Ek nai raah in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | एक नई राह 

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एक नई राह 

दिन प्रतिदिन शांतनु की बिगड़ती आदतों से परेशान होकर रुचि ने उससे कहा, “शांतनु तुम्हें अपने आप को बदलना होगा। तुम्हारी यह रंगरेलियां मैं सहन नहीं कर पाऊंगी। तुम्हें क्या लगता है, मुझे कुछ पता नहीं ? क्या मेरे साथ कोई कमी रह जाती है, जो बाहर उसे पूरी करने जाते हो।”

शांतनु ने नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “तुम मेरी पत्नी हो रुचि और तुम्हें जो चाहिए वह सब मिल रहा है। घर के बाहर मैं क्या करता हूँ, उससे तुम्हें कोई सरोकार नहीं होना चाहिए। मैं तुम्हारा ग़ुलाम नहीं, तुम मुझसे मेरी आज़ादी नहीं छीन सकती।”

रुचि बौखला गई और उसने अपनी सास कमला को फोन लगाकर कहा, “मम्मी जी आप शांतनु को समझाइए। वह हर रात देरी से घर आता है। मुझे लगता है उसका किसी स्त्री के साथ अवैध संबंध है, यह मेरा अपमान है।”

कमला ने कहा, “बेटा चिंता मत करो, हम उसे अवश्य ही समझाएंगे।”

रुचि अब शांतनु के सुधरने की उम्मीद कर रही थी, किंतु वह बिल्कुल नहीं बदला। रुचि ने कई बार उसे घर छोड़कर जाने की धमकी भी दी पर उसका भी शांतनु पर असर नहीं हुआ।

रुचि ने परेशान होकर एक बार फिर कमला को फोन लगाकर शिकायत की।

कमला ने कहा, “जाने दो रुचि बेटा, वह मर्द है थोड़ा आज़ाद ख्याल का है, तुम ही हार मान लो वह जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार कर लो।”

इस बार उनका जवाब सुनकर रुचि हैरान हो गई और उसने गुस्से में फोन काट दिया। वह विचलित हो गई, उसे अपनी सास से यह उम्मीद कतई नहीं थी। वह सोच रही थी बहु संस्कारी चाहिए, बेटा संस्कारी क्यों नहीं होना चाहिए ? ऐसा भेदभाव क्यों ?

एक दिन रुचि अपनी बचपन की सहेली लक्ष्मी रानी से मिलने गई और उसे अपने जीवन में आए इस तूफान के विषय में सब कुछ बता दिया। लक्ष्मी रानी शहर की बहुत बड़ी वकील थी तथा मुख्य रूप से महिलाओं के अधिकारों के केस ही लड़ती थी।

लक्ष्मी रानी ने सब कुछ सुना और फिर कहा, “रुचि रात को खाना खाने के बाद मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगी। मैं रात में सोच कर कल तुम्हें बताऊंगी कि हमें क्या करना चाहिए।”

जब शांतनु रात को घर आया, उस समय तक रुचि वापस नहीं आई थी। वह बेचैन होकर इधर-उधर घूम रहा था तथा खिड़की से बार-बार नीचे झांक रहा था। तभी एक बड़ी कार सड़क पर आकर रुकी और उसमें से रुचि निकल कर बाय करते हुए ऊपर आने लगी। कार में और कौन था, यह शांतनु नहीं देख पाया।

रुचि के आते ही शांतनु चिल्लाया, “कहां गईं थी तुम रुचि ? इतनी रात को किसके साथ वापस आई हो ? कहाँ अपना मुँह काला करवाया ?”, कहते हुए उसने रुचि पर हाथ उठाया।

किंतु रुचि ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, “तुम्हें कोई हक नहीं मुझसे यह सवाल करने का। मैं एक दिन बाहर क्या चली गई, तुम्हें बुरा लग गया। मुझे भी लगता है, जब तुम रोज देर से मुँह काला करके आते हो।”

दोनों के बीच झगड़ा बढ़ता ही गया।

रुचि दूसरे दिन फिर लक्ष्मी रानी के घर गई और दुःखी होते हुए उसे रात की घटना से अवगत कराया।

सब कुछ सुनने के बाद लक्ष्मी रानी ने कहा, “रुचि ऐसे इंसान के साथ कब तक अपना जीवन बिता पाओगी, तलाक ले सकोगी?”

