Gyarah Amavas - 45 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 45

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ग्यारह अमावस - 45




(45)

रानीगंज के प्रसिद्ध देवी मंदिर के पास पूजा सामग्री की एक दुकान थी। दुकान के मालिक मंगल ने कांस्टेबल मनोज को फोन करके बुलाया था। कांस्टेबल मनोज उसके गांव का था। मंगल जानता था कि कांस्टेबल मनोज पुलिस की उस टीम का हिस्सा है जो बसरपुर की सरकटी लाशों के केस पर काम कर रही है। वह बेसब्री से कांस्टेबल मनोज के आने की राह देख रहा था। मंगल जानता था कि बसरपुर में किशोर लड़कों का सर काट कर उनकी बलि चढ़ाई जा रही है। इसके लिए किशोर उम्र के लड़कों का अपहरण किया जाता है। इसी सिलसिले में उसने कांस्टेबल मनोज को फोन करके बुलाया था।
कुछ महीनों पहले तेरह चौदह साल का एक अनाथ लड़का मंदिर में आया था। वह दिन भर मंदिर में दर्शन करने आने वालों से भीख मांगता था। रात में मंदिर के पास जहाँ भी जगह मिलती थी सो जाता था। भीख मांगते हुए वह अपनी मीठी आवाज़ में भजन गाता था। मंगल को उसका भजन गाना बहुत अच्छा लगता था। एक दिन उसने उस लड़के को अपने पास बुलाया और भजन गाने को कहा। उस लड़के ने उसे एक सुंदर सा भजन गाकर सुनाया। खुश होकर मंगल ने उसे पैसे दिए और उसके बारे में पूछा। उस लड़के ने अपना नाम कान्हा बताया। कान्हा ने बताया कि उसे अपने पिता के बारे में कुछ नहीं मालूम। उसने अपनी माँ से पूछा था पर उन्होंने कुछ नहीं बताया। उसकी माँ बचपन से ही उसे गोद में लेकर इसी तरह भजन गाते हुए भीख मांगती थी। वह बड़ा हुआ तो उसने भी यही शुरू कर दिया।
दोनों माँ बेटा अधिक दिन एक जगह टिक कर नहीं रहते थे। कुछ महीने एक जगह रहने के बाद दूसरी जगह चले जाते थे। वहाँ किसी मंदिर के पास भीख मांगते थे। इस तरह दोनों दूर दूर तक भटकते रहते थे। कान्हा की माँ का देहांत हो गया। कान्हा इधर उधर भटकते हुए रानीगंज आ गया। ना जाने क्यों पर मंगल को कान्हा अच्छा लगने लगा। वह अक्सर कान्हा को अपने पास बुलाकर उससे भजन सुनता था। उसे पैसे देता। अक्सर उसके लिए खाने की चीज़ें लाता था।
मंगल को एक दिन के लिए अपनी दुकान बंद करके रिस्तेदारी में जाना पड़ा। जब वह लौटकर आया तो उसे कान्हा कहीं दिखाई नहीं पड़ा। उसने आसपास लोगों से पूछा तो किसी को उसके बारे में कुछ पता नहीं था। पहले तो मंगल को लगा कि शायद हर बार की तरह वह इस जगह को छोड़कर चला गया होगा। पर उसकी दुकान पर अक्सर आने वाले एक ग्राहक कुंदन ने उसे बताया कि उसने कान्हा को एक आदमी के साथ कार में बैठते हुए देखा था। यह सुनकर मंगल को अनहोनी का डर हुआ। उसने तुरंत कांस्टेबल मनोज