छलावा ( एक नरपिशाच की कहानी )
निशा अपनी कार से अपनी एक दोस्त निकिता की शादी में शामिल होने उसके गाँव जाने के लिए निकल चुकी थी । चूंकि गाँव कुछ दूर था , और उसे कच्चा रास्ता भी तय कर जाना था । रास्ते मे उसे एक और दोस्त मानव भी जॉइन करने वाला था ,जो उसके साथ ही शादी में शामिल होने गाँव जा रहा था । दूसरे शब्दों में मानव और निशा एक दूसरे से प्यार करते थे । शादी अटेंड करने के बहाने वीकेंड पर आउटिंग भी हो जायेगी यही सोच दोनो ने साथ साथ शादी में जाने का प्लान बनाया ।
मौसम दोपहर से तूफानी और बरसाती हो चला था । रहरहकर गरज चमक के साथ कभी धीमी कभी तेज़ बारिश होने लगती । शहरी आबादी वाला इलाका पार करते ही उसकी गाड़ी बायपास पर दौड़ लगा रही थी । कार में अकेली बैठी निशा ड्राइव करते हुए बोर होने लगी थी , तो रेडियो ऑन कर गाने सुनने लगी । पर उसमें भी उसे कुछ खास आनंद नही आ रहा था । ऊपर से ख़राब मौसम होने के कारण रेडियो सिग्नल भी ठीक से नही आ रहे थे । परेशान होकर उसने रेडियो वापिस बंद कर दिया । कुछ देर चलने के बाद उसने एक जगह कार रोकी । बाहर आकर मुँह ऊपर कर आसमान की तरफ देखा तो शाम हो चुकी थी , काले घने बादल अपनी प्रभावी उपस्तिथि दर्ज करा रहे थे । उसने जेब से मोबाइल निकालकर मानव को कॉल करना चाहा ।
"" यहीं से उसे फोन लगा देती हूँ । वो कॉलोनी के गेट पर मेनरोड पर ही आ जायेगा । वहीं से उसे पिकअप कर लूंगी । एक तो महाराज को इतनी दूर बायपास पर ही रहने की जगह मिली । ""
यही सोचकर उसने नम्बर डायल किआ । पर मोबाइल स्विच ऑफ ही आ रहा था । 2-3 बार ट्राय करने पर भी जब मानव का फोन स्विच ऑफ आया तो निशा झल्ला गई । और खुद से ही बात करने लगी ।
"" यार ये मानव का भी हमेशा से ऐसा ही है । कभी वक़्त पर फोन ऑन नही रखता । खुद के साथ-साथ सबको लेट करता है । एक तो में ऑफिस से निकलने में लेट हो गई । पौने 5 बज चुके हैं । इतनी दूर जाना है , रास्ता भी सुनसान है , ऊपर से ये बारिश । लेकिन ये लड़का कभी कोई बात सीरियसली लेता ही नही । 5 बजे का डिसाइड हुआ था । मिलने दो उससे कह ही दूंगी की मोबाइल रखना बंद कर दे । क्या फायदा उसका जब उसका यूज़ ही ना करे । हुंह हहहह ।""
कहते हुए निशा ने गुस्से में झल्लाते हुए फोन काट दिया । और एक पेड़ के नीचे टिक कर खड़ी हो गई । कुछ सोचते हुए वो मोबाइल में उसकी फोटो निकालकर गौर से देखने लगती है । मानव की फोटो देखकर उसका गुस्सा छू मनतर हो जाता है ।
"" कुछ तो बात है तुम्हारी शक्ल में साहबज़ादे , इंसान कितना भी गुस्सा क्यों ना हो पर आपकी भोली मासूम सूरत देखकर अपनी सीरत ठीक कर ही लेता है । "" मुस्कुराते हुए उसकी फोटो को चूमने लगती है । तभी अचानक उसे ऐसा एहसास होता है कि ऊपर से कोई उसे ऐसा करते हुए देख रहा है । वो गर्दन ऊपर कर पेड़ पर नज़र डालती है पर कोई दिखाई नही देता । आसपास भी बायपास एक दम सुनसान ही था । उसे कुछ अजीब सा महसूस हुआ । कोई तो था जो उसे अभी देख रहा था । उसने स्पष्ट महसूस किया था । वो फ़ौरन कार स्टार्ट कर वहाँ से आगे बढ़ गई ।
