उस दिन जब तुम मेरे कमरे में आए तब मेरी किसीसे भी बात नहीं हो रही थी, मुझे पता चल गया था कि तुम आ रहे हो। इसीलिए मैंने ये नाटक किया, और ऐसा मुझे क्यों करना पड़ा इसकी लंबी कहानी है जो मेरे बचपन से शुरू होती है।
कीर्ति ने अपने बचपन की कहानी बताई, वो 2 पीढ़ी के बाद पैदा होने वाली पहली लड़की थी, और उसे कैसे लाड़-प्यार से रखा जाता था। पढ़ाई में कमजोर होने की वज़ह से एक टीचर को नियुक्त किया गया था। जो उसे रोज ट्यूशन देने आता था।
मुझे आज भी याद है मैं शैतानी बच्ची थी, चुलबुलापन मेरे अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ था। ट्यूशन टीचर के सामने भी मैं शैतानी करती। एक दिन शैतानी करते करते मैं उसकी गोद में जा बैठी। मेरे लिए तो वो मेरी शैतानी ही थी पर मुझे नहीं पता था कि उसकी असर मेरे पर क्या पड़ने वाली है।
एक दिन घर पर कोई नहीं था, सब अपने काम से बाहर थे। ट्यूशन टीचर मुझे मेरे कमरे में ट्यूशन देता था। उस दिन उन्होंने एक टॉपिक समझाया फिर मुझे वो लिखने के लिए कहा। मैं वो लिख रही थी तभी वो अचानक से मेरे पीछे आ खड़े हुए। मुझे कुछ पता चले इससे पहले ही उसका हाथ मेरे शरीर के उस हिस्से पर था जहां उसे नहीं होना चाहिए, पर उस वक़्त मैं बहुत छोटी थी करीबन 13 साल की यानी अब से 37 साल पहले की ये बात है।
वो मेरे शरीर से जैसे मन चाहे तैसे खेल रहा था, और मुझे कोई अंदाजा ही नहीं था कि मेरे साथ वो क्या कर रहा है। फिर मैंने उससे मासूमियत से पूछा कि ये आप क्या कर रहे है? तो उसने मुझसे कहा मैं जो शैतानी करती हूं ये उसकी सजा है। उस सजा की असर अब तक मेरे दिमाग से दूर नहीं हो पाई है। दरअसल वो सजा के रूप में अपनी हवस को पूरी कर रहा था। उस समय तो मुझे पता ही नहीं चला के मेरे साथ हो क्या रहा है। मुझे सच में लगा कि टीचर मुझे सजा दे रहे है। मेरे शरीर में से खून तक निकल आया पर वो हैवान नहीं रुका। तब तक जब तक उसने अपनी हवस को पूरा नहीं कर लिया।
जब भी चीखती थी वो मुझे चुप करा देता था, और कहता था कि अगर मैंने किसी को बुलाया तो वो और जोर से सजा देगा। सजा देने के बाद भी वो चुप नहीं रहा उसने कहा अगर मैंने किसी को इस बारे में बताया तो वो और सजा देगा। उसने यहां तक कहा कि वो मेरी माँ को भी सजा देगा। इस डर से मैंने ये बात किसी को नहीं बताई।
जब भी फिर में शैतानी या शरारत करती तब मेरे घर वाले भी कहते कि टीचर को कह देंगे वो तुम्हें इसकी सजा जरूर देंगे। उन लोगों को नहीं पता था कि मेरे मन में अब सजा का मतलब क्या हो चुका था। मैं शांत शांत रहने लगी। वो टीचर 2 साल तक आया और उसका जब भी मन किया वो मुझे सजा देता रहता था। 2 साल बाद उसका कहीं और पर तबादला हो गया। उन 2 सालो में मैं क्या थी और क्या हो गई थी सिर्फ मुझे ही पता था। 