The Author Atul Kumar Sharma ” Kumar ” Follow Current Read अनीता (A Murder Mystery) - 1 By Atul Kumar Sharma ” Kumar ” Hindi Crime Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books શ્યામ રંગ....લગ્ન ભંગ....5 ભાગ-5કોલેજ ના દિવસો એટલે કોલેજીયન માટે તો ગોલ્ડન ડેઈઝ.અનંત ત... ક્ષમા વીરસ્ય ભુશણમ क्षमा बलमशक्तानाम् शक्तानाम् भूषणम् क्षमा। क्षमा वशीकृते... ભીતરમન - 56 હું કોઈ બહુ જ મોટા પ્રસંગની મજા લેતો હોઉ એવો મારો આજનો જન્મદ... તારી પીડાનો હું અનુભવી - ભાગ 20 આટલું બોલતા જ મિરાજ ભાંગી પડ્યો. એના ગળે ડૂમો ભરાઈ ગયો હતો.... રાણીની હવેલી - 5 નૈતિકા ઘરે એકલી હતી. રાત્રીનો સમય હતો. મયંક હજી સુધી ઘરે આવ્... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by Atul Kumar Sharma ” Kumar ” in Hindi Crime Stories Total Episodes : 6 Share अनीता (A Murder Mystery) - 1 (10) 9.5k 19.7k 5 एक घर के आगे भीड़ लगी हुई थी। लोग काना-फूसी करते हुए अंदर झांक रहे थे। तभी सायरन बजाती हुई पुलिस की गाड़ी तेज़ी से सम्भरधरा गांव के उस मकान के सामने आकर रुकी। इंस्पेक्टर विजय और हवलदार साठे अपने साथियों के साथ तेज़ी से गाड़ी से उतरकर लोगों के हुजूम को हटाते हुए अंदर दाखिल हुए। अंदर दो बुजुर्ग लोगों एक आदमी और एक औरत की खून से लथपथ लाशें पलंग पर पड़ी हुई थी। पास में ही एक युवक बैठा लाश की तरफ देखते हुए फूट फूट के रो रहा था। इंस्पेक्टर विजय ने हवलदार साठे को इशारे से कुछ कहा। हवलदार साठे बाकी के हवलदारों को जांच करने का बोल उस युवक को उठाते हुए एक कोने में ले जाते हैं। इधर इंस्पेक्टर विजय लाश को बड़े गौर से देखते हैं। दोनो का गला चीरकर बड़ी निर्ममता से उनकी हत्या की गई थी। लाशों का मुआयना करने के बाद एम्बुलेंस में उनको पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया। इंस्पेक्टर विजय हवलदार साठे को पास बुलाते हैं। साठे इंस्पेक्टर विजय से - "" सर ये लाशें इस युवक तेजपाल के माता-पिता की हैं। ये जब शाम को खेत से आया तो घर के अंदर अपने माता-पिता की लाश देखी। इसके अचानक दोनो की लाशें देखकर घबराकर चीखने के कारण आसपास के लोगों को इस घटना का पता चला। अभी तो ये सदमे में है इसलिए कुछ भी खास बता पाने लायक स्तिथि में नही है। "" साठे की बात सुनकर विजय कुछ सोचते हुए बोले-"" तुम ऐसा करो , और लोगों से पूछताछ करो। देखो और क्या खास पता चलता है। में तबतक इससे बात करता हूँ।"" कहते हुए इंस्पेक्टर विजय उस युवक तेजपाल की तरफ बढ़ गए। तेजपाल अभी भी सर नीचा किये रोये जा रहा था। विजय उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उससे बोले- "" देखो हम जानते हैं कि तुम अभी बहुत सदमे में हो। लेकिन हमारे लिए ये जानना बहुत जरूरी है कि आखिर ये सब क्यों और किसलिए हुआ?..क्या तुम्हारे परिवार की किसी से कोई दुश्मनी थी?..