भाग - 2
लखन का इतना कहना ही था कि उसकी ये हालत देख माधव प्रसाद बोले...""" अरे तनिक सांस तो ले ले,ऐसा लग रहा है जैसे यम के दूत तेरे पीछे पड़े हैं।"""
""" अरे भैया बात ही ऐसी है , खजूरी काकी की पोती ( गांव की एक वृद्ध महिला जिसे गांव वाले बहुत मानते थे बहुत सम्मान करते थे) फुल्ली की तबियत बहुत खराब है, वो फिर से अजीब अजीब हरकतें करने लगी है। पता नही क्या क्या बोले जा रही है। आप फ़ौरन चलिए। """....इतना सुन माधव प्रसाद अचानक से खड़े हो गए, चेहरे पर चिंता और भय की लकीरें साफ दिख रही थीं।
""" अरी कंचन की माँ में खजूरी काकी के यहां जा रहा हूँ अपनी फुल्ली की तबियत फिर खराब हो गई। पता नही इस मोड़ी के साथ क्या लगा है। जबसे जंगल से आई है तबसे कुछ ना कुछ हो रहा है उसे,में जरा आता हूँ,देरी हो जाये तो तू रोटी खाकर सो जाना।""'"''....इतना कहते वे लखन के पीछे पीछे तेज़ी से जाने लगे।
कंचन बाहर आँगन में आई। """.अरे माई ये बाऊजी कहाँ चल दिये। अभी तो आये थे।"""".....आश्चर्य से कंचन ने पूछा।
"""" अरे वो फुल्ली हैना उसकी तबियत फिर से खराब हो गई।कितना मना किया था जंगल में मत जा पर वो नही मानी। अब देख लो जंगल का पिसाच पड़ गया ना पीछे। """
"" अरे माई तू फिर से चालू हो गई, ये पिसाच विसाच कुछ नही होता , सब दिमाग का वहम है। पता नही किसने उस जंगल की अफवाह फैला दी है। वहाँ जाने से कुछ नही हुआ। फुल्ली को कोई मानसिक बीमारी है। शहर में अच्छे डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा।"" कंचन अपनी माँ को समझाते हुए बोली।
पर माई तो जैसे साक्षात दर्शन करके बैठी थी पिसाच के,उसपर कंचन की बातों का कोई असर नही पड़ा उल्टा वो उसे ही डांटने लगी।
""" अरे चार आखर क्या पड़ गई तुझे ये सब फालतू की बाते लगती है। पुराने लोग यूँ ही नही कहते वो जंगल है ही एक अभिसाप। संजा के बखत तो वहां अकेले भूलकर भी नही जाना चाहिए। तेरी तरह फुल्ली भी किसी की बात नही मानती थी। लकड़ी लेने अकेले बे बखत चली गई , अब देख ले, अरे इन चीज़ों का भी अस्तित्व होता है। कोई माने ना माने, अब तो ईस्वर ही बचाये उस मोड़ी को। वो याद है अपनी जमुनिया , अरे वही दुलारी की मोड़ी। आखिर प्राण ही छोड़ दिये पर कोई वैद्य नही बचा पाया। उसे वैद्य की नही ओझा की जरूरत थी। पर उस बखत किसी ने नही सुनी। जान से हाथ धो बैठी मोड़ी। अब उसे भी क्या कोई मगज का रोग था?"" ...कंचन की माँ ने ठंडी सांस छोड़ते हुए बोला और भगवान के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गई। ""
कंचन माँ की इस बात से मन ही मन असन्तुष्ट होकर गर्दन हिलाती हुई अंदर रसोई में चली गई।
माधव प्रसाद लखन के साथ जब फुल्ली के घर पहुँचे तो फुल्ली उन्हें देखते ही और भी तेज चीखते हुये ज़मीन पर लेटी हुई अपने पांव जोर जोर से पटकने लगी। कुछ औरतें उसे पकड़ कर काबू करने की कोशिश कर रहीं थीं। आसपास सभी लोग जमा हो गए थे। इतने में गांव के सरकारी अस्पताल के इकलौते डॉक्टर वहाँ आते हैं और उसे नींद का इंजेक्शन लगाकर सुला देते हैं। उसे जल्द ही शहर में किसी बड़े स्पेशलिस्ट डॉक्टर को दिखाने की सलाह देते हैं।