10वीं कक्षा में मेरे संगीत के गुरु मुझे संगीत सिखाने आते थे। मैं एक दम शांत रहती थी, तो उसने मुझसे ऐसे रहने की वज़ह पूछी। मैंने अपने भोलेपन में उसको सब कुछ बता दिया। फिर उसने भी मुझसे कहा कि अगर मैं गलती करूंगी तो उसकी सजा वही होगी। मैं फिर से डर गई। एक दिन मौके का फायदा उठाकर उसने भी वही किया जो ट्यूशन टीचर किया करता था। मेरी हालत काटो तो खून भी ना निकले ऐसी हो गई थी। यूं तो मैं ज़िंदा थी पर अंदर से मर चुकी थी। इस हादसे का मेरे दिमाग पर बहुत बड़ा गहरा असर हुआ था। मैं उस साल 10वीं में फैल हुई थी।
एक दिन मेरे दूर के चाचा गर्मी की छुट्टियों में हमारे घर आये। वो मेरे लिए बहुत सारे उपहार ले आये थे। धीरे धीरे उनकी और मेरी अच्छी बनने लगी। एक दिन मैंने उसको वो सब कुछ बताया, मैंने ये जानना चाहा कि आखिर इस प्रकार की सजा किसे किसे मिलती है। क्या सब को ऐसी सजा मिलती है? उसने उस वक़्त तो मुझे अच्छे से समझाया, पर एक रात मैं जब अपने कमरे में सो रही थी तब वो मेरे कमरे में घुस आया और वो ही हरकत करने लगा जो वो 2 हैवान करते थे। मैंने चिल्लाना चाहा पर उसने मेरा मुंह बंध कर दिया। मैंने हाथ जोड़े और जब मुंह थोड़ा सा खुला तब मैंने कहा कि आप तो मेरे टीचर भी नहीं है तो आप क्यों मुझे इस तरह से सजा दे रहे है? उसने कहा कि ये सजा उसे कोई भी दे सकता है। जब मैं जोर से चिल्लाई तो वो डर के भाग गया। उस दिन मुझे समझ में आया कि ग़लत मैं नहीं हूं ग़लत ये लोग थे। इसीलिए वो डरते थे कि कहीं मैं किसी को ये बात बता ना दूं।
अगले दिन जब मैंने अपनी माँ को ये बताना चाहा तो उसने मेरी बात सुनने के बजाय मुझे ही डांटा। वो अपने काम में इतनी व्यस्त थी कि उसको मेरी बात सुनने का भी समय नहीं था। मैं किसी और से कुछ कहूं इससे पहले ही वो चाचा अपनी चाल चल चुका था। उसने मुझे वहां से दूर भेजने का इंतज़ाम कर दिया था और मेरे माँ-बाप को भी उसने मुझे भोपाल भेजने के लिए मना लिया था। मैंने मना किया तो माँ ने मुझ पर हाथ उठा दिया। वो पहली बार मेरी माँ का मेरे गाल पर तमाचा था, जो गाल पर नहीं दिल पर लगा था। उसे नहीं पता था मैं किन हालातों से गुजर रही हूं। अफ़सोस पापा भी उस वक़्त कुछ नहीं कर पाए। बचपन में मैं उनके लिए परी थी। एक दिन ऐसा नहीं होता था जब वो मुझे गोद में लेकर मुझे खिलाया ना करते हो। उस रात मैं सो नहीं सकी। उस चाचा को डर था कि मैं उसकी करतूत सब को बता दूंगी इसीलिए उसने मुझे वहां से दूर करने का इंतजाम कर दिया था। शायद उसका डर सही था मैं उस वक़्त किसी को ये बात बता भी देती, पर जो मेरे साथ मेरे माँ बाप ने किया उसके बाद तो उसकी कोई गुंजाइश ही नहीं बचती थी।
