gulabo - 6 in Hindi Women Focused by Neerja Pandey books and stories PDF | गुलाबो - भाग 6

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गुलाबो - भाग 6

गुलाबो रज्जो से बोली, "अच्छा दीदी चलती हूं अम्मा के हुक्म के मुताबिक अपने कमरे में आराम करना है वरना मैं तो यही तुम्हारे साथ ही लेट जाती। और जी भर के गप्पे लड़ाती । पर…" इतना कह गुलाबो मुंह बनाते हुए अपनी मजबूरी जाहिर कर रज्जो के कमरे से बाहर जाने लगी।

"ठीक है छोटी जा….।" रज्जो बोली।

इधर जगत रानी इसी इंतजार में बैठी ये देख रही थी की कब गुलाबो अपने कमरे में जाए। जैसे ही गुलाबो को जाते देखा, उससे पीछे ही उसके कमरे में जगत रानी भी चल दी।

गुलाबो के कमरे में जाते ही कुछ देर बाद ही उसके पीछे पीछे जगत रानी भी पहुंच गई। गुलाबो बस बिस्तर पर तुरंत लेटी ही थी। सास को देख जल्दी से उठकर बैठ गई। वो घबरा गई की कोई गलती तो नहीं हो गई उससे। क्योंकि जगत रानी बहुओं के कमरे में अमूमन जाया नही करती थी।

*क्या हुआ अम्मा….? कुछ काम है…? आवाज दे लेती।" गुलाबो बोली।

"ना… री… कोई काम नहीं है। बस तुझसे कुछ पूछना था। इसीलिए चली आई।"

"हां…अम्मा ! पूछो ना…" गुलाबो अपनी बड़ी बड़ी आंखें मटकाती हुई बोली।

"अच्छा ये बता… गुलाबो बक्से में मैंने कपड़ों के नीचे कुछ छोटे छोटे कपड़े देखे थे। वो किसके लिए है..? उनका तू क्या करेगी….?"

अपनी चोरी खुलते देख गुलाबो की नजरें नीची हो गई। वो बिना कुछ बोले अम्मा से नजरें चुराते हुए शर्माने लगी। अपनी साड़ी को उंगली पर लपेटते हुए खामोश ही रही।

जगत रानी ने उतावले पन से पूछा, "कुछ बोलती क्यों नहीं….! वैसे तो तेरी जबान बंद ही नहीं होती…! अभी क्या हुआ…?"

गुलाबो अभी भी कुछ ना बोली। पर अनुभवी जगत रानी गुलाबो के शर्माने और चुप रहने से समझ गई की क्या बात है ? भला गुलाबो और शर्माए.? और कुछ पूछने पर जवाब ना दे..? भला ऐसा हो सकता है..? वो तो एक बात पूछने पर चार बात बताती है। अगर कपड़े गुड़िया गुड्डे के होते तो गुलाबो शर्माने वाली नहीं थी।

जगत रानी ने गुलाबो का चेहरा बड़े प्यार से अपने हाथों से ऊपर उठाते हुए उसकी आखों में झांकती है और फिर गुलाबो से खुशी से मुस्कुराते हुए पूछती है, "गुलाबो… क्या सच है? मैं दादी बनाने वाली हूं …! इस घर में एक नन्हा मुन्ना आने वाला है..? ( गुलाबो की चुप्पी से जगत रानी को यकीन हो गया की वो सही दिशा में सोच रही है।) मैं बता नही सकती तुझे की तूने आज मुझे कितनी बड़ी खुशी दी है ..! अब बस तू अपना और इस बच्चे का ध्यान रख । बाकी सब मैं हूं ना सब संभाल लूंगी। तू बस खुश रह और खूब अच्छे से खा पी। समझी..? " जगत रानी ने बड़े ही प्यार भरे स्वर में गुलाबो को समझाया।

गुलाबो मुस्कुराते हुए "हां" में सर हिलाते हुए सास के पैर छूने को झुकी। पर जगत रानी ने उसे बीच में ही रोक दिया और पास आ कर उसे गले से लगा लिया।