रुचि सकपका गई और उस ने कहा, “लक्ष्मी उसे सुधारने की कोशिश तो करने दो ।”

लक्ष्मी ने कहा, “तुम्हें अभी भी उम्मीद है कि वह सुधरेगा, मुझे नहीं लगता।”

बातों ही बातों में रात हो गई, आज भी लक्ष्मी रानी रुचि को छोड़ने आई। बेचैनी में घूमता शांतनु उसका इंतज़ार कर रहा था।

रुचि के आते ही उसने अपनी माँ को फोन लगाया और अपने मन की सारी भड़ास फोन पर ही निकाल ली।

कमला ने सब सुनने के बाद रुचि को फोन लगा कर कहा, “रुचि यह क्या कर रही हो तुम ? तुम्हें कोई लाज, शर्म है या नहीं ? ग्यारह-बारह बजे घर आना किसी अच्छे परिवार की बहू को शोभा देता है क्या ? समाज क्या कहेगा, तुम्हें शर्म आनी चाहिए। तुम शांतनु की बराबरी करना चाहती हो ? भूलो नहीं तुम एक स्त्री हो और वह मर्द।”

रुचि गुस्से में तिलमिला गई और बिना कुछ कहे ही उसने फोन काट दिया।

रुचि और लक्ष्मी तलाक का मुकदमा दायर करें, उससे पहले शांतनु ने अपनी पत्नी रुचि के खिलाफ़ व्यभिचार का मुकदमा दायर कर दिया।

लक्ष्मी ने इस झगड़े को अंजाम तक पहुंचाने का निर्णय ले लिया। यह लड़ाई अब लक्ष्मी रानी और रुचि तक सीमित ना रहकर हर स्त्री के अधिकारों की लड़ाई बन चुकी थी। एक चरित्रवान लड़की पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाना ही अपने आप में बहुत बड़ा पाप था।

अब कोर्ट में तर्क वितर्क वाद-विवाद का सिलसिला जारी हो गया।

लक्ष्मी रानी ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा, “शांतनु ने अपनी पत्नी पर आवेश में आकर निराधार आरोप लगाया है, इस आरोप को सिद्ध करने के लिए वह अभी तक कोई गवाह अदालत में पेश नहीं कर पाया। उसने यह इल्जाम सत्य जाने बिना ही शक़ के आधार पर लगाया है। वह शायद यह नहीं जानता कि रुचि की बेगुनाही की सबसे बड़ी गवाह मैं स्वयं हूँ । रुचि मेरी बचपन की सहेली है और अपनी परेशानियां लेकर वह रात को मेरे पास ही आती थी। हम साथ बैठकर उसके जीवन में आई समस्या का समाधान ढूंढ रहे थे। बातें करते करते रात हो जाती थी और मैं जानबूझकर रात को देर से रुचि को छोड़ने जाती थी ताकि शांतनु को इस बात का एहसास हो कि उसके देर से आने पर रुचि कैसा महसूस करती होगी। जज साहब शांतनु तो हफ्ता भर भी सहन नहीं कर पाया और अदालत में इतना गलत इल्जाम अपनी पत्नी पर लगा दिया।”

लक्ष्मी रानी ने आगे कहा, “ हक़ीकत यह है कि वह स्वयं हर रोज़ रात को देर से घर आता है। पुरुष को यह अधिकार किसने दिया कि वह रातों में रंगरेलियां मना कर पत्नी के पास आए और इस तरह अपनी पत्नी का अपमान करे। कौन सी नारी पति का ऐसा घिनौना व्यवहार सहन करेगी ? अब ज़माना बदल गया है, जज साहब। स्त्री पुरुष के चरणों की धूल नहीं, बराबरी की हक़दार है। आज़ादी पुरुष अकेले की धरोहर नहीं, जितनी आज़ादी पुरुष को है, स्त्री भी उतनी की हक़दार है। यह भेदभाव क्यों ? यह विचारणीय है जज साहब।”

विरोधी पक्ष के वकील ने कहा, “शर्म, हया, मान सम्मान, पतिव्रता धर्म और इज़्ज़्त स्त्री का गहना है। यदि वही उसके पास नहीं रहा तो उसका पति समाज को क्या मुँह दिखाएगा ? ऐसी पत्नी का सम्मान कैसे करेगा जज साहब ?”

