Aneeta ( A Murder Mystery ) - 5 in Hindi Crime Stories by Atul Kumar Sharma ” Kumar ” books and stories PDF | अनीता (A Murder Mystery) - 5

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अनीता (A Murder Mystery) - 5

भाग - 5

साठे ने बताना शुरू किया - "" सर , इस जतिन का कोई भी रिश्तेदार नही है। माँ-बाप बचपन में ही चल बसे। सिर्फ एक चाचा थे जिन्होंने शादी नही की थी। उन्होंने ही इसे
पाल-पोसकर बड़ा किया। बाद में वो भी चल बसे। जतिन ने अपना बिजनेस अपने दोस्त अनिल के साथ पार्टनरशिप में शुरू किया। पैसे लगाने वाला अनिल था , और मेहनत से उस बिज़नेस को आगे बढ़ाने वाला जतिन।लेकिन दोनो दोस्तों में आपसी विश्वास बहुत है। जैसा कि हर बिज़नेस में देखने मे आता है कि पार्टनरशिप ज्यादा नही चलती। कुछ ना कुछ डिस्पेयूट होते ही होते हैं। पर इनके मामले में सब अलग था। 4 साल से दोनो साथ साथ हैं। दोनो में तालमेल भी बहुत है। बिना एक दूसरे की सलाह के कोई काम नही करते। प्लॉट देखने भी दोनो साथ ही गए थे। जबकि वो प्लाट जतिन अपने पैसों से खरीद रहा था।

और अनीता की वाकई में तीन साल पहले जतिन से कोर्ट में शादी हुई है। मेने रिकार्ड देखा है। और उसके पुराने पडोसियों से मेरी बात हुई। अनिता उसी घर मे एक साल तक रही। दोनो की लव मैरिज थी। अनिता के बारे में कुछ भी पता नही चल सका। वो कहाँ से आई , किस खानदान की थी। कुछ भी नही।""

ये सुनते ही विजय आश्चर्य से साठे को बीच मे ही टोकते हुए बोले - "" क्या!!!!!... पुराने पड़ोसी। मतलब अब ये कहीं और रहता है ? '"

साठे अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले - "" शादी के एक -दो साल बाद ही जतिन ने अपना शहर वाला मकान छोड़ वहां से दूर एक फार्म हाउस लिया था। अनीता के साथ वो कुछ दिन वहीं शिफ्ट हो गया था। पड़ोसियों ने यही बताया। क्योंकि अनीता को शहर की जिंदगी कुछ खास पसंद नही थी। उसका दम घुटता था वहाँ। इसी बात को लेकर दोनो में कई बार तकरार भी हुई । अनीता गर्भवती थी, उसे एक मरा हुआ बच्चा भी हुआ था। जिसके बाद तो अनीता का मन बिल्कुल भी शहर में नही लगता था। इसलिए भी जतिन मजबूर हो गया वहाँ से जाने को। कुछ समय दोनो एकांत मे बिताना चाहते थे।

लेकिन कुछ महीनों बाद जतिन वापिस शहर आकर रहने लगा। क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक्स का इतना बड़ा बिज़नेस अकेले अनिल से सम्भल नही रहा था। और जतिन के ध्यान न देने पर लगातार घाटे में जाने लगा। कर्जा बढ़ने लगा। बैंक लोन सर पर आ गया। ब्याज दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा। लेकिन अनिल ने कभी भी इसके लिए जतिन को जिम्मेदार नही ठहराया। बस उससे आग्रह करता रहा की वो शहर वापिस आकर रहने लगे। और उसका साथ दे। जतिन ने भी ऐसा ही किआ। अनीता को छोड़ वो वापिस शहर आ गया। अनीता अकेली फॉर्म हाउस में रहने लगी।बीच-बीच मे टाइम निकालकर जतिन उससे मिलने जाता था। ""

साठे की बात सुनकर इंस्पेक्टर विजय उससे बोले -
""मतलब अनिता को बाद में जतिन के शहर वाले किसी पड़ोसी ने फिर कभी नही देखा। सब यही समझते रहे कि अनिता फॉर्म हाउस पर होगी। जिससे मिलने जतिन जाता रहता था। यानि शादी के एक साल बाद दोबारा किसी ने भी अनिता को जतिन के साथ नही देखा। बस जतिन जैसा बताता गया , सभी उसपर यकीन करते गए।

