अमावस ( कहानी काली रात की )
अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिए। ज्योतिष में चंद्र को मन का देवता माना गया है। अमावस्या के दिन चंद्रमा दिखाई नहीं देता। ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं, या जिनकी बात बात मज़ाक करने की प्रवत्ति होती है । उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। इस दिन चंद्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है।
बात साल 1992 की है । शाम का धुंधलका बढ़ चला था । सड़कें सुनसान हों चुकीं थीं । वैसे ही गांवों में शाम होते ही सन्नाटा पसरने लगता है । बरखेड़ी गांव के बाहर एक छोटा सा बस स्टॉप बना हुआ था । जो उस वक़्त पूरा खाली पड़ा था । तभी एक मोटरसाइकिल आकर रुकी । उसपर से एक युवक हाथ मे सूटकेस लिए उतरकर उस मोटरसाइकिल वाले को धन्यवाद कर वहाँ स्टॉप पर बरखेड़ी गांव के बाहर एक रेड़ी पर आकर बैठ गया । उसने अपने हाथ पर बंधी घड़ी पर एक नज़र मारी । 7 बज चुके थे। वो सूटकेस वहीं रखकर झाड़ियों में लघुशंका को चला गया । इतने में एक बस वहाँ आई । और कुछ सवारियों को उतारकर जैसे ही जाने लगी । वो युवक झाड़ियों में से भागता हुआ आया और बस को रुकने के लिए अवाज़ दी । पर बस तेज़ी में निकल गई । वो निराश होकर उस बस से उतरी सवारियों से पूछने लगा ।
"" बता सकते हैं अगली बस कबतक आएगी । मुझे माधोपुर जाना है। ""
उसकी बात सुनकर एक व्यक्ति ने बोला।
"" बाबूजी , ये आखरी बस थी । अब कल सुबह ही आयेगी । 7 बजे के बाद कोई बस नही है माधोपुर जाने के लिए । ""
उस व्यक्ति की बात सुनकर वो युवक और भी निराश और परेशान हो उठता है ।
"" है भगवान , ये आखरी बस भी निकल गई । मुझे कल माधोपुर में पहुँचकर ड्यूटी ज्वाइन करनी है । में एक इंजीनियर हूँ । वैसे ही 3 दिन लेट हो गया ड्यूटी ज्वाइन करने में । पता नही अब क्या होगा । शायद कोई बस आती हो । वहाँ ना सही कहीं और कि ही । में उसी से चला जाऊँगा । शायद आगे से कोई साधन मिल जाये । ""
उसकी बात सुनकर वो व्यक्ति बोला ।
"" अब तो कल सुबह ही आएगी । वो भी 9 बजे । इसके पहले अब कोई भी गाड़ी नही है । में तो इस गाँव मे सालों से रहता हूँ । मेरी बात मानिए कोई बस नही आयेगी अब ।""
"" ठीक है भैया यहिं बेठता हूँ , कोई और साधन ट्रक वगेरह निकलेगा तो उसी से चला जाऊंगा ।
वो युवक वहीं रेड़ी पर बैठ कर इंतज़ार करने लगा । उसके चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी । वो नीचे सिर करके बैठ गया ।
तभी उसके कानों में आवाज़ पड़ी जैसे कोई बस कंडक्टर आवाज लगाकर सवारी बुला रहा हो ।
"" रामगढ़ , जूने , बेलापुर , माधोपुर आ जाओ जल्दी जल्दी ""
उस युवक ने ये सुनते ही अचानक चेहरा उठाकर उस तरफ देखता है । एक बस खड़ी थी , और कंडक्टर सवारियों को आवाज़ लगा रहा था । उसने इधर उधर देखा , पर उसके अलावा कोई और सवारी उसे दिखी नही । वो दौड़ कर उस बस में चढ़ गया । अंदर घुसते ही उस युवक को एक अजीब से जलने जैसी बू आई । बड़ी अजीब गन्ध थी । उसने आसपास नज़र दौड़ाई कहीं सीट खाली नही थी । कुछ लोग पंक्ति बनाकर सीटों के बीच गली में खड़े थे । उसने आगे देखा तो ड्राइवर के सामने वाली जगह खाली थी । उसे आश्चर्य हुआ कि जब ये ड्राइवर के बगल वाली सीट खाली है तो इनमें से कुछ लोग यहाँ बैठे क्यों नही । खड़े क्यो है । उसने सीट को गौर से देखा , सीट तो बढ़िया थी । कंडक्टर से पूछकर वो वहीं बैठ गया । उसने माधोपुर का टिकिट कंडक्टर से लिआ ।