लक्ष्मी रानी ने कहा, “और पुरुष का गहना क्या है, मेरे साथी वकील यह भी स्पष्ट कर दें। उनकी नज़रों में पुरुष का गहना शायद इस तरह की आज़ादी है जो शायद वो ख़ुद भी चाहते हैं।”

दोनों पक्षों की बहस सुनने तथा बहुत सोचने के बाद जज ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा, “यदि पति अपनी पत्नी को पतिव्रता चाहता है तो उसे भी अपनी पत्नी के प्रति वफ़ादार रहना होगा। यदि वह अपने इस धर्म का पालन नहीं कर सकता तो अपनी पत्नी पर नियंत्रण करने का उसको भी कोई हक़ नहीं। स्त्री-पुरुष दोनों को समान अधिकार है वे जैसे चाहें अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं। व्यभिचार का कोई आरोप रुचि पर सिद्ध नहीं होता है। यह अदालत इस मुकदमे को खारिज करती है।”

रुचि के पक्ष में फैसला आने के उपरांत जब वह बाहर निकले तो उसकी नज़रें अपनी सास कमला से मिलीं तब कमला की नज़रें अपने आप ही झुक गईं। रुचि ने उनके नजदीक आकर पांव छुए तब कमला ने उसे ऊपर उठाकर माफी मांगते हुए कहा, “बेटा काश मैंने सही वक़्त पर शांतनु को समझाया होता, उसकी बातों में ना आकर तुम पर विश्वास किया होता तो शायद यह दिन हमारे परिवार को नहीं देखना पड़ता। अच्छा ही हुआ शांतनु को अपनी ग़लतियों का एहसास तो कराना ही था, शायद वह अब सुधर जाए।”

लक्ष्मी रानी ने कमला को समझाते हुए कहा, “आंटी आपने रुचि को पहचानने में ग़लती कर दी, वह तो आपके बेटे को सुधारने की कोशिश कर रही थी खैर। यह लड़ाई अब रुचि की नहीं, यह लड़ाई हमारे समाज की हर नारी के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाई है। रुचि तो इस लड़ाई की एक पात्र मात्र है लेकिन उसकी वजह से समाज को एक अच्छा संदेश मिला है आंटी।”

कमला ने रुचि की तरफ़ प्यार भरी नज़रों से देखते हुए पूछा, “बेटा अब क्या करोगी ?”

रुचि कुछ जवाब दे उसके पहले लक्ष्मी रानी बीच में बोल उठी, “आंटी यदि रुचि की जगह आप होती तो क्या करतीं ? कुछ दिन शांतनु को अकेले रहने दीजिए, उसे स्वयं को बदलना होगा।”

इतना कहकर लक्ष्मी रानी रुचि का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ ले गई।

लक्ष्मी रानी ने रुचि से कहा, “रुचि तुम्हें धैर्य से काम लेना होगा, कुछ समय अकेले ही रहना होगा। यदि वह तुम्हें थोड़ा भी प्यार करता होगा तो ख़ुद को बदलकर तुम्हें लेने अवश्य आएगा।”

रुचि अपनी सहेली की बात मानकर अपनी माँ के घर चली गई।

पंद्रह दिनों तक रुचि के बिना अकेले रह कर शांतनु हर कदम पर उसकी कमी महसूस करने लगा और सोचने पर मजबूर हो गया कि वह जो भी कर रहा था वह कितना ग़लत था। रुचि के साथ उसने बहुत अन्याय किया है।

आख़िरकार एक दिन वह रुचि के घर पहुंच ही गया। शांतनु को देखते ही रुचि की धड़कनें तेज हो गईं ।

शांतनु ने घुटनों के बल बैठकर रुचि से कहा, “रुचि मुझे माफ़ कर सकोगी ? क्या मेरे साथ अपने घर वापस चलोगी ?”

अपने पति को बेइंतहा प्यार करने वाली रुचि ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, “मैं जिस दिन का इंतज़ार कर रही थी शांतनु वह दिन मेरी ज़िंदगी में आया है। मेरा पति अब सिर्फ़ मेरा है, मैं उसका साथ अंतिम साँस तक निभाऊंगी।”

कहकर दोनों पति-पत्नी हाथों में हाथ डाले एक नई राह पर निकल गए।


रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक