Hashtag- Subodh Indian in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | हैशटैग- सुबोध भारतीय

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हैशटैग- सुबोध भारतीय

आमतौर पर जब भी किसी कहानी या उपन्यास में मुझे थोड़े अलग विषय के साथ एक उत्सुकता जगाती कहानी, जिसका ट्रीटमेंट भी आम कहानियों से थोड़ा अलग हट कर हो, पढ़ने को मिल जाता है तो समझिए कि मेरा दिन बन जाता है।

दोस्तों..आज मैं धाराप्रवाह लेखन से सुसज्जित एक ऐसे ही कहानी संकलन की बात करने जा रहा हूँ जिसे '#हैशटैग' के नाम से लिखा है सुबोध भारतीय जी ने। 'नीलम जासूस' के नाम से पिता के बरसों पुराने प्रकाशन व्यवसाय को फिर से पुनर्जीवित करने वाले सुबोध भारतीय जी का वैसे तो यह पहला कहानी संकलन है मगर लेखन की परिपक्वता को देख कर ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता कि यह उनका पहला कहानी संकलन है।

इस संकलन की किसी कहानी में
फाइनैंशियल कंपनी में कार्यरत मोनिका की, इन्वेस्टमेंट के उद्देश्य से की गई एक फोन कॉल , आकर्षक व्यक्तित्व के 34 वर्षीय देव के मन में फिर से कुछ उम्मीदें..कुछ आशाएँ.. कुछ उमंगे..कुछ सपने ज़िंदा कर देती है। उस देव के मन में, जिसका दिल, बरसों पहले निशि से शादी ना हो पाने की वजह से टूट चुका था। ऐसे में क्या देव द्वारा देखे गए सपने पूरे होंगे या फिर....?

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में अपने अपने बच्चों के सैटल हो..विदेश में बस जाने के बाद विधुर एवं विधवा के रूप में एकाकी जीवन जी रहे मिस्टर. तनेजा और मिसेज वर्मा आपस में मिल कर, बतौर मित्र एवं हितचिंतक, लिव इन में रहने का फ़ैसला करते हैं। हालांकि आपसी सहमति की इस दोस्ती में सैक्स जैसी चीज़ की कोई गुंजाइश नहीं होती मगर ज़माने भर की नजरें फिर भी उन पर टिक ही जाती हैं। ऐसे में क्या वे दोनों, घर परिवार एवं अड़ोस पड़ोस के तानों से बच कर नार्मल लाइफ जीते हुए अपनी बात..अपने फ़ैसले पर अडिग रह पाएँगे?

इसी संकलन की अन्य कहानी जहाँ एक तरफ़ अय्याश तबियत के उन्मुक्त युवाओं के बीच नशे की बढ़ती लत और अवैध सम्बन्धों के आम होने की बात करती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ गाँव की अल्हड़ किशोरी, उस चम्पा की भी बात करती है जो बतौर घरेलू सहायिका काम करने के लिए अपने गाँव से शहर आयी हुई है। एक हाउस पार्टी के दौरान नशे में धुत मेहमान द्वारा सोती हुई चम्पा की कुछ आपत्तिजनक तस्वीरों को खींच..उन्हें सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाता है। नशे..हवस..दिखावे और भेड़चाल से भरे इस समाज में क्या चम्पा फिर कभी सम्मान से जी पाएगी?

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में एक तरफ़ बीमार पत्नी के बड़े अस्पताल में चल रहे महँगे इलाज से तो दूसरी तरफ़ अपने ठप्प पड़े कामधन्धे से मोहित वैसे ही परेशान है। ऊपर से रही सही कसर के रूप में जब उसके, बीमार पिता और छोटे बच्चों वाले, घर में अनचाहे मेहमानों का आगमन होता है तो वह परेशान हो..बौखला उठता है। अब देखना यह है कि ये बिन बुलाए मेहमान उसके गले में आफ़त की पोटली बन कर झूलते हैं अथवा राहत के छींटों के रूप में उसके दुःख.. उसकी तकलीफ़ को कम करने में सहायक सिद्ध होते हैं।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में कम तनख्वाह में बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चला रहे सुखबीर को अपनी माँ का अस्पताल में एक महँगा मगर बेहद ज़रूरी ऑपरेशन करवाना है, जो कि पेट में प्राणघातक रसौली से परेशान है। अब दिक्कत की बात ये कि उसके पास ऑपरेशन के लिए पैसे नहीं और बिना पैसों के ऑपरेशन हो नहीं सकता। ऐसे में सुखबीर के घर में उनकी माँ के एक पुराने परिचित का आगमन होता है जिसे वह नहीं जानता। पुरानी बातों..पुरानी यादों से रूबरू होता हुआ यह आगमन क्या उनके घर में सुख..शांति व समृद्धि का बायस बनेगा अथवा उनकी मुसीबतों को और ज़्यादा बढ़ाने वाला होगा?

एक अन्य कहानी में भीख में रुपए पैसों की जगह सिर्फ़ रोटी माँगती बुढ़िया को देख, भिखारियों को नापसन्द करने वाला, लेखक भी खुद को उसकी मदद करने से रोक नहीं पाता। बुढ़िया के स्नेहिल स्वभाव एवं अनेक अन्य वजहों से समय के साथ वह और उसका परिवार, उससे इस हद तक जुड़ता चला जाता है कि कब वह उनके घर..मोहल्ले में सबकी चहेती, अम्मा बन जाती है..पता ही नहीं चलता। मगर वह बुढ़िया दरअसल है कौन? ..कहाँ से आयी है और किस वजह से उनके घर टिकी हुई है? यह कोई नहीं जानता।

एक अन्य मज़ेदार कहानी में जहाँ हास्य व्यंग्य के माध्यम से घर के खाने से आज़िज़ आए चटोरे लेखक की ज़बानी समय के साथ ढाबों और रेस्टोरेंट्स इत्यादि के बदलते स्वरूप की बात की जाती दिखाई देती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ एक अन्य कहानी में घर के पालतू कुत्ते के साथ जुड़े, मन को छूने वाले, छोटे छोटे प्रसंगों एवं संस्मरणों के ज़रिए लेखक उस छोटे से जानवर के साथ अपने भावनात्मक रिश्ते एवं जुड़ाव की बातें करता दिखाई देता है। जिन्हें पढ़ कर पढ़ने वाला भी अपनी आँखें नम किए बिना नहीं रह पाता।

इस संकलन की 'क्लाइंट' कहानी जहाँ वास्तविकता के धरातल पर मज़बूती से खड़ी हो..सच्चाई को बयां करती दिखाई दी। तो वहीं दूसरी तरफ़ कुछ अन्य कहानियाँ कुछ ज़्यादा ही पॉज़िटिव एवं फिल्मी अंत लिए हुए लगी। हास्य व्यंग्य से जुड़ी एक रचना में कुछ पुराने हास्य प्रसंग भी नए परिधान पहन..फिर से रौनक बिखेरते दिखाई दिए।
कुछ कहानियों के अंत का भी कहानी पढ़ते पढ़ते पहले से ही अंदाज़ा लग रहा था जबकि बतौर सजग पाठक एवं खुद के भी एक लेखक होने के नाते मेरा मानना है कि कहानियों के अंत अप्रत्याशित एवं चौंकाने वाले होने चाहिए।

इस संकलन की कहानियों के कुछ वाक्यों में कुछ जगहों पर शब्द रिपीट होते या फिर ग़लत छपे हुए भी दिखाई दिए। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर 27 में लिखा दिखाई दिया कि..

'इंडियन ऑयल भवन के नीचे बनी डि-पॉल्स कॉफी शॉप के आगे सुबह से ही ग्राहकों की भीड़ जुटनी शुरू हो गया थी।'

यहाँ 'भीड़ जुटनी शुरू हो गया थी' की जगह 'भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी' आएगा।

इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..

'देव ने तब उसे समझाया था -"देखो, ध्यान से, ये सब आपने फन के कलाकार हैं'

यहाँ 'आपने फ़न के' की जगह 'अपने फ़न के' आएगा।

पेज नंबर 28 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'फिर उसने अच्छे से ब्रश करके उसके जूते को बढ़िया चमका दिया।'

यहाँ 'जूते को चमका दिया' की जगह अगर 'जूतों को चमका दिया' आता तो वाक्य ज़्यादा बेहतर लगता क्योंकि जूते हमेशा जोड़े में ही आते एवं पहने जाते हैं।

पेज नंबर 29 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'अरे!.. क्या आवाज़ से भी क्या मैं तुम्हें बुड्ढा लगा था?'

