Hamnasheen - 5 in Hindi Love Stories by Shwet Kumar Sinha books and stories PDF | हमनशीं । - 5

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

Categories
Share

हमनशीं । - 5

...इधर कुछ दिनों से सुहाना रफ़ीक़ से अपना सिर भारी रहने की शिकायत किया करती। ट्रेनिंग और घूमने-फिरने के थकान के वजह से होने वाले यह सिरदर्द पहले-पहल तो सुहाना के थोड़ा आराम लेने से खुद ही ठीक हो जाया करता।

तभी एक दिन, सुहाना का सिरदर्द इतना असहनीय हो गया कि रफ़ीक़ ने जयपुर के ही एक डॉक्टर को दिखाया तो उन्होने इसे मामूली सिरदर्द बता कुछ दवा लेने की सलाह दी । पर, सुहाना को जब उससे भी राहत न मिली तो रफ़ीक़ ने उसे लेकर दिल्ली वापस लौटने का फैसला किया। अगली ही फ्लाइट पकड़ कर दोनों दिल्ली लौट आएँ। एयरपोर्ट पहुँच टैक्सी लेकर घर की तरफ बढ़ चले।

“तुम चिंता न करो, रफ़ीक़। मेरे एक फैमिली डॉक्टर हैं, घर पहुँचकर मैं अम्मी को लेकर सबसे पहले उनसे ही मिलने जाऊँगी । मैंने अम्मी को फोन कर उनसे मिलने का समय ले लिया है।” – रफीक को चिंता में घिरा देख सुहाना उसे शांत करती हुई बोली।

“चिंता कैसे नहीं होगी ! तुम्हें कुछ भी होता है तो मेरी बेचैनी बढ़ जाती है। अम्मी क्यूँ, मैं हूँ न अब तुम्हारी देखभाल करने वाला । चलो, मैं तुम्हें लेकर चले चलता हूँ ।” – रफीक ने ज़िद्द करते हुए सुहाना से कहा।

रफ़ीक़ का हाथ अपने हाथों में ले सुहाना उसके सीने पर अपना सिर रखते हुए उसे बड़े प्यार से समझाती है कि जयपुर में थकान के वजह से उसके सिर में दर्द था और अभी वह बिलकुल ठीक है। फिर, डॉक्टर से दिखाने तो वह जा ही रही है । इसलिए इतना फिक्रमंद होने की कोई जरूरत नहीं ।

रास्ते में सुहाना को उसके घर के भीतर तक पहुंचाकर और उसकी अम्मी को ढेर सारी हिदायतें देकर रफीक बुझे मन से अपनी घर की तरफ लौटता है। अपनी बेटी के लिए रफ़ीक़ का इतना प्यार और निष्ठा देख सुहाना की अम्मी बहुत प्रसन्न होती है । लेकिन, सुहाना को लेकर वह चिंताग्रस्त भी थी । डॉक्टर क़ादिर के पास शाम का अपोइंटमेंट था। सुहाना के परिवार में किसी को भी कुछ होने पर इसी डॉक्टर से दिखाया करते थे और यह उनके दूर के रिश्तेदार भी थे। डॉक्टर क़ादिर से मिलने पर उन्होने चिंता करने वाली ऐसी कोई बात न बताई और कुछ दवाइयाँ लिखकर उसे कुछ दिन खाने की सलाह दिए।

अगले दिन सुबह-सुबह रफ़ीक़ अपनी भाभीजान के साथ सुहाना के घर पहुंचा। उसकी अम्मी ने दरवाजा खोला और मुस्कुराकर उन्हे अंदर बुलाकर बिठाया। रफ़ीक़ की भाभी सुहाना के कमरे में चली गयी और रफ़ीक़ वहीं सोफ़े पर बैठ सुहाना की अम्मी से बातें करने लगा।

“डॉक्टर ने चिंता वाली ऐसी कोई बात नहीं कही। लगातार धूप में रहने और थकान की वजह से मामूली-सा सिरदर्द होने की बात बताई । यहाँ दिल्ली में सुहाना घर और ऑफिस के अलावा कहीं जाती नहीं और वहाँ जयपुर में दिनभर इधर-उधर रहा करती थी । इसलिए, उसका सिर भारी रहा करता था। डॉक्टर ने कुछ दवाइयाँ लिखी हैं और आराम करने को कहा है। सुहाना जल्द ही ठीक हो जाएगी, रफीक। तुम बिलकुल भी फिक्र न करो ।” – सुहाना की अम्मी ने परेशान रफीक को समझाया।

“आप नहीं जानती चचिजान, चिंता के मारे मुझे सारी रात नींद नहीं आयी। अब आपसे सारी बात जान ली ,तब जाकर मन थोड़ा शांत हुआ।” – रफीक बोला और सुहाना के कमरे की तरफ बढ़ चला।

बिस्तर पर लेटी सुहाना उसे देखकर मुस्कुराई और बोली – “चिंता न करो। अब ठीक हूँ।”

“मुझे पता है । अम्मी ने सारी बाते बताईं।” – यह कहता हुआ रफ़ीक़ सुहाना के पास ही बैठ गया।

सुहाना और रफ़ीक़ की प्यार भरी निगाहें एकटक एक-दूसरे को निहारते जा रहीं थी और वे दोनों भूल चुके थे कि उनकी भाभी भी वहाँ मौजूद हैं।

“अच्छा, मैं बाहर चचिजान से भी थोड़ी मिल लेती हूँ । तुमलोग आराम से बैठकर बातें करो।” – यह कहते हुए रफीक की भाभी ने उनदोनों को अकेला छोड़ देना ही बेहतर समझा।

“मियां रफ़ीक़, इतने प्यार से उसकी तरफ न देखो, सुहाना को फिर से तुमसे प्यार हो जाएगा.......” – रफीक़ के कानों में धीरे से गुनगुनाकर सुहाना की भाभी हँसती हुई कमरे से बाहर आ जाती है।

भाभी की बातों पर झेंपते हुए रफ़ीक़ मुस्कुराकर रह गया और कुछ भी बोल न पाया। अपनी नज़रें नीची किए सुहाना भी शरमा गई ।

“या मौला मेरे परवरदीगार, सुहाना की सारी बलाएँ मुझे दे दे ! लेकिन इसे कुछ न हो । जानती हो सुहाना, मेरी जान ही निकल गई थी। तुम्हारा इतना तेज़ सिरदर्द देखकर मुझे बड़ी चिंता हो रही थी । याद रखो, मैं तुम्हारे बिना ज़िंदा नहीं रह सकता । तुम नहीं, तो मैं नहीं।” - सुहाना का हाथ अपने हाथों में थाम रफ़ीक़ बोला।

“रब खैर करे! क्या अनाप-शनाप बोले जा रहे हो। चुप भी हो जाओ...एकदम चुप।” – रफ़ीक़ के होठों पर अपनी अंगुलियाँ रख उसे चुप कराते हुए सुहाना बोली।

“सुहाना, अब हमलोगों को चलना चाहिए। चिंटू को अम्मी के पास छोडकर आयी हूँ। वो उधम मचाए होगा। और अब, जल्दी से हमारे घर चलने की तैयारी कर लो। कुछ ही दिन बाकि बचे हैं। जानती हूँ, तुम दोनों के लिए ये दिन काटने मुश्किल हो रहे होंगे। पर चिंता न करना, रफ़ीक़ तुमसे मिलने रोज़ आता रहा करेगा।”- सुहाना की भाभी ने कमरे में प्रवेश करते हुए सुहाना से कहा । इसपर सुहाना शरमा गई।

“अगली बार आना तो हमारे छोटे चिंटू मियां को जरूर लेकर आना। काफी दिन हो गए उससे भी मिले हुए।” – सुहाना रफ़ीक़ से कहती है। सुहाना को अपना ध्यान रखने को कह रफीक अपनी भाभी के साथ घर को रवाना हो जाता है।

अगले कुछ दिनों तक रफ़ीक़ नियमित रूप से सुहाना की खैरियत लेने उसके घर पर आया करता। थोड़ी देर सुहाना के साथ बिताकर वहीं से ऑफिस की तरफ बढ़ जाता। सुहाना भी अब पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी थी और जल्द ही ऑफिस भी जाने को सोच रही थी ।

आज। रफ़ीक़ की भाभी ख़ुशनूदा ने सुहाना के लिए उसकी पसंद की सेवइयाँ बनाई हैं और रफ़ीक़ को ऑफिस जाते समय लेकर जाने को बोला है । भाभी की दी हुई टिफिन लिए रफ़ीक़ ऑफिस के लिए निकलता है और सुहाना के घर के बाहर आकर अपनी कार रोकता है। घर के बाहर पहुँच कॉलबेल बजाकर दरवाजा खुलने का इंतज़ार करता है । दरवाजा न खुलने पर एक-दो बार और कोलबेल बजाता है, लेकिन अंदर से कोई जवाब न मिलने पर दरवाजे की कुंडी खटखटाने को जैसे ही हाथ बढ़ाता है तो वहाँ ताला लटका दिखता है। बड़े ही ताजुब्ब की बात थी कि इतने दिनों में आजतक कभी सुहाना के घर पर ताला लटका हुआ न दिखा। फिर अचानक से कहाँ चले गए ये लोग ! कल रात को ही तो फोन पर सुहाना से बात हुई थी। पर, सुहाना ने तो ऐसा कुछ भी न बताया। फिर ऐसी क्या बात हो गई? - यह सब सोचता हुआ रफीक आसपास के पड़ोसियों से पूछताछ करने लगा, लेकिन कोई कुछ बता न पाया । सुहाना के मोबाइल पर भी फोन लगाया, पर वह स्वीच्ड ऑफ आ रहा था । उसकी अम्मी के फोन पर कॉल लगाया, पर वह भी न लगा।

काफी देर तक इंतज़ार करने के बाद दुखी मन और चिंता से भरा हुआ रफ़ीक़ ऑफिस की ओर चल दिया। ऑफिस में भी दिनभर उसका जी न लगा। पूरे दिन सुहाना और उसकी अम्मी को कॉल करता रहा, पर कोई फायदा नहीं। उनलोगों का फोन बंद का बंद ही मिला। रफ़ीक़ की चिंता बढ़ती ही जा रही थी। क्या करे, किससे पुछे- कुछ समझ में न आ रहा था । यह सब सोचते-सोचते वह ऑफिस से जल्दी निकल गया और सुहाना के फैमिली डॉक्टर- डॉ. क़ादिर के पास पहुंचा। लेकिन, उन्होने बताया कि सुहाना तो कब की बिलकुल ठीक हो चुकी है और उन्हे भी उसके बारे में कुछ पता नहीं। डॉ. क़ादिर ने भी अपने मोबाइल से सुहाना और उसकी अम्मी को फोन लगाया, लेकिन वह अभी भी बंद आ रहा था। डॉ. क़ादिर ने रफ़ीक़ को संयम बरतने को कहते हुए कहा कि – “चिंता न करो, हो सकता है कि कुछ जरूरी काम आ जाने से वे दोनों कहीं चले गए होंगे- आ जाएंगे।”

अब तक शाम ढल चुकी थी। बुझे मन से रफ़ीक़ अपने घर को वापस लौटा। भरा हुआ टिफिन वापस देख रफ़ीक़ की भाभी ने पूछा तो उसने सारी बात बताई। सुहाना के अचानक से यूं बिना कुछ बताए कहीं चले जाने से घर पर भी सभी परेशान हो गए।

रात करीब दस बज गए। रफ़ीक़ आज सुबह से कुछ भी न खाया था। अम्मी ने उसे परेशान देखकर दिलासा देते हुए समझाया- “फिक्र न कर, बेटा। बहुत ज़रूरी काम आ जाने से वे लोग कहीं चले गए होंगे। सुबह तक आ जाएंगे। चल तू कुछ खा ले। सुबह से एक निवाला भी मुंह में न डाला है तूने”।

“नहीं अम्मी। मुझसे कुछ न खाया जाएगा। अभी मुझे अकेला छोड़ दो।” – रफ़ीक़ ने ऐसा कहा तो उसकी अम्मी ने उसे अकेला छोड़ देने में ही उसकी भलाई समझी और कमरे से बाहर आ गयी।

अगले दिन, सुबह उठकर रफ़ीक़ सबसे पहले सुहाना को फोन लगाया। लेकिन, फिर से स्वीच्ड ऑफ ही आ रहा था। फटाफट कपड़े पहन कर वह सुहाना के घर की तरफ निकल गया। पर, उसका घर बंद था । बुझे मन से वापस घर लौटा। बड़े भाईजान आमिर ने रफ़ीक़ को चिंता न करने को कहा और दिलासा देते हुए कहा कि देखना कुछ ही दिनों में वे लोग आ जाएंगे। घर में सभी की जुबां से सुहाना मेम के अचानक से कहीं चले जाने की बात सुनकर चिंटू भी बार-बार रफ़ीक़ से उसके बारे में पुछने लगा था।

इस तरह से, दिन-सप्ताह-पखवाड़े-महीने गुज़र गएँ और अब करीब दो महीने लगने को आए। पर, सुहाना और उसकी अम्मी का कोई पता न चला। रफ़ीक़ पागलों की तरह चारो तरफ सुहाना को ढूँढता-फिरता। लेकिन, वह कहीं न मिली। सुहाना की खैरियत के लिए न जाने कितने मस्जिद, मज़ारों पर जाकर दुआएं मांगी।

अब घरवाले सुहाना के साथ-साथ रफ़ीक़ की ऐसी दयनीय होती दशा के लिए बहुत चिंतित थे। घर के हरेक सदस्य ने भी अपने-अपने स्तर से सुहाना और उसकी अम्मी का पता लगाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन उसका कोई पता न चल पाया।

सुहाना के ग़म में रफ़ीक़ की दिन-ब-दिन खराब होती दशा देख घर में सभी परेशान थे। घंटों सुहाना के घर के बाहर बैठ रफ़ीक़ उसकी राह देखा करता। पर, पता नहीं सुहाना कहाँ खो गयी थी ।

एक दिन सुबह। आँखें खुलते ही रफ़ीक़ ने बुझे मन से सुहाना के मोबाइल पर फोन लगाया। इसबार, सुहाना का मोबाइल ऑन था और कॉल जा रहा था । जैसे शरीर को उसकी आत्मा मिल गई हो, बिस्तर पर लेटा हुआ रफीक फुर्ती से उठ बैठा। एक-दो रिंग के बाद सुहाना ने कॉल उठाया।...

मूल कृति : श्वेत कुमार सिन्हा ©