"अनपढ़"
-डा जय शंकर शुक्ल
दोपहर का समय, फिर भी हल्की-हल्की धूप खिली है। फाल्गुन का उत्सव, होली का दिन चारों ओर धूम-धम्क्कड़ ढोल-नगाडों के साथ नाचती-गाती युवकों की मंडली जोर-जोर से चिल्लाती –“होली है। - बुरा न मानो होली है।
“ चारों ओर रंग ही रंग लहरा रहें है। आने-जाने वाले सभी के चेहरे लाल, पीले, हरे, काले, इन्हें देख आज लंगूर भी शरमा जाए। लड़खड़ाते हुए, पानी की बोछारों का आनंद लेते अपनी-ही मस्ती में चले-जा रहे हैं। कोई किसी की शर्ट रंग रहा है, तो कोई चेहरे पर गुलाल रगड़ रहा है। बच्चे भी इनके ऊपर पिचकारी से रंग डालकर खिलखिलाते हुए कह रहें हैं, बुरा न मानो होली है।
सरकार की ओर से एक दिन पहले ही ड्राई-डे का ऐलान हुआ है। इस ड्राई-डे पर शरीर को नीचे से ऊपर तक बाहर रंग बिरंगे गुलाल और पानी से तर किया तो, अंदर आधुनिक सोमरस ने चरम की सीमा ही लाँघ दी है। साल भर गला तर न करने वालों ने भी आज, एक पैग होली के नाम कहकर, एक घूंट में ही चढ़ा ली है और झूमते हुए गा रहे है-
“रंग बरसे भीगे……., रंग बरसे होली है,” कहने में मगन हुए चले जा रहे है आगे की ओर। जगह-जगह संगीत यंत्रों से इसी गीत की आवाज़ आती जिसके साथ मंत्रमुग्ध हो, हुल्लड़पन लिए फिर गाते “होली है। बुरा न मानो होली है।“
इसी बीच लोग शाम ढलते-ढलते अपने-अपने में मगन खुद भी धीरे-धीरे खाट पर लंबे हो, बाकी सब के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। जिन्होंने नहीं पी है, वे नहा-धो कर अपनें कपड़े बदल रहें हैं। घर में लोग आ जा रहे हैं, दरवाजा खुला रह गया है। उधर चोर ने अपने टारगेट को साध रखा है, और वह हुक्की-झुक्की दे साइकिल ले निकल भागा।
तभी अचानक घर के अंदर से आवाज आई-
“ चोर- चोर- चोर, साइकिल लेकर भाग रहा है। पकड़ो-पकड़ो-पकड़ो। वो,… भाग् गया। भाग गया, साइकिल लेकर। युवक ने आवाज़ सुनकर आनन-फानन में हाफ-पेंट और बनियान पहन दौड़ लगा दी, चोर को पकड़ने के लिए। ड्राइ-डे पर शाम के वक्त रोड सुनसान हो गया है, सभी अपने-अपने घरों में नशे में धुत्त हैं या होली के रंग छुड़ाते नहा धो कर तैयारी कर रहे हैं, देवताओं के अर्चन की। युवक चोर के पीछे बहुत तेज गति से दौड़े जा रहा है, मानो कीनियाई एथलीट को पछाड़ने का इरादा हो।
जोर-जोर चिल्लाता हुआ-“चोर-चोर।“ किसी ने दूर से हंसते हुए कहा
“भाग मिल्खा भाग!”
चोर ने भी साइकिल चलाने में पूरी जान झोंक दी मानो साइकिल चलाने के सारे विश्व रिकार्ड आज ही तोड़ने वाला हो।
युवक दौड़ता हुआ जोर-जोर से चिल्लाते हुए –
“चोर-चोर-चोर पकड़ो इसे।मेरी, साइकिल लेकर भाग रहा है।
चोर ।“
एक दुकानदार टकटकी लगाये देखते हुए कहता है-
“इसे क्या हुआ? ये बदहवास हुआ किसके पीछे भाग रहा है।
“ कुछ दूर जाकर चोर मुख्य मार्ग छोड एक गली में घुस गया, जहां कुछ युवा होली खेल रहे हैं, वह दौड़ते चिल्लाते उस युवक की आवाज सुन, चोर के पीछे-पीछे दौड़ पड़ते हैं, चिल्लाते हुए----
“चोर-चोर।“
कोई इधर से पीछा करता, कोई उधर से, चारों तरफ गलियों में दौड़-दौड़ कर चोर को आखिर पकड़ ही लिया।
दौड़ते - दौड़ते युवक का साँस चढ़ गया। वह कुछ पल रुककर सांस लेता और हांफते-हाँफते कहता-
“अरे! अच्छी होली मना दी इस चोर ने। आज तो तुझे जेल भेज कर ही दम लूंगा।“
पसीने में तर-बतर युवक ने साइकिल हाथ में पकडी और युवकों ने चोर को कस कर पकड़ लिया। साथ ले चल दिए घर की ओर।
युवक कन्धों को खोल, उत्साह से लबरेज़ हुए कहता है –
“ कस के पकड़ना भाई, कहीं ये चोर भाग न जाये।“
अन्य युवक आपस में बात करते हुए कहते है –
“हमारी भी कई बार साइकिल चोरी हुई है, आज तक नहीं मिली, आज पहली बार साइकिल चोर पकड़ा है भाग न जाए, आज तो इसे बंद करवा कर ही रहेंगे। क्या पता, इसने ही हमारी साइकिल भी चुराई हो?”
