर अपना सर भी मारने लगती है । मुँह से अजीब सी गुर्राने की आवाज़ जिसे देखकर उन सभी के दिल जोर जोर से धड़कने लगते है । मामा प्रकाश भी ये सब हैरानी से देखमे लगते हैं । वो दौड़कर ज्यों ही उसे पकड़ते हैं वो उनकी तरफ गुस्से से देखते हुए उनको ऐसा उठा के फेंकती है कि वो सीधे सामने दीवार पर जाकर टकराते हुए धड़ाम से नीचे फर्श पर गिर जाते हैं । उसकी ये भयंकर हालत देख सबका खून सूख जाता है । सुलक्षणा और मिताली दौड़कर प्रकाश को संभालते हैं । इधर कुछ देर तक चिल्लाने के बाद ज्योति वापिस बेहोश हो जाती है ।
बेहोश ज्योति को उठाकर वो पलँग पर लेटाते हैं । प्रकाश की पीठ में जमकर लग गई थी । वो पीठ पकड़कर कुर्सी पर बैठ जाते हैं ।
सुलक्षणा घबराते हुए उनसे बोलती है ।
"" इसपर कोई ऊपरी हवा आ चुकी है । मेंने बहुत देखा है ये सब अपने मायके में । जब ऊपरी हवा का चक्कर होता है तो इंसान ऐसी ही हरकते करता है । कल जब उस ठेले पर हम रुके थे और उस बड़े भारी पत्थर को ज्योति ने एक लात मारकर लुढ़का दिया था , ये भी उसी हवा की ताकत थी । समझ नही आता क्या किया जाए। क्या जवाब दूंगी दीदी को सागर में । बेचारी बच्ची घूमने आई थी । और ये सब हो गया । ये जरूर उसी भानगढ़ के किले में ही कुछ हुआ है उसके साथ । जब वो हमसे अलग होकर कही चली गई थी । और बाद में खुद वापिस भी आ गई । वहीं से कुछ इसके पीछे लग गया है । आप किसी ओझा या तांत्रिक को बुलाओ जी । हमे देर नही करनी चाहिए इन मामलों में । जितनी देर होगी उस हवा का अधिकार उतना ही पक्का होता जायेगा इस पर । "" सुलक्षणा घबराते हुए प्रकाश से बोली , जो अबतक अपनी पीठ को पकड़े बैठे थे । मिताली उसकी पीठ सहला रही थी ।
प्रकाश ने हाँ में सर हिलाते हुए सुलक्षणा की बात का समर्थन किया । तभी दरवाजे पर बेल बजी । काम वाली बाई रोज़ के टाइम पर अपना काम करने आई थी । जब उसने इस तरह सबको गुमसुम डरे हुए बैठे देखा तो सुलक्षणा ने सारी बात उसे बता दी । बाई भी ये सुनकर हैरान रह गई । उसने सुलक्षणा और प्रकाश से बोला ।
"" आपलोग मेरी बात मानिए , इधर उधर फालतू के ओझाओं और तांत्रिकों में मत भटकिये । में आपको एक ऐसे इंसान का पता देती है जो पहली ही बार मे सबकुछ ठीक कर देता है । और ज्योति बीबीजी तो कल से ही इस चक्कर मे आई हैं । ज्यादा टाइम भी नही हुआ । आसानी से ठीक हो जाएंगी । "" वो बाई प्रकाश से फोन लेकर किसी को कॉल कर वहाँ बुलाती है । थोड़ी देर में एक हट्टा कट्टा अधेड़ उम्र का इंसान वहां आता है । वो उनको ज्योति को लेकर अपने साथ कहीं चलने को बोलता है ।सभी लोग तैयार होकर ज्योति को लेकर गाड़ी में बैठाकर उस जगह के लिए निकल जाते हैं । रास्ते मे ज्योति को होश आता है , वो फिर पागलों की तरह करने लगती है । खुद को छुड़ाने का प्रयास करने लगती है । पर उस हट्टे कट्टे इंसान ने उसे मजबूती से पकड़ा हुआ था । पर फिर भी ज्योति छटपटाते हुए उछलकर अपनी लात को एक दम से ऊंचा कर आगे गाड़ी चला रहे प्रकाश को पीछे से मारती है । फिर से लात खाकर तेज़ झटके की वजह से बड़ी मुश्किल से गाड़ी का बैलेंस बनाते हुए वो गाड़ी चलाते रहते हैं । इधर पीछे ज्योति को कसकर पकड़े हुए बैठे वो आदमी कुछ मन्त्र पड़ता है , जिससे वो धीरे धीरे बेहोश हो जाती है । कुछ ही देर में गाड़ी एक गन्दी से बस्ती से होते हुए उस आदमी द्वारा बताई जगह पर जाकर रुक जाती है । सभी बेहोश ज्योति को लेकर अंदर प्रवेश करते हैं ।
