charcha aam ki in Hindi Love Stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | चर्चा आम की

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चर्चा आम की

चर्चा आम की

यशवन्त कोठारी

इधर काफी समय से एक विज्ञापन पर नजरें जमीं हुई थीं, जिसमें एक युवती आम-सूत्र शब्द का उच्चारण इस अंदाज में करती है कि दर्शकों-पाठकों को काम-सूत्र शब्द का आभास होता था। इधर सियासत में भी आम काफी चर्चा में हैं. कवि हैरान परेशान था। इधर आम का मौसम आ गया है, सो कवि ने काम-सूत्र की तर्ज पर आम-सूत्र पर लिख मारा। जैसा कि चचा गालिब फरमा गये है केवल गधे ही आम नहीं खाते चूंकि कवि गधा नहीं है सो आम खूब चूसता है। कच्ची हरि केरी को देखकर तो कवि के मुंह से लार टपकने लग जाती है। वैसे भी कवि को खट्टा ज्यादा पसन्द आना कोई बड़ी बात नहीं है। रेशेदार आम की गुठली चूसते समय तो दाढ़ी की याद आ जाती है। वैसे भी आम तो आम और गुठलियों के दाम भी आजकल आसमान छू रहे है। अम्मा महंगाई की मार कम करने के लिए आम के छिलकेों की सब्जी, गुठली के अन्दर के बीज की सब्जी भी बना देती थी ताकी मंहगाई की कुण्डली के राहू-केतू-शनि शान्त हो जाये। इधर बाजार में आमों की बहार आई नहीं और स्वर्गीय दादाजी टोकरे भर भर कर आम ले आते। हम भी खाते और मौहलें-रिशतेदारी में भी भिजवाते मगर अब वो सब कहां। अब एकाध आम लाते है। उसे ठण्डा करते है। तराशते है, फांके करते है और घर के हर सदस्य को आम की एक फांक मयस्सर हो जाती है। राजागिरी अलफासो या असली हापुस तो अमेरिका वाले खाते है बाबूजी कहा मुझे एक मेवा फरोश ने। आम हिन्दुस्तानी बढिया मंहगे आम क्या खा कर खोयगा। मेरा मन भी अमेरिकी बनने का हो गया। आम तो आम खास भी आम नहीं खा पा रहा। मगर क्या करुं गर्मियो में पोते-पोतियों, नाति-दोहिते-दोहितियां, बेटी, बहन, भुवा पीयर आती तो आमों के सहारे पूरी गरमियां कट जाती। आम का पणा, केरी की छाछ, केरी का शर्बत और न जाने क्या क्या मगर आजकल की कामकाजी बहुओं को केरियर की पड़ी है, बेटी,बहन, भुवा को कौन याद करता है। आम के नामों की एक अलग ही दास्तान है रंग रुप के आधार पर आप आम को सफेदा, भूरा, तोतापुरी, बाम्बे यलो, नीलम, सिन्दूरी आदि बुला सकते है। ष्शक्ल-सूरत के आधार पर, करेला, गोल, चिकना, हाथी फल, सीपियां, चौसा आदि कह सकते है। जगह के हिसाब से सूरत, रत्नागिरी, राजपुरी, मलीहाबादी, आदि नाम भी प्रचलित है। नामों के आधार पर दशहरी, फजली, जाफरान, अलफासांे, आदि नाम भी बहुत प्रचलित है। लेकिन देशी रेशेदार आम का मजा ही कुछ और है। कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर को भी आम बहुत पसन्द थे। यदि कलम में दम हो तो आप अमरुदों को भी आम के समकक्ष साबित कर सकते है। एक आम का नाम ककड़िया भी है जिसकी गुठली लैला की पसलियों की तरह पतली होती है। औरगंजेब में ओर कई ऐब होंगे मगर आमों के मामले वो पूरा बादशाह था, उसने आमों के नाम संस्कृत में रखे। और बहुत ही मौजूं रखे। उसने आम को रसना-विलास कहा। एक अन्य नाम सिद्धरस दिया। अकबर ने आमों के बड़े-बड़े बाग लगवाये। अभी भी भारत के प्रधानमंत्री पाकिस्तानी राप्टपति केा आमों की सौगाते भेजते हैं। वैसे संस्कृत में आम का एक नाम चूत-फल भी है। आम खाईये बन्धु पेड मत गिनिये। कवि और आम-सूत्र से बात शुरु हुई तो उर्दू के मश्हूर शायर अकबर इलाहाबादी का यह कलाम पढ़िये और रुखसत होने की इजाजत दीजिये क्योकि कविप्रिया ने फ्रिज से ठण्डे दशहरी आम निकाल कर तश्तरी में रख दिये है।

नामा न भेजिये, न तो पैगाम भेजिये।

इस रुत में अगर भेजिये तो आम भेजिये।।

इसका रहे ख्याल कि रख के भी खा सकूं।

पच्चीस गर हो पक्के तो दस खाम भेजिये।।

मालूम ही है आपको बंदे का एडरेस।

सीधे इलाहाबाद मेरे नाम भेजिये।।

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यशवन्त कोठारी, 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर जयपुर - 2, फोन .9414461207