रास्ते में चलते-चलते दो पुलिस वाले मिल गए। युवक ने जोर से आवाज लगाते हुए कहा -
“अरे दीवान जी। देखो यह चोर साइकिल चुरा कर भाग रहा था।“
पुलिस वालों ने चोर को दो डंडे पेलते हुए कहा
“ अबे, होली के दिन चोरी करता है। आज तो तू भी छुट्टी मनाकर होली खेलता I”
अन्य युवक आपस में बात करते हुए- “यह नशैड़ी साइकिल चोरी कर बेच देते हैं और स्मैक, गांजा लगा अपनी जिंदगी तिल-तिल कर खत्म कर रहे हैं।
अपनी जान के खुद ही दुश्मन है ये सा….।“
चोर का कालर पकड़ते हुए सिपाही कहते है-
“कितने लात घूंसे मारे इन्होंने तुझे।“
चोर सहज भाव से कहता हुआ– “साहब। एक भी नहीं सिपाही चोंकते हुए –“झूठ बोलता है। पीटा तो होगा बता नहीं रहा है, कहीं सुना है ऐसा कि चोर पकड़ा गया हो और वह भीड़ से पिटे भी नहीं।“
चोर भोलेपन से बोलता है-
“साहब यह बड़े भले लोग हैं, सच कहता हूं, इन्होंने जैसे ही पकड़ा तुरंत आपने लपक लिया।“
सिपाही ने व्यंगात्मक तरीके से कहा – “हम न आते तो, तेरा पीट-पीट कर कचूमर निकाल देते। ये भले लोग।“
रस्ते में एक मसखरा कचौड़ी वाला अपनी धुन में गाता और आवाज लगाते कह रहा है –
पापा ने रोटी बना ली मम्मी ने रोटी खा ली आपका क्या होगा जनाब ए आली ।
अरे दिवान जी आज तो दो मुर्गे हाथ आ गए शाम का इंतज़ाम होगा ।“
हँसते हुए कहता है।सिपाही अरे जैन कचौड़ी वाले क्या कह रहा है ।“
कचौड़ी वाला दांत खिलखिलाते हुए कहता है –
“ कुछ नहीं साहब मैं तो यूँ ही हंस रहा था इन मुर्गों पर।साहब मेरी इतनी जुर्रत कहाँ, जो आपसे कुछ कह सकूँ ।“
सिपाही चोर से कहते है-
अरे सुन। तू हर गली में घूमता फिरता है कचौड़ी बेचता कही कोई मकान बनता दिखाई दे तो हमें जरूर बताना । लोग बिना नक्शा पास करवाये माकन बना लेते है और छज्जा भी ढाई-ढाई फुट करके पांच फुट कर देते है दस फुट की गली मे। सबको परेशानी होती है बाद में कोई देखे तो बताना।
“ कचौड़ी वाला “ ठीक है साहब दिखेगा तो बता दूंगा । कुछ और सेवा हो तो बताएं साहब।
“ सिपाही ने कहा “नहीं, अभी कुछ नहीं ।“?
