Gulabo - 4 in Hindi Women Focused by Neerja Pandey books and stories PDF | गुलाबो - भाग 4

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

गुलाबो - भाग 4

गुलाबो के परदेश चले जाने से रज्जो बिलकुल अकेली हो गई। पहले हर वक्त गुलाबो साथ रहती। उसकी चपलता से सास की डांट भी ज्यादा देर तक याद नही रहती थी। गुलाबो जैसे रज्जो की आदत हो गई थी। उसका बचपना, उसकी अल्हड़ हंसी से रज्जो की सारी चिंता पर विराम लग जाता था। काम तो सारे वो खुद ही करती पर गुलाबो साथ साथ लगी रहती, हाथ बंटा देती, तो जी लगा रहता। गुलाबो की चांद चपड़ चपड़ उसे से उसे काम करने की ऊर्जा मिलती। वो गुलाबो को बहुत याद करती। घर का सारा काम काज निपटाते ही दिन बीत जाता। रज्जो तो पहले भी शांत थी। अब और शांत हो गई। वो जगत रानी के निर्देश अनुसार सब कुछ करती। सारा काम समय पर हो जाता तो सास जगत रानी भी कम ही नाराज होती।

धीरे धीरे जगत रानी का लगाव रज्जो से बढ़ने लगा। अब साल होने को आया। अब फिर विश्वनाथ जी जय,विजय और गुलाबो को साथ ले कर घर आने की तैयारी करने लगे। इस एक साल में गुलाबो बहुत बदल गई थी। उसने शहर का सारा रंग ढंग सीख लिया था। यहां पर बनाए जाने वाले व्यंजन वो पड़ोसियों से सीख कर बनाती। विश्वनाथ जी और जय विजय खुश हो कर खाते। गुलाबो सुंदर तो थी ही बंबई की हवा ने उसे और भी आकर्षक बना दिया था।

विश्वनाथ जी ने विजय और गुलाबो को बड़े बाजार भेज कर जगत रानी और रज्जो के लिए साड़ियां मंगवा ली।

गुलाबो तो अक्सर ही विजय के साथ जाकर अपने लिए नई नई साड़ियां खरीदती रहती थी पर ऐसा सुनहरा मौका वो कैसे चूकती? उसने भी ससुर जी के दिए रुपए में से अपने लिए भी साड़ी खरीद ली।अब बस घर के लिए रवाना होना था।

जगत रानी और रज्जो व्याकुलता से सभी की प्रतीक्षा कर रही थीं। आखिर वो दिन भी आ गया। विश्वनाथ जी सबको साथ ले घर पहुंच गए। जगत रानी ने प्रसन्न मन से सभी का स्वागत किया। गुलाबो को घर प्रवेश नहीं करने दिया। हुलस कर लोटे में जल ले कर पहले धार दी। ( ये परंपरा होती है, जिससे रास्ते में अगर कोई बुरी नज़र पड़ी हो तो वो घर में साथ न आ सके)

घर में घुसते ही गुलाबो ने सास और जेठानी के चरण स्पर्श किए। जय और विजय के चरण छूने पर जगत रानी ने उन्हें गले से लगा लिया। तत्पश्चात सभी ने बात चीत करते हुए भोजन किया। अब बारी थी जो उपहार वो संग ले थे उसे जगत रानी और रज्जो को देने की। पहले तो हमेशा खुद ही विश्वनाथ जी सबको देते थे।

पर इस बार गुलाबो ने सब रक्खा हुआ था तो उससे बोला,"गुलाबो बिटिया अपनी सास और जेठानी के लिए जो साड़ियां लाई है उन्हें दे दे।"

जगत रानी को पति का यूं बिटिया कह कर स्वामित्व देना अखर गया। वो रूष्ट स्वर में बोली, "रहने दो मुझे कुछ नहीं चाहिए।"

विश्वनाथ जी को आभास हो गया की उनकी बातें जगत रानी को भाई नहीं है। उन्हे स्मरण हो आया की पहले उनका लाया बक्सा जगत रानी हो खोलती थी। इस लिए वो सुधार करते हुए बोले, "बेटा विजय अपनी मां के पास बक्सा रख दे वो सब सामान निकाल कर सबको दे देंगी ।"

"जी पिता जी" कह कर विजय ने मां के सामने बक्सा रख दिया। इस एक बात ने जहा जगत रानी के चेहरे का तनाव कुछ काम हो गया। वहीं गुलाबो का चेहरा उतर गया। उसे के मन में उमंग था की वो सब को समान देगी। पर…..? साथ ही उसकी सारी चीजों पर सास की नज़र पड़ जाने वाली थी। उनमें से कुछ चीजें ऐसी थी जिसे वो सब से छुपाना चाहती थी।

जगत रानी ने बक्सा खोल कर समान निकालना शुरू किया। रज्जो को आवाज लगा कर बुलाया। वो पास ही खड़ी थी। उसे भी इंतजार था हर बार की तरह अपने लिए आए नई नई चीजों का। जगत रानी ने रज्जो को उसकी साड़ियां, चूड़ियां, बिंदी, और भी कई जरूरत का सामान उसे पकड़ा दिया। रज्जो उन्हें लेकर सास के पांव छू कर चली गई। रज्जो की इन्ही सब आदतों ने सास का दिल जीत लिया था। पुनः जगत रानी ने अपनी भी साड़ी देखी। उसे पसंद आई। गुलाबो और विजय ने वाकई अच्छी चीजे पसंद की थी। विश्वनाथ जी ने भरोसा किया उन पर तो वो भी उस पर खरे उतरे थे। जगत रानी बोली, "भगवान का शुक्र है, कुछ तो अच्छा किया इस अल्हड़ गुलाबो ने। वरना मुझे तो कोई आशा ही नहीं थी इससे।"

अब बस कुछ छुट पुट चीजें ही बाकी थी बक्से में। गुलाबो कुछ डरी, कुछ संकोच के साथ वही पास ही दीवार की ओट ले कर खड़ी थी। इस भांति जैसे उसका कोई भेद उजागर होने वाला हो। वो बार बार धीरे से कहती, "अम्मा हो गया? अब बक्सा हटा दूं...?"

जगत रानी भी पूरी चंठ, घुटी हुई सास थी। गुलाबो के बक्सा हटाने के लिए पूछने के अंदाज से ही उसने भांप लिया की कोई तो बात जरूर है जो गुलाबो उससे छुपाना चाहती है। कही कुछ कीमती गहना वहना तो नहीं छुपा रक्खा है इसने! इसी सोच के साथ जगत रानी ने गुलाबो को आदेश दिया, "ओ…. गुलाबो जा जरा पेड़े तो उठा ला सब को खिला। कल ही ताजे दूध से बनाया है। वही रसोई में डिब्बे में रक्खा है। और हां..! पानी भी दे सबको गर्मी है। मुझे भी प्यास लगी है।" इतना कह कर कुछ देर के लिए गुलाबो को व्यस्त कर दिया। अब वो अच्छे से देख सकती थी की इसमें क्या छुपा कर रक्खा है?



क्या ऐसा था आखिर उस बक्से में जो गुलाबो ने सब से छुपाया था? क्या फिर भेद खुलने पर गुलाबो की खिंचाई हुई? क्या था आखिर जो गुलाबो किसी को दिखाना नही चाहती थी…? भेद खुलने पर जगत रानी ने क्या किया गुलाबो के साथ? पढ़े अगले भाग