उसने ड्राइव करते हुए ही फिर से मानव को कॉल किया । अभी भी स्विच ऑफ ही आ रहा था । उसे कुछ समझ ही नही आ रहा था कि आज मानव को हुआ क्या है जो अभी तक मोबाइल ऑन नही किया । आसमान में बादल होने की वजह से जल्दी अंधेरा भी हो चला , पता नही कहाँ रह गया ये लड़का । यही सोचते हुए वो उस जगह पहुँच गई जहां मानव उससे मिलने वाला था । लगभग आधा घण्टा हो गया , इंतज़ार करते करते उसका मूड ऑफ हो गया । अब तो 6 भी बज चुके थे । अंधेरा होते देख उसने अब और वेट करना उचित नही समझा , गुस्से में खुद ही अकेली निकल पड़ी । उसे कल तक वापिस भी आना था । और निकिता उसकी बेस्ट फ्रेंड थी सो जाना भी जरूरी था । उसने वादा जो किआ था उसकी शादी अटेंड करने का । निशा ने कार की स्पीड बढ़ा दी । अंधेरे में सुनसान बायपास को पास करते हुए अब वो हाइवे पर आ चुकी थी । तभी उसे सड़क किनारे कोई खड़ा हुआ दिखा । उसने पास जाकर कार कुछ धीमी की तो चोंक गई । ये तो मानव था । पर इतनी दूर हाइवे पर सुनसान सड़क पर ये यहाँ कर क्या रहा है । निशा के मन मे ढेरों सवाल पल भर में एकदम से आसमान में बादल की तरह उमड़ने घुमड़ने लगे थे । उसने कार रोकी और शीशा नीचे किआ ।
"" तुम इस वक़्त यहाँ !!!!!!... इतनी दूर क्या कर रहे हो । पाता है तुमको कितनी बार फोन की हूँ मै । मोबाइल स्विच ऑफ क्यो किआ हुआ है । "" निशा ने सारे सवाल मानव पर दाग दिए ।
मानव उसे देखते ही मुस्कुराते हुए चेहरा कार की खिड़की के पास लाकर बोला ।
"" अरे मेरा मोबाइल पूरी तरह डाउन हो चुका है । में एक काम से यहीं पास में आया था एक प्लाट देखने । सोचा कि तुम यहीं से तो निकलोगी , इसलिए यहीँ मिल जाऊंगा । फोन की बेटरी खत्म होने के कारण तुमको सूचित नही कर पाया । ""
मानव गेट खोलकर उसके पास आगे बगल में बैठ गया । निशा की गाड़ी वापिस हाइवे पर फर्राटा भरने लगी ।
"" कौनसा प्लाट देखने आए थे इस सुनसान जगह पर । कल तो तुमने ऐसा कुछ बताया नही था । "" ड्राइव करते हुए निशा उसकी तरफ देखते हुए बोली ।
"" एक दोस्त ने कल रात को ही बताया था । जब पता चला कि वो प्लाट भी तुम्हारे गाँव जाने वाले रास्ते मे पड़ता है तो मैने सोचा जल्दी यहाँ आकर पहले प्लाट देख लेता हूँ । फिर बाद में सड़क पर आकर तुम्हारा वेट करूंगा । निकलने की जल्दी-जल्दी में फोन चार्ज करना भूल गया था । ""
"" और यदि में तुमको देखे बिना ही सीधी निकल जाती तो ???... जनाब खड़े रहते बारिश में भीगते हुए सुनसान सड़क पर । ""
"" पहली बात तो ऐसा होता ही नही । और यदि तुम बिना देखे निकल भी जातीं तो कोई और मिल जाती जो मुझे देखकर अपनी गाड़ी रोक मुझे लिफ्ट दे देती । "" मानव मुस्कुराते हुए बोला ।
