Phantom's generosity in Hindi Horror Stories by Vishal Kumar99 books and stories PDF | प्रेतनी की दरियादिली

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प्रेतनी की दरियादिली

गर्मी का महीना। खड़-खड़ दुपहरिया। रमेसर भाई किसी गाँव से गाय खरीद कर लौटे थे। गाय हाल की ही ब्याई थी और तेज धूप के कारण उसका तथा उसके बछड़े का बुरा हाल था। बेचारी गाय करे भी तो क्या, रह-रह कर अपने बछड़े को चाटकर अपना प्यार दर्शा देती थी। रमेसर भाई को भी लगता था कि गाय और बछड़े बहुत प्यासे हैं पर आस-पास में न कोई कुआँ दिखता था और ना ही तालाब आदि। रमेसर भाई रह-रहकर गमछे से अपने पसीने को पोंछ लेते थे और गाय के पीठ पर हाथ फेरते हुए धीरे-धीरे कदमों से पगडंडी पर बढ़ रहे थे। कुछ दूरी पर उन्हें एक बारी (बगीचा) दिखी। उनके मन में आया कि इस बारी में चलते हैं, थोड़ा सुस्ता भी लेंगे तथा शायद वहाँ कोई गढ़ही हो और इन अनबोलतों को पानी भी मिल जाए।

अब रमेसर भाई अपने कदमों को थोड़ा तेज कर दिए और गाय-बछड़े के साथ उस बारी की ओर बढ़ने लगे। बारी बहुत बड़ी थी और उसमें तरह-तरह के पेड़ों के साथ बहुत सारे बड़े-छोटे घास-फूस भी उगे हुए थे। पर गर्मी के कारण इन घास-फूस का भी बहुत ही बुरा हाल था और कुछ सूख गए थे तथा कुछ सूखने के कगार पर थे। बारी में एकदम से सन्नाटा पसरा था, कहीं कोई आवाज नहीं थी पर ज्योंही रमेसर भाई गाय-बछड़े के साथ इस बगीचे में प्रवेश किए, गाय-बछड़े तथा उनके पैरों के नीचे पेड़ से गिरे सूखे पत्तों के आते ही चरर-मरर की एक भयावह आवाज शुरु हो गई। यह आवाज इतनी भयावह थी कि रमेसर भाई के साथ ही गाय और बछड़े भी थोड़ा सहम गए।

रमेसर भाई अब उस बारी के भीतर प्रवेश करना उचित नहीं समझे और किनारे ही एक पेड़ के नीचे पहुँच कर रुकना उचित समझे। छाँव में उन्हें तथा गाय-बछड़े को थोड़ी राहत मिली पर प्यास के कारण उनका बुरा हाल हो रहा था। वे इधर-उधर नजर दौड़ाए पर कहीं पानी नजर नहीं आया। उन्होंने थोड़ी हिम्मत करके गाय-बछड़े को वहीं छोड़कर पानी की तलाश में उस बारी के भीतर प्रवेश करने लगे। उन्हें लगा कि शायद इस बारी के भीतर कोई तालाब हो, वह भले सूख गया हो पर शायद थोड़ा भी पानी मिल जाए।

रमेसर भाई अब अपने सर पर बँधी पगड़ी को खोलकर गमछे को कमर में बाँध लिए और मुस्तैदी से लाठी को हाथ में पकड़े बारी के अंदर ढुकने (प्रवेश) लगे। बारी बहुत ही घनी थी और उस खड़-खड़ दुपहरिया में उस बारी में एक अजीब सा खौफनाक सन्नाटे पसरा था। उसी सन्नाटे में रह-रहकर रमेसर भाई के पैरों की नीचे पड़ने वाले पत्ते एक और भी भयावह एहसास करा जाते थे। बारी में काफी अंदर जाने पर रमेसर भाई को एक गढ़ही (तालाब) दिखी। उसके पेटे में थोड़ा सा स्वच्छ पानी भी था। पर उस गढ़ही के किनारे का नजारा देखकर रमेसर भाई के कदम ठिठक गए। अनायास की उनके माथे से पसीने की बूँदें टप-टपाने लगीं। उनके कदम अब ना आगे ही बढ़ रहे थे और ना ही पीछे ही।

