जब भी कभी किसी लेखक या कवि को अपनी बात को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के सामने व्यक्त करना होता है तो वह अपनी जरूरत..काबिलियत एवं साहूलियात के हिसाब से गद्य या पद्य..किसी भी शैली का चुनाव करता है। अमूमन हर लेखक या कवि उसी..गद्य या पद्य शैली में लिखना पसंद करता है जिसमें वह स्वयं को सहज महसूस करता है। मगर कई बार समय के दबाव..विचार की ज़रूरत एवं दूसरों की देखादेखी भी हम एक से दूसरी शैली की तरफ़ स्थानांतरित होते रहते हैं। जैसे गद्य शैली में व्यंग्य कहानियाँ लिखते लिखते मैंने खुद भी कई बार कुछ कविता जैसा रचने का प्रयास किया। ऐसे ही बहुत से कवि भी हुए जिन्होंने कविताओं से कहानियों और उपन्यासों की दुनिया में कदम रखा।
दोस्तों..आज मैं एक ऐसी ही कवियत्री 'कुसुम पालीवाल' की बात करने जा रहा हूँ जिनके अब तक तीन काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं और अब उन्होंने 'कुछ अनकहा सा' नाम की एक किताब के ज़रिए कहानियों की दुनिया में कदम रखा है।
सहज..सरल भाषा में लिखी गयी इस संकलन की कहानियों को देख कर साफ़ पता चलता है कि वे अपने आसपास के माहौल..ताज़ातरीन अख़बारी सुर्खियों एवं ज़रूरी मुद्दों के बारे में अच्छी जानकारी रखती हैं। उनके इस संकलन की किसी कहानी में शराबी..जाहिल एवं बेरोज़गार पति के धौंस दिखा..मारने पीटने जैसी बातों को कई साल से झेल रही युवती एक दिन विरोधस्वरूप उसे जस का तस जवाब देती नज़र आती है। तो इसी संकलन की जटिल सैक्स संबंधों को ले कर रची गयी एक अन्य कहानी इस अहम मुद्दे को उठाती नज़र आती है कि स्त्री की बनिस्बत पुरुष की इच्छाएँ..भावनाएँ या सिर्फ़ उसका आत्मसम्मान ही महत्वपूर्ण क्यों?
इसी संकलन की एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ कभी खुद अपनी सास के कठोर नियंत्रण में रही उस स्त्री की बात करती है जो बेटे के बड़े होने पर चाहती है कि उसके बेटे को वे सब खुशियाँ मिलें जो उसके पिता को अपनी माँ याने के उसकी सास के कड़े स्वभाव की वजह से नहीं मिल पायी थी। तो वहीं दूसरी तरफ़ ब्लैकमेलिंग और दोस्ती जैसे ताने बाने में लिपटी इसी संकलन की एक अन्य कहानी मुम्बई की किसी कम्पनी में जॉब करने वाली उस जवान..खूबसूरत पढ़ी लिखी रिया की बात करती है जो अपने बॉस की लुभावनी बातों में आ..जॉब से साथ साथ अपने एक्स्ट्रा खर्चों को अफ़्फोर्ड करने के लिए एस्कॉर्ट का काम भी कर रही है।
एक अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ उस नरगिस की बात करती है जिसे मात्र 9 साल की उम्र में उसके शराबी चाचा ने फरज़ाना नाम की समाज सेविका को बेच दिया था। घर के सारे काम संभालने वाली नरगिस के 16 साल की होने के बाद उसके साथ, फरज़ाना के जानते..समझते हुए भी उसके दो बेटों ने, जिन्हें वो भाईजान कहती थी, बारी बारी बलात्कार किया मगर उन्हीं के तीसरे भाई ने उसे इज़्ज़त बक्शी और उसके साथ निकाह कर..अलग घर में रहने लगा। तो वहीं दूसरी तरफ़ इसी संकलन की अन्य कहानी शराब के लिए हरदम तड़पते भीखू और धनिया की बेटी ललिया की उन मजबूरियों की बात करती चलती है जिनके तहत गरीबी..भुखमरी और पिता की शराब के लिए उसे लाला की रखैल तक बनना पड़ता है।
इसी संकलन की एक कहानी में जहाँ एक तरफ़ दहेज लोलुपों के घर में बहु की शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना की बात होती दिखाई देती है।
तो दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी साहित्यिक गोष्ठियों में नाम..सम्मान प्राप्त कर रही कविता और उसके शक्की पति सुरेश की बात कहती है। जिसमें अपने चरित्र..अपनी अस्मिता पर लांछन लगते देख कविता चुप नहीं रह पाती और एक कड़ा फैसला लेने पर मजबूर हो उठती है।
इसी संकलन की लिव इन मुद्दे पर लिखी गयी एक अन्य कहानी कम्पनी की एम. डी, उस काव्या की बात करती है जिसने अपने ही दफ़्तर में नए नए भर्ती हुए सुहैल पर मोहित हो उसे अपने साथ लिव इन में रहने के लिए तैयार तो कर लिया मगर इस सब का अंजाम क्या होगा? यह किसको पता था?
