वह जो नहीं कहा
सीख नसीहत और प्रेरणा से भरपूर है – वह जो नहीं कहा लघुकथा संग्रह
श्रीमती स्नेह गोस्वामी का लघुकथा संग्रह वह जो नहीं कहा अभी अभी 2018 में प्रकाशित हुआ है। सबसे बङी बात यह है कि यह संग्रह आज के महिला वर्ग के समर्पित किया गया हैजो समय की माँग है। इनकी लघुकथाएँ सामाजिक परिवेश में नारी के दायित्वों ,पारिवारिक द्वंद्वों , वर्तमान की विसंगतियों , दिन भर मशीन बनी काम में निमग्न नारी अथवा पति-पत्नि संबंधों में व्यापक असंतोष की व्यथा कथा कहती है ।
उक्त लघुकथा संग्रह को समीक्षा की कसौटी पर कसने से पहले यह जानना आवश्यक है कि इसे परखने का पैमाना क्या होना चाहिए ।मेहता नगेन्द्र सिंह के अनुसार “ लघुकथा में शब्दसंक्षीप्त्तता , भाषा सरलता , सम्प्रेषणशीलता , ज्ञानबोधता और प्रभावक क्षमता होना अनिवार्य है “ । “ लघुकथा गहरी संवेदना की कथात्मक अभिव्यक्ति है जिसका शीर्षक सटीक और प्रतीकात्मक हो और अंत प्रभावशाली ताकि पाठक उसके तत्वों को ग्रहण करने को बाध्य हो जाए “ । लघुकथा की रचना प्रकिया में शिल्प ,शैली , आकार ,भाषा , शीर्षक के साथ कथ्य की समसामयिकता और नवीनता पर विशेष ध्यान देने की अनिवार्यता भी होनी चाहिए ।
आलोच्य पुस्तक की भूमिका में माननीया आशा शैली जी ने लिखा है –स्नेह गोस्वामी की लघुकथाएँ वर्तमान विसंगतियों पर प्रहार करती हैं ।स्नेह गोस्वामी के सभी पात्र स्वाभिमानी हैं ।
उपरोक्त मानगंडों की कसौटी पर वह जौ नहीं कहा की कथाओं की कथावस्तु अति संग्रह उत्तम है । संग्रह का पहली लघुकथा से लेकर वे अशोक , फुर्सत , चुपङी रोटियाँ , हसरत ,बुआ ज्वाली से लेकर अँतिम लघुकथा झील गहरी तक भारतीय नारी के विभिन्न मनोभावों को चित्रित करती हैं ।
निसंदेह इन लघुकथाओं के अधिकतर पात्र गौरव गर्व के ज्ञात्ता , आत्माभिमान एवं स्वाभिमान के परिचायक बन पङे हैं । वे पुरातन रूढियों , मर्यादित मानव मूल्यों , मान्यताओं , अंध विश्वासों से हटकर वर्तमान की परिस्थितियों में जीना चाहते हैं ।माँ की वापसी में एक बुजुर्ग महिला अपने बेटे से मिलने शहर आती है , बेटे बहु के पास उससे मिलने का समय नहीं है । वह अपना आत्मसम्मान संभाले जल्दी से जल्दी वहाँ से निकल जाना चाहती है और अपना लाया सारा सामान नौकरों में बाँट कर बेटे से बिना मिले वहाँ से चली जाती है ।
सुश्री स्सेह गोस्वामी की लघुकथाएँ वास्तव में सीख –नसीहतों , शिक्षाओं , प्रेरणाओ से भरपूर हैं । ऐसी परिमार्जित ळघुकथाएँ प्रादेशिक अथवा ऱाष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के स्तर की पेरापेति के भी योग्य हो जाती हैं । इन छोटी छोटी कथाओं में आकर्षक कथावस्तु के साथ-साथ उनकी प्रभावोत्पाद्कता का विशेष एवं मारक प्रभाव दिखाई देता है । लेखिका के पाल भाव है तो अभिव्यक्ति भी ।उसका शिल्प , कथ्य और संवेदनात्मक अभिव्यक्ति सराहनीय है । यदि बीच बीच में लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग भी हो जाता तो सोने पर सुहागा हो जाता ।हाँ कहीं कहीं प्रूफ की गल्तियाँ अवश्य खटकती है । पर लघुकथओं की गुणवत्ता को देखते हुए उन्हें भुलाया जा सकता है ।
लेखिका को बहुत बहुत शुभकामनाएँ करते हुए कहना चाहता हूँ –
मील के पत्थर की कोई चाह न रखना ।
लक्ष्य को जो भेद ले वो नेगाह रखना ।.
श्री हर्ष कुमार हर्ष
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