जगत रानी गुलाबो को अंदाजा भी नहीं था की इस एक खबर से उसकी सास उसे इतना मान देगी। उसने तो सपने में भी नही सोचा था की कभी उसकी बात बात पर गुस्सा होने वाली सास उसे गले भी लगाएंगी । वो भी इस बात से बस इस लिए खुश हो गई की अब उसे अम्मा डाटेंगी नही। बाकी उसे कुछ नहीं जानना था। अल्हड़ गुलाबो को अभी कुछ भी समझ नही थी। गुलाबो को ढेरों आशीष दे कर जगत रानी उसे आराम करने को बोल कर कमरे से बाहर चली गई।

रात को खाना रज्जो ने बनाया गुलाबो ने मदद की। खाते वक्त रज्जो सबको परोस रही थी। बारी बारी से ससुर, पति देवर सभी को परोस रही थी। जब जगत रानी के पास आई तो वो उससे बोली,"देख.. रज्जो…. तू बड़ी है और गुलाबो छोटी। और अब वो मां बनने वाली है। तुम भी अब बस जल्दी से मुझे एक पोता दे दे।" खाते हुए जगत रानी ने आंखे उठा कर रज्जो को देख कर कहा।

इस तरह ससुर, देवर और पति के सामने सास जगत रानी के द्वारा उलाहना देना रज्जो को जरा भी नहीं भाया। जो सास अभी तक उसके गुण गाते नही थकती थी। सिर्फ एक खबर से वो गुलाबो को ज्यादा मान दे रही थी। रज्जो स्वभाव से बेहद गंभीर थी। वो सास की किसी भी कड़वी बात को दिल से नही लगाती थी। सदा ही सास को अपनी मां समझ सेवा करती। एक मधुर, मीठी मुस्कान उसके होठों पर सदैव रहती। और यही मुस्कान ही उसके चेहरे को सबसे अलग करती। ये सौम्यता ही उसके चेहरे की लुनाई को बढ़ाती थी।

रज्जो को बड़ी खुशी हुई ये जान कर की गुलाबो मां बनने वाली है। पर इस खुशी को जगत रानी ने पल भर में अपने तानों की सुई चुभा कर हवा कर दी। क्या ये जरूरी है की वो बड़ी है तो पहले वो ही मां बने..? क्या गुलाबो के बच्चे की वो बड़ी मां नही बनेगी..? क्या जरूरी है की मां बनने के लिए खुद ही बच्चे को जन्म दे..? क्या देवर, देवरानी का बच्चा उसका बच्चा नहीं होगा…? इसी उथल पुथल की लौ में वो जगत रानी की थाली में लगातार चावल डाले जा रही थी। ज्यादा चावल डालते देख जगत रानी झल्ला उठी। उसके हाथों को अपने हाथों से पकड़ कर रोका और बोली, "क्या रज्जो..? ये क्या है..? कहां ध्यान है तेरा..? क्या सारे बटुए (खाना बनाने का पीतल का बर्तन) का चावल मेरी थाली में ही डाल देगी…? सास की डांट सुन रज्जो ख्यालों से बाहर आई और अपनी गलती का एहसास हुआ। वो माफी मांगते हुए जगत रानी से बोली, "माफ कर दो अम्मा। गलती हो गई। जरा रौशनी कम थी ना इसलिए दिखाई नही दिया।" अपनी गलती को अंधेरे के बहाने में छिपाने की कोशिश रज्जो ने की। जल्दी जल्दी ज्यादा चावल को दूसरी थाली में निकालने लगी।

अब पूरे घर को पता चल गया था की घर में एक नन्हा मुन्ना मेहमान आने वाला है। जगत रानी हर पल, हर घड़ी गुलाबो को ख्याल रखती। उसे कोई भी भारी काम नही करने देती। ना पानी की बाल्टी उठाने देती, ना ही कोई और समान। अपनी इतनी खातिर दारी होते देख गुलाबो अब अपने आप को बहुत खास समझने लगी थी। इधर रज्जो सारा दिन घर के काम में लगी रहती। घर का काम भी कुछ ज्यादा ही हो गया था। जय,विजय और विश्वनाथ के आने से। जगत रानी रोज कुछ न कुछ बढ़िया खाना बनवाती उन सब के लिए। गुलाबो बस रज्जो की थोड़ी बहुत मदद कर देती। जगत रानी हमेशा रज्जो को उलाहना देते मां बनने में देरी करने के लिए। गुलाबो को अब थोड़ी परेशानी भी होने लगी थी। कुछ भी खाती तो उसे पचता नहीं था। तुरंत उल्टी हो जाती। जगत रानी उसे तरह तरह के चूरन बना कर खिलाती।