चलते-चलते थाना भी आ गया और रात हो चली है, धीरे-धीरे अँधेरा भी अपने पैर पसार रहा है, उस पर चन्द्रमा भी आज अपनी गोलमोल आकृति लिए, आकाश को अपनी दूधिया रोशनी से नहला रहा है, इसी रोशनी में थाने में बेकार पड़ी कार, साइकिल, स्कूटर,मोटर बाइक जिनकी हालत लगभग खस्ता हो चुकी है, थाने में अंदर पहुँचते ही सबकी नजर इन पर पड़ी ।
इन सभी पर इतनी धूल जमी है मानो यह सभी बाबा आदम के जमाने से यहां पड़ें हों, किसी के पहिये में हवा गायब है तो किसी का इंजन ही कोई ले भागा है। एक बस भी खड़ी है पूरी की पूरी आग में खाक हुई बस क्या! अब तो सिर्फ ढांचा ही रह गया है, मानो किसी बड़े हादशे की गवाही दे रही हो। चन्द्रमा भी इन पर अपनी रोशनी छींटक रहा है।जैसे ये भी समझा रहा है, कि यहाँ और जो आगे जमा होंगी उनकी हालत भी ऐसी ही हो जायेगी बाबा आदम के ज़माने वाली! होशियार। खबरदार अपने सामान की रक्षा स्वयं करें!
गेट के अंदर घुसते ही, रिसेप्शन पर पुलिस लेडी, और एक पुलिस का जवान दोनों कार्य में जुटे हुए कहते हैं- “धर्मपाल। ये किसे उठा लाये?” धर्मपाल सिपाही चोर की और देखते हुए कहता है- “चलते-चलते रास्ते में हाथ आ गया सो पकड़ लाए।“
युवक दरोगा जी से कहता है - “इंस्पेक्टर साहब आज तो इसे हवालात में बंद कर ही दीजिए। बहुत दौड़ाया है इसने, तब कहीं जाकर हाथ आया है।“
दरोगा जी– “पहले यह बताओ कि यह साइकिल किसकी है।“
युवक –“ इंस्पेक्टर साहब किसकी मतलब यह चोर है, यह साइकिल जो हमारी है।“
दरोगा जी ने गर्दन गोल चक्कर की तरह घुमाते हुए कहा –
“ क्या सबूत है कि यह साइकिल तुम्हारी ही है?“
युवक सकपकाते हुए कहता है –“ इंस्पेक्टर साहब यह साइकिल हमारी नहीं! तो क्या इस चोर की है?“
दरोगा जी –
“हो सकता है, तुम इस लड़के को यों ही फंसा रहे हो। साइकिल इसी की हो और ये भी हो सकता है कि तुम इसकी साइकिल को हथियाना चाहते हो।“ युवक-
“इंस्पेक्टर साहब साइकिल की रसीद है हमारे पास कहो तो मंगवाए।“
दरोगा जी अपने सिर पर हाथ फेरते हुए बोले -
“हां मंगवाओ।“
युवक घर पर फोन करके कहता है –
“ पापा साइकिल की रसीद ले आइये, हमें यह पाइथा गोरस प्रमेय की तरह सिद्ध करना है, कि ये साइकिल हमारी ही है।“
युवक के पिता अपने पुरानी ज़र-ज़र हो चुकी सन्दूक से पुराने कागजातों में साइकिल की रसीद खोज निकालते हैं। “चलो मिल तो गई। देखूं उसी साइकिल की है ना कहीं किसी और साइकिल की न हो जो पहले चोरी हो गई है और आज तक जिनका अता-पता तक नहीं है।
अरे! तारीख ठीक है, एक जनवरी सन् चौरासी, यही है, नए साल पर खरीदी थी यह साइकिल।“
जल्दी-जल्दी फोटोकॉपी करवा, रसीद ले पहुंचे थाने।
अपने बेटे को रसीद व् उसकी फोटो कॉपी देते हुए
“लो कर दो सिद्ध कि यह साइकिल हमारी ही है। “
युवक मुस्कुराते हुए-
“इंस्पेक्टर साहब यह लीजिए, हमारी साइकिल की रसीद की फोटो कॉपी।“ दरोगा जी -
“धर्मपाल देखो तो साइकिल का फ्रेम नंबर मैच करो। रसीद से भी देख लेना कहीं कोई काट-पीट तो नहीं की है इसमें।“ धर्मपाल साइकिल के फ्रेम से नम्बर मैच करते हुए कहता है–
“साहब नंबर तो मैच कर गया।“
युवक उतावलेपन से कह रहा है- “इंस्पेक्टर साहब अब तो सत्यापन हो गया, यह साइकिल हमारी ही है।“
दरोगा –
“ हां ठीक है।“
युवक –
“ तो अब अब FIR दर्ज कर इस चोर को अंदर कर ही दो।“
दरोगा गंजी चाँद पर हाथ से दो चार बचे बालों को सँवारते कुछ विचार कर कहता है–
“धर्मपाल। रसीद दिखाओ तो, देखें कितने रुपए की है यह।“
दरोगा जी–
