९.दादाजी
विक्रम और स्नेहा ने सारे फोटोग्राफ्स देखें तब जाकर वो दोनों सोने के लिए गए। रुद्र उनके जानें के बाद एक बार फिर से सारे फोटोग्राफ्स देखने लगा। जिनमें से एक फोटो पर उसकी नजरें जम सी गई। वो किसी और की नहीं बल्की अपर्णा की फोटो ही थी। जो चाट खाते हुए खींची गई थी। रुद्र को बहुत याद करनें पर भी याद नहीं आया कि उसने ये फोटो कब खींची थी?
अपर्णा उस फोटो में बहुत प्यारी लग रही थी। चाट खाते वक्त उसके होंठों पर मुस्कान और चेहरे पर जो सुकून था। रुद्र उसका कायल हो गया। तभी अचानक उसे फ़ोटोज बदलते वक्त रितेश की मुंह बनाई हुई फोटो दिखी तब उसे याद आया कि चाट की दुकान पर रितेश उससे कैमरा छीन रहा था। तब शायद रुद्र ने चाट की दुकान के बोर्ड के बदले अंदर बैठी अपर्णा की तस्वीर खींच ली होगी। रुद्र वह तस्वीर देखते हुए मन ही मन सोचने लगा, "अच्छा हुआ स्नेहा या विकी भैया का ध्यान इस फोटो पर नहीं गया। वर्ना वो मेरी जान खा जाते।" रुद्र यहीं सब सोचते हुए कब सो गया? उसे पता तक नहीं चला।
सुबह जब उसकी आंख खुली। तो उसने देखा आज़ उसे उठने में देर हों गई है। उसने फटाफट से ब्रश किया, नहाया और तैयार होकर नीचे आ गया। उसके पापा अभी तक नीचे नहीं आएं थें। इस मौके का फ़ायदा उठाकर रूद्र बिना चाय या नाश्ता किए ही ऑफिस के लिए निकल गया।
रुद्र सुबह ऑफिस जाने के अलावा किसी भी जगह वक्त पर नहीं पहुंचता था। इस बात से उसके पापा को हमेशा से शिकायत रहती थी। फिर आज़ तो रूद्र ऑफिस जानें में भी लेट उठा था। इसलिए उसका उसके पापा से सामना हो इससे पहले उसका घर से भागना ज़रुरी था। रुद्र जब ऑफिस पहुंचा तब कल की तरह आज़ भी अपर्णा जल्दी आ गई थी।
"क्या सर? वो मैडम रोज़ आपका जल्दी आने का रिकॉर्ड तोड रही है और आप है कि आज़ अपने टाइम से भी लेट आएं है।" दरवाज़े पर खड़े गार्ड ने रुद्र को देखते ही कहा।
"अब तुम्हें क्या बताऊं की कल रात तुम्हारी इस मैडम की फ़ोटो देखने के चक्कर में ही देर से सोया इसीलिए देर से उठा।" रुद्र मन ही मन बड़बड़ाता हुआ अंदर चला आया। कल रुद्र ने आकर ऑफिस खोला था। मगर आज़ पहले से ही ऑफिस खुला हुआ था। ऑफिस की दूसरी चाबी गार्ड के पास ही रहती थी। मगर कल वो चाबी गार्ड घर पर भूल गया था। इसलिए अपर्णा को रुद्र के आने का इंतजार करना पड़ा था।
रुद्र अंदर आया तो अपर्णा पहले से ही अपने काम में लग गई थी। रुद्र भी अपनी केबिन की ओर बढ़ गया। लेकिन बिना चाय पीए उसका दिमाग काम कहा करता था? इसलिए पहले वो ऑफिस के किचन की ओर बढ़ गया। उसने आकर देखा तो किचन में खाना बनाने वाला कूक अभी तक आया नहीं था।
"सुबह घर से नाश्ता करके नहीं आएं क्या?" रुद्र को ऑफिस आते ही सीधा किचन में जाता देखकर अपर्णा से रहा नहीं गया तो उसने पूछ ही लिया।
"नाश्ता करने रुकता तो साथ-साथ डांट भी खाने को मिलती। इसलिए डांट से बचने के लिए नाश्ते की बली चढ़ा दी।" रुद्र ने अपर्णा की ओर मुड़कर कहा।