इस इस वाक्य में दो बार 'क्या' शब्द का प्रयोग किया गया जबकि एक बार होना चाहिए था। किसी भी 'क्या' शब्द को हटाने से वाक्य एकदम सही बन जाएगा।

पेज नंबर 30 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'देव बार-बार वह अपनी पुरानी यादों में खो जाता।'

इस वाक्य में 'वह' शब्द की ज़रूरत ही नहीं थी।

** पेज नंबर 33 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'जब बदन पोंछने के लिए तोलिया ली तो देखा'

यहाँ 'तौलिया ली' की जगह 'तौलिया लिया' आएगा।

इसी पेज के अंत में लिखा दिखाई दिया कि..

'उसने होठों पर बार-बार गीत आ रहे थे'

यहाँ 'उसने होंठों पर' की जगह 'उसके होंठों पर' आएगा।

** पेज नंबर 74 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'अब सारे परिवार ने अलग जा कर इस बारे में मंत्रणा करना शुरू किया'

यहां 'मंत्रणा करना शुरू किया' की जगह 'मंत्रणा करनी शुरू की' आएगा। हाँ.. अगर 'मंत्रणा' की जगह 'विचार' करना होता तो वह ज़रूर किया जाता।

इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिखाई दिया कि..

'अभी गांव में चम्पा के छोटे दो भाई अभी बड़ी मुश्किल से पढ़ पा रहे हैं और ज्यादा बड़े होकर या तो कोई मज़दूर बन जाएँगे या शहर की किसी फैक्ट्री में छोटा-मोटा काम करेंगे जिससे उनका जीवन नहीं बदलेगा।'

इस वाक्य में ग़लती से 'अभी' शब्द दो बार छप गया है। जिसकी ज़रूरत नहीं थी। इसके बाद 'ज़्यादा' शब्द की जगह 'ज़्यादा से ज़्यादा' आएगा।

पूरा शब्द इस प्रकार बना बनेगा कि..

'अभी गांव में चंपा के दो छोटे भाई बड़ी मुश्किल से पढ़ पा रहे हैं और ज़्यादा से ज़्यादा बड़े होकर या तो कोई मजदूर बन जाएँगे या शहर की किसी फैक्ट्री में छोटा मोटा काम करेंगे जिससे उनका जीवन नहीं बदलेगा।

पेज नंबर 86 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'बच्चों से दोनों से काफी घुल मिल गए थे।'

इस वाक्य में दूसरा वाले 'से' शब्द की ज़रूरत ही नहीं थी। सही वाक्य इस प्रकार होगा।

'बच्चों से दोनों काफी घुलमिल गए थे।'

इसी पेज पर अंत में लिखा दिखाई दिया कि..

'गांव में एक महीना कैसे बिक जाता था पता ही नहीं चलता था'

यहाँ 'बिक जाता था' के बजाय 'बीत जाता था' आएगा।

** पेज नंबर 87 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'ओठों पर कोई शिकायत नहीं, शिकवा नहीं।'

यहाँ पर 'ओठों पर कोई शिकायत नहीं' की बजाय 'होठों पर कोई शिकायत नहीं' आएगा।

इसी पेज पर आगे लिखा दिखाई दिया कि..

'साफ धुले कपड़े पहनना और घर को साफ रहना एक अच्छी आदत है जिसकी कीमत हर कोई नहीं जानता।'

यहाँ 'घर को साफ़ रहना' की जगह 'घर को साफ़ रखना' आएगा।

** पेज नंबर 98 की पहली पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..

'यूं तो आज तो आज छुट्टी का दिन था पर सुखबीर का मूड ठीक नहीं था।'

इस वाक्य के शुरू में दो शब्द 'तो आज' रिपीट हो गए। सही वाक्य को इस प्रकार होना चाहिए था।

' यूं तो आज छुट्टी का दिन था पर सुखबीर का मूड ठीक नहीं था।'

** पेज नंबर 158 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'फिर हमारा एक साल में हमारा रोहिणी में फ्लैट तैयार हो गया और हम उस में शिफ्ट कर गए।'

इस वाक्य में दो बार 'हमारा' शब्द छप गया है। किसी भी 'हमारा' शब्द को हटाने से वाक्य सही बन जाएगा।

*बुलाये- बुलाए
*पतौड़े - पकोड़े
*दीया- दिया
*नये- नए
*लिये- लिए

हालांकि संग्रहणीय क्वालिटी का यह उम्दा कहानी संकलन मुझे लेखक की तरफ़ से उपहारस्वरूप मिला मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि बढ़िया क्वालिटी में छपे इस रोचक कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है सत्यबोध प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 175/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक एवं उनके प्रकाशन संस्थान को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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