अगली सुबह जब देव उठा। सुबह की भीनी भीनी खुशबू और गुलाब के फूलों की हल्की हल्की महक आ रही थी।
अपनी अध खुली आंखों से वोह किसी को ढूंढने के लिए अपने हाथ को फैला के बैड पर ढूंढने लगा लेकिन उसके हाथ कुछ नही लगा क्योंकि वहां कोई नहीं था।
अगले ही पल उसकी लंबी मुस्कान छोटी हो गई जब उसने एक जानी पहचानी 'क्लिक' जैसी एक आवाज़ सुनी। जैसे ही उसने अपनी आंखे ठीक से खोली सामने का नज़ारा देख कर वोह उठ कर बैठ गया।
सबिता प्रजापति बैड के पास खड़ी थी, अस्त व्यस्त हालत में, हाथ में बंदूक लिए और निशाना देव पर था।
देव ने बंदूक को अनदेखा कर दिया लेकिन जो उस बंदूक को लिए खड़ी थी उसको देख कर उसकी सांसे ही अटक गई।
उसके बाल बिलकुल बिखरे हुए थे। उसके होंठ लाल हो रखे थे और सूजे हुए भी थे। उसके कंधे पर चोट के निशान थे। देव हल्का सा मुस्कुरा दिया यह सोच कर की ऐसे चोट के निशान सबिता के बाकी शरीर के हिस्से पर भी होंगे।
देव की सांसे लंबी चढ़ने लगी यह याद कर के की कल रात वोह कैसी लग रही थी इस शर्ट के बिना जो सबिता ने अभी पहनी हुई थी।
कल रात देव ने उसकी कमर पर नीचे एक टैटू देखा था, कांटेदार गुलाब के फूल का।
देव को कभी भी कोई भी टैटू सैक्सी नही लगता था किसी भी रूप में। लेकिन सबिता की कमर पर टैटू के साथ एक पतली सी चेन भी थी जो उसे और भी हॉट बना रही थी देव की नज़र में। जिसे याद करके वोह उसके नज़दीक जाने से रोक नहीं पा रहा था। उसका मन कर रहा था बस भूखे शरीर की तरह उसे अपने गिरफ्त में लेले।
"मेरे बैड से अभी उतरो।" सबिता की आवाज़ ने देव के वासना से भरे विचारों पर विराम लगा दिया।
जब देव नही हिला और उसने कुछ कहा भी नही तोह सबिता की नज़र देव के निचले हिस्से पर चली गई। जिसे देख कर सबिता ने कहा, "तुम बहुत ही घटिया और घिनौने इंसान हो।"
सबिता को खीच कर अपने ऊपर लेने की इच्छा को झटक कर देव अलसाया हुआ सा ठीक से बैठा गया। सबिता के आदेश को न मानते हुए देव बैड पर ही खिसक कर दीवार के सहारे टेक लगा कर बैठ गया।
"तुम्हे पता है, सिर्फ आदमियों की ही नही बल्कि औरतों की भी इच्छाएं उसके कपड़ो में से झलकती है।" देव ने सबिता को उसकी ही तरफ इशारा करते हुए कहा।
"चुप हो जाओ, इससे पहले की मैं तुम पर गोली चला दूं यहां से बाहर निकल जाओ।" देव ने फिर उसकी आवाज़ सुनी।
उसकी आवाज़ सुनते ही देव ने अपनी नज़र सबिता के सीने से हटा कर उसके चेहरे पर टिका दी। उसकी आंखे हमेशा ही सबिता को आकर्षित करती थी और उसे वासना से भर देती थी,। लेकिन इस वक्त सबिता के होंठ भींचे हुए थे जिसका मतलब था की वोह अभी गुस्से से भरी हुई है। बाकी चेहरे पर कोई भाव नहीं थे।
"मैने कहा, बाहर निकलो।" सबिता ने दुबारा कहा।
बदले में देव उठने की बजाय हाफ़ी लेने लगा और अंगड़ाई लेते हुए अपने बाहों को ऊपर की तरफ फैला दिया और फिर अपनी हथेलियों को अपने सिर के पीछे टिका दिया। पास ही खिड़की से भीनी भीनी धूप झांकने लगी थी।
देव मुस्कुराने लगा जब उसने सबिता की नजरो का पीछा किया। उसकी नज़रों का पीछा करते हुए देव ने पाया की सबिता उसकी खुली छाती की तरफ देख रही है।
सबिता उसे ऐसे ही देख रही थी जैसे यह समझ ने की कोशिश कर रही हो की वोह उसे कल रात का याद कर देख रही है या घृणा से।
"तुम एक ही बात बार बार बोल रही हो, डार्लिंग।" देव ने जानबूझ कर अलसायी सी आवाज़ में कहा जबकि उसका खून जलने लगा था अब यह याद करके की कल रात उनके बीच क्या हुआ था।
"तुमने कल रात ही कहा था मुझे यहां से जाने के लिए लेकिन हम दोनो ही जानते हैं की उसके बाद क्या हुआ था।" देव नही जानता था की क्यों मगर वो उसको ताने मार रहा था। देव उसका रिएक्शन देखना चाहता था।
सबिता की नज़र देव की छाती से हट कर उसके चेहरे की तरफ चली गई और गुस्से से उसकी आंखे फैल गई। उसने दुबारा गन देव पर तान दी।
और फिर ट्रिगर भी दबा दिया।
फिर एक तेज़ आवाज़ से कमरा गूंज उठा। सीमेंट, प्लास्टर और लकड़ी के कुछ टुकड़े बिखर गए। सबिता की गन से चली गोली सीधे देव की बांह पर जाके लगी और उसकी बांह में ही फस गई।
देव ने न ही बचने की कोशिश की और न ही कोई प्रतिक्रिया दी। उसने बस एक ज्वैल्ड चाकू निकाला तकिए के नीचे से और अपनी बांह से गोली को निकालने लगा।
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे चाकू को छूने की!" सबिता फिर गुस्से से भड़की।
गुस्से से अपने दांत पीसते हुए देव अपने काम में लगा रहा और जब तक गोली निकल कर फेक नही दिया उसने सबिता की तरफ नही देखा।
देव ने महसूस किया की सबिता अब उसके नज़दीक आ कर खड़ी हो गई है। सबिता ने उसके हाथ से चाकू छीन लिया। "आज के बाद कभी मेरी चीज़े मत छूना।" सबिता ने कहा।
देव बस अपने आप को शांत रखने की कोशिश कर रहा था। देव ने सबिता को घूर कर देखा। "अगर तुम कल रात की बात याद करो तो मैने तुम्हे इस चाकू को छूने से भी ज्यादा बार छुआ था।" देव ने कहा।
यह सुनते ही सबिता के कान और गर्दन लाल हो गए। "कल रात जो हुआ वो एक गलती थी। आज के बाद कभी भी कहीं पर भी कल रात की बाद मत दोहराना। अब जाओ यहां से।"
देव आगबबूला हो गया। उसके सामने जो लड़की खड़ी थी वोह एक मात्र ऐसी लड़की थी जो चंद पल में ही देव को गुस्सा दिला सकती थी।
उसे अजीब नज़रों से देखते हुए देव बैड से उठ खड़ा हुआ। वोह ऐसे ही बिना कपड़ो के था और सबिता के सामने भी ऐसे ही खड़ा हो गया। पर उसे देख कर सबिता का गुस्सा जरा भी नही डगमगाया। और उसे देख कर देव का गुस्सा भी बढ़ गया।
दोनो एक दूसरे को अपनी जलती निगाहों से देखने लगे।
देव को गुस्सा तब आने लगा था जब सबिता ने गोली चलाई थी वोह भी यह जानते हुए की उसने गन बिलकुल देव के सिर के पास तान रखी है। पहले की बात होती तोह वोह खीच कर सबिता को अपनी बाहों में ले लेता। और उसके सूजे हुए होंठों को फिर से चूम लेता लेकिन गोली चलने के बाद अब उसका रवैया बदल गया था। अब वोह सीधा टेबल की तरफ गया जहां नीचे उसके कपड़े पड़े थे। उसने अपना बॉक्सर्स पहना फिर ट्राउजर और उसके बाद अपनी फटी हुई शर्ट। उसने अपना फोन उठाया और सीधे दरवाज़े की तरफ चला गया। उसने पलट कर एक बार सबिता की तरफ देखा और फिर कमरे से बाहर चला गया दरवाज़ा पीछे ज़ोर से बंद करके।
*बड़ी अजीब लड़की है!*
देव जनता था की भले ही वोह अभी भी उससे नफरत कर रही है कल रात के लिए लेकिन उसने महसूस किया था की जैसे वोह उसे पाना चाहता है वैसे ही सबिता भी उसे पाना चाहती है।
अपने ऑफिस रूम में जा कर देव तुरंत बाथरूम में घुस गया और शावर 🚿 लेने लगा। वोह वैसे ही सीधा खड़ा रहा और उसपर पानी बरसता रहा। उसे अपनी पीठ पर दर्द का एहसास हो रहा था जहां जहां सबिता ने उसे अपने नखोनो से नोचा था और दांतों से काटा था पैशन से। उसे यह भी याद आ गया कैसे देव ने साबित को गोद में लेकर डेस्क पर बिठा दिया था और फिर कुछ देर बाद बैड पर ले जाकर भी रुका नही था। उन दोनो के बीच पूरी रात चलता रहा, वोह दोनो तब तक रुके नहीं जब तक हल्की रोशनी बाहर नहीं दिखाई देने लगी खिड़की से। अपनी इच्छाओं की तृप्ति पाने के बाद दोनो थक कर एक दूसरे की बाहों में सो गए।
वोह ऐसा बरताव क्यों कर रही थी। वोह तोह ऐसा बना रही थी जैसे वो बेचारी निर्दोष वर्जिन है और मैं विलन जिसने उसके साथ जबरदस्ती की थी?
देव ने अपनी मुट्ठी गुस्से से कस कर भींच ली। जब भी सबिता की बात आती है तो देव हमेशा ही सबिता की इच्छा का गुलाम ही होता है। उसे उसके आगे झुकना ही पड़ता है। और उसके आस पास रहने से देव की इच्छाएं और बढ़ने लगती है। देव ने सोचा की अब वोह उसके आस पास जितना हो सके नही आयेगा नही तोह कल रात वाला किस्सा फिर से हो जाएगा या फिर सबिता ही गुस्से से उसे गोली मार जान से मार देगी।
हालांकि देव को समझ नही आ रहा था की कौन सा रास्ता चुने। वोह इसी उधेड़ बुन में ऐसे ही शावर के नीचे खड़ा सोचता रहा हवस, नफरत या उसके हाथों अपनी मौत।
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कहानी कैसी लग रही है। अगर आप लोगों को कहानी पढ़ कर अच्छा लगता है तोह मुझे भी आप लोगों के कमेंट्स पढ़ कर अच्छा लगता है।)