साठे दाल में काला नही बल्कि पूरी दाल ही काली लग रही है। अब ये बात तो कंचन के मायके से ही क्लियर होगी। मेने अपने खबरी को इसका पता लगाने भेज दिया है। पर में चाहता हूं कि तुम भी अब बमनाखेड़ा में जाकर तहकीकात करो। इसके तार वहीं से जुड़े हुए हैं। मेरा यकीन और भी पक्का होता जा रहा है। ये कोई बहुत बड़ा षड्यंत्र रचा गया है। कोई साजिशी जाल बुना गया है बड़ी सफाई से। एक काम करते हैं में कल खुद बमनाखेड़ा जाता हूँ। वही पर इसके सूत्रधार का पता चलेगा। तुम एक काम करो साठे। कल माधव प्रसाद और उनकी पत्नि दुर्गा को यहां थाने में बुलाओ पूछताछ के बहाने। उनके पीठ पीछे में वहां जाकर तफ्तीश करूँगा। इनको पता नही चलना चाहिए इस बात का। दिन भर थाने में बैठाकर रखना। तुम यहाँ उनसे पूछताछ करना में वहाँ गांव वालों को टटोलूँगा । मुझे पूरी उम्मीद है कुछ ना कुछ ऐसा पता चलेगा जिससे इस केस की दिशा बदल जायेगी। "" विजय अपना प्लान साठे को समझाने लगे।

तभी एक हवलदार अंदर केबिन में आया। और विजय से बोला - "" सर जतिन ने जिस प्रोपर्टी डीलर का पता दिया था , वो सही तो है। पर वहाँ उसके घर और आफिस में ताला लगा हुआ है। मोबाइल भी बंद आ रहा है। आसपास पूछने पर पता चला कि वो पिछले 4-5 दिन से गायब ही है। घर तक नही गया। ना ही आफिस। वो शादी शुदा नही है। अकेला रहता है । ""

उसकी बात सुनकर विजय कुछ सोचने लगे। उन्होंने उस हवलदार को जाने को कहा। उसके जाने के बाद वो साठे से बोले - "" कुछ समझे साठे??? ""

साठे ने आश्चर्य से ना में सर हिला दिया।

विजय दोबारा बोले - "" मेरा अंदाज़ा सही निकला। जब अनीता के गायब होने और बाद में उसकी हत्या के इतने दिनों तक वो डीलर हमसे मिलने नही आया ना ही जतिन के साथ आया, जबकि वो उस वक़्त साथ मे ही था अनिल और जतिन के। या तो वो भी इस साजिश का हिस्सा है या फिर शिकार। भाग गया , भगा दिया गया या फिर मार दिया गया। ये कंचन की पिछली जिंदगी एक रहस्य बनती जा रही है।

अभी तो नही पर एक-दो दिन बाद जतिन , अनिल और तेजपाल को अलग अलग बुलाकर फिर से पूछताछ करेंगे। देखते हैं वो अब और क्या क्या कहते हैं इस बारे में। कल तुम माधव प्रसाद और उनकी पत्नि को बुलाकर उनसे अलग अलग पूछताछ करो। में बमनाखेड़ा निकलता हूँ कल सुबह ।

तभी इंस्पेक्टर विजय का मोबाइल घनघनाया। सामने डॉ. चौहान थे। और उन्होंने बताया कि माधव प्रसाद का DNA कंचन के DNA से मेच नही किया। इतना सुनते ही विजय के चेहरे की सलवटें और बढ़ गईं। यानि वो लाश कंचन की नही है तो क्या अनीता का अस्तित्व सच है। क्या वो लाश वाकई अनीता की ही है??? ... विजय को अब भी DNA रिपोर्ट पर भरोसा नही हो रहा था। उनको पक्का यकीन था कि रिपोर्ट मेच होगी। पर ये तो केस ही पलट गया।

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(अगले दिन बमनाखेड़ा में।)

इंस्पेक्टर विजय एक -एक करके सभी पड़ोसियों और अन्य गाँव वालों से छानबीन करते हैं। पूछताछ करते हुए उनको एक पुराने गांव वाले वृद्ध हरिया काका से पता चलता हैं।