भोपाल में मुझे अच्छे रिश्तेदार मिले उन लोगों के साथ जो वक़्त बिता वो वाकई में मेरा अच्छा वक़्त था। पर अच्छे वक़्त की बुरी बात ये है कि वो कुछ वक़्त ही टिकता है। मुझे पड़ोस में रहने वाला एक लड़का बहुत पसंद करता था। उसका नाम राघव था। मैं उससे फॉर्मल बातचीत करती थी धीरे धीरे वो भी मुझे अच्छा लगने लगा था, वो मेरा पहला प्यार था। हम दोनों साथ में घूमते फिरते थे। लड़ते झगड़ते थे। एक दिन मैं उसके घर गई, उसके घर पर उसके अलावा और कोई नहीं था। वो धीरे धीरे मेरे करीब आया, और मुझे अचानक से अपनी बांहों में ले लिया। पहले तो मुझे अजीब लगा, फिर अचानक से मेरी पुरानी यादें ताज़ा हो गई और राघव को दूर धकेल दिया। इस बात से ले कर उसने भी मुझ पर हाथ उठाया। और उसने जो बात कही मैंने कभी उससे उम्मीद भी नहीं कि थी। वो सिर्फ मेरे रूप रंग का दीवाना था और मुझसे सिर्फ इसीलिए प्यार का नाटक कर रहा था कि एक दिन वो मेरे साथ सेक्स कर सके। मैं रोती हुई अपने घर गई पर किसी से कुछ ना कह पाई। उसके बाद उसने कई बार मुझसे मिलने की कोशिश की पर मैं अब उससे मिलना नहीं चाहती थी। कुछ दिनों में उसकी शादी हो गई, और सारा मामला शांत हो गया। पर मैंने तो उससे सच्ची मोहब्बत की थी। वो मेरे दिल और दिमाग से निकल ही नहीं पा रहा था।
उसे भूलने के लिए और मेरे कैरियर के लिए मुझे बॉम्बे जाना पड़ा। 12वीं की परीक्षा के बाद मैं बॉम्बे चली गई। वहां पर पेइंग गेस्ट के तौर पर रहने लगी। वहां पर मेरी मुलाकात एक अच्छी लड़की से हुई। कुछ दिनों की जान पहचान में हम दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी। मैंने उसको अपने बारे में अपनी पूरी कहानी बताई। उसने मुझको सलाह दी कि लड़कों से बने उतना दूर रहूं। उन लोगों के दिमाग में लड़कियों के लिए सिर्फ एक ही सोच होती है। मेरे लिए तो मेरी खूबसूरती ही मेरी दुश्मन थी। जब उसने मुझे बताया कि मेरे साथ बचपन में जो हुआ वो सजा नहीं बल्कि बलात्कार था, जो किसी भी सजा से कम नहीं था। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मैंने चुप रहकर कितनी बड़ी गलती कर दी थी। बाद में ये ख़्याल आया कि मैंने जिस जिसको बताने की कोशिश की उसने भी मेरा फ़ायदा ही उठाया जैसे कि वो संगीत का गुरु और दूर का चाचा। दूसरों की बात ही जाने दो मेरी माँ ने भी मेरी नहीं सुनी। छोटी थी तब पापा से सब कुछ कह पाती थी, बड़ी होते ही जैसे पापा मेरे लिए कुछ थे ही नहीं ऐसा एहसास होने लगा था। वैसे तो मैं लोगों के बीच में भीड़ में थी पर हंमेशा एक अकेलापन महसूस होता था। घूम फिर कर मुझे अपनी पुरानी बातें याद आ जाती थी, और चाहकर भी उसे मैं अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रही थी।
सुरवंदना संगीत में जब मेरी मुलाकात माधव से हुई तब पहले तो मुझे उसका नाम राघव सुनाई दिया फिर मुझे पता चला कि उसका नाम राघव नहीं माधव है। माधव मुझे पहली नज़र में अच्छा लगा पर उसका नाम सुनकर राघव की याद आ गई और उसकी सारी हरकतें भी। एक तरफ मुझे माधव पर प्यार आता था तो दूसरी तरफ उसके लिए नफ़रत। मैं उससे उस बात के लिए नफ़रत करती थी जो गलती उसने की ही नहीं थी।