लेकिन सभी गांव वाले आपस मे ये बातें करते हैं कि बार बार ये सुई लगाने से कुछ नही होगा। ये चक्कर तो कुछ और है।डॉक्टर-वाक्टर के बस का नही। माधव प्रसाद भी खजूरी काकी को सांत्वना देकर उनकी हिम्मत बंधाकर वापिस घर आते हैं। माधव प्रसाद तबसे ही कुछ तनाव में रहने लगते हैं। जैसे कोई अजीब सा अनजाना सा डर उनको अंदर ही अंदर खाये जा रहा था।
एक दिन उनके मोबाइल की घण्टी बजती है। पंडितजी का फोन था। कंचन के रिश्ते के लिए उन्होंने एक लड़का देखा था। जिसका नाम तेजपाल था। सारी बात माधव प्रसाद को बताने के बाद वो लड़के की बहुत तारीफ करते हैं उसे देखने का बोलते हैं। माधव प्रसाद खुश होकर घर में अपनी पत्नि दुर्गा को ये बात बताते हैं। दुर्गा भी बहुत खुश होती है। लेकिन लड़के की उम्र थोड़ी ज्यादा थी। पर चूंकि गाँव और घर बार अच्छा था ,तो माधव प्रसाद ने लड़के के बारे में ज्यादा नही सोचा। और देखते ही देखते कंचन और तेजपाल का विवाह संपन्न हो गया।
कंचन ने अपने मृदु स्वभाव के कारण ससुराल में भी अपनी धाक जमा ली। सबसे अच्छे से पेश आती। घर का सारा काम अकेली अच्छे से करती। सबका बराबर ख्याल रखती। गाँव वालों और मेहमानों को भी अपनेपन से प्रभावित करने वाली कंचन जल्द ही पूरे गाँव की एक आदर्श बहू बनकर उभरी। हर घर में उस जैसी बहू का उदाहरण दिया जाने लगा। रामलाल और वसुधा तो जैसे भक्त बन गए थे कंचन के। हों भी क्यों ना , कंचन वास्तव में एक गुणी और चरित्रवान लड़की थी। पूजा-पाठ में भी पक्की।
देखते ही देखते एक वर्ष बीतने आया। सबकुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन कुछ दिनों से कंचन कुछ परेशान सी रहने लगी थी। तेजपाल ने इस बात को नोटिस भी किया था। और कंचन से कई बार पूछा भी , पर वो हर बार बात को बहाने में टाल गई। लेकिन उसके दिमाग मे कुछ तो चल रहा था। खाना बनाते बनाते अचानक मन ही मन कहीं खो सी जाती। वसुधा के टोकने पर उसे चेतना आती। वसुधा भी कंचन में आये इस बदलाव को देख रही थी। हमेशा हंसती खिलखिलाती रहने वाली कंचन अचानक से गुम-सुम और डरी-डरी सी रहने लगी।पर कंचन थी कि कभी किसी को कुछ बताती ही नही थी। अंदर ही अंदर जैसे उसमें कोई द्वंद मचा हुआ था।
उस दिन सुबह तेजपाल खेत पर जल्दी निकल गया। क्योंकि कटाई का काम चल रहा था। उस दिन उसे खेत पर काम करते करते दिन भर हो गया।लेकिन कंचन ना तो खुद खाना लेकर आई ना ही किसी के हाथ भिजवाया। तेजपाल भूखा प्यासा शाम को घर लौटा। दरवाजा खुला हुआ था। वो बाहर कमरे में आकर पलंग पर बैठ गया और पानी के लिए अंदर अवाज़ लगाई। पर कोई भी नही आया। बार बार बोलने पर भी जब कोई उत्तर नही मिला तो थकान से चूर तेजपाल अंदर गया। अंदर सारा सामान अस्त-व्यस्त पड़ा हुआ था। और पलंग पर रामलाल और वसुधा की खून से सनी लाशें पड़ी हुईं थीं। तेजपाल को काटो तो खून नही। उसे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। तेज़ अवाज़ में चीखते हुए वह सर पकड़ कर वहीं जमीन पर धड़ाम से बैठ गया। तभी उसे कंचन का ख्याल आया । उसने पूरे घर मे आसपास सभी जगह कंचन को देखा पर कंचन कहीं नही मिली। उसकी आवाज़ सुनकर आसपास पड़ोसी इकट्ठा हो गए। उनमें से एक ने पुलिस को फोन कर घटना की सूचना दी।
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( वर्तमान में )
पुलिस थाने में इंस्पेक्टर विजय हवलदार साठे से बोलते हैं ...- "" साठे आखिर ऐसा कैसे हो सकता है , एक बुजुर्ग दम्पत्ति जो बिल्कुल शरीफ और सबकी मदद करने वाले हों , जिन्होंने कभी किसी का बुरा करना तो दूर कभी बुरा सोचा भी ना हो। आखिर कोई क्यों उनको इतनी दर्दनाक मौत देता है। किसी को क्या हासिल होगा इन सबसे। गाँव मे जिस जिस से भी बात हुई सबने एक ही बात कही। और तेजपाल की पत्नि वो कंचन जिसका कहीं कोई पता नही। तेजपाल ने जो फोटो दिया था उसे आसपास के सभी थानों में सर्कुलेट करो। एक टीम आसपास सभी जगह सर्चिंग के लिए भेजो। हमे हर हाल में कंचन को ढूंढना ही होगा। वही एकमात्र ऐसी शख्स है जो घटना के बारे में जानती है। या तो उसके साथ कुछ हुआ है या फिर शायद उसी ने दोनो मर्डर किये और भाग गई। पर ऐसा करके उसे मिलेगा क्या अपना बसा-बसाया घर उजाड़ के ? ""
विजय की बात सुनकर साठे बोले - "" लेकिन सर कंचन की तो सभी ने तारीफ की। कोई भी ऐसा शख्स नही मिला जो उसकी बुराई करे या ऐसी कोई बात बताए जिससे कुछ भी महसूस हो कि ये सब कंचन ने ही किआ। उल्टा लोग उसकी मिसाल दे रहे थे। हो सकता है कोई लूट के इरादे से घर मे घुसा हो और दोनो के विरोध करने पर उनको मार दिया हो। और कंचन को किडनैप कर लिया हो। घर का सारा सामान भी अस्त व्यस्त था। "" साठे अपने विचार रखते हुए इंस्पेक्टर विजय से बोले।
"" लेकिन साठे वो कोई इतना पेसो वाला घर भी नही है जिसे लुटेरों ने अपना निशाना बनाने की सोची हो। एक साधारण सा परिवार है। खेती करके अपनी जीविका चलाता है। हाँ तुम्हारी दूसरी बात सोचने लायक है। हो सकता है कंचन को किडनैप किआ गया हो। और उसी चक्कर में ये दोनो मर्डर भी हुए हों। सास ससुर ने विरोध किया होगा तो उनको मार डाला। पर उनकी चीखें किसी ने सुनी कैसे नही। जबकि तेजपाल की चीख सुनकर तो सभी वहाँ इकट्ठा हुए थे। और कोई कंचन को किडनैप क्यों करेगा। साठे पूरे गाँव मे सबसे अलग अलग पूछताछ करो। खास तौर पर ये तेजपाल और उसकी पत्नि कंचन के बारे में। पड़ोसी महिलाओं से विशेष तौर पर पूछो। हो सकता है हमारे सामने सिक्के का एक पहलू ही आ रहा हो। जिसमें कंचन एक आदर्श बहू बनकर सामने आई। दूसरा पहलू कुछ और भी हो सकता है। तेजपाल का भी और इस कंचन का भी। कंचन को सबने बहुत अच्छा बताया , जरूरत से ज्यादा अच्छाई कभी कभी आंखों को धोखा भी देती है। कंचन के माता-पिता कहाँ रहते हैं। उनसे पूछताछ करो। उनके गांव में पूछो । ससुराल में इतनी अच्छी आदर्श बहू कंचन आखिर एक बेटी के रुप में अपने मायके में कैसी थी?... कोई ना कोई तो होगा जो कुछ जानता हो। पता करो साठे पता करो। "" इन्स्पेक्टर विजय खिड़की से बाहर देखते हुए बोले।
उनकी बात सुनकर अचानक से जैसे साठे को कुछ ख्याल आया हो। वो फ़ौरन विजय से बोले - "" हो सकता है कंचन का कोई शादी के पहले का प्रेमी रहा हो। जिसका कंचन से शादी का सपना पूरा नही हो पाया , बदला लेने उसने ये कांड कर दिया। और कंचन को उठा ले गया हो। या फिर ये कंचन भी इन सबमें शामिल हो। सास-ससुर को मारकर अपने प्रेमी के साथ भाग गई हो। जिसके लिए उसने पूरे एक साल इंतज़ार किया हो। हमने कई कैसेज़ में देखा भी है। जैसा तेजपाल ने बताया कि वो कुछ दिन से परेशान सी थी। हो सकता है इसी उधेड़-बुन में हो। ""
"" तुम्हारा पॉइंट भी सोचने लायक है। लेकिन जबतक कंचन नही मिल जाती कुछ भी कहना मुश्किल है। मुझे पूरी उम्मीद है उसके मायके से कुछ ना कुछ जरूर पता चलेगा। इस तेजपाल को भी खँगालो। इसके मोबाइल की एक महीने की सारी कॉल डिटेल कम्पनी से निकलवाओ। सबकुछ बारीकी से चेक करो। कोई पॉइंट मिस नही होना चाहिए। हो सकता है बाप - बेटे के अंदरूनी रिश्ते खराब हों। और उसी ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया हो। पर वो ऐसा क्यों करेगा। इकलौता है प्रोपर्टी का भी कोई मसला नही। जो भी है सब उसी को मिलेगा। पर एक सवाल वहीं अपनी जगह है ।यदि उसने ये सब किआ तो कंचन को गायब क्यों किया। यदि कंचन उसके इस कृत्य की गवाह थी तो फिर उसने उसे भी क्यों नही मारा। कुछ तो गहरा राज़ है साठे इस परिवार में। अपने खबरियों को काम पर लगा दो। जबतक पोस्ट मार्टम रिपोर्ट भी आ जायेगी। तभी कुछ साफ होगा। "" इंस्पेक्टर विजय चाय की चुस्की लेते हुए बोले।
उधर जैसे ही कंचन के माता-पिता को पता चला वो फ़ौरन तेजपाल के पास पहुँच गए। तेजपाल तो जैसे पागल सा हो रहा था। उसकी जिंदगी में एक दिन ऐसा आया जिसने उसकी पूरी जिंदगी ही बदलकर रख दी। वो कुछ भी नही समझ पा रहा था। पुलिस गाँव मे सभी से पूछताछ कर रही थी। कंचन को भी आसपास सभी जगह तलाशा जा रहा था। पर कोई सफलता हाथ नही लगी। कंचन का कहीं कुछ पता नही था। उसके मायके में भी एक टीम भेजकर गाँव वालों से उसके अतीत के बारे में पूछताछ की जा रही थी। पर वहां भी सभी ने कंचन के बारे में वही कहा जो उसके ससुराल में गाँव वालों ने बताया था। पुलिस फिर से तेजपाल के घर गई। दोबारा से पूरे घर को स्कैन किआ। तेजपाल से जितनी भी मालूमात की गई , वो अपनी बात पर ही डटा रहा कि उसे इस बारे में कुछ नही पता। माधव प्रसाद और दुर्गा से भी अलग अलग काफी पूछताछ की गई, पर ऐसा कुछ भी निकलकर नही आया जिससे ये पता चल सके कि आखिर ये मामला घर का है या किसी बाहर वाले का हाथ है इसमें।
आखिर इतनी अच्छी भोली-भाली कंचन के साथ क्या हुआ था ?
क्या उसके साथ भी कोई घटना घटी थी?
या फिर इन सबके पीछे कंचन ही थी?
उस लड़की फुल्ली ने ऐसा क्या देख लिया था जंगल मे की वो पागल जैसा बर्ताव करने लगी थी।
( कहानी जारी है...)
लेखक - अतुल कुमार शर्मा " कुमार "