"क्या मतलब?" अपर्णा ने हैरानी से पूछा।
"मतलब तुम समझोगी नहीं और बिना चाय पीए मैं तुम्हें कुछ समझा पाऊंगा नहीं।" रुद्र ने कहा।
"तो एक काम किजिए कूक तो आया नहीं है। तो मैं ही चाय बना देती हूं।" अपर्णा ने अपनी डेस्क से उठते हुए कहा।
"तुम्हें चाय बनानी आती है?" रुद्र ने हैरानी से पूछा।
"वक्त सब सीखा देता है। आगे आप पीकर ही देख लेना कि बनानी आती है या नहीं।" अपर्णा ने कहा और चलीं गईं। उसकी पहली बात रुद्र को कुछ अजीब लगी। मानों उसे ये अहसास हुआ कि अपर्णा के दिल में कोई गहरा दर्द छिपा है। जिसे वो किसी के सामने दिखाती नहीं है।
रुद्र बाहर बैठा अपर्णा के बारे में ही सोच रहा था और उसने रुद्र के लिए अदरक वाली चाय बनाई और उसे कप में छानकर बाहर ले आई। उसने बाहर आकर देखा तो रुद्र उसकी डेस्क पर बैठा था और अपर्णा बनारस से अपना फेवरेट स्माइली बॉल लाई थी उसे हाथ में लेकर देख रहा था। जब अपर्णा ने वो बॉल रुद्र के हाथ में देखा तो उसने वो बॉल लेकर उसके हाथ में चाय का कप थमा दिया।
"ये क्या तुम्हें किसी खास इंसान ने दिया है? कल मैंने देखा कि फुर्सत में तुम इसे हाथ में लेकर बड़े ही प्यार से देख रही थी।" रुद्र ने चाय का घूंट भरते हुए पूछा।
"हां, ये मुझे मेरे दादाजी ने दिया था। जब मैं बहुत छोटी थी और सब से नाराज़ हो गई थी। तब मुझे मनाने के लिए दादाजी मेरे लिए ये बॉल लेकर आए थे। ताकि मैं इसे देखकर मुस्कुराने लगूं। उनको मेरा मुस्कुराना बहुत पसंद था। लेकिन अब मुझे उस तरह मनाने के लिए वो इस दुनिया में..." अपर्णा कहते-कहते रुक गई। उसकी आंखों में आसूं भर आएं। जिन्हें उसने आंखों के अंदर ही समा लिया।
अपर्णा के मम्मी-पापा के बीच अपर्णा के जन्म के बाद लड़ाई होने लगी थी। लेकिन एक दादाजी थे। जिन्हें अपर्णा से बहुत प्यार था। क्यूंकि उनके सिर्फ दो ही बेटे थे। कोई बेटी नहीं थी। इसलिए उनको अपनें बड़े बेटे और बहू से बेटी की इच्छा थी। जो उन्हें अपर्णा के रुप में पूरी हो गई। अपर्णा का नाम भी उसके दादाजी ने ही रखा था।
रुद्र ने जब अपर्णा की बात सुनी तो उसे उसके दादाजी की याद आ गई। दोनों के दादाजी बिल्कुल एक जैसे थे। लेकिन फर्क बस इतना ही था कि अब अपर्णा के पास उसके दादाजी नहीं थे। लेकिन रुद्र के दादाजी अभी जिंदा थे। इसलिए रुद्र ने अपर्णा से कहा, "तुम ऐसे उदास मत हो। दादाजी तो सभी के बहुत अच्छे होते है। तुम्हारे दादाजी के बारे में सुना तो ऐसा लगा कि वो बिल्कुल मेरे दादाजी जैसे ही होंगे। तो फिर तुम ऐसा समझो कि आज़ से मेरे दादाजी तुम्हारे भी दादाजी है। अभी जन्माष्टमी पर ही वो आश्रम से घर आ रहे है। तब मैं तुम्हें उनसे मिलवाने जरूर ले जाऊंगा।"
"आश्रम से मतलब?" अपर्णा ने पूछा। लेकिन रुद्र उसके सवाल का जवाब दे पाता उससे पहले ही ऑफिस का स्टाफ आने लगा तो वह उठकर अपने केबिन में चला गया। अपर्णा भी अपना काम करनें लगी।
(क्रमशः)
_सुजल पटेल