गन्दी बस्ती के बीच वो छोटा सा साधारण सा मकान लेकिन अंदर से एक दम साफ सुथरा और सुंगंधित रहता है । ऐसा लगता था जैसे कीचड़ में कमल खिला हो । वो कमरा एक दम शांत गूगल और लोभान के सुगंधित धुँए से महक रहा था । फर्श पर नीचे ही गद्दे बिछे हुए थे । ज्योति को लेजाकर वही लेटा दिया जाता है । थोड़ी देर बाद पूरी तरफ उज्ज्वल सफेद कपड़ों में एक बुजुर्ग सफेद दाड़ी मूंछ में जिनकी लंबी लंबी मूंछे जो कान के निचले हिस्से तक थीं । जिसे राजिस्थानी मूंछे भी कहते हैं ।उनके चेहरे पर अलग ही तेज़ था । और सर पर त्रिशूल की आकृति का टीका लगा हुआ था । वो वहीं उनके पास आकर बैठ जाते हैं । प्रकाश और सुलक्षणा उन्हें सारी बात बताते हैं । जिसे सुनकर उनके चेहरे पर भी थोड़ी परेशानी उभरने लगती है । लेकिन वो जल्दी ही उन्हें आश्वासन देते हैं कि बिटिया को कुछ नही होगा । और फिर अपना एक हाथ बेहोश ज्योति के सर पर रख आंख बंद कर कुछ पढ़ने लगते हैं । अचानक उनके चेहरे के हाव भाव बदलने लगते हैं । वो आंख खोलकर प्रकाश और सुलक्षणा से बोलते हैं ।
"" आपने बहुत अच्छा किया जो इसे बिना देर किए यहाँ ले आये । अभी 24 घण्टे भी नही हुए हैं उस आत्मा को इसपर आये हुए । इसलिए ये बिटिया जल्दी ठीक हो जायेगी । फिर वो हाथ मे एक पंचमुखी रूद्राक्ष की माला लेकर उसे फेरते हुए बीच बीच मे ज्योति के सर पर रख कुछ मंत्र पढ़ने लगे । और उसके कान में फूंकने लगे । धीरे धीरे बेहोश ज्योति के शरीर मे हरकत होने लगी । वो लेटे लेटे ही पाँव चलाने लगी । गुर्राने लगी । साधकों ने उसे जमकर पकड़ लिया । वो लाल लाल आँख निकाले बार बार चेहरा ऊपर कर इन बाबा को देखने का प्रयास करती । पर उनके तेज़ के आगे उनसे नज़र नही मिला पाती और जोर जोर से चिल्लाने लगती । अंत मे उन बुजुर्ग बाबा ने त्रिशूल नुमा छोटा सा धातु का टीका अशगन्ध में डुबाकर उसे ज्योति के माथे पर तेज़ी से गड़ा दिया । वो त्रिशूल टिका लगते ही ज्योति ने हाथ पांव फेंकना बंद कर दिया । और शांत होकर बेहोश हो गई ।
फिर उस बेहोश ज्योति के ऊपर उन्होंने गंगा जल छिड़का । और कुछ सफेद भभूत भी छिड़की । फिर प्रकाश और सुलक्षणा की तरफ मुँह करके बोले ।
"" इसने कल किले से एक पत्थर का टुकड़ा उठाया था । जो लगभग 500 साल पुराना है । आपने भानगढ़ के किले के सम्बंधित एक सत्यकथा तो सुनी होगी ।
प्राचीन समय मे भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावली बहुत ख़ूबसूरत थी। उसकी सुंदरता से उस समय कई राजे महाराजे उससे विवाह करने के इक्छुक थे । पर एक दिन रत्नावली बाजार में एक इत्र की दुकान पर खड़ी इत्र खरीद रही थीं । तभी उसपर एक तांत्रिक सिंधु खेड़ा की दृष्टि पड़ी । वो उसे देखता ही रह गया । और मन ही मन उसे पाने का सपना देखने लगा । उसने चोरी से एक इत्र की डिब्बी में अपने तंत्र मंत्र से कुछ फूंक कर उसे उन डिब्बियों के बीच रख दिया जो रत्नावली अपने साथ ले जाने वाली थी । पर उस तांत्रिक को ऐसा करते राजकुमारी की एक सहेली ने देख लिया । उसने उनको तांत्रिक वाली बात बता दी । जिसे सुनकर राजकुमारी को खूब गुस्सा आया । और उन्होंने वो डिब्बी एक चट्टान पर दे मारी । डिब्बी से पूरा इत्र निकलकर उस चट्टान पर फैल गया । चूंकि वो इत्र को अपने तंत्र मंत्र की शक्ति से उस तांत्रिक सिंधु खेड़ा में ऐसा सिद्ध किया था कि जब भी वो राजकुमारी उसे लगाती तो वो स्वयं उस तांत्रिक की तरफ खींची चली आती । वो इत्र उस चट्टान पर पूरा फैलने से उस इत्र में व्याप्त आकर्षण की मोहिनी शक्ति उस चट्टान में आ गई । और वो चट्टान खुद से ही राजकुमारी के पीछे पीछे आ रहे उसी तांत्रिक की तरफ लुढ़कने लगी । जिसके नीचे दबकर वो तांत्रिक मर गया । पर उसने मरने से पहले पूरे भानगढ़ को एक बर्बाद होने का शाप दिया ।