हरिया काका - "" साहब , ये जो माधव प्रसाद हैना। पहले काफी गरीब हुआ करता था। खेतों में मजदूरी करके अपना पेट भरता था। वहीं से इसकी पहचान एक और मजदूर लखनपाल से हुई। लखनपाल शुरू से दंदी-फन्दी आदमी था। वो बस किसी भी तरह पैसा कमाना चाहता था। पहले तो माधव प्रसाद बहुत सुलझा हुआ सीधा सादा आदमी था। पर जबसे दोनो दोस्त बने तबसे माधव प्रसाद ने हम लोगों के बीच उठना बैठना ही छोड़ दिया। दोनो दिन भर पता नही किस उधेड़-बुन में लगे रहते। माधव प्रसाद कबतक दूसरों के मज़दूरी करता। उसके मन मे खुद की ज़मीन की चाह होने लगी। माधव प्रसाद की कोई संतान नही थी। काफी जगह पूजा कराई , पर कोई फायदा नही हुआ। दुर्गा तो दिन रात एक संतान के लिए तड़पती थी। ऊपर से काम धंधा भी कुछ चल नही रहा था।

फिर ये लोग कुछ समय के लिए गाँव छोड़कर चले गए। और सबसे कह कर गए कि बाहर कहीं जाकर कुछ समय नॉकरी करेंगे। मेनहत मजदूरी करेंगे। यहाँ उनकी मेहनत का उचित दाम नही मिलता। जब पैसा इकट्ठा हो जायेगा तब वापिस आकर यहाँ अपनी ज़मीन खरीदकर अपनी मातृभूमि पर ही खेती करेंगे। लखनपाल भी इनके साथ गया। 2 साल बाद जब ये लोग आये तो इनकी गोद में एक नन्ही बच्ची थी। सबको बताया कि वैष्णो मातारानी के कई चक्कर लगाए। पता नही कहाँ कहाँ भटके। तब जाकर कंचन हुई। कंचन बिटिया के इनकी जिंदगी में आने के बाद से इनके दिन फिरने लगे। साक्षात लक्ष्मी का अवतार बनकर आई थी कंचन बिटिया। उसको खूब प्यार भी करते। पूरे गांव में अकेली वही लड़की थी जो इतना पढ़ लिख गई। घर के सारे कामकाज से लेकर बाकी के सभी काम मे भी महारत हासिल थी कंचन बिटिया को। बहुत मिलनसार प्यारी सी बच्ची थी साहब। उसका दुख आज भी सबको बहुत है।

विजय - "" क्या कभी कंचन लंबे समय के लिए इस गाँव से बाहर गई थी। मेरा मतलब शहर या दूसरे गाँव । ""

हरिया - "" हाँ साहब तकरीबन 3-4 साल पहले जब वो किसी को इस गांव में नही दिखी तो सबने उसके बारे में पूछा। क्योंकि वो सबसे मिलनसार और अच्छे स्वभाव की थी । औरों की जरुरत मन्दों की मदद करने का तो इतना शौक था उसे मत पूछिए। दुश्मन भी जिसकी तारीफ करे वो थी कंचन ,सबकी दुलारी थी। सबके पूछने पर माधव प्रसाद ने बताया कि उसे उसने उसकी एक दूर की बहन के यहाँ उनकी देख रेख करने भेजा है। उनका इस दुनिया मे कोई नही था। लेकिन जब 2-3 साल तक वो वापिस नही आई तो सबको ये बात अजीब लगी। फिर एक दिन अचानक वो वापिस आ गई। माधव प्रसाद ने बताया कि उनकी बहन अब नही रहीं तो कंचन को वापिस बुला लिया। लेकिन ये बात किसी को हजम नही हुई। पर कंचन ऐसी लड़की थी जिसका मीठा स्वभाव सबको सबकुछ भूलने पर मजबूर कर देता था। किसी ने भी उससे इस बारे में ज्यादा नही पूछा। सबको यही लगा कि शायद माधव प्रसाद ठीक ही बोल रहा था। और कंचन भी पहले कि तरह ही सबसे व्यवहार करती रही।