वो मन ही मन सोचने लगा "" उस आदमी ने तो कहा था कि अब कोई बस है ही नही कल सुबह के पहले । अच्छा हुआ उसकी बात मानकर में वापिस नही गया । ""
बस अपनी गति से भागे जा रही थी । क्योंकि जबतक रोड अच्छा था तो ड्राइवर टाइम कवर करने को गाड़ी भगा रहा था ।आगे वैसे ही कच्चे रोड पर बस 30-40 की स्पीड से ही चलना थी । बाहर मौसम खराब हो चला था । हवा के साथ पानी की बूंदा बांदी स्टार्ट हो चुकी थी । शाम के 6 बज चुके थे पर सर्दी के दिनों में अंधेरा इतना हो चला था कि जैसे 8 बज गए हों । आगे रास्ते पर पूरी तरह अंधेरा था । सिर्फ बस की हेड लाइट की रौशनी में आगे का रास्ता दिख रहा था । यदि लाइट बन कर दो पूरे रोड पर कुछ भी देख पापा असम्भव था । वो युवक बैठे बैठे बस में अंदर सवारियों पर नज़र दौड़ाता है । सभी एकटक उसे ही देखे जा रहे थे । उसे बड़ा अजीब सा लगा ये सब । भांति भांति के नाक नक्श वाले लोग आपस मे सटे हुए बैठे थे । कोई अजीब सी लंबी नाक वाला , किसी का कपाल इतना बड़ा और उसके नीचे आँखें नाक होठ जैसे आपस मे पास पास सटा दिए गए हों । किसी की बड़ी बड़ी आँखें , किसी के बेतरतीब लंबे लंबे बाल । वो युवक उन लोगों की तरफ एक नज़र मारकर वापिस सामने वाली खिड़की से बाहर देखने लगा । पूरी सड़क सुनसान थी।
परन्तु वो अजीब सी जली जली गन्ध बराबर आ रही थी । उसे लगा बस खचाखच भरी हुई हवा आने जाने की जगह नही है शायद इसलिए ही वो अजीब से गन्ध आ रही होगी किसी ना किसी के पास से । वो वापिस सामने सड़क पर देखने लगता है । तभी ड्राइवर टेप में एक गाने की केसिट लगा देता है ।
** गुमनाम है कोई , बदनाम है कोई , किस को खबर कौन है वो अनजान है कोई **
बस भरी हुई जरूर थी पर अंदर पूरी तरह खामोशी थी । सभी सवारियाँ खामोशी से बैठी थीं । उसने गौर किया बस की सभी खिड़कियां बंद थी । पूरी बस में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था । बस दचकों के कारण खिड़कियों के शीशे के ही बजने की आवाज़ आ रही थी । इसपर ड्राइवर के ऐसा गाना लगा देने पर वो युवक उस ड्राइवर के चेहरे की तरफ गौर से देखने लगा । वो एकदम सीधा सामने की तरफ देख बस चला रहा था । अमूमन ड्राइवर बीच बीच मे गर्दन घुमाकर इधर उधर देखते हैं । या खिड़की से गुटखा थूकते हैं । पर वो जबसे उस बस में आकर बैठा वो ड्राइवर यूं ही अजीब ढंग से बैठा बस चलाने में मग्न था । उसकी नज़र कंडक्टर पर पड़ी , वो भी बड़ी खामोशी से उसे ही देखे जा रहा था । तभी वो गाना खत्म हुआ । और अब दूसरा बजने लगा ।
** में एक पहेली हूँ , बरसों से अकेली हूँ , मुझे पहचानने वाले लाखों हैं जानने वाला कोई नही ।**
अब तो वो नोजवान खीजते हुए उस ड्राइवर की तरफ देखने लगा ।
तभी उस युवक के पास एक गंजा आदमी आकर बैठ जाता है । जो तबसे ही खड़ा हुआ है जबसे वो युवक उस बस में चढ़ा था । उसे अपने पास बैठते देख उस युवक ने धीरे से बोला ।
"" इतनी देर खड़े रहने के बाद अक्ल आई । ""
उस युवक ने बोला तो धीरे से था पर जैसे उस गंजे आदमी ने सुन लिया हो । वो उस युवक को घूर के देखने लगा । जैसे खा ही जायेगा । पर कुछ बोला नही ।
लगभग 2 घण्टे बीत चुके थे । बस अपनी गति से आगे बढ़े जा रही थी । आश्चर्य इतने गांव पड़े पर ड्राइवर ने अभी तक कहीं भी बस नही रोकी थी । इतनी देर हो गई चलते चलते । उसने ड्राइवर से हिम्मत कर पूछा ।
"" भैया कहीं बस रुकेगी क्या???...""
पर ड्राइवर ने जवाब देना तो दूर उसकी तरफ देखा तक नही । उस युवक को बड़ा अजीब लगा ये सब । उसने फिर हिम्मत कर पूछा ।
"" अरे भैयाजी , कोई खाने पीने की होटल या कोई गाँव आये तो 5 मिनिट रोक दीजिएगा । बड़ी भूख लगी है कुछ खा लूंगा । सुबह से निकला हूँ कुछ खाया तक नही ।""
इस बार उस ड्राइवर ने उसकी तरफ़ देखा और जम के ब्रेक लगा दिए । ब्रेक लगने से वो आगे की तरफ तेज़ झटके से गिरते गिरते बचा । वो ड्राइवर से कुछ कह पाता तभी उसने बाहर सामने देखा । खाने पीने की छोटी मोटी एक होटल थीं । ये देख वो युवक मन ही मन खुश हो गया । ड्राइवर फ़ौरन उतरकर नीचे चला गया । वो युवक भी नीचे उतरने के लिए अपनी सीट से उठा । और दरवाजे की तरफ बढ़ा । दरवाज़ा बंद था । उसने कंडक्टर से दरवाज़ा खोलने को कहा । पहले तो कंडक्टर ने उसकी तरफ बड़ी अजीब नज़रों से देखा । फिर धीरे से दरवाज़ा खोल दिया । वो युवक फ़ौरन नीचे उतरकर जाने लगा । तभी वो कंडक्टर उससे बोला ।
"" जल्दी आ जाना साहब , ये जगह ठीक नही । यहॉं रुकना खतरे से खाली नही । ""
"उस युवक ने पूछा "" क्यों ??? ऐसा क्या है यहाँ ??? ""
"" आज अमावस की रात है साहब , और हर अमावस को पूरी सड़क पर आप जहाँ से बैठे हो उसी बरखेड़ी से लेकर पूरे माधोपुर तक इस 250 किमी. के एरिया में एक आत्मा सुनसान सड़क पर भटकती है । वो कइयों की जान ले चुकी है । हमने तो उस आत्मा को कई बार देखा है। ""
उस कंडक्टर की बात सुनकर वो युवक अंदर तक भयभीत हो गया । डरकर भागते हुए वो जल्दी से उस होटल पर पहुंचा ।
उस युवक वो होटल वाला काफी देर से बड़े हैरानी से देख रहा था । जैसे ही वो युवक उस होटल के पास पहुंचा । उस होटल वाले ने उससे पूछा ।
"" किससे बात कर रहे थे बाबूजी ??? ""
"" अरे यार अब तुम दिमाग का दही मत करो । जल्दी से दो समोसे पैक कर दो । ""
होटल वाला आश्चर्य से उसे देखते हुए समोसे बांधने लगा । उस युवक ने पैसे देकर समोसे का पैकिट लेकर वापिस बस की तरफ रुख किया । तभी वो होटल वाला फिर बोला ।
"" अरे बाबूजी , इतनी रात गए सुनसान सड़क पर कहाँ जा रहे हो ।आपको पता नही यहाँ रात में एक आत्मा भटकती है । जो इंसानों को देखते ही कच्चा चबा जाती है । में भी दुकान बंद कर जाने ही वाला हूँ । ""
वो युवक पलटकर उसकी तरफ देखता है ।
"" सुनसान सड़क पर नही बस में जा रहा हूँ। इतनी बड़ी बस दिखती नही क्या ???"" कहते हुए वो युवक वापिस बस में आकर बैठ गया । और समोसे खाने लगा । सुबह से भूखे होने पर उसका ध्यान समोसे खाने में ही लगा था । तभी उसकी नज़र बस के अंदर अन्य सवारियों पर पड़ती है । वो उसे समोसे खाते बड़े गौर से देख रहीं थीं । उस युवक को ये सब फिर से बड़ा अजीब लगा । जबसे वो बस में चढ़ा था तबसे किसी भी सवारी को बोलते नही सुना था उसने । उसने समोसे खाकर कागज़ खिड़की से बाहर फेंक दिया । और हाथ पेंट से पोछने लगा । तभी उस पास बैठे गंजे व्यक्ति ने उसे घूरते हुए अचानक से उसकी तरफ पानी की छागल करते हुए बोला ।