दरअसल गढ़ही किनारे कुछ भूत-प्रेत हुल्लड़बाजी कर रहे थे। एक दूसरे के साथ मस्ती कर रहे थे और कभी-कभी उछलकर पानी में भी गिर जाते थे या दूसरे भूत-भूतनी को पानी में ढकेल देते थे। वहीं पास के पेड़ों पर भी इधर-उधर कुछ भूत-प्रेत उन्हें बैठे नजर आए। इन भूतों में से कुछ बहुत ही भयंकर थे तो कुछ बहुत ही छोटे। किसी के पैर नहीं थे तो किसी के ४-५ पैर। वहीं उनको एक ऐसा भूत भी दिखा जो पूरी तरह से बालों से ढका था और बहुत ही विकराल था। हाँ पर पेड़ पर बैठे 1-2 भूत ऐसे थे जो देखने में एकदम आदमी सरीखे दिखते थे। ऐसा लगता था कि गाँव का ही कोई आदमी तमाशबीन के रूप में इन पेड़ों पर बैठा है। यह माहौल भले रमेसर भाई के लिए डरावना था पर उन भूत-भूतनियों के लिए उल्लासमय।

अब रमेसर भाई क्या करें। 2-4 मिनट बाद कुछ हिम्मत कर मन ही मन हनुमानजी का नाम गोहराने लगे और धीरे-धीरे बिना पीछे मुड़ें, सामने देखते हुए पीछे की ओर चलने लगे। चुपचाप कुछ देर चलने के बाद, अचानक घूम गए और जय हनुमानजी, जय हनुमानजी कहते हुए लंक लगा कर गाय वाली दिशा में भागे। गाय के पास पहुँचकर ही रूके। गाय के पास पहुँचते ही वे गाय के शरीर पर हाथ रख दिए। गाय थोड़ी सी शांति और छाया पाकर वहीं बैठ गई थी और उसका बछड़ा भी चुपचाप पूंछ हिलाते हुए वहीं खड़ा था। कहा जाता है कि गौ-वंश का साथ हो तो भूत-प्रेत पास नहीं आते। खैर उनके पास तो गाय ही थी जिसमें देवताओं का वास होता है तो फिर क्या डरना। उन्हें लगा कि अगर भूत-प्रेत हल्ला बोलेंगे तो वे गाय से चिपककर इस बारी से दूर हो जाएंगे।

पाँच मिनट तक वे गाय के पास ही उससे सटकर बैठ गए। गाय के पास बैठने पर उनका डर थोड़ा कम हुआ और हिम्मत भी लौट आई। रमेसर भाई सोचे कि अरे मैं तो गबढ़ू जवान हूँ। रोज पहलवानी भी करता हूँ। अखाड़ें में कोई मेरी पीठ नहीं लगा पाता और मैं आज इतना डर गया। अरे इन भूत-प्रेतों से क्या डरना। आज मैं हर हालत में इनका सामना करूँगा और देखता हूँ कि ये भूत-प्रेत मेरा क्या बिगाड़ पाते हैं? अगर आवश्यकता पड़ी तो इन सबको ललकार दूँगा और दौड़ा-दौड़ाकर मारूँगा। (दरअसल बात यह थी कि रमेसर भाई बहुत ही निडर स्वभाव के थे और अकेले ही रात में गाँव से दूर तक घूम आते थे। रात को नहर के पानी से दूर-दराज के खेतों को भी पटा आते थे और आवश्यक होने पर दूर-दराज के खेतों में भी अकेले ही सो जाते थे। कभी-कभी तो वे गाय चराने अकेले ही दूर तक जंगल में भी चले जाते थे।) गाय के पास बैठे-बैठे ही अचानक रमेसर भाई के जेहन में यह ख्याल आया कि क्यों नहीं गाय और बछड़े को लेकर इस गढ़ही के पास चला जाए। हम तीनों को पीने का पानी भी मिल जाएगा और भूत-प्रेतों को और नजदीक से देखने का मौका भी। उनके दिमाग में यह भी बात थी कि जब गाय-बछड़े साथ में हैं तो भूत-प्रेत तो मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।

रमेसर भाई उठे और गाय का पगहा सहित गरियाँव (गले में लगी रस्सी) पकड़कर गढ़ही की ओर निर्भीक होकर बढ़ने लगे। गाय के पीछे-पीछे बछड़ू भी चलने लगा। ज्योंही रमेसर भाई गाय को लेकर गढ़ही के पास पहुँचे, गाय, बछड़ू और उनके पैरों के कारण चरमराते पत्तों आदि से उन भूत-प्रेतों के रंग में भंग पड़ गया। सभी चौकन्ने होकर रमेसर भाई की ओर देखने लगे। एक बड़ा भूत तो गुस्से में रमेसर भाई की ओर बढ़ा भी पर पता नहीं क्यों अचानक रूक गया और पास के ही एक पेड़ पर चढ़ बैठा। रमेसर भाई निडर होकर गढ़ही के किनारे पहुँचे पर अरे यह क्या, वे तथा गाय व बछड़ूे पानी कैसे पिएंगे, क्योंकि उनके आगे, थोड़ी दूर पर पानी के किनारे कई सारे डरावने भूत-भूतनी खड़े नजर आए। कुछ का चेहरा बहुत ही भयावह था तो किसी की डरावनी चीख