The Author Yash Patwardhan Follow Current Read स्वराज्य संस्थापक:छत्रपति शिवाजी महाराज By Yash Patwardhan Hindi Biography Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 36 લાગણીઓ કાલે બપોરે જમવામાં નીતાબેનની કહેલી વાતો કેવિનનાં મનમા... ભાગવત રહસ્ય - 148 ભાગવત રહસ્ય-૧૪૮ અજામિલ શબ્દના બે અર્થો થાય છે.(૧) અજા=માયા... ભારતીય કાયદા સીરીઝ (B) આગળ નાં ભાગ માં જણાવેલ મુજબ કાર્ય શાલ પર સ્ત્રીઓને થતી જાત... નારદ પુરાણ - ભાગ 58 સનત્કુમાર બોલ્યા, “જે પ્રતિદિન પ્રાત:કાલે પચીસ વાર ‘ૐ નમો ના... રાય કરણ ઘેલો - ભાગ 2 ૨ પાટણની હવા પણ રાજા હજી પૂરેપૂરો જાગ્રત થયો ન હતો. જ... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share स्वराज्य संस्थापक:छत्रपति शिवाजी महाराज (4) 2.6k 9.6k 1 17वी-18वी सदी के दोरान भारत में मुग़ल साम्राज्य चरम सीमा पे था। उत्तर में शाहजहां,बीजापुर सल्तनत में आदिल शाह,गोलकुंडा में सुल्तान अब्दुला कुतुब शाह का आधिपत्य था। इसके अलावा समुद्र मार्गों पे पुर्तगाली थे। इसी बीच 19 फरवरी 1930 को शाहजी भोंसले और जीजा बाई भोंसले को पुत्र हुआ। जिसका नाम शिवाजी रखा गया। शिवाजी का जन्म 'शिवनेरी किले' में हुआ था। उनके पिता बीजापुर सल्तनत के जागीरदार थे। छोटे शिवाजी पहले से ही साहस,शौर्य से भरपूर थे। उनकी माता जीजा बाई बचपन से ही "महाभारत","रामायण" और "भगवत गीता" का ज्ञान देती थी। जिससे छोटे शिवाजी को छोटी उम्र से ही लीडरशिप के गुण आने लगे। इसके उपरांत दादोजी कोढेव उनको युद्ध के दाव सीखते थे। इसी शिक्षा के बदोलत शिवाजी उत्तम योद्धा बनने के लिए सज्ज थे। 'मावल' गाँव के लोग काफी पिछड़े वर्ग के थे। उनके पास शक्ति खूब थी पर वो असंगठित थे। ये छोटे शिवाजी ने देखा।उन्होंने गाँव वालो को समझाया कि आप सब आपस में क्यों लड़ रहे हों। ये मुग़ल हमारी ही मातृभूमि पे आकर हमपे राज कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि "गुलामी एक मानसिकता है।" शिवाजी ने गाँव वालो के साथ मिलकर छोटी सी सेना तैयार की। यहा से शुरू हुई "स्वराज्य यात्रा"। शिवाजी और उनके साथियों ने रायरेश्वर महादेव के मंदिर मे शपथ ली की हिंदवी स्वराज की स्थापना करेगे। शिवाजी महाराज के पास महाराणा प्रताप की तरह शौर्य,साहस था और चाणक्य की तरह बुद्धि थी। पिताजी बीजापुर सल्तनत के जागीरदार थे। सबको लगता था कि पुत्र भी इसी दिशा मे जाएगा किंतु शिवाजी महाराज को कुछ और ही मंजूर था। शिवाजी महाराज की सेना कम थी और दुर्गम इलाक़ों मे,जंगलों में छापेमार युद्ध ही सही था। इसीलिए वो छापेमार युद्ध करते थे। जिसे लोग गोरिल्ला वोरफेॅर के रूप में जानते हैं। शिवाजी महाराज ने 16 साल की उम्र में पहला किला 'तोरणा किला' जीत लिया। इसी तरह छापे मार युद्ध से शिवाजी महाराज ने खूब किले जीत लिए।शिवाजी महाराज के बढ़ते कद को देखकर आदिल शाह ने शाहजी भोसले को कारावास मे डाल दिया। लेकिन शिवाजी महाराज युद्ध के साथ साथ राजनीति में भी अव्वल थे। उन्होंने शाहजहां से कहा कि उत्तर मे आपके बहुत युद्ध होने वाले है। तो मे आपका साथ दे सकता हु। पर मेरे पिताजी को छोड़ दिया जाय तो। शिवाजी महाराज ने शाहजहां और आदिल शाह के बीच लड़ाई चालू करदी। और अंत में शाहजी भोसले को छोड़ना पड़ा। शिवाजी महाराज मानते थे कि "युद्ध जितना जरूरी है,लड़ना नहीं।" शिवाजी महाराज दूरदर्शी सोच रखते थे। उनको पता था कि ब्रिटिश और पुर्तगाल समुद्र के रास्ते से आते थे। इसीलिए शिवाजी महाराज ने कोंकण कोस्ट लाइन यानी तब का गुजरात,महाराष्ट्र,गोवा,कर्नाटक पर नेवी की रचना की। शिवाजी महाराज को "Father of Indian navy" भी कहा जाता है। आदिल शाह ने शिवाजी महाराज को मारने के लिए अपने सब से बड़े सेनापति 'अफजल खान' को भेजा।