“ अरे भाई ये रसीद तो काफी पुरानी है, साइकिल का मूल्य 480 रुपये लिखा है इस पर।500 रूपये से कम आइटम की FIR दर्ज नहीं होती अपनी साइकिल ले जाओ।“
युवक –
“साहब चोर है, चोरी गई साइकिल है, गवाह है, तो फिर मूल्य की बात कहां से आ गई।“
दरोगा जी –
“ FIR का मतलब समझते हो! चोर तो बंद होगा ही साइकिल भी यही रहेगी, सबूत के तौर पर। अदालत के चक्कर काटने पड़ेंगे सो अलग। जानते हो, तारीख पर तारीख लगती है ,फ़िल्म दामनी का डायलाग तो याद होगा तुम्हें, तारीख पे तारीख; तारीख पे तारीख और मिलती है तो सिर्फ तारीख। वहां न जाने कितनी बार जाना पड़ेगा, अपना काम-धन्दा छोड़ कर।“
युवक झुंझलाते हुए –
“ चोर पकड़ा था, लगा बहुत बड़ा काम किया है ।आज सोचा था उर्दू फ़ारसी के शब्दों से भी परिचय हो जाएगा। जिंदगी में पहली बार जो आए थे FIR कराने।“ दरोगा जी –
“तुम्हारा समझौता करवा देते है। तुम्हारी साइकिल तो तुम्हें मिल ही गयी है। आज होली का त्योहार भी है। आज के दिन तो माफ़ करना ही चाहिए। चलबे माफ़ी मांग इनसे।“
चोर, कान पकड़ उठक-बैठक लगाता कहता है-
“साहब जी माफ़ कर दो, अब दुबारा गलती नहीं करूँगा।“
दरोगा जी –
“ क्यों बे, कहाँ रहता है?”
चोर –“ पुस्ते पार।“
दरोगा जी – “ फोन मिला अपने घर, बुला अपने घरवालों को यहाँ।“
चोर नम्बर मिलाने के बाद कहता है –“आउट आफ कवरेज है।“
दरोगा जी – “दूसरा नम्बर मिला।“
चोर –“ स्विच आफ है।
साहब रहने दो न बहुत मार पड़ेगी।“ दरोगा जी –
“मिलाता है की नहीं। कोई और नम्बर मिला जो लग जाये।“
चोर –“अभी । पडौसी का लेंड लाइन नम्बर मिलाता हूँ, साहब। हैल्लो मेरे पापा से बात करा दो, मैं भोलू बोल रहा हूँ। हेल्लो पापा जल्दी थाने आ जाओ।“ भोलू के पापा फोन पर डांट लगाते हुए –“ आज होली के दिन पूरे दिन गायब रहा, अब थाने में क्या कर रहा है?”
भोलू –“पापा। बस जल्दी-से चले आओ, बाद में पूछताछ करना।“
दरोगा जी ने कुर्सी पर पैर रख चोर का कान पकड़ चोर से पूछा-
“उम्र कितनी है तेरी? चोर ने गर्दन ऊपर कर दरोगा जी की आँखों में झाँकते हुए कहा-
“साहब साढे सोलह साल।“
दरोगा जी ने आँखें लाल-पीली कर गुस्से में चोर के बाल मुट्ठी में भरते हुए कहा –“साला दिखता 18-19 साल का है और उम्र साढे सोलह साल बता रहा है। माइनर बन छूटने की योजना तैयार की है सा……..ने।“
चोर सहमा हुआ-सा कहता है- साहब सच कहता हूँ, मेरी उम्र इतनी ही है, बस दीखता ही बड़ा हूँ।“
दरोगा जी चोर को हड़काते हुए –“क्यों बे, पढ़ाई कहाँ तक की है?
चोर ने सिर निचे कर, झेंपते हुए कहा-“नवी फेल हूँ साहब।“
दरोगा जी ने हँसते हुए कहा - “सब पास बताते हैं। तू फेल बता रहा है।“
चोर ने बड़ी गम्भीर मुद्रा में कहा “आठवी तक तो सरकार ने पास कर दिया, नवी में पहुँचते ही मैं फेल हो गया। साहब पढ़ाई में मन न लगता। स्कूल का गेट फ़ांद कर गिल्ली-डंडा खेलने चला जाता था यमुना किनारे। पर आज लगता है कि मैं ठीक से पढ़ता तो आज ये हालत न होती मेरी।“ सिपाही चोर पर हँसते हुए- “अरे! ये तो आर टी ई का प्रोडक्ट है। आज तक स्कूल में न तो मुर्गा बना होगा और न पिटा होगा आज यहाँ मुर्गा भी बना और पीटा भी।“ हँसते हुए कहता है- “लातों के भूत बातों से नहीं मानते। दो डंडे पड़ते ही अक्ल ठिकाने आ गयी सा…. की।“
युवक मुस्कराते हुए” दिवान जी आपका ये आर टी ई प्रोडक्ट जनगणना के समय बड़े गर्व से मास्टर जी से कहेगा “साहब अनपढ़ न दर्ज़ करो में नवी फेल हूँ! कम से कम नाम तो लिख ही लेता होगा।“ सभी जोर से ठहाके मारकर हसने लगे। दरोगा जी – “तू साइकिल चुरा कर क्या करता?”
