Chandrashekhar azad in Hindi Moral Stories by Harshit Ranjan books and stories PDF | चंद्रशेखर आज़ाद

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चंद्रशेखर आज़ाद

चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म सन् 1906 में मध्यप्रदेश के भाभरा गाँव में हुआ था । उनके पिताजी का नाम सीताराम तिवारी तथा माताजी का नाम जगरानी तिवारी था । उनके पिता संस्स्कृत भाषा के बहुत बड़े विद्वान थे और उनकी माता अत्यंत ही धार्मिक महिला थी ।
उनके पिता यह चाहते थे कि उनका पुत्र बड़़ा उसी मार्ग को अपनाए जिस मार्ग को उन्होंने अपनाया था । लेकिन चंद्रशेखर का ध्यान तो कहीं और ही था । एक ब्राहमण परिवार में जन्म लेने के बाद भी उनका मन वेदों और पुराणों के अध्ययन से ज्यादा कुश्ती लड़ने और बंदूक चलाने में लगता था । वैसे तो उनका असली नाम चंचंद्रशेखर तिवारी था लेकिन उनके
चंद्रशेखर आज़ाद बनने के पीछे भी एक अत्यंत ही रोचक घटना है :-

सन् 1920 में महात्मा गांधी ने अंग्रेज प्रशासन को सबक सिखाने तथा जलििियाँवा बाग में हुई हिंसा का प्रतिशोध लेने के लिए असहयोग आंदोलन चलाया । चंद्रशेखर ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया और समय उनकी उम्र मात्र 16 साल थी । बीच सड़क पर अंग्रेज विरोधी नारे लगाने के कारण पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया । इसके पश्चात मजिस्ट्रेट के सामने उन्हें पेश किया गया ।
मजिस्ट्रेट: तुम्हारा नाम क्या है?
चंद्रशेखर: आज़ाद
मजिस्ट्रेट: तुम्हारे पिता का नाम क्या है?
चंद्रशेखर: स्वतंत्रता
मजिस्ट्रेट: तुम्हारी माँ का नाम क्या है?
चंद्रशेखर: भारत माँ
मजिस्ट्रेट: तुम्हारा घर कहाँ है?
चंद्रशेखर: जेल में
एक बालक को अपने सामने इस तरह पेश आते हुए देखर मजिस्ट्रेट आग बबूला हो गया और हवलदारों से उस बालक को नंगा करके 25 कोड़े मारने को कहा ।
कोड़े जब भी उनके शरीर को स्पर्श करते तो उनके मुख से चीख़ के बजाए वंदे मातरम् का नारा निकलता था ।
इसके बाद से उन्हें आज़ाद की उपाधि मिली और उन्होंने उस दिन यह प्रतिज्ञा भी ली कि मैं मरते दम तक अंग्रेजों के हाथों में नहीं आऊँगा ।

आज़ाद जी का हमारे देश को स्वतंत्र बनाने में अहम योगदान था और इसका ऋण हम लोग चाहकर भी नहीं चुका सकते । उन्होंने रामप्रसाद बिस्मिल जी की शहादत के बाद एच एस आर ऐ यानि हिन्दुस्तान सोश्यलिष्ट रिपब्लिकन आर्मी का नेतृत्व किया । उनके नेतृत्व में इस संगठन ने अनेकों घटनाओं को अंजाम दिया जिसकी वजह से अंग्रेज़ सरकार की कमर टूट गई । इनमें से मुख्य थीं: काकोरी कांड और जौन साँडर्स की हत्या ।
आइए इन दोनों के बारे में विस्तार से जानते हैं ।

काकोरी कांड: 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन को क्रांतिकारियों द्वारा काकोरी गाँव में लूटा गया । इस घटना को 10 क्रांतिकारियों ने मिलकर अंजाम दिया जिनका नेतृत्व रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आज़ाद ने किया था । इस लूटपाट का उद्देश्य अंग्रेजों के अभेदय खज़ाने में सेंध लगाना था । ट्रेन में लूटपाट के समय एक क्रांतिकारी गोली लगने से शहीद हो गया । इस घटना को अंजाम देने के जुर्म में रामप्रसाद बिस्मिल समेत 3 क्रांतिकारियों को फाँसी पर लटका दिया गया । इकलौते चंद्रशेखर आज़ाद भाग निकलने में सफल रहे ।

जौन साँडर्स की हत्या: 07 नवम्बर 1928 को लाहौर में हुए लाठीचार्ज में हिंदु महासभा के संस्थापक लालालाजपत राय बुरी तरह से घायल करता हो गए और उनकी तत्काल मौत हो गयी । मरते समय लालाजी के अंतिम शब्द थे कि मुझे पड़ी लाठियाँ अंग्रेजशासन के ताबूत की आखिरी कील होंगी । इस लाठीचार्ज में पुलिस अधिकारी स्कॉट ने लाठियाँ चलाने का आदेश दिया था
और जापी साँडर्स के नेतृत्व में पुलिस ने लाठियाँ चलाई थी । इस घटना को सरदार भगत सिंह ने अपनी आँखों से देखा था और उस समय से उनके मन में प्रतिशोध की ज्वाला जल रही थी । उन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर स्कॉट को मारने की योजना बनाई और इस योजना में सुखदेव थापर, शिवम राजगुरु और रामगोपाल ने भी उनका साथ दिया । संपूर्ण तैयारी के साथ वे पाँचों पुलिस मुख्यालय के बाहर घात लगाकर बैठ गए ।
अफ़सोस! उस दिन स्काॅट के स्थान पर साँडर्स बाहर निकला । चूंकि साँडर्स ने भी लालाजी की मौत का बराबर ज़़िम्ममेदार था, इस कारण से क्रांतिकारियों ने उन्हें ही मौत के घाट उतार दिया । इस प्रकार से लालालाजपत राय की मौत का बदला लिया गया ।