इतने बुजुर्ग लोगों की आखिर किसी से क्या दुश्मनी हो सकती है?.. घर मे तुम्हारे और तुम्हारे माता-पिता के अलावा और कौन कौन है?"" अपने आंसुओं को पोछते हुए तेजपाल इंस्पेक्टर विजय से बोला-""साहब , मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा, कोई भला मेरे सीधे-साधे माँ-बाप को क्यों मारेगा। हमारी किसी से कोई दुश्मनी भी नही है, अम्मा-बाऊजी तो बहुत सीधे और भले लोग थे। पूरा गांव जानता है। में जब शाम को घर आया तो देखा कि दरवाजा ढलका हुआ था। में काफी थका हुआ था। बाहर कमरे में आकर मेने अपनी पत्नि कंचन को अवाज़ भी दी , पर कोई नही बोला। बार बार अवाज़ लगाने पर भी किसी का प्रतिउत्तर नही मिला तो में अंदर कमरे में आया तो क्या देखता हूँ अम्मा-बाऊजी पलंग पर खून से लथपथ पड़े हुए थे। में बहुत घबरा गया, कुछ समझ नही आया कि क्या करूँ। अपनी पत्नि कंचन को पूरे घर मे ढूंढा पर वो कहीं नही मिली। पता नही कौन ये सब कर गया। मेरी कंचन का भी कुछ पता नही। "" इतना कहते ही तेजपाल फिर रोने लगा। इंस्पेक्टर विजय उसे दिलासा देते हैं। और बाहर आकर खुद लोगों से पूछताछ करते हैं। वहाँ उपस्थित सभी लोग एक ही बात कर रहे थे कि तेजपाल के माता-पिता रामलाल और वसुधा बहुत ही सीधे और सज़्ज़न लोग थे। उनकी किसी से कोई दुश्मनी भी नही थी। उल्टा पूरा गांव उनका सम्मान करता था। अभी साल भर पहले तो उन्होंने अपने बेटे तेजपाल की शादी की थी। पूरा परिवार खुश था। तेजपाल की पत्नि कंचन भी सीधी-साधी मिलनसार , और नेक है। पर इस हत्याकांड के बाद उसका भी कुछ पता नही। सभी गांव वालों को हैरानी थी कि ऐसे सीधे सच्चे लोगों का आखिर कौन दुश्मन हो सकता है। सभी खानापूर्ति करके इंस्पेक्टर विजय एक हवलदार को वहीं तैनात कर वापिस पुलिस थाने आ जाते हैं। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ ( करीब एक साल पहले उसी सम्भरधरा गाँव मे... ) आज पूरे गांव में खुशी का माहौल था। हो भी क्यों ना , आज किसान रामलाल के एकमात्र पुत्र तेजपाल का विवाह जो सम्पन्न हुआ था। कई सालों के बाद संभरधरा गांव के उस घर मे शहनाई गूंज रही थी। वरना जैसे उस घर मे तो उत्सव मनाना छोड़ कोई हंसता तक नही था । खुशियों को जैसे ग्रहण लग गया था। पर आज पूरे गांव में मंगल गान हो रहा था। पूरे गांव को दुल्हन की तरह सजाया गया था । प्रकृति की गोद मे बसा छोटा सा गांव आज खिलखिला रहा था । दावत चल रही थी और गांव के बड़े बुज़ुर्ग छोटों को मार्गदर्शित कर रहे थे। चौपाल से उठते हुक्कों के धुंए से चाँदनी रात सराबोर हो रही थी। औरते पंडाल में घेरा बनाये सर को पल्लू में ढंके हुए नई दुल्हन के स्वागत में मंगल गीत गा रहीं थीं। तेजपाल भी अपने दोस्तों में व्यस्त था। धीरे धीरे रात गहराने लगी और कार्यक्रम अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ। सभी निपटकर अपने अपने घर जाने लगे। सामान को समेटते हुए रामलाल और उसकी पत्नि वसुधा बहुत प्रसन्न थे। नवजोड़े को अंदर लाया गया। कभी उजड़ा पड़ा रहने वाला वो कच्चा खपरैल का मकान फूल मालाओं और आम के पत्तों के बीच