अफजल खान बड़ी सेना,हाथि और घोड़े लेकर आया और चारो तरफ से किले को घेर लिया। उसने युद्ध शुरू नहीं किया। उसने शिवाजी महाराज को संदेश भेजा कि मे आपसे मिलाना चाहता हु।कोई सैनिक नहीं,कोई शस्त्र नहीं। शिवाजी महाराज ने ये कबूल किया और मिलने चले गए। जेसे ही दोनों की मुलाकात हुई।अफजल खान ने पीछे से धारदार चक्कु शिवाजी महाराज के पीठ पर मारा। लेकिन शिवाजी महाराज जानते थे कि एसा कुछ होगा इसीलिए उन्होंने लोखंड का बख्तर पहना था। फिर शिवाजी महाराज ने वाघनंख से अफजल खान की किडनी ही निकाल दी। और बाद मे शिवाजी महाराज की सेना ने अफजल खान की सेना को पराजित कर दिया। शिवाजी महाराज ने इस दोरान काफी किले जीते।अफजल खान की पराजय के बाद शाइस्ता खान बड़ी सेना लेकर आया। उसने पुणे पे कब्जा किया। उसने वहा के सभी मंदिर तोड़ दिए और बेकसूर लोगों को काट दिया। ये सब देख कर शिवाजी महाराज छुपके पूणे में प्रवेश किया और हमला करके शाइस्ता खान को पराजित किया। इसके बाद उन्होंने सूरत पे हमला कर के काफी सोनामहौर लूट ली।सूरत की लूट से शिवाजी महाराज के स्वराज को आर्थिक लाभ हुआ। इसके बाद मिर्जा राजा जयसिंह और शिवाजी महाराज के बीच युद्ध हुआ जिसमें शिवाजी महाराज की हार हुई। फिर एक ट्रीटी के अनुसार शिवाजी महाराज को 23 किले गवाने पडे।औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को घरबंध कर दिया लेकिन किसी भी तरह शिवाजी महाराज वहा से मथुरा,काशी होते होते छूट निकले। इसके बाद शिवाजी महाराज ने 300 किले जीते।सन् 1677-78 में शिवाजी का ध्यान कर्नाटक की ओर गया। बम्बई के दक्षिण में कोंकण, तुंगभद्रा नदी के पश्चिम में बेळगांव तथा धारवाड़ काक्षेत्र, मैसूर, वैलारी, त्रिचूर तथा जिंजी पर अधिकार किया। औरंगजेब ने एक बार कहा था कि "19 साल तक मेने मेरी सभी ताकत शिवाजी को रोकने में लगा दी परंतु उनका राज्य बढ़ता ही रहा।" आखिरकार 6 जून 1674 को शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ। शिवाजी महाराज ने अपनी सेना के लिए नियम बनाया था कि कोई भी किसी भी तरह से स्त्री,बच्चे और बुजुर्गों को परेशान नहीं करेगा। वो कहते थे कि स्त्री अपनी हो या दूसरों की सब का सन्मान करना आवश्यक है। स्वराज बनाने मे शिवाजी महाराज के साथ उनके साथियों का भी उतना ही योगदान था। जेसे की बाजी प्रभु देशपांडे,बहिॅजी नायक,शिवा काशीदा,तानाज़ी मालूसरे आदि। बाजी प्रभु देशपांडे सेनापति थे। शिवाजी महाराज को पनहल के किले से विशाल गढ जाने तक उन्होंने विशेष भूमिका थी। तानाज़ी मालूसरे सूबेदार थे। कोनढ़ाणा का किला जितने मे अहम भूमिका थी। उनके लिए शिवाजी महाराज ने कहा था कि "गढ आला पण सिंह गेला" मतलब किला आ गया पर शेर चला गया।शिवा काशीदा शिवाजी महाराज का हमशक्ल था। बहिॅजी नायक शिवाजी महाराज की सेना के गुप्तचर विभाग के प्रमुख थे। इन्हीं साथियो के साथ मिलकर शिवाजी महाराज ने स्वराज की स्थापना की थी। जब शिवाजी महाराज राज्याभिषेक के लिए सिंहासन की ओर जा रहे थे तब उनकी आखें नम हो गई। तब जीजा बाई ने पूछा क्या हुआ शिवबा?तभी शिवाजी महाराज ने उत्तर दिया कि ये सिंहासन की ओर जाते हुऐ हर एक कदम पे मुजे तानाज़ी,शिवा काशीदा,बाजी प्रभु देशपांडे दिख रहे हैं। ये सिंहासन भले ही सोने का हो पर ये बना है मेरे मावळो के पराक्रम से बना है। मार्च 1980 में शिवाजी महाराज की तबीयत खराब हो गई और आखिरकार 3 अप्रैल 1680 में शिवाजी महाराज का स्वर्ग वास हुआ। उनके जाने के बाद उनके पुत्र संभाजी महाराज ने स्वराज संभाला।सच मे छत्रपति शिवाजी महाराज हम सभी के लिए प्रेरणा दायक है। Download Our App