Hamnasheen - 2 in Hindi Love Stories by Shwet Kumar Sinha books and stories PDF | हमनशीं । - 2

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हमनशीं । - 2

...आज रफ़ीक के ऑफिस में भी छुट्टी थी। इसलिए, सारा दिन वह घर पर ही था। समय होने चिंटू को साथ लिए वह सुहाना के घर पहुंचा।

छत पर टहल रही सुहाना ने कार से बाहर निकलते चिंटू और रफीक को देख लिया था। नीचे आकर उसने घर दरवाजा खोला। मुस्कुराकर रफीक का अभिवादन किया और उन्हे भीतर बुलाकर बैठने को बोली। चिंटू भी भागकर अपने स्टडी टेबल से चिपक गया।

"मुबारक़ हो सुहाना जी, आपने तो इस चुलबुले बच्चे का कायापलट ही कर डाला। न मालूम कौन सी घुट्टी पिलाई है आपने, दिनभर आपका ही नाम लिए फिरता है। पढ़ने में भी काफी होशियार हो गया है अब तो!"- रफीक ने सुहाना को बताया।

चाचू की सारी बातें सुन पास ही स्टडी टेबल पर बैठ लिखने में व्यस्त चिंटू पीछे मुड़कर रफीक की तरफ देखता है और अपना नाक-मुंह भींच कर उसे चिढ़ाता है। चिंटू की यह हरकत देख सुहाना मंदमंद मुस्काती रहती है।

"अच्छा, आप थोड़ा बैठें। मैं बस अभी आयी।"-यह कहकर सुहाना रसोई की तरफ चली जाती है।

सोफे पर बैठा रफ़ीक कमरे की दीवाल पर टंगे खूबसूरत पेंटिंग्स को निहारता रहता है।

थोड़ी ही देर में, भीतर से सुहाना अपनी अम्मी के साथ बाहर आती है।

“आदाब, चचिजान !” - रफीक खड़े होकर उनका अभिवादन करता है।

“आदाब बेटा, बैठो। कैसे हो? घर पर सब खैरियत से हैं? तुमसे तो मुलाकात ही नहीं होती !” – सुहाना की अम्मी ने रफ़ीक से कहा।

"दरअसल चचिजान, मैं ऑफिस चला जाता हूँ। इसलिए वक्त निकल ही नहीं पाता।"- रफीक बोला।

"भाभीजान ने कल आप सभी को दावत पर आमंत्रित किया है। आपसब से मिलने को वह बेताब हैं।" – रफीक ने कहा। एक-दूसरे की तरफ देखते हुए सुहाना और उसकी अम्मी ने रफीक के आमंत्रण को स्वीकार कर आने की सहमति दे दी।

"अच्छा बेटा, तुमलोग बैठ कर बातें करो। मैं बावर्चीखाने से कुछ चाय-नाश्ता भिजवाती हूँ।”- रसोईघर की तरफ बढ़ती हुई सुहाना की अम्मी ने रफीक से कहा।

"आप बगल के कमरे में चलकर बैठें। यहाँ रहेंगे तो चिंटू पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाएगा।" यह कहती हुई सुहाना रफीक को पास के कमरे में ले जाकर बिठाती है और वापस चिंटू के पास आकर उसे कुछ समझाने में व्यस्त हो जाती है। अपनी कुर्सी पर बैठा रफीक़ उस कमरे में बने एक झरोखे से सुहाना को पढ़ाते हुए देखता रहता है।

तभी, एक नौकर चाय-नाश्ता लिए कमरे में प्रवेश करता है। पीछे-पीछे सुहाना की अम्मी भी थी। झरोखे से झाँकते हुए रफीक को देख वह मुस्कुराती हुई कहती है –"हमारी सुहाना बचपन से ही पढ़ाई में बहुत होशियार रही है।”