"" ओ जनाब , ये फलतफहमी दिल से निकाल दो । वो तो में ही बेवकूफ हूँ जो तुम्हारे पीछे पड़ी हूँ । और कोई भी लड़की इस वक़्त इस तूफानी मौसम में इस सुनसान हाइवे पर वो भी रात होने के वक़्त अकेली कभी किसी लड़के को देखकर अपनी गाड़ी नही रोकेगी । ""
"" क्यों नही रोकेगी । जब मेरी तरह एक जवान खूबसूरत लड़का रास्ते पर अकेले मिल जाये तो किसी भी लड़की का दिल धड़कने पर मजबूर हो जायेगा । "" मानव निशा की चुटकी लेते हुए बोला ।
"" ओह "" ...निशा ने मानव की बात सुनकर सिर्फ इतना ही कहा ।
"" जी हाँ मेडम , सच बोल रहा हूँ । ""
"" कोई भूतनी या चुड़ैल ही होगी जो इस वक़्त सुनसान सड़क पर तुमको अकेली मिलेगी और लिफ्ट आफर करेगी । जरा सम्भलकर । ये समय उन्हीं लोगों का होता है बाहर भटकने का । पता चला तुम पहचान नही पाए और वो तुमको मूर्ख बनाकर किसी सुनसान जगह ले जाकर साफ कर दे । हा हा हा ।"" निशा आंखों की पुतलियों को नचाते हुये मानव की तरफ तिरछी नज़र से देखकर हंस दी ।
"" कोई भूत वूत नही होता मेडम । ये सब मन का वहम है ।"" मानव निशा की तरफ घूरते हुए बोला ।
"" तुमको क्या पता कि में निशा ही हूँ । हो सकता है में कोई भूत हूँ । आजकल भूत काफी एडवांस हो चुके हैं । कोई भी शक्ल इख्तियार कर आपके साथ हो जाते हैं और आपको पता भी नही चलता । इसलिए इस भुलावे में मत रहना की भूत नही होते । "" निशा अपनी बात पर जोर देते हुए बोली । तभी उसके फोन की घण्टी बजती है । वो बैग में से फोन निकालने के लिए हाथ आगे बढ़ाती है तभी मानव उसे टोक देता है ।
"" अरे यार , अब इस फोन को भी अभी आना था रहने दो मत उठाओ । बाहर देखो मौसम कितना ठंडा हो रहा है । कितनी हसीन शाम है , ठंडी ठंडी हवाओं के आगोश में पूरा समां कितना नशीला होता जा रहा है । और तुम फोन उठाने चलीं । "" मानव की बात सुनकर निशा अपने बढ़ते हाथों को रोक लेती है ।
दिन ढल चुका था । अंधेरा अब पूरी तरह अपने शबाब पर आ पहुंचा था । गरज चमक के साथ हल्की हल्की बारिश भी शुरू हो चुकी थी । सड़क पूरी तरह सुनसान थी । हाइवे होने के बाद भी इक्का दुक्का गाड़ियां ही आ जा रहीं थीं । पानी पड़ने के कारण आगे का कुछ साफ नही दिख रहा था , इसलिये निशा ने वाइपर चालू कर दिए । उस सुनसान खामोश वातावरण में वाइपर की आवाज़ स्पष्ट आ रही थी । कुछ देर चुप रहने के बाद निशा ने खामोशी को तोड़ते हुए मानव से कहा।
"" क्या हुआ चुप क्यों हो गए । ""
"" कुछ नही तुम्हारी बात को ही सोच रहा था ।""
"" कौनसी ??? ""
"" यही की कहीं तुम्हारी बात सच तो नही । ""
"" मतलब , कौनसी बात ??? "" निशा ने आश्चर्य से मानव की तरफ देखते हुए बोला ।
"" मुझे तुम्हारी बात से हल्का हल्का डर लगने लगा है । कहीं तुम सच मे कोई भूत चुड़ैल तो नही । वरना में तो बेमौत मारा जाऊंगा ना । बिना शादी के रंडवा की इस दुनिया से कूच कर जाऊँगा । ""
मानव की बात सुनकर निशा जोर जोर से हंसने लगी ।
