Saheb Saayraana - 23 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | साहेब सायराना - 23

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साहेब सायराना - 23

"तुम क्या जानो कि आए पास तुम्हारे
हम कितनी दूर चलके"
सायरा बानो ने जब अपनी मम्मी के साथ दिलीप कुमार की फ़िल्म "मुगले आज़म" की शूटिंग देखी तब से ही वो दिलीप को एक अलग नज़र से देखती थीं। वो दिलीप कुमार से मिलती रह सकीं क्योंकि दिलीप उनकी मम्मी नसीम बानो की बहुत इज्ज़त करते थे और उनके परिवारों के बीच बड़े निकट के रिश्ते थे।
लेकिन फ़िर भी लोगों से ये सुन -सुन कर वो कभी- कभी थोड़ी निराश हो जाती थीं कि दिलीप उम्र में उनसे बहुत बड़े हैं। कुछ सहेलियां उन्हें ये भी समझाती थीं कि दीदार, आन, अमर और पैग़ाम जैसी फ़िल्मों में काम कर चुके दिलीप साहब उन्हें प्यार के काबिल नहीं समझते बल्कि एक बच्ची की तरह ही चाहते हैं। सायरा को भी कभी- कभी उनकी बात पर यकीन होने लग जाता था जब दिलीप साहब किसी बच्ची की तरह ही मानकर प्यार से उनके बालों में अंगुलियां फिरा दिया करते।
लेकिन एक समय ऐसा आया कि दिलीप कुमार और सायरा बानो के बीच का पर्दा हट गया।
ऐसा नहीं था कि दिलीप कुमार पहले कभी प्यार के रास्ते से न गुज़रे हों। पहले अभिनेत्री कामिनी कौशल और फ़िर उनके बाद मधुबाला के भी वो बहुत करीब आए थे। कामिनी कौशल से साथ उड़ी ख़बरें तो महज़ उम्र का तकाज़ा था जो साथ में काम करने वालों में झलक ही जाता है किन्तु मधुबाला के साथ उनका आकर्षण लगभग नौ साल तक चला। कभी- कभी तो ऐसा लगता था कि जैसे वो दोनों शादी कर लेंगे।
मधुबाला के पिता अताउल्ला खां ख़ुद भी फ़िल्म निर्माण से जुड़े थे। उनके लिए दिलीप कुमार को अपना दामाद बना लेना व्यावसायिक रूप से भी मलाईदार होता। खासकर ऐसे में जबकि दिलीप और मधुबाला साथ में भी कुछ फ़िल्मों में काम कर रहे थे।
लेकिन कड़ी स्पर्धा की लहरों से तरबतर फ़िल्म नगरी में सब कुछ अपनी मनमर्ज़ी के मुताबिक़ नहीं होता। दिलीप कुमार को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आई कि उनके प्यार या उनकी शादी को उनके करियर से जोड़ कर देखा जाए। और इसी बात ने मधुबाला के पिता और दिलीप कुमार के बीच रिश्तों में खटास पैदा कर दी। हालांकि मधुबाला से उनका प्यार महज़ एक सामयिक आकर्षण नहीं था। वो उन्हें लेकर गंभीर थे और एक बार तो उनसे निकाह की तैयारी तक कर बैठे थे। ख़बर तो यहां तक उड़ी कि दिलीप कुमार ने मधुबाला को घर वालों से बगावत कर के उनके साथ आने की पेशकश कर दी थी। यही नहीं, बाद में फ़िल्म "मुगले आज़म" ने तो उन दोनों की छवि भी ऐसी बना छोड़ी थी कि मानो वो दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हों।
लेकिन तब तक मधुबाला के पिता के दख़ल से उनके आपसी निजी रिश्तों की सुलगती आग ठंडी पड़ चुकी थी। मधुबाला की तबीयत भी नासाज़ रहने लगी थी और उनका विवाह भी किशोर कुमार से हो गया था।
इधर सायरा बानो का झुकाव भी अपने साथ काम कर रहे जुबली कुमार कहे जाने वाले स्टार राजेंद्र कुमार के साथ होने लगा। वो राजेंद्र कुमार को पसंद करने लगीं। राजेंद्र कुमार तब तक अविवाहित नहीं थे बल्कि कम उम्र में विवाह करके बच्चों के पिता भी बन चुके थे।
राजेंद्र कुमार का जलवा उन दिनों ऐसा ही था कि फिल्मी युवतियां उनका साथ पसंद करती थीं। लेकिन ग्रामीण पृष्ठभूमि के सीधे सादे राजेंद्र कुमार इतने अनुशासित और घरेलू से थे कि कभी साधना जैसी शोख और सफ़ल सिनेतारिका की मां भी साधना का रिश्ता राजेंद्र कुमार से कर देना चाहती थीं।
तभी सायरा बानो के जन्मदिन की एक पार्टी में राजेंद्र कुमार के लिए उनकी चाहत और नजदीकियां उजागर हो गईं। ये भांपते ही उनकी मां नसीम बानो सतर्क हो गईं और उन्होंने बेटी पर इस रिश्ते को ख़त्म कर देने का दबाव बनाया। वैसे भी दोनों के धर्म और उनका पारिवारिक वातावरण बिल्कुल अलग था। सायरा जहां लंदन में पली- बढ़ी आधुनिक युवती थीं वहीं राजेंद्र ने सितारा बन जाने के बाद भी अपनी मिट्टी को छोड़ा नहीं था।
और इस अजूबी दुनिया में जहां मुस्लिम परिवार की मधुबाला ने दिलीप को छोड़ कर हिंदू परिवार के किशोर से शादी की थी, वहीं सायरा बानो को राजेंद्र कुमार से संबंध ख़त्म करने के लिए मना लिया गया। मज़े की बात ये थी कि सायरा को समझाने की यह ज़िम्मेदारी नसीम बानो द्वारा ख़ुद दिलीप कुमार को ही दी गई थी क्योंकि सायरा दिलीप को न केवल चाहती रही थीं, बल्कि उनका बहुत सम्मान भी करती थीं। सायरा ने इस अवसर को दिलीप कुमार के मुंह से अपने लिए आकर्षण की बात को उगलवा लेने में बदल दिया और अपने से दुगनी उम्र के दिलीप कुमार से शादी करने का रास्ता साफ कर दिया।
उन्नीस सौ छियासठ में जब दोनों का विवाह हुआ तब दिलीप चौवालीस साल के थे और सायरा महज़ बाईस साल की।