तो वहीं एक अन्य कहानी बेटे के बड़े हो जाने के बाद घर-परिवार के कामों में उलझी उस सीमा नाम की स्त्री की बात कहती है कि किस तरह उसने अपने पति के विरोध के बावजूद भी ज़िद पर अड़ कर अपना..खुद का एक अलग वजूद पाया।
भाषा के लिहाज़ से अगर देखें तो सीधी..सरल भाषा में लिखी गयी इस संकलन की कहानियों में खासा प्रवाह नज़र आया जो पाठक को अपने साथ जोड़े रखने में सक्षम तो है मगर परिक्वता के स्तर पर इस संकलन की कहानियाँ मुझे कुछ कुछ अधपकी सी या फिर जल्दबाज़ी में लिखी गयी लगीं। इन पर छपने से पहले अभी और काम होना चाहिए था। कुछ कहानियाँ ने अपने सतही होने से तो कुछ ने अपने थोड़ी फिल्मी या भाषण देने वाली होने की वजह से भी अपना असर खोया। इस सबके अतिरिक्त कुछ कहानियाँ बेवजह खिंची हुई सी भी लगीं। उदाहरण के तौर पर...
** ब्लैकमेलिंग से जुड़ी हुई 'अफ़्फोर्ड' कहानी इसलिए भी तर्कसंगत नहीं लगी कि एक कम्पनी में काम कर रही कहानी की नायिका ने अपने एक्स्ट्रा खर्चों को एफ्फोर्ड करने के लिए अपने बॉस की सलाह पर कॉलगर्ल जैसा धन्धा अपनाया हुआ है जिसे उसका दोस्त( भावी बॉयफ्रेंड) और पुलिस.. यहाँ तक कि वह खुद भी सहज रूप से ले रही है। कहानी के अंत में भी वह सहजता से ही अपने दोस्त से पूछ रही है कि..
"क्या तुम मुझे अफ़्फोर्ड कर सकते हो?"
इस पर दोस्त भी उसी सहजता से उत्तर दे रहा है कि..
"क्यों..नहीं..रिया?"
एक और बड़ी बात यह कि उसका बॉस भी उसे लिव इन में उसके साथ रहने, प्रेमिका या रखैल बनने के बजाय कॉलगर्ल बनने की सलाह देता है जिसे वह उसी सहजता के साथ मान भी लेती है।
** इसी तरह 'कुछ अनकहा सा' कहानी को कायदे से वहीं खत्म हो जाना चाहिए था जहाँ पर फरज़ाना का तीसरा बेटा अपने भाइयों द्वारा बलत्कृत नरगिस को अपना लेता है। इस कहानी को बाद में बेवजह खींचा गया जिसकी बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं थी।
** इसी तरह 'भीखू' कहानी में भीखू द्वारा लाला का कत्ल करने के बावजूद भी पंचायत द्वारा उसे बेगुनाह करार दिया जाना। देश की कानून व्यवस्था और पुलिस का कत्ल की वारदात पर भी आँखें मूंदे से रहना। भीखू द्वारा सुधर कर उसी गाँव मे रहना। कुछ हज़म होने वाली बात नहीं लगी।
वर्तनी की अशुद्धियों के अतिरिक्त प्रूफरीडिंग के स्तर पर भी कुछ ग़लतियाँ दिखाई दी एवं शब्द भी ग़लत छपे हुए दिखाई दिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस किताब के अगले संस्करण में या आने वाली किताबों में इस तरह की कमियों से बचा जाएगा। 118 पृष्ठीय इस कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है इंडिया नेटबुक्स ने और इसका दाम रखा गया है 200/- जो कि मुझे ज़्यादा लगा। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।