"" हा हा हा हा हा , मिस्टर मानव , इतना याद रखो कोई भी भूत या चुड़ैल खुद से ये कभी नही बतायेगी की वो भूत है । भूत कभी अपनी आइडेंटिटी किसी को खुद नही बताते । ये तो अपनी अक्ल से ही पता लगाना पड़ता है कि वो भूत या इंसान । ""
"" अच्छा , तो तुम ही बता दो क्या पहचान होती है भूत की । "" मानव भोला बनते हुए निशा की तरफ मासूमियत से देखते हुए बोला ।
"" वैसे तो ये कोई फिक्स नही होता कि सभी भूत एक जैसे ही दिखते हों । पर एक कॉमन बात होती है जो सभी भूतों में पाई जाती है । ""
"" वो क्या ??? "" मानव ने उत्सुकता से पूछा ।
"" देखा तो नही पर बुजुर्गों के मुँह से एक बात जरूर बहुत सुनी है कि भूत के पैर उल्टे होते हैं । और वो लगातार एकटक आपकी तरफ कभी नही देखते । उनके नाखून भी सामान्य इंसानों की तरह नही होते । और भूत रात में ज्यादा शक्तिशाली हो जाते हैं । "" निशा ने भूत का डिस्क्रिप्शन दिया ।
"" लेकिन मेने तो सुना है कि सभी भूतों के पैर उल्टे नही होते । और वो आपसे इस कदर घुल मिल जाते हैं कि आपको सपने में भी पता नही चल पाता कि आप किसी भूत के साथ बैठे हो । भूत जो होते हैं वो किसी के भी शरीर मे घुस जाते हैं । और उनकी हरकतों को देखकर ही लगता है कि वो भूत हैं । अपने बाल फैलाकर , आंखे निकालकर बड़े बड़े दांत निकालकर , डरावनी शक्ल । कोई भी उनको पहचान सकता है । जबकि जो प्रेत होते हैं , वो पहले अपना विश्वास कायम करते है सामने वाले पर । और भूत और प्रेत ये दोनों अलग अलग चीजें हैं । भूत किसी के भी शरीर मे घुसकर उसके जरिये मनमानी करते हैं । जबकि प्रेत स्वयं किसी का भी रूप धरने में सक्षम होते हैं । वो हमेशा डरावनी शक्ल लिए नही घूमते । बल्कि वक़्त आने पर अपने गेटअप में आते हैं । वो किसी के शरीर को अपना घर कभी नही बनाते । बल्कि खुद एक शरीर धरकर कब आपके सामने आ जाएं चले जाएं आपको पता तक नही चलता । प्रेत के भी कई प्रकार होते हैं , जिनमे पिशाच सबसे खतरनाक प्रकार होता है । जो रात में ही निकलता है । वो सूरज की रौशनी में दिन में कभी नही आता । पिशाच हमेशा रास्ता भुला देता है । सामने वाले को भृमित कर देता है । और प्रेत बनना इतना आसान भी नही होता । जो लोग अकाल मौत मरते हैं , जैसे जलकर , पानी मे डूबकर , या किसी एक्सीडेंट में , उनमें से 99 % प्रेत योनि के पिशाच बन जाते हैं । "" मानव बोले जा रहा था और निशा हैरानी से उसे सुने जा रही थी ।
"" वाह यार , तुमने तो पूरी PhD कर रखी है भूत प्रेत पर । मुझे तो पता ही नही था तुम्हारा ये टेलेंट । "" निशा मुस्कुराते हुए मानव की तरफ देखती है । तभी फिर से मोबाइल बजता है । आवाज़ सुनकर मानव निशा को फोन स्विच ऑफ करने का बोल देता है ताकि कोई इन्हें इस हसीन सफर में डिस्टर्ब ना कर सके । निशा मानव की बात सुनकर स्क्रीन पर बिना मिस कॉल देखे ही फोन स्विच ऑफ कर देती है ।