आज उस घटना के इतने सैकड़ों वर्षों बाद उसी चट्टान का एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा जो पता नही कैसे वही कहीं सुनसान में पड़ा होगा । इस बिटिया ने उसे उठा लिया । और उसे चुपके से अपने साथ ले आई । चूंकि उस पत्थर पर उस तांत्रिक सिंधु खेड़ा के तगड़े मोहिनी आकर्षण की तंत्र शक्ति वाला इत्र गिरा था जिसका असर आज भी शेष है । पुराने समय मे तंत्र मंत्र इतने तगड़े होते थे कि उनकी शक्ति सैकड़ों साल बनी रहती है ।
उसी मोहिनी आकर्षण इत्र के प्रभाव वाले पत्थर ने उस तांत्रिक की अंशआत्मा को इस बिटिया पर मोहित कर दिया । मेने अभी इस बिटिया को उस अंशात्मा से मुक्ति तो दिला दी है । पर उस पत्थर को इससे दूर करना होगा । बल्कि इससे ही क्या उसे किसी भी सुंदर बच्ची के सम्पर्क में नही आने देना हैं । वो जिस भी बच्ची को मिलेगा वो बच्ची इसी तरह उस तांत्रिक की अंशात्मा के प्रभाव में आ जायेगी । आप उस पत्थर को जितना जल्दी हो सके घर से वापस उसी किले में फेंक आइए या गाड़ आइए।
वो तो ये ठीक हुआ कि 24 घण्टे के अंदर ही आप इस बच्ची को मेरे पास ले आये । वरना इन काली शक्तियों की शक्ति समय गुजरने के साथ साथ पीड़ित व्यक्ति को और भी प्रभावशाली ढंग से अपने वश में ले लेतीं हैं । ""
घर वापिस आकर प्रकाश और सुलक्षणा कमरे में हर तरफ और ज्योति के समान में वो पत्थर का टुकड़ा ढूंढने लगते हैं । पर उन्हें वो कही नही मिलता । तभी प्रकाश को याद आता है जब वो ज्योति को पकड़ने गए थे और उसने उन्हें जोर की लात मारी थी तो वो टेबिल से टकराये थे । और टेबिल पर से कुछ सामान नीचे गिर गया था । जिसमे उन्होंने एक अजीब सा कुछ देखा था । पर उस वक़्त उन्होंने उस तरफ ध्यान नही दिया था । उन्होंने मिताली से इस बारे में पूछा । मिताली ने बताया कि उसे नही पता । आपलोगों के जाने के बाद बाई ने झाड़ू लगाकर कचरा बाहर सड़क पर टँकी में डाल आई थी ।
प्रकाश ये सुनते ही नीचे सड़क पर उस कचरे की टँकी की तरफ दौड़ लगाते हैं । पर तब तक देर हो चुकी थी । निगम की गाड़ी आकर कचरे की टँकी खाली कर जा चुकी थी । वो निराश होकर वापिस आ जाते हैं ।
नगर निगम की कचरा गाड़ी उस कचरे को शहर के बाहर ले जाकर कचरा खंती में उड़ेल देती है । जहाँ कचरे और कूड़े के बड़े बड़े ढेर लगे हुए थे । शहर के बाहर बसी हुई बस्तियों के कुछ छोटे लड़के उन कचरे के ढेरों में से उनके काम की चीज़े ढूंढने वहाँ पहुंचते हैं । तभी एक छोटे बच्चे की नज़र एक अलग से चमकीले पत्थर पर पड़ती है । वो उसे उठाकर जेब मे भर लेता है । और बस्ती में आकर खेलने लगता है । खेलते खेलते उसकी जेब से वो टुकड़ा वहीं सड़क किनारे गिर जाता है ।
कुछ समय बाद तीन-चार लड़कियों का ग्रुप वहाँ से गुजरता है । उनमें से एक लड़की की नज़र उस अज़ीब से चमकते पत्थर पर पड़ती है । वो झुककर उसे गौर से देखने लगती है । उसकी आगे निकल चुकी सहेलियों की नज़र जब पीछे रुकी उस लड़की पर पड़ती है तो वो उसे अवाज़ देतीं हैं ।
"" अरे नीलिमा क्या कर रही है । जल्दी चल देरी हो रही है ।""
नीलिमा अपनी सहेली की आवाज़ सुनकर उस पत्थर को उठाकर अपने बैग में रख मुस्कुराकर आगे बढ़ जाती है ।
समाप्त
लेखक - अतुल कुमार शर्मा " कुमार "