Ant - 16 in Hindi Moral Stories by निशा शर्मा books and stories PDF | अंत... एक नई शुरुआत - 16

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अंत... एक नई शुरुआत - 16

"समय कभी नहीं ठहरता बेटा । ये एक जगह तो टिककर रह ही नहीं सकता जैसे कि तुम कभी कहीं एक जगह टिककर नहीं बैठती न बिल्कुल वैसे ही । देखना एक दिन हमारा भी बुरा समय उड़ जायेगा और फिर मेरी बिटिया के जीवन में बस खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी !",मेरी माँ अक्सर मुझसे ये बात कहा करती थी जिसपर मैं झट् से उनसे पूछ पड़ती थी कि माँ ! समय कैसे उड़ेगा ? क्या समय के पंख होते हैं ? और आज मुझे ये बात बहुत अच्छे से समझ में आने लगी है कि समय तो सचमुच कभी भी और कहीं भी नहीं टिकता है और हाँ सचमुच वो पंख लगाकर ही तो उड़ जाता है जैसे कि मेरे जीवन में मैंने कितने ही उतारचढ़ाव देख लिए इस समय के ! मुझे पता भी नहीं चला और समय कितनी तेज़ी से पंख लगाकर उड़ गया । आज मेरा बेटा सनी मेरे कंधे तक आने लग गया है और मेरे बालों पर चाँदनी नें भी अपना कब्ज़ा जमाना अब कुछ - कुछ शुरू कर ही दिया है मगर मैंने तो इसपर भी ध्यान तब ही दिया जब कल मैं रोमा के कहने पर जबर्दस्ती इनमें हेयरकलर लगा रही थी । दरअसल ईश्वर की कृपा से मुझे अब अपने स्कूल की प्रिंसिपल बनने का सुअवसर प्राप्त होने जा रहा है और रोमा के साथ ही मेरी अन्य साथी अध्यापिकाओं का भी यही कहना है कि मैं इस स्कूल की सबसे कम उम्र की प्रिसिंपल बनने जा रही हूँ तो मुझे ज़रा लगना भी वैसा ही चाहिए, न कि अपनी उम्र से बड़ा ! ! वैसे तो मैं इन सब बातों में कम ही विश्वास करती हूँ पर रोमा नें सिर्फ कहा ही नहीं बल्कि कुछ ज्यादा ही कहा । अरे उसनें तो मुझे ये धमकी भी दे डाली है कि अगर मैं बालों को कलर करके नहीं आयी तो वो स्कूल में ही मुझे पकड़कर मेरे बाल रंग देगी । आज मैंने उसकी खुशी के लिए ये भी कर लिया और इस खास मौके के लिए मेरे लिए वो ही अपनी पसंद से हल्के गुलाबी रंग की साड़ी भी लायी है । इस पर आज मैंने इतने सालों बाद उसी के कहने पर एक मोतियों का गले का सेट भी पहना है जो कि मुझे पूजा नें उपहार में दिया था जब मैं ऑस्ट्रेलिया गयी थी । आज वहाँ मैंने स्मिता मैम को भी बुलाया है हालांकि अब वो ज्यादा बाहर आती जाती तो नहीं हैं पर मेरे कहने पर वो ज़रूर आयेंगी और उन्हें अपने साथ लाने की जिम्मेदारी मैंने रोमा को दी है क्योंकि अब मैम को इस उम्र में खुद से ड्राइव करने में दिक्कत होने लगी है ।

मैं बस तैयार होकर बाहर निकली ही थी कि तभी अनुराग सामने से आ गया जो कि इस वक्त अपने कोचिंग-इंस्टीट्यूट जाने के लिए निकल रहा था ।

दरअसल यूपीएससी के कभी प्री में तो दो बार मेन्स में भी असफल होने के बाद उसनें अपने कुछ दोस्तों के साथ पार्टनरशिप में यूपीएससी की कोचिंग खोल ली है और अब वो वहाँ बच्चों को यूपीएससी के लिए तैयार करता है । मुझे देखते ही वो बोला कि आज आप बहुत बदली - बदली लग रही हैं, मेरा मतलब है कि आज आप बहुत सुंदर लग रही हैं और ये गुलाबी रंग आप पर बहुत खिल रहा है । आप गुलाबी रंग पहना करिए । उसकी इस बात पर मैं बस थैंक्स कहते हुए मुस्कुरा दी । अब मैं अनुराग के साथ काफी सहज महसूस करने लगी हूँ जिसका कारण शायद उसका सनी को ट्यूशन पढ़ाना भी है । वैसे तो सनी को मैं खुद ही इतने सालों से पढ़ा रही हूँ पर अब बड़ी क्लास में मुझे उसको गणित पढ़ाने में दिक्कत होने लगी है । मैं तो उसकी बाहर कोचिंग लगाने वाली थी मगर अनुराग ने कहा कि वो सनी को घर में ही पढ़ा देगा तो मैं भी मान गई । बाकी सनी भी अनुराग के साथ काफी खुश रहता है मगर न जाने क्यों कुछ दिनों से मुझे सनी का बर्ताव अनुराग के प्रति कुछ अजीब सा लग रहा है और आज भी अनुराग के मेरी तारीफ़ करने के बाद से ही मुझे सनी का मूड कुछ उखड़ा हुआ सा लग रहा है । मैं सोच रही हूँ कि आज स्कूल से वापिस आकर मैं सनी से इस सिलसिले में ज़रूर बात करूँगी ।