उनको चलते हुये अब काफी वक्त हो गया था । लेकिन वो नाका नही आया था , जहाँ से उनको गाँव के लिए अंदर कच्चे रास्ते पर टर्न लेना था । निशा कार धीमी कर मानव से बोली ।
"" बहुत देर हो गई चलते हुए , पर अभी तक वो नाका नही दिखा । पहले भी आ चुकी हूँ 2-3 बार । पर इतना वक़्त तो नही लगता । लगता है बातों बातों में नाका पीछे छूट गया । कोई दिख भी नही रहा जिससे पूछा जाए । रात के 9 बज गए । "" निशा कार रोककर आसपास देखती है । तभी एक बूढ़े बाबा उनकी कार के पास से छतरी लगाए निकलते हैं । वो उनको आवाज देकर पास बुलाती है । बूढ़े बाबा खिड़की पर आते हैं ।
"" अरे बाबा , ये संग्रामपुर गाँव का रास्ता किधर पड़ता है । एक नाका आता है उससे अंदर जाना पड़ता है । बारिश और अंधेरे की वजह से रास्ता समझ नही आ रहा । ""
"" बेटी , तुम आगे आ गईं । वो नाका पीछे छूट गया । ""
वो बूढ़े बाबा जैसे ही गर्दन झुकाकर अंदर निशा से बोलते हैं । निशा अफसोस करते हुए वापिस गाड़ी टर्न करती है ।
"" इतना बड़ा नाका दिखा कैसे नही । भले बारिश और अंधेरा है पर वो नाका अलग ही दूर से दिख जाता है । वहाँ एक ढाबा भी बना हुआ है जो उस नाके की पहचान है । आश्चर्य है कि में वो देख कैसे नही पाई । जबकि में बराबर सड़क पर ध्यान देते हुए चल रही हूँ । "" निशा को कुछ समझ नही आता कि उससे रास्ता पहचानने में इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई ।
तभी निशा की नज़र सड़क किनारे एक छोटी सी हनुमानजी की मंदिर नुमा मड़िया पर पड़ती है । वो कार रोककर वहाँ जाने को होती है । तभी मानव उसे रोकते हुए बोलता है ।
"" कहाँ जा रही हो । वैसे ही बहुत लेट हो चुके हैं हम । ""
"" बस अभी आई । वो सामने हनुमानजी का छोटा सा मंदिर बना है । ढोक देकर आती हूँ । इस तरह बिना दर्शन किये जाना ठीक नही । "" निशा उतरकर जाने लगती है । पर मानव गाड़ी से बाहर उतरकर एक तरफ मुँह करके खड़ा हो जाता है । निशा उसे देखकर पूछती है ।
"" क्यों तुम दर्शन करने नही चलोगे ??? ""
"" नही , में आज नहाया नही । "" बस इतना कहकर मानव और दूर जाकर खड़ा हो जाता है ।
निशा अकेले ही मड़िया की तरफ चल देती है । वो हनुमानजी की मड़िया को ढोक देकर जैसे ही वापिस पलटती है , पीछे से किसी बूढ़े इंसान की आवाज़ आती है ।
"" सावधान बेटी । ""
निशा ज्यों की आवाज़ की दिशा में पलटकर देखती है एक बूढ़े लेकिन चेहरे पर गज़ब का तेज लिए एक बाबा उससे बोलते हैं ।
"" सावधान मेरी बच्ची , तेरे प्राण संकट में हैं । ""
"" में समझी नही बाबा !!!!!"" निशा हैरानी से उनकी तरफ देखती है ।
"" हम मिथ्या नही कह रहे । वो जो तेरे साथ तेरा दोस्त हेना , वो तेरा दोस्त नही बल्कि एक पिशाच है । जो शहर से ही तेरे साथ आया है । तेरे रूप रंग पर मोहित होकर तुझे अपने साथ अपनी दुनिया मे ले जाना चाहता है वो । ""
"" पर बाबा ....""