भोलू –“ साहब आज पहली बार ही साइकिल लेकर भागा था, मेरे पास साइकिल नहीं है, गांधी नगर जाता हूँ, काम करने ₹ 3500 महीने मिलते है, काम करने के वहाँ आने-जाने का किराया बहुत लग जाता है, कुछ बचत भी नहीं। आज गली से गुजर रहा था मेरी नजर इस पुरानी-सी साइकिल पर पड़ी। मुझे लगा की आज होली है सभी नशे में धुत पड़े होंगे ।चोरी करते पकड़ा भी न जाऊंगा और इस साइकिल के लिए कोई मेरे पीछे भी नहीं दौड़ेगा पुरानी जो है। पक्के चोर तो नई साइकिल ही चुराते है पैसा जो अच्छा मिलता है उनको।“
भोलू का पिता थाने में पहुंच घबराये हुए गिड़गिड़ाता हुआ कहता है –“ कोई तो बताओ, मेरे बेटे ने ऐसा क्या किया जो इसे यहाँ पकड़ रखा है?
युवक – “ साइकिल चुराई थी तुम्हारे बेटे ने। आज तो वैसे ही होली है, लोग दुश्मनों को भी माफ कर के गले लगा लेते हैं, आज होली पर तो उसे माफ़ कर ही दिया। सब कहते है- बुरा न मानो होली है।“
दरोगा ने काला चश्मा लगा धमकाते हुए कहा-
“आज तो समझौता करवा दिया है, अगली बार पकड़े गए तो, छोडूंगा नहीं, एडल्टगीरी में सीधे अंदर ही कर दूंगा।“ चोर ने घबराते हुए कहा
“अब ये एडल्ट गीरी क्या है साहब?” दरोगा जी –
“ अबे स्कूल में पढ़कर मास्टर जी से सवाल जवाब करता तो तेरी आज ये हालत न होती, पर आज किसी चोर ने हिम्मत दिखा कर हमसे सवाल पूछ ही लिया है। तो सुन बता देते हैं, तुझे, ये सब तो सुना ही होगा- गांधीगीरी, नेतागीरी, मास्टरगीरी। अब एडल्टगीरी का कहीं-कहीं वाकया हो जाता है। निर्भया का नाम तो सुना ही होगा तूने? शायद इतने से ही समझ गया होगा तू, कि क्या है एडल्टगीरी।“
चोर कान पकड़ घबराते हुए-
“ नहीं साहब, नहीं, अब नहीं आऊँगा कभी यहाँ। मेरी समझ में सब आ गया।“ युवक मुसकुराते हुए साइकिल से अपने घर वापस चलते हुए कहता है, आज चोर को बंद करवाने का उत्साह ठंडा हो गया,।
“मन ही मन मुसकुराता हुआ “बुरा न मानो होली है, जिंदगी भर याद रहने वाली होली, याद रहेगी ये होली।“
सभी हँसते हुए आपस में बात करते चल रहे है –
“कम से कम अपनी ही साइकिल की चोरी के जुर्म में फँसने से तो बचे । रसीद न होती तो ये साइकिल भी जाती उलटे चोर भी हम ही हो जाते। आज पता चला कि हमारे यहाँ अपराध इतने ज्यादा और FIR इतनी कम क्यों होती है? सब समझौते का कमाल है, भैया। 100 में 99 केस तो समझौते से ही खत्म कर देते होंगे ये लोग। फिर भी कितने केस भरे पड़े हैं अदालतों में।“
“कुछ भी हो आज उस भोलू को अपराधी बनने से बचा लिया हमारे समझौते ने, आखिर उसे अहसास जो हो गया था कि पढ़ाई न करके उसने कितनी बड़ी गलती की है। बुरा न मानो होली है।“
डॉ जय शंकर शुक्ल
भवन संख्या -49
पथ संख्या -6
बैंक कॉलोनी
मंडोली
दिल्ली 110093