से मुस्कुरा रहा था। "" बरसो की मुराद मेरे कान्हा जी ने पूरी कर दी,कबसे मेरी दोनो बिरियाँ तरस रही थी बहू को देखने को, अब देखना जी सब कुछ अच्छा हो जायेगा, बहू के भाग से अन्नधन भरा रहेगा। बहुत नसीब वाले हैं हम जो हमें इतनी गुणी बहु मिली । अब तो बस एक आखरी इक्छा और पूरी कर दें कान्हा जी, पोते का मुंह देख लूं फिर गंगा मईया में समा जाऊँ ।"""'' रामलाल की पत्नी वसुधा साड़ी के पल्लू को होठो से दबाते हुए रामलाल से बोली। रामलाल भी तपाक से बोले - """ हाँ री ये मन भी बड़ा लालची है, एक खुशी मिल जाये तो दूसरी की चाह करने लगता है। किसे पता था हमारी जिंदगी में भी ये दिन आयगा। हम तो उम्मीद ही छोड़ चुके थे । ...."" कहते कहते अचानक रामलाल आसमान की तरफ निहारते हुए उसी में खो से गये। यूँ तो सम्भरधरा गांव प्रकृति की अद्वतीय छटा बिखेतरे हुए अपने आँचल में सबको समेटे खुशियों से सबको सराबोर कर रहा था। जहां मंदिर की घण्टियाँ और अज़ान से नव प्रभात के दर्शन होते थे। सभी ग्रामवासी आपस मे मिलजुलकर एक दूजे के सुख दुख में सहभागी थे। ऐसा कभी नही हुआ कि गांव का कोई घर भूखा रहा हो। सब मिलकर साम्प्रदायिक सद्भाव का परिचय देते थे। धर्म जाति बन्धन नही था। हाँ सभी एक दूसरे के धर्म का सम्मान करते थे। और हर तीज-त्योहार पर सभी सम्मिलित होते थे। यूँ कह लीजिए जैसे भारत मे एक छोटा सा भारत यहीँ बसता था । नदियाँ झरने कल कल करते पक्षियोँ का चहचहाना गायों का रंभाना हर तरफ जैसे ईश्वर के साक्षात दर्शन होते थे। गांव के पण्डितजी और मौलवी साहब हर मुख्य कार्य मे अपनी राय सलाह मशवरा बेझिझक होकर देते। और सभी गांव वाले उनकी बात ईश्वर का आदेश समझ कर स्वीकार करते थे। मुरली भैया , मोहनलाल , बूढ़े काका बद्रीनाथ और जुम्मन मियां , अली भाईजान ये सभी गांव की कुछ प्रचलित और सम्मानित हस्तियां थीं। जिनका सहयोग हर काम मे बढ़ चढ़कर होता था । एक तरह से जैसे दीन-दुनिया से बेखबर ये गांव अपनी ही धुन में मस्त था। पर कहतें हैं ना हमेशा सब एक जैसा नही रहता। बुराई यदि हद से बढ़ जाये तो अच्छाई उसका विनाश करने जन्म ले लेती हैं। ठीक इसी तरह यदि अच्छाई अपनी पराकष्ठा को प्राप्त हो जाये तो बुराई उसकी राह में रोड़े अटकाने पहुंच ही जाती है। इन दोनों में युद्ध तो सृष्टि की उतपत्ति के साथ ही शिरू हो चुका है । और फिर ये मानव स्वभाव है वो परिवर्तन चाहता है। ये परिवर्तन यदि समाज की भलाई और उन्नत्ति के लिए हों तो कोई भी देश या गांव विकास की नई इबारत लिख देता है। परंतु ये परिवर्तन यदि स्वार्थ बेईमानी की कसौटी पर हों तो सर्वनाश की गाथा लिख देते हैं। सम्भरधरा गाँव का वो घर भी अब एक नई सुबह देखने वाला था। एक ऐसी सुबह जिसकी कोई कामना भी नही करना चाहता होगा। पर होनी तो होकर रहती है। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ तेजपाल का विवाह पास के ही एक गांव बमनाखेड़ा के परिवार में हुआ था। किसान माधव प्रसाद की इकलौती बेटी कंचन जो दिखने में किसी अप्सरा से कम नही थी। ईश्वर ने उसे रूप और गुण से ऐसा नवाज़ा था जिसे देखकर हर कोई वाह वाह किये बिना नही रह पाता। वह थी भी तारीफ के काबिल। सिर्फ रूप में ही नही बल्कि हर काम मे उसका कोई तोड़ नही था। घर के सभी कामों में उसे महारत हासिल थी। तो दूसरी और वो हायर सेकेंड्री तक पढ़ी लिखी भी थी। जहां एक और स्त्रियों के स्कूल जाने पर तरह तरह की पाबन्दियाँ थीं , ऐसे में कंचन का बारहवीं तक पढ़ा होना कोई छोटी बात नही थी। अपने घर की शान थी कंचन। उसके बाऊजी ने सबके खिलाफ जाकर उसे स्कूल भेजा। पर कंचन बारहवीं से आगे नही पढ़ सकी। माधव प्रसाद को मजबूरन उसकी पढ़ाई बीच मे ही रोकनी पड़ी। क्योंकि आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर भेजना पड़ता, और माधव प्रसाद की इतनी हैसियत नही थी कि वो इतना खर्चा वहन कर सकें। एक दिन मन्दिर से पूजा करने के बाद अपनी सहेलियों के साथ वापिस लौटते हुए एक बूढ़े बाबा उसे एक पेड़ के नीचे बैठे दिखाई दिए। वो दर्द से कराह रहे थे। कंचन पास जाकर गौर से देखते हुए उन बूढ़े बाबा से पूछती है। "" आप कौन हैं बाबा, यहां आसपास के तो नही लगते। आपको पहले कहीं देखा नही। कहां से आये हैं आप और ये आपके हाथ मे चोट कैसे लगी?....."""""" कंचन की बात सुन उन बाबा ने सर उठाकर उसकी तरफ़ देखा और एक ठंडी सांस भरते हुये बोला -"" कुछ नही बिटिया जंगल से जा रहा था कि कुछ जानवर पीछे पड़ गए थे उन्हीं से भागता हुआ पेड़ से टकराकर गिर गया । अब इन बूढ़ी हड्डियों में कहां इतनी जान बची है। बिटिया थोड़ा पानी और चना मिल जाये तो इस बूढ़े तन को चलने फिरने की हिम्मत आ जाये। में दो दिन से भूखा प्यासा हूँ, ज्यादा कुछ नही बस एक लोटा पानी और मुट्ठी भर चना मिल जाये तो जान में जान आये। हम जोगी फकीरों के लिए तो बस यही ईश्वर का प्रसाद है। ....''" कंचन को आशा भरी नजरों से देखते हुए दोनों हाथ जोड़ने लगा। ""अरे नही नही बाबाजी आप हाथ जोड़कर मुझे शर्मिंदा मत कीजिये, आप चलिए यहीं पास में मेरा घर है , में आपकी मरहम पट्टी कर आपको भोजन कराती हूँ। थोड़ा विश्राम कर फिर चले जाइयेगा। ."""....कंचन उन बूढ़े बाबा को अपने साथ ले गई। और उनकी दिल से सेवा की गर्म गर्म भोजन बनाकर खिलाया , और बाहर आंगन में एक खाट डालकर उनको विश्राम करने का कहा। ये देख बाबा आत्मविभोर हो गए। आंख में आंसू लाते हुए खरखराति आवाज़ में बोले। """"" बिटिया तुम्हारे संस्कार बहुत उच्च हैं, तुमको देखने से ही पता चलता है कि तुम्हारी परवरिश कैसे हुई है। बच्चों के संस्कार बताते हैं कि वो किस घर से आते हैं। वरना मुझ जैसे गरीब फटेहाल को कौन इतना पूछता है । बहुत बहुत खुश रहो बिटिया । ईश्वर तुमको हर सुख दे , घर बार धन धान्य से भरा रहे। जिस घर मे जाओ उसके भाग फेर दो, तेरे प्रताप से उस घर मे कभी कोई दुख ना आये। तूने एक फकीर का राजा की तरह स्वागत किया है इतना मान सम्मान तो मुझे आज तक कहीं भी नही मिला । कई लोगो ने तो भोजन तो दूर सीधे