"" पर वर कुछ नही बेटा , हमारी बात का विश्वास करो । हम हनुमान भक्त हैं । अपनी सिद्धि से स्पष्ट देख सकते हैं कि तू अपनी सहेली की शादी में जाने के लिए निकली थी । पर तेरा दोस्त जो तेरे साथ जाने वाला था वो तबियत खराब होने के कारण नही आ पाया । तू जब उस पेड़ के नीचे खड़ी होकर उसकी तस्वीर देख रही थी , तब यही पिशाच उस पेड़ पर बैठा था । उसने तेरे दोस्त की तस्वीर देख ली थी कि वो दिखने में कैसा है । और तुझे खुद से बातें करते हुए भी सुन लिया था । बस वो वहीं से तेरे पीछे लग गया । और आगे चलकर इस सुनसान रास्ते पर तुझे मिला । वो एक छलावा है । प्रेत है । जो किसी का भी रुप रखकर आ सकता है । अपना फोन चालू करके देखो , असली मानव यानि तुम्हारा दोस्त मानव उसने तुमको फोन भी किया था जो तुमने उठाया ही नही । तुझे रास्ता भटकाने वाला भी वही है । वो तुझे किसी सुनसान जगह बियावान जंगल मे ले जाकर मार डालना चाहता है । वो नरपिशाच खून पीता है । तू खुद देख सकती है कि वो यहाँ हनुमानजी के मंदिर में क्यों नही आया तेरे साथ । और उल्टा दूसरी तरफ मुँह करके दूर जाकर खड़ा हो गया । क्योंकि वो नरपिशाच है । ""
उन बाबा की बात सुनकर निशा के पैरों तले जमीन खिसक जाती है । तभी उसे उसकी वो सब बातें याद आतीं हैं । निशा के कानों में बाबाजी के शब्द और और मानव रूपी पिशाच की बातें दोनो गूँजतीं रहतीं हैं । उसे यकीन नही होता कि वो इतनी देर से एक प्रेत के साथ सफर कर रही थी । उसके पूरे बदन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ जाती है । वो काफी डर जाती है । उसे कुछ समझ नही आता कि वो अब करे तो क्या करे ।
"" डर मत मेरी बच्ची , तू दिल की बहुत भोली है । तूने आजतक किसी का बुरा नही किया । तेरा भी कोई कुछ नही बिगाड़ सकता । तू भोली मासूम है तभी प्रभु ने तुझे अपना चमत्कार दिखा दिया की तेरी दृष्टि उनकी मड़िया पर पड़ गई । ताकि तू दर्शन करने यहाँ आये और इस बहाने कुछ समय उस पिशाच से दूर रहे , और तुझे सत्य पता चल सके । ये हनुमानजी की चोला चढ़ाने वाली मड़िया है । ये ले हनुमानजी की मलि । इसे अपने पास रख । और सीधी चली जा । कुछ दूरी पर तुझे वो नाका स्वयं ही दृष्टिगत हो जायेगा । जहाँ से तू अपने गंतव्य तक पहुंच जायेगी । पर तनिक सावधानी से । वो प्रेत अवश्य तुझे डराने तेरा रास्ता रोकने का प्रयत्न करेगा । पर तू डरना नही । जबतक तेरे पास ये मलि है वो तुझे छू भी नही पायेगा । बस दूर से डराने का प्रयत्न करेगा । ताकि तू डर जाए घबराहट में कुछ भी कर दे । पर तू किसी भी कीमत पर डरना मत । जैसा मैंने कहा वैसा ही करना । तेरा बाल भी बांका नही होने देंगे हनुमत दद्दा । जा अब जल्दी से गाड़ी चालू कर निकल जा । उसकी तरफ देखना भी मत । सीधी चली जा । परम रामभक्त का आशीर्वाद तेरे साथ है । ""
बाबा की बात सुनकर निशा जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए कार की तरफ जाती है । वो पिशाच गाड़ी से दूर उल्टी दिशा में मुँह करके खड़ा था । निशा चुपके से गाड़ी का गेट खोलकर अंदर बैठकर कंपकंपाते हाथों से गाड़ी स्टार्ट करती है । पर हड़बड़ाहट में चाबी नीचे पायदान पर गिर जाती है । उधर आवाज़ सुनकर मानव बना हुआ पिशाच पलटकर निशा को गाड़ी स्टार्ट करते देख लेता है । निशा घबराते हुए नीचे झुककर चाबी उठाने की कोशिश करती है । इधर वो गाड़ी की तरफ लपकता है । निशा की घबराहट और बढ़ जाती है । उसकी सांस तेज़ तेज़ चलने लगती है । दिल की धड़कन सारी सीमाएं तोड़ देती है ।
