34--वो दिन
सोहन और नाज़िया कालेज में पढ़ते थे।दोनो में दोस्ती हुई जो धीरे धीरे प्यार में बदल गयी।प्यार होने के बाद दोनों का काफी समय साथ मे गुज़रने लगा।उन्हें लगने लगा कि वे एक दूसरे के बिना नही रह सकते,तब दोनो ने जीवन साथी बनने का निर्णय लिया।
एक दिन नाज़िया ने अपने प्यार के बारे में अपने अब्बा को बताते हुए कहा," मैं सोहन से निकाह करना चाहती हूँ।"
"क्या?"बेटी की बात सुनकर असलम चोंकते हुए बोला,"तू एक हिन्दू को अपना शौहर बनायेगी।"
"अब्बा शादी हिन्दू मुसलमान की नही होती।शादी एक मर्द और एक औरत की होती है।"
"दो अक्षर क्या पढ़ गयी अपने मजहब को ही भूल गयी,"असलम बेटी की बात सुनकर गुस्से में बोला,"कान खोलकर सुन ले।तू जिस मुसलमान लड़के की तरफ इशारा कर देगी।उससे तेरा निकाह कर दूंगा।लेकिन एक काफिर को अपना दामाद हरगिज नही बनाऊंगा।"
"तो अब्बा आप भी सुन लो।,"नाज़िया भी दृढ़ता से बोली,"मैं निकाह करूंगी तो सिर्फ सोहन से ही करूंगी।"
बेटी के तेवर देखकर असलम ने सोचा।अगर उसने सचमुच ऐसा कर लिया तो बिरादरी में उसकी बहुत बदनामी होगी।इस डर से उसने बेटी का कालेज छुड़वा दिया।वह बेटी का जल्दी निकाह कर देना चाहता था।इसलिए उसने बेटी के लिए अपने समाज मे लड़के की तलाश शुरू कर दी।
नाज़िया,सोहन के अलावा किसी दूसरे मर्द को अपना शौहर बनाना नही चाहती थी।वह समझ गयी उसका अब्बा सोहन को उसका हमसफ़र हरगिज नहीं बनने देगा।इसलिय उसने सल्फास की गोली खाकर आत्महत्या कर ली।
नाज़िया की आत्महत्या की खबर सोहन को मिली तो वह पागल सा हो गया।उसने नाज़िया के साथ जीने मरने की कसम खायी थी।जब उसका प्यार ही नही रहा तो वह जीकर क्या करेगा?उसने अपने की गोली मार ली।
समाज और धर्म के ठेकेदार और खाप पंचायते जाति धर्म के नाम पर कब तक दो प्यार करने वालो को आत्महत्या के लिए मजबूर करते रहेंगे।
कब आयेगा वो दिन जब मर्द औरत को अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने की आजादी होगी।
35--दुख
वह रिक्शे के इन्तजार में खड़ी थी।काफी देर तक कोई रिक्शा नही आया,तो वह पैदल ही चल पड़ी।
अचानक एक आदमी ने उसके पास आकर उसके कंधे पर लटक रहे पर्स पर झपट्टा मारा।उसने पर्स हाथ से भी पकड़ रखा था।इसलिए वह। पर्स लेने में सफल नही हुआ।वह आदमी उसके हाथ से पर्स छुड़ाने का प्रयास करने लगा।वह मदद के लिए चिल्लाने के साथ उस आदमी की पकड़ से पर्स छुड़ाने का प्रयास भी करने लगी।इस प्रयास में वह ज़मीन पर भी गिर गयी।वह आदमी उसे काफी दूर तक घसीटते हुए भी ले गया।
इस दृश्य को देखकर सड़क से गुज़र रहे लोग जहां के तहां खड़े हो गए।वह पर्स छोड़ना नही चाहती थी,लेकिन वह आदमी उस से पर्स छीन कर ले जाने में सफल हो गया।दिन दहाड़े लूट की घटना का समाचार मिलते ही एक पत्रकार उसके पास जा पहुंचा।
"मेडम,पर्स में कितने रु थे?"
"पचास हज़ार रु बेटे की स्कूल फीस के लिए बैंक से निकालकर ला रही थी।'
"दुख की बात है आपके पचास हज़ार रु चले गए।"
"मुझे रु जाने का उतना दुख नही है जितना लोगो के तमाशबीन बने रहने का है।अगर एक भी आदमी मेरी मदद के लिए आगे आया होता तो वह गुंडा मेरा पर्स छीन कर नही ले जा सकता था,"वह बोली,"तमाशबीन लोगो को सोचना चाहिए जो आज मेरे साथ हुआ।कल उनके साथ भी हो सकता है।"