"आज तो कयामत ढा रही हैं मैडम जी !", रोमा नें मुझे देखते ही कहा । मैं मन ही मन सोच रही थी कि क्या सचमुच ? वैसे तो मैं इतनी सुंदर कभी भी नहीं थी कि कोई मेरी इस तरह से दिल खुश करने वाली तारीफ़ करता मगर समीर के जाने के बाद तो जैसे मैंने आइना देखना ही छोड़ दिया था मगर आज जब खुद को तैयार होते हुए मैंने आइने में देखा तो एक बार को तो मुझे भी लगा कि इतनी बदसूरत भी नहीं हूँ मैं !

"जब तू सबकुछ दूसरों की खुशी के लिए करती है तो कभी दूसरों की खुशी के लिए सज - संवर भी लिया कर !", रोमा ने बड़ी ही स्नेहभरी नज़र मुझपर डालते हुए कहा और मैं मुस्कुराते हुए उसे धन्यवाद बोलती हुई उसके गले से लग गई ।

सफलता का स्वाद सचमुच बहुत मीठा होता है और वो भी खासकर तब जबकि ये सफलता आपको आपके अथक परिश्रम, समर्पण और संघर्ष के बाद मिली हो जिसका अनुभव आज मुझे इस स्कूल की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उठाते हुए मेरा मतलब है कि प्रिंसिपल का पद संभालते हुए हो रहा है !

आज सनी को मैंने जीवन में पहली बार थप्पड़ मारा । वो हमेशा ही इतना अच्छा बच्चा रहा है कि मुझे कभी भी उस पर इस तरह से हाथ उठाने की ज़रूरत महसूस ही नहीं हुई पर आज उसनें कुछ ऐसा कह दिया कि जिसके बाद मैं बहुत रोकने पर भी खुद को उसपर हाथ उठाने से नहीं रोक पायी । उसके कहे हुए शब्द अभी भी मेरे कानों में गर्म शीशे के जैसे पिघल रहे हैं । उसे लगता है कि मैं अनुराग को पसंद करती हूँ और मैंने आज जो सजना - संवरना किया था वो भी अनुराग के कहने पर ही किया था और उसनें मुझे बताया कि गुलाबी रंग अनुराग का फेवरेट है इसलिए मैंने वो ही कलर आज के लिए जानबूझकर चुना ।हे भगवान मेरे बच्चे को इतनी बड़ी गलतफहमी ! मुझे सबकुछ जलता हुआ सा लग रहा है , सबकुछ ! !

वर्तमान दिन....

कितना कुछ घटा है न मेरे इस जीवन में ! मैं तो खुद भी भूल गई थी । वैसे ये हम मनुष्यों के स्वभाव का सबसे बड़ा लक्षण है कि हम अपने जीवन में ज़रा सी भी सुख की बदरी बरसते ही अपने जीवन में पड़े हुए दुखों के भयंकर सूखे को पल भर में ही भुला बैठते हैं और फिर उसके बाद जब कोई छोटी सी चुनौती भी हमारे सामने आती है न तो हम अपने अतीत के संघर्षों से प्रेरणा लेकर मजबूती से उसका सामना करने की बजाय कमज़ोर पड़कर वक्त और हालात के सामने अपने हथियार डाल देते हैं, मुसीबत के समक्ष हम अपने घुटने टेक देते हैं और यही बेवकूफी आज मैं भी करने जा रही थी । अरे जब मैं अपने जीवन में आयी विषम से विषम परिस्थिति में नहीं टूटी तो अब क्यों और कैसे टूट सकती हूँ मैं ? ? ? उफ़्फ़.... इन अतीत के पन्नों नें तो मुझे फिर से एक बार पूरी ताकत से इन रुकावटों और चुनौतियों के समक्ष खड़े होने की एक अद्भुत प्रेरणा दे दी है और जो मुझसे किसी नें कहा था न कि किसी का भी अंत एक नई शुरुआत का सूचक होता है वो भी बिल्कुल सही कहा था मगर कई बार हम किसी की कही हुई बातों का मतलब कुछ अलग ही ढंग से निकाल लेते हैं । फर्क होता है तो बस समझने का ! जैसे कि अंत इंसान का नहीं बल्कि अंत होना चाहिए हमारी कमज़ोरियों का , हमारी कायरता का , हमारी समाज के सामने सभी जायज़ और नाजायज़ बातों पर बेवजह झुकने का ! ! जब मैं गलत नहीं हूँ तो फिर मैं क्यों डरूँ और क्यों भागूँ किसी के भी सवालों से या इन बेवजह के गलत हालातों से ? मेरे बेटे को अगर कोई गलतफहमी हुई है तो उसकी गलतफहमी को दूर करके मेरे और उसके बीच आयी इस नकारात्मकता का अंत भी मुझे ही करना होगा तभी तो होगी हमारे बीच विश्वास और सच्चाई की एक नई शुरुआत ! मैंने तय कर लिया है कि अब मैं अनुराग से साफतौर पर इस विषय पर बात करूंगी और वैसे भी अब तो वो अच्छा खासा कमाने भी लगा है तो फिर उसे हमारे घर में एक छोटे से कमरे में रहने की क्या ज़रूरत ?