निशा एक हाथ से गाड़ी का गेट अंदर से बंद कर देती है । बाहर वो पिशाच खिड़की के पास आकर कांच को ठोंकने लगता है । इधर निशा अपने हाथों की उंगलियों से नीचे गिरी चाबी उठाने का भरसक प्रयत्न करती है । बुरी तरफ हांफते हुए वो जैसे तैसे चाबी उठाती है । उधर पिशाच अपने असली रूप में आ चुका था । वो बुरी तरह कांच को बाहर से अपने खूनी पंजो से ठोंकता रहता है । निशा गाड़ी स्टार्ट कर भागती है । उसके मुँह से घबराहट में हिचकियाँ निकलने लगतीं हैं । वो पिशाच अब भी बाहर गाड़ी के कांच से चिपका हुआ बराबर उसे डराने का यत्न करता है । निशा बदहवास सी तेज़ स्पीड में गाड़ी भगाए जा रही थी । तभी वो पिशाच आगे स्टेयरिंग के सामने कांच के बाहर आकर अपने दोनो हाथों से कांच को खुरचने लगता है । उसके लंबे लंबे नाखून देख निशा की डर के मारे साँस अटकने लगतीं हैं । उसे सामने का कुछ नही दिखता , बस वो बदहवास सी गाड़ी को भगाए जा रही थी । वो पिशाच कभी गाड़ी के साइड में तो कभी सामने कांच पर तो कभी गाड़ी के ऊपर बुरी तरह आवाज़ करते हुए लिपटा रहता है । अंदर घुसने का गाड़ी रोकने का भरसक प्रयास करता है । उसकी बड़ी बड़ी लाल लाल खूनी आँखे निशा को ही घूरे जा रहीं थीं ।
गाड़ी उस सुनसान सड़क पर कभी इधर तो कभी उधर डोलते हुये बेहताशा भागी जा रही थी । निशा बुरी तरह हांफते हुए अपने कंपकंपाते हाथों से कार को ड्राइव किये जा रही थी । बाहर वो शैतान गुर्राते हुए बड़े भयानक रूप में कार से बुरी तरह लिपटा हुआ उसका पीछा करता है । वो गाड़ी का गेट खोलने की कोशिश करता है ।
"" खोल दरवाज़ा , हहहहहहहह गुर्रर्ररर , मुझे लिए बिना तू कैसे जा सकती है । तुझे तो में नही छोडूंगा । गुर्रर्ररर कनच्च्च्च ... बहुत देर सब्र रखे बैठा रहा तेरे साथ । रात के अपने सही वक्त का इंतज़ार कर रहा था ताकि तेरा खून पीकर तुझे भी अपने जैसा बना सकूं । तू बच नही सकती । गुर्रर्ररर । "" भयंकर डरावनी आवाज़ें निकालता वो पिशाच गाड़ी को बाहर से बुरी तरह ठोंक रहा था । अपने लंबे लंबे भयानक नाखूनों से खुरच रहा था ।
निशा के मन मे एक बात आती है । वो जल्दी से गाड़ी में स्पीकर ऑन कर हुनमान चालीसा तेज़ तेज़ स्वर में बजाने लगती है । और फौरन बाबाजी वाली पुड़िया निकालकर वो हनुमानजी वाली मलि कार के कांच और छत पर अंदर से ज्यों ही लगाती है , फ़ौरन वो पिशाच कहराती हुई आवाज़ करते हुए कार से अपनी पकड़ ढीली करने लगता है । और भयानक अंदाज़ में रोते हुए गायब हो गया । अब चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा था । बारिश में झींगुरों और मेंढकों की आवाज़ वातावरण के सन्नाटे को चीर रही थी । तेज़ हवा से सड़क किनारे खड़े पेड़ सायें सायें करते हुए बुरी तरह हिल रहे थे । कुछ देर बाद वो नाका भी आ गया । निशा ने सीधी गाड़ी अंदर कच्ची सड़क पर डाल दी । और गाँव मे शादी वाले घर पहुंच कर ही दम लिया ।
बहुत देर तक तो उसकी गाड़ी से बाहर निकलने की हिम्मत ही नही हुई । उसने अपना फोन ऑन किआ तो देखा कि मानव के मिस कॉल उसमें मौजूद थे । हिम्मत करके वो गाड़ी से उतरकर सीधी अंदर मंडप में चली गई । बारिश की वजह से मौसम भी ठंडा हो चुका था । पर निशा पसीने से तरबतर थी । मन ही मन भगवान हनुमानजी का और उन तेजोमय सिद्ध पुरुष का धन्यवाद करती है ।
समाप्त ।
लेखक - अतुल कुमार शर्मा " कुमार "