उसके आने के लगभग एक साल बाद यहीं पास के एक प्रतिष्ठित गांव सम्भरधरा से तेजपाल का रिश्ता आया।
ये बात भी किसी को अच्छी नही लगी साहब , क्योंकि तेजपाल कहीं से भी उसके लायक नही था। ना ही रूप में ना ही गुण में और ना ही उम्र में। उससे कई साल बढ़ा था वो। हम सबने माधव को बहुत समझाया भी की इतनी जल्दी मत कर। एक से बढ़कर एक रिश्ते आएंगे । लेकिन वो नही माना। पता नही क्या मजबूरी थी उसकी। और कंचन ने भी उफ्फ तक नही की। चुप चाप सर झुकाकर सारी बात मान ली। मुझे तो तभी कुछ गड़बड़ लगी थी साहब । पर में ठहरा बूढ़ा आदमी। भला कर भी क्या सकता था। सभी गांव वाले भी हैरान थे कि आखिर माधव को ये हुआ क्या है। जिस लड़की को उसने जीवन भर इतना प्यार दिया उसे ऐसे ही किसी के पल्ले बांध दिया। पर हमारी बिटिया कंचन खुश थी तो हम सभी ने भी उसकी खुशी में अपनी खुशी समझी।

इंस्पेक्टर विजय हरिया काका से बोले - "" क्या आप उन दूर की बहन के बारे में कोई जानकारी दे सकते हैं। ""

हरिया काका - "" नही साहब कुछ नही पता। ""

उनकी बात सुनकर विजय उनका धन्यवाद कर वहाँ से जाने को होते ही हैं तभी हरिया काका उनसे बोलते थे।

आप यदि माधव के बारे में और जानना चाहते हैं तो लखनपाल से बात कीजिये। उसके हर काम मे उसका साथी है। वो माधव प्रसाद का काफी करीबी है। और उसके हर सुख दुख में उसके हर काम मे उसके साथ बराबरी से खड़ा रहता है। ((ये वही लखन था जिसने फुल्ली की खराब तबियत की सूचना माधव प्रसाद को दी थी। ))

इंस्पेक्टर विजय लखन से मिलने के पहले कंचन की सहेलियों से मिले। और कंचन के बारे में कई बातें की। कंचन की सहेलियों ने भी कंचन की बहुत तारीफ की। इंस्पेक्टर विजय ने अकेले में उसकी एक सहेली को विश्वास में लेकर उससे वो पूछा जो कंचन की दूसरी सहेलियों को नही पता था। उसकी सहेली प्रतिभा ने बताया कि कंचन को एक दिन कुछ ऐसी बातें पता चली की वो जबसे बिल्कुल बदल गई। घर वालों के प्रति उसका मन अविश्वास और घृणा से भर गया था। कल तक मां-बाऊजी को भगवान की तरह पूजने वाली कंचन ने अचानक से उनसे बात करना तक बंद कर दिया था। वो खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगी थी। अकेले मे बस रोती रहती। किसी से कुछ नही कहती। हर दम उदास रहने लगी। मेरे पूछने पर उसने मुझे सारी बात बताई। पर अपनी कसम भी दी कि में ये बात किसी को ना बताऊँ। चूंकि में उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी। इसलिए वो हर बात मुझसे जरूर करती थी। लेकिन अब जब वो इस दुनिया मे ही नही है तो फिर कैसी कसम। ""

उसके बाद प्रतिभा ने इंस्पेक्टर विजय को कुछ ऐसी बातें बतलाईं जिसे सुनकर विजय भी हैरान रह गए। उनको अपने कानों पर यकीन नही हुआ।

इधर पुलिस थाने में माधव प्रसाद और उनकी पत्नि से अलग अलग पूछताछ की गई । लेकिन वो घूमी फिरी बात करते रहे।

इतने में विजय थाने में वापिस आये । और माधव प्रसाद से पूछताछ करते साठे को इशारे से अपने पास बुलाया।

"" साठे , अब वक़्त आ गया है। जतिन , तेजपाल और लखन को भी थाने उठा लाओ। अब सबको एक साथ बैठाकर बात होगी। मेने कहा था ना कि इस केस में मुझे किसी ग़हरी साज़िश की बू आ रही है। मेरा अंदाज़ा गलत नही था। पर इतना तो मेने भी नही सोचा था । बुलाओ सालों को और तबतक कूटो जबतक वो सच ना उगल दें। ""

आखिर क्या पता चला था इंस्पेक्टर विजय को जो वो इतने विश्वास से बोल रहे थे?
कंचन की सहेली प्रतिभा ने ऐसा क्या बता दिया था विजय को , जिसे सुनकर उनको भी अपने कानों पर यकीन नही हुआ?
रामलाल और उसकी पत्नि का कत्ल आखिर किसने किया था, और क्यों?

इन सब रहस्यों से पर्दा उठेगा कहानी के अगले और अंतिम भाग में ।

(कहानी जारी है...)

लेखक - अतुल कुमार शर्मा " कुमार "