मैंने माधव और अरुण की बात सुन ली थी, 100 रुपये के लिए दोनों इंतज़ाम में लग गए थे। मैं गरीब नहीं थी पर जान बूझकर गरीब होने का नाटक करती रही क्योंकि मैं अपनी ख़ुद की एक अलग पहचान बनाना चाहती थी। मेरा मेरे घर वालो से भी कोई वास्ता नहीं था। इसीलिए मैंने सबको झूठ बोला। पर किसी भी तरह मैंने अरुण को बुलाकर उसको 100 रुपये दे दिए और उससे कहा कि मेरा नाम ना ले। उसने मुझे ऐसा करने की वज़ह भी पूछी पर मैंने उसकी बातों को टाल दिया। मुझे यकीन था वो माधव को कभी मेरे बारे में नहीं बताएगा और उसने बिलकुल ऐसा ही किया। मैं हर दम हर पल माधव का साथ देती रही पर इस डर के साथ कि उसको ये बात मालूम ना पड़ जाए। अगर उसको पता चल जाता तो वो मुझसे प्यार करता, और प्यार मुझे राघव की याद दिलाता था। राघव ने जो किया मेरे साथ वो फिर से मुझे अगर प्यार में मिलता तो मैं ये बर्दाश्त नहीं कर पाती। मेरा दिल तो माधव को पसंद करता था पर दिमाग ऐसा करने की अनुमति नहीं देता था।
मैंने ये तय किया कि मैं माधव की हर सूरत में उसकी एक अच्छी दोस्त बनकर मदद करूंगी पर उसको पता नहीं चलने दूंगी। उसके सामने अपनी पहचान छुपा कर रहूंगी। जब सिलेक्शन का वक़्त आया तब भी मैं माधव को ही जितवाना चाहती थी क्योंकि मुझसे ज़्यादा माधव को इसकी जरूरत थी, पर अजित ने मुझे मेरी पसंद का गाना दे दिया और मैंने उसे अच्छे से गा दिया, माधव से भी अच्छा। मेरा सिलेक्ट होना तय था, पर अजित ने मुझे वो मौका दे दिया। अजित ने उस वक़्त मुझे प्रपोज कर दिया और उसी वक़्त मुझे मौका मिल गया माधव को जीत दिलाने का। जैसा मैंने सोचा बिलकुल वैसा ही हुआ। मेरी जगह माधव को विजेता घोषित किया गया।
उसके बाद भी मैं माधव को भूल नहीं पा रही थी। इसीलिए मैंने भी अगले महीने वो प्रतियोगिता जीत ली। माधव के साथ पहली बार गाना गाने में मैं नर्वस हो गई थी। शायद इसी वज़ह से वो गाना अच्छा नहीं बन पाया। मैं सोच ही रही थी कि इसका क्या करें पर माधव ने ही मुझे रास्ता दिखाया। हमें अपनी अपनी मंजिल चुननी थी और इसके लिए हम दोनों को अलग अलग गाना था। ऐसा कर के माधव तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता गया। मेरे प्यार की जीत हो रही थी मेरे लिए यही काफ़ी था। मुझे नहीं पता था कि माधव भी मुझे प्यार करने लगा था। उस समय वो जानकर की माधव मुझसे प्यार करता है, मैं ख़ुशी से झूम उठी थी।
माधव के प्यार में अजीब सा जादू था। पर मुझे बस एक ही चीज़ का डर सताए रहता था, माधव ने भी अगर राघव जैसा किया तो ये दिल हंमेशा के लिए टूट जाता। इसीलिए मैं ही सामने से माधव से पूछ लेती थी कि उसे मेरे प्रति फिजिकल अटैचमेंट तो नहीं है ना? पर हर बार माधव की ओर से मुझे संतोषजनक ही उत्तर मिला। मैंने माधव को जितना अच्छा इंसान माना था माधव उससे भी कहीं ज्यादा अच्छा इंसान था। इसी वज़ह से मैं उसके प्यार में और डूबने लगी। कभी कभी मेरा मन करता कि मैं माधव को छू लूं, उसकी बांहों में खो जाऊं, उसे चुम लूं, पर जब भी मैं माधव के करीब जाने की कोशिश करती, मुझे अपना अतीत याद आ जाता था। मेरा अतीत ही मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बन गया था। मैं चाह कर भी उससे पीछा नहीं छुड़ा पा रही थी। बहुत कोशिश की पर कामयाबी हासिल नहीं हुई।