मुंह बात तक नही की। पर बिटिया तू अकेली है घर मे कोई दिख नही रहा।""" """ माई-बाउजी तो पास के गांव एक लगन में गए हैं संजा को आएंगे, में अकेली ही हूँ घर मे,आप तनिक आराम कर लीजिए ।""" """ अरे पगली हम फकीरों के नसीब में आराम कहाँ। हम तो बहता पानी और रमता जोगी हैं आज यहां तो कल वहां परसों पता नही कहाँ। आ तुझे आशीर्वाद दूँ आज मेरी आत्मा तृप्त की है तूने। कुछ और तो दे नही सकता एक फकीर की दुआ आशीर्वाद ही ले ले। "" इतना कहकर उसने कंचन के सर पर बड़े स्नेह से हाथ रखा कंचन बड़े आश्चर्य से ये सब देख रही थीं। '"" खाट लगा दी है बाबा आप थोड़ा आराम कर लीजिए, में घर के काम निपटा लूँ। """...इतना बोलकर कंचन अंदर चली गई। और अन्य कामो में व्यस्त हो गई। समय का पता नही चला कब शाम हो गई। अचानक उसे उन बाबाजी की याद आई, वो दौड़कर बाहर आई देखा कोई नही था। आसपास देखने पर भी उनका कोई पता नही चला। फिर वो सन्ध्या की दिया बाती की तैयारी में जुट गई। तभी घर मे आहट हुई देखा माई बाऊजी आ चुके थे। """ अरे कंचन बेटी आज गाय बैलों को चारा नही डाला क्या , जरा देख तो कितना रम्भा रही है। ये बेज़ुबान प्राणी हैं मुंह से बोलकर बता नही सकते, पर हम तो इनका ध्यान रख सकते हेंना। गऊ माता में सभी देवी देवता का वास होता है। गइया का निरादर करना मतलब देवताओं का निरादर करना। उन्हीं के प्रताप से हम फलते-फूलते हैं। """...... माधव प्रसाद समझाते हुए बोले। """" अरे बाऊजी आज पता नही कैसे भूल गई, वरना ऐसा हुआ है कभी की आपकी बिटिया बिना इन्हें खिलाये कोई काम करे। क्षमा कर दो बाऊजी आज बड़ी भूल हो गई, अभी सानी बनाकर डाल आती हूँ।..""""'" हओ, और सुन जरा 1 लौटा पानी देती जा, आज तो बहुत थकान हो गई कंचन की माँ, सारा शरीर टूट रहा है, नसे खिंच रही हैं । पर रामकिसन कि बिटिया का ब्याह हो गया ये अच्छा रहा , अब ईश्वर से प्रार्थना है कि हमारी कंचन के लिए भी कोई अच्छा सा वर मिल जाये। इसकी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊं तो चार धाम को निकल जाऊं। ...""""""' कंचन के बाऊजी कंचन की माँ दुर्गा से बोले।और एक सांस में पूरा पानी का लौटा खाली कर दिया। """अरे अरे आराम से कंचन के बाऊजी कित्ती बार कहा पानी आराम आराम से पिया करो। हर काम मे इत्ती जल्दबाज़ी ठीक नही। ""..... कंचन की माँ चेहरे पर चिंता के भाव लाते हुए कंचन के बाऊजी से बोली। कुछ दिनों बाद एक दिन उसी गांव का एक किसान लखन भागता भागता माधव प्रसाद के पास आया , और घबराते हुए बोला।""""...माधव भैया माधव भैया जल्दी चलिए जल्दी चलिए। आपका मोबाइल बंद आ रहा है खूब लगाया , नही लगा तो में भागते भागते खुद आया। रामलाल और वसुधा का कातिल कौन था? कंचन आखिर कहाँ गायब हो गई थी? इन कत्लों के पीछे कंचन का हाथ था? जंगल की कहानी क्या सच थी , या गाँव वालों का अंधविश्वास था? ( कहानी जारी है...) लेखक - अतुल कुमार शर्मा " कुमार " › Next Chapter अनीता (A Murder Mystery) - 2 Download Our App