मैं अब ऊषा देवी की नींद की गोलियों की शीशी वापिस उनके बिस्तर के सिरहाने रख चुकी थी । मैं बस अनुराग से बात करने उसके कमरे में जा ही रही थी कि तभी मुझे उसके कमरे से सनी निकलता हुआ नज़र आया । मैंने सोचा कि मैं सनी के सामने ही अनुराग को घर खाली करने के लिए कह देती हूँ मगर मैं सनी को पुकार पाती उससे पहले ही वो तेज कदमों से चलता हुआ घर से बाहर निकल गया ।

मैं अब अनुराग के सामने थी ... "अनु तुम्हारी कोचिंग तो अब काफी अच्छी चलने लगी होगी न और कमा भी अच्छा ही लेते होगे फिर तुम", ....मेरी बात को बीच में ही काटते हुए अनुराग बोल पड़ा कि वो कल हमारे घर से जा रहा है क्योंकि शायद वो इसी साल शादी भी करने वाला है और इसी सिलसिले में उसकी माँ अब उसके पास ही रहने के लिए भी आ रही हैं । अनुराग की इस बात को सुनकर मेरा मन काफी हल्का हो गया और मैं उसके कमरे से बाहर आने लगी । मैं जैसे ही उसके कमरे से निकलने के लिए मुड़ी तो वो बोला कि...."मैं जानता हूँ कि आपके दिल में मैं एक किराएदार से ज्यादा कोई भी जगह नहीं बना पाया और यही बात मैंने अभी सनी को भी समझा दी है" , उसकी ये बात सुनकर मैं उसकी ओर मुड़ने की हिम्मत नहीं कर पायी क्योंकि मेरे लिए वो एक किराएदार और एक बहुत अच्छे इंसान के अलावा कुछ भी नहीं था । मैंने तो कभी सपने में भी समीर के अलावा किसी और की परछाईं तक नहीं देखी थी मगर मुझे आज ऐसा लगा कि शायद अनुराग के दिल में.....मगर मैं इस शायद को हमेशा शायद ही बने रहने देना चाहती हूँ ! और इसलिए मैं उल्टे पाँव अपने कमरे में लौट आयी । रात को जब सनी बहुत देर तक वापिस नहीं आया तो मैं किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत होकर उसे देखने के लिए घर से बाहर निकली । मैं बस दरवाजा बंद कर ही रही थी कि तभी सनी आ गया । मैं उसे खींचते हुए अपने कमरे में ले गई और मैंने जैसे ही उसकी तरफ़ देखा तो उसकी आँखें बुरी तरह से सूजी हुई थीं कि जैसे वो बहुत ज्यादा रोया हो । मैं उससे कुछ भी कहती या उसे कुछ भी बताती उससे पहले ही वो मेरे पैर पकड़कर फूट - फूटकर रोने लगा । वो बार - बार बस मुझसे सॉरी ही बोलता जा रहा था तभी मैंने अनुराग को दरवाज़े की आड़ में खड़े हुए पाया । शायद ये सब अनुराग के समझाने का ही असर था जो कि सनी की आँखों से पश्चाताप के आँसुओं के रूप में निरंतर बहता जा रहा था । शायद जब सनी ने मुझसे अनुराग के बारे में वो सब कहा तो अनुराग ने वो सबकुछ सुन लिया था और फिर उसनें सनी को अपने पास बुलाकर मेरे और उसके बारे में समझाया होगा जिसका असर मुझे इस वक्त मेरे सामने दिख रहा था !

क्रमशः...

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