"" पानी , पानी पी लो ""
उसके इस अजीब तरह से पानी देने के तरीके से वो और अचंभित हो गया ।
"" जिंदगी में हर काम ऐसे ही करते हो क्या । थोड़ा मुस्कुरा भी लिया करो ।"" वो युवक उस गंजे आदमी से बोला । वो गंजा बिना उसकी तरफ देखे नीचे मुँह किये हुए ही उससे बोला ।
"" हंसते तो आप जैसे लोग हैं हम नही । ""
ये सुनते ही वो युवक बड़ी हैरानी से अपनी आंखों की पुतलियो को चौड़ी करते हुए उस गंजे से पूछने लगा ।
"" क्या मतलब ???""
"" हर बात का मतलब नही होता ।""
अब तो वो युवक बुरी तरह खीज गया । तभी उसका ध्यान दोबरा उस बस में बैठी सवारियों पर गया । वो सभी सवारियाँ अब भी उसे ही देखे जा रहीं थी ।
इधर ड्राइवर ने फिर एक केसिट टेप में फंसा दी ।
** कहीं दीप जले कहीं दिल , जरा देख ले आकर परवाने , तेरी कौनसी है मंज़िल **
वो युवक मन ही मन सोचने लगा ।
"" अरे यार एक तो ये माहौल ही अजीब है । ऊपर से ये साला ड्राइवर इसे ऐसे ही गाने मिल रहे हैं बजाने को । मन करता है इसे दो तीन जड़ दूँ । हुंह हहहहह ""
तभी वो ड्राइवर ने जैसे उसके मन की बात सुन ली थी । वो उसे घूरकर देखने लगा । ये देखकर वो युवक सकपका गया । और कुछ देर चुप चाप बैठने में ही भलाई समझी । बस रात के सुनसान अँधेरे को चीरते हुए आगे बढ़ी चली जा रही थी । उसने अपनी घड़ी देखी रात के 10 बज रहे थे । ड्राइवर ने रेडियो ऑन कर दिया । उसपर समाचार आ रहे थे । खबर आधी निकल चुकी थी ।
** के रास्ते पर एक बस का एक्सीडेंट हो गया । बस खाई से नीचे गिरकर बुरी तरह जल गई । अंदर बैठे सभी यात्री बुरी तरह जल कर मर गए । पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचकर कारणों की जांच शुरू कर दी है ।**
खबर सुनते ही उस युवक का दिमाग ठनका । उसे शाम से लेकर अबतक बस की सारी अजीबोगरीब बातें , आखरी बस के निकलने के बाद भी इस बस का अचानक आना , सवारियों का चुपचाप बैठे रहकर सिर्फ उसे ही देखना , वो अजीब सी जली हुई गन्ध , और उस होटल वाले की वो हैरानी भरी बातें। जैसे उसे बस दिखी ही ना हो । अब तो वो सर से पाँव तक बुरी तरह रोमांचित हो गया । कटो तो खून नही । तभी उसकी नज़र कंडक्टर पर पड़ी । वो कंडक्टर उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था । फिर उसने ड्राइवर की तरफ देखा । वो ड्राइवर जो अबतक अज़ीब तरह से ख़ामोश बैठा हुआ था अब वो भी कुटिल मुस्कान बिखेर रहा था ।
वो युवक तेज़ी से उठा और दरवाजे की तरफ लपका । तभी कंडक्टर बोल पड़ा ।
"" अरे अरे साहब , किधर चले । डर गए क्या । हा हा हा हा हा ""
उसके हंसते ही बस में बैठे सभी सभी लोग भी हंसने लगे । वो गंजा व्यक्ति भी हंस रहा था । वो युवक सबके चेहरे हैरानी देखे जा रहा था । उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था । तभी ड्राइवर बोला ।
"" अरे डरिये मत साहब , हम कोई भूत वूत नही हैं । हम सभी ने मिलकर आपके साथ मिलकर मज़ाक किआ था । सभी सवारियां भी हमारी इस शरारत में शामिल थीं । सबने बखूबी साथ दिया हमारा । ये रेडियो नही बल्कि एक केसिट में समाचार की रिकार्डिंग है । हम आये दिन इस तरह का मज़ाक करते रहते हैं सवारियों से । वो होटल वाला भी इसमें शामिल था । माफ कीजियेगा आपको थोड़ा परेशान किया । ""
वो युवक ये सब सुनकर हैरानी से काँपते स्वर में सबके चेहरे देख बोलने लगा ।
"" भाई ऐसा मज़ाक ठीक नही । आपको नही पता मेरी क्या हालत हो रही है । दिल जैसे हलक में अटक कर धड़ धड़ कर रहा हो । पर एक बार अब भी समझ नही आई । जब आखरी बस निकल चुकी थी तो फिर आपकी ये बस कैसे आ गई ।""
"" अरे साहब डरिये नही । वो तो आज हम इस सड़क पर निकल आये । क्योंकि भानपुरा वाली सड़क का पुल टूटा हुआ है । वरना ये बस सीधे उस भानपुरा से वो पुल पार करके वही से माधोपुर जाती है । आप कौन हैं साहब । क्या करते हैं ???""" कंडक्टर ने सवाल किया ।
"" मेरा नाम प्रवीण है । में एक इंजीनियर हूँ । मेरा तबादला माधोपुर में हुआ है । वहीं ड्यूटी ज्वाइन करने जा रहा था । ""
"" ओह अच्छा , माफ करना साहिब हमने मज़ाक किआ । अरे ड्राइवर साहब जरा असली रेडियो तो चालू कर दो । आज मैच था कौन जीता पता तो चले । ""
ड्राइवर रेडियो ऑन करता है । उसमें समाचार आ रहे होतें हैं ।
"" प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव आज अपने दो दिवसीय दौरे पर अमेरिका चले गए । माना जा रहा है कि इस दौरे से दोनो देशों के सम्बन्धों को और भी मजबूती मिलेगी । अब प्रादेशिक समाचार सुनिए । समाचार ये की पुलिस को जो शव भानपुरा पुल के पास जंगल में मिला था , उसकी शिनाख्त हो चुकी है । वो सरकारी इंजीनियर प्रवीण साहू का शव है । जो अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने माधोपुर जा रहे थे। ""
बस में बैठे बैठे जिस जिस ने ये खबर सुनी सभी की ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे अटक गई । ड्राइवर के पैर ब्रेक पर यकायक पड़ गए । बस झटके से रुक गई । वो गंजा आदमी , कंडक्टर , सभी सवारियाँ , अब उसे आँख फाड़ फाड़ के निहार रहे थे । तभी वो युवक अचानक अपना सिर ऊँचा करता है । उसका चेहरा काला आंखे तो थीं ही नही , बस उसकी जगह दो गड्ढे थे । और चेहरे से खून टपक रहा था । उस डरावने चेहरे के होठ कुछ बोलने के लिए धीरे से खुले । और एक मोटी भारी आवाज़ में सबसे बोले ।
"" लेकिन में मज़ाक नही करता । सच कहा था तुमने कंडक्टर , आज अमावस है । में मरा जरूर दो दिन पहले था पर मेरी आत्मा आज ही मुक्त हुई है । क्योंकि आज अमावस है अमावस । हम आत्मओं का सबसे बड़ा त्योहार । हा हा हा "" मुँह फाड़कर भारी आवाज में हंसते हुए वो गर्दन को लंबी करके बोला ।
"" में एक पहेला हूँ , बरसो से जगेला हूँ ।""
और इतना कहते है वो एक काले धुँए में तब्दील होकर खिड़की का काँच फोड़ते हुए बस से बाहर हवा में उड़ गया । सभी लोग जैसे बुत बन चुके थे । ना पलक झपका रहे थे ना ही कुछ बोल पा रहे थे ।
समाप्त
लेखक - अतुल कुमार शर्मा " कुमार "