जितना मैं माधव के करीब हो रही थी, माधव उतना ही अपने कैरियर से विचलित हो रहा था। मेरी वज़ह से उसे नाकामयाबी का मुंह देखना पड़ रहा था। मैंने मन ही मन निश्चय किया कि मुझे माधव से दूर हो जाना चाहिए। क्योंकि माधव मुझसे सच्चा प्यार करता था, पर उसके प्यार का अंतिम नतीजा था शादी। मैं शादी कर के माधव की ज़िंदगी बर्बाद नहीं करना चाहती थी। मैं कभी भी एक अच्छी पत्नी या माँ नहीं बन सकती थी। ये सब बताकर माधव को मैं और तकलीफ भी नहीं देना चाहती थी, तो बेहतर यही था कि मैं उसकी ज़िंदगी से दूर हो जाऊं। मैं चाहती थी माधव मुझसे नफरत करें, पर ऐसा हुआ नहीं। रियालिटी शो मैं किस्मत ने हम दोनों को फिर से मिला दिया। मैं माधव के फिर से करीब आती गई। इस बार उलटा हुआ। माधव मुझसे प्यार करता था पर मुझको बता नहीं सकता था, उसकी सीधी असर उसके गाने पर और उसके परफॉर्मेंस पर पड़ रहा था। मैं माधव को इस हाल में नहीं देख पाई और अपने प्यार का इज़हार फिर से कर बैठी। मैं सचमुच माधवी से जलती थी जब भी माधव उसके करीब जाता था तब। अब की बार माधव और मेरी जोड़ी ने खूब सारा प्यार हासिल किया। माधव ने भी मेरा साथ पा कर शो अच्छे से पार कर लिया, और हम शो जीत गए। पर असली मुसीबत अभी आनी बाकी थी। मुझे पता लगा की माधव मुझे पार्टी में शादी के लिए प्रपोज करने वाला है। माधव का कैरियर भी बर्बाद ना हो और उसकी ज़िंदगी भी अच्छे से चले इसके लिए मुझे फिर से वही रास्ता नज़र आया। मैंने अपना मन मना लिया और माधव से हंमेशा के लिए दूर होने की सोची।
माधव को मैं कभी प्यार ही नहीं करती थी और अजित से प्यार करती थी ये सब झूठ था। मुझे पता था ये झूठ माधव को तकलीफ देगा पर उस वक़्त मुझे यही सही लगा। ऐसा करने से माधव मुझसे नफरत करने लगेगा ये मैं जानती थी और अपने कैरियर पर ज़्यादा ध्यान दे पाएगा ये भी मैं जानती थी। इसीलिए मैंने ये रिस्क लिया। जैसा मैंने चाहा था वैसा ही हुआ। उस घटना के बाद माधव मुझसे नफ़रत करने लगा, अपने कैरियर पर ध्यान देने लगा। जो कामयाबी उसे कभी हासिल नहीं थी वो कामयाबी हासिल हुई। मैंने अपने प्यार को हासिल नहीं किया पर उसको खुश और कामयाब होते देख कर मैं रोज अपने आप को जीती हुई महसूस करती थी। माधव ने मुझे खो कर सब कुछ हासिल कर लिया और मैंने सब कुछ खो कर माधव की ख़ुशी हासिल कर ली।
Chapter 9.2 will be continued soon…
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✍️ Anil Patel (Bunny)