धीरे धीरे समय बीत गया और अब छुट्टियां खत्म होने वाली थी। वापस जाने की तैयारियां होने लगी। जाने में बाद चार दिन बचे थे। जय विजय और उसके पिताजी के कपड़े धूल कर इस्त्री हो कर आ गए थे। जगत रानी उन्हे करीने से बक्से में लगा रही थी। सास को कपड़े रखते देख गुलाबो से रहा नही गया वो भी अंदर गई और विजय से बोली, "अम्मा आप सब के कपड़े रख रही है। मेरा बक्सा ऊपर रक्खा है। आप उतार दो तो मैं भी अपने कपड़े रख लूं।" गुलाबो ने विजय से कहा।

विजय जो लेट कर आराम कर रहा था उठ कर बक्सा उतार कर गुलाबो के पास रख दिया। गुलाबो एक एक कर अपनी साड़ियां रखने लगी। अपनी सारी चीजें व्यवस्थित तरीके से रख कर गुलाबो ने एक लंबी सांस ली की चलो उसकी भी जाने की तैयारी हो गई।

रात को सभी खाना खाने बैठे। जगत रानी को ये नहीं मालूम था की गुलाबो ने भी अपना सामान रख कर जाने की तैयारी कर ली है। वो विश्वनाथ जी से अपने मन की दुविधा बताते हुए कहने लगी, "अब तक तुम सब थे तो घर कितना भरा भरा था। अब तुम सब चले जाओगे तो घर कितना सूना हो जाएगा। फिर तुम सब को भी वहां परेशानी होगी खाने पीने की, क्योंकि इस बार गुलाबो तो साथ जा नहीं सकेगी..? उसकी हालत दूसरी है। परदेश में कौन उसकी देखभाल करेगा..?"

जगत रानी अपनी चिंता जाहिर करते हुए बोली।

विश्वनाथ जी खाते हुए ही बोले, "हां..! दिक्कत तो होगी। गुलाबो वहां थी तो खाने पीने की कोई दिक्कत नही थी।"

गुलाबो जो रसोई में रज्जो के साथ बैठी थी। सास की बात सुन उसका जी घबराने लगा। वो तो जाने की सारी तैयारी कर चुकी थी, और अब उसकी सास जगत रानी उसकी सारी तैयारी पर पानी फेर दे रही थी। वो तो ये सोच कर आई थी की बस एक महीने में वो वापस शहर आ जायेगी। पर ये क्या…? उसका दिमाग भन्ना गया।

तभी जगत रानी के मन में एक विचार आया,वो विश्वनाथ जी से बोली, " सुनो जी ऐसा करो.. इस बार आप गुलाबो की बजाय रज्जो को साथ लेते जाओ। वो भी शहर घूम लेगी और आप सब को खाने पीने की परेशानी भी नहीं होगी। क्या कहते है..?" जगत रानी ने पति से पूछा।

विश्वनाथ जी शांत और सुलझे हुए सोच के व्यक्ति थे। उन्हें पत्नी जगत रानी की किसी भी बात पर आपत्ति नहीं होती थी। घर की सारी बाग डोर उन्होंने पत्नी के हाथों सौंप दी। सारे फैसले वो ही लेती। उसमे विश्वनाथ की सहमति होती। ना तो उन्हें पहले गुलाबो को साथ ले जाने पर आपत्ति थी, और नही अब रज्जो के साथ ले जाने की बात पर। उन्होंने सर हिला कर रज्जो को साथ ले जाने पर अपनी सहमति दे दी।


अगले भाग मे जाने क्या गुलाबो ने सास जगत रानी का फैसला स्वीकार कर लिया..? क्या रज्जो ससुर,पति और देवर के साथ परदेश चली गई..? पढ़े अगले भाग में।