“इसके वालिद साहब इसे खुद ही तालीम दिया करते थें। वह तो इसे बड़ा सरकारी अफसर बनाना चाहते थें। पर, उनके इंतकाल के बाद सुहाना का पढ़ाई से मन ही उचट गया। फिर भी, अभी हाल में ही इसने अपना मास्टर्स (MA) अच्छे नंबरों से पास किया है। मेरा बड़ा बेटा और बहू अमेरिका में रहते हैं और वहीं किसी कंपनी में नौकरी करते है। हम दोनो माँ-बेटी यहां अकेली रहती हैं।” – सुहाना की अम्मी ने बताया। रफीक उनकी बातों को गौर से सुनता रहता है। चाय का प्याला रफीक की तरफ बढ़ाकर सुहाना की अम्मी कमरे से बाहर चली जाती हैं। थोड़ी ही देर में सुहाना कमरे में आती है और रफीक के साथ बातचीत में व्यस्त हो जाती है।

अपनी पढ़ाई पूरी कर चिंटू कांधे पर बैग लटकाए कमरे में प्रवेश करता है और रफीक से सटके खड़े हो जाता है।

"सुहाना जी, अब आपसे कल मुलाकात होगी। आपलोग को लिवाने के लिए ड्राइवर गाड़ी लेकर आएगा। हमलोग आपसभी का इंतजार करेंगे। अब ये चिंटू मियां मुझे चैन से बैठने नहीं देंगे। अब मैं चलता हूँ। खुदा हाफ़िज़!" - कहते हुए रफीक चिंटू का हाथ पकड़े कमरे से बाहर निकल आता है।

अगले दिन, तय समय पर ड्राइवर गाड़ी लेकर पहुंचता है जिससे सुहाना और उसकी अम्मी रफीक के घर आती हैं। रफीक की भाभी ख़ुशनूदा उनका स्वागत करती है। भीतर के कमरे से चिंटू भी टीचर–टीचर करता हुआ सुहाना के पास आकर बैठ जाता है। फिर सभी बातचीत में व्यस्त हो जाते हैं।

"सुहाना जी, मैं आपकी तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ कि मेरे इस छोटे मियां को आप सही राह पर ले आईं। नहीं तो, इसके तालीम को लेकर मैं बहुत फिक़्रमंद रहा करती थी। जबसे आपने ट्यूशन देना शुरू किया है, यह हमें तहजीब सीखाता फिरता है कि ऐसे करो, वैसे करो। ये न करो, वो न करो। इसमें इतनी तब्दीली देखकर इसके अब्बाजान तो यकीन ही नहीं कर पा रहें थें। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!” – ख़ुशनूदा ने सुहाना से कहा। फिर सभी बातचीत में मशगूल हो गए।

शाम हो चुकी थी। तबतक रफीक भी ऑफिस से घर लौट आया। मेहमानों का अभिवादन कर वह अपने कमरे की तरफ चला गया।

इधर, चिंटू अपनी बनाई हुई ड्राइंग दिखाने के लिए सुहाना को अपने कमरे में लेकर आता है और भागकर सोफे के ऊपर चढ़ जाता है। वहाँ आलमीरे के ऊपर रखी अपनी ड्राइंग को निकलने की कोशिश करने लगता है, जहां तक उसके हाथ बमुश्किल ही पहुंच पा रहे थें। वहीं कुछ क़दम पर खड़ी सुहाना उसे संभलने की हिदायत देती है, पर चिंटू कहां सुनने वाला था। उसे तो अपनी ड्राइंग दिखानी थी बस....।

तभी, सामने वाले कमरे से रफ़ीक़ कपड़े बदल कर बाहर आया तो चिंटू को सोफे के ऊपर चढ़ कुछ निकालते देख कमरे में प्रवेश किया।

अपनी ड्राईंगशीट हाथों में पकड़े सोफे से नीचे उतरने के लिए चिंटू जैसे ही पलटा, संतुलन खोते हुए धड़ाम से फर्श पर कूद पड़ा। उसे गिरने से बचाने के लिए वहीं खड़ी सुहाना तेजी से उसकी तरफ लपकी। पर, फर्श काफी चिकना होने की वजह से खुद ही फिसल पड़ी। सुहाना को बचाने के प्रयास में रफ़ीक़ भी अपना संतुलन खो फिसल पड़ा। अब रफीक फर्श पर गिरा पड़ा था और उसके ऊपर सुहाना। जबकि जिसे बचाने के फिराक में दोनो फिसले थें, वह चिंटू सामने खड़ा तालियाँ बजा रहा था और बोले जा रहा था –"चाचू-टीचर गिर गई, चाचू-टीचर गिर गईं”।”

बिजली-सी फुर्ती से सुहाना ने ख़ुद को संभाला और अपने कपड़ों को ठीक करने लगी। रफ़ीक़ भी उठा और तालियां पीट रहे चिंटू को गोद में उठा उसके मूंह पर हाथ रख उसे चुप कराया। झेंपती हुई सुहाना अपनी नज़रें नीची किए तेजी से कमरे से बाहर निकल गई। पीछे-पीछे रफ़ीक़ भी चिंटू के साथ नीचे कमरे में आकर सबों के बीच बैठ गया।

सुहाना की अम्मी से गप्पे हांक रही ख़ुशनूदा ने चिंटू से पूछा -“क्या चल रहा था ऊपर, चिंटू मियां? अभी किसी के गिरने की आवाज़ आई थी।”

इससे पहले कि रफ़ीक़ कुछ भी बोल पाता, अपनी शरारती अंदाज़ में चिंटू ने पूरी घटना का विस्तारपूर्वक वर्णन कर दिया। इसपर, सभी ठहाके लगाकर हंसने लगें और वहाँ बैठी सुहाना झेंप गई।

“ठहर, चिंटू के बच्चे.....अभी बताता हूँ तुझे।” – यह कहते हुए रफ़ीक़ चिंटू को पकड़ने के लिए उसकी तरफ भागा। सभी चिंटू की शरारत पर मुस्कुराए बिना न रह सकें। वहाँ बैठी सुहाना शर्म से पानी-पानी हो रही थी।

फिर सबने साथ बैठकर डिनर किया। पर, शर्म के मारे सुहाना अभी तक रफ़ीक़ से ठीक से नज़रें न मिला पा रही थी। अब तक रात काफी हो चुकी थी। इसलिए ख़ुशनूदा ने रफ़ीक़ से मेहमानों को उनके घर छोड़ आने को कहा।

“आज सबसे मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा, रफ़ीक़ जी।” – स्टीयरिंग थामे रफीक से उसके बगल की सीट पर बैठी सुहाना बोली।

“हाँ, घर पर भी सबों को आपसब से मिलकर अच्छा लगा। और हमारे छोटे उस्ताद चिंटू की शैतानियों का तो क्या कहना !”– रफ़ीक़ ने सुहाना से कहा। इसपर सुहाना से कुछ बोलते न बन पड़ा। कार की पिछले सीट पर बैठी सुहाना की अम्मी ने रफ़ीक़ को घर आते-जाते रहने को कहा। उन्हे घर के दरवाजे तक पहुंचा रफ़ीक़ वापस अपने घर लौट आता है।

अगले कुछ दिनों तक रफ़ीक़ का ऑफिस, चिंटू का ट्यूशन अनवरत जारी रहा।

एक दिन।

रोज की भांति शाम करीब चार बजे ड्राइवर चिंटू को ट्यूशन के लिए कार से लेकर निकला। पर, सुहाना के पास न पहुंचा। इससे पहले भी कितनी मर्तबा ऐसा हुआ था कि चिंटू बीच में एकाध दिन ट्यूशन न आया हो। इसलिए सुहाना ने भी कोई खोजबीन न किया। रात के करीब आठ बज चुके थे और चिंटू न आया तो उसकी अम्मी ख़ुशनूदा ने सुहाना को फोन लगाया। चिंटू के सुहाना के पास न पहुँचने की बात सुनकर ख़ुशनूदा के होश ही उड़ गए। उसने चिंटू को लेकर गए ड्राइवर को फोन मिलाया, पर उसका मोबाइल स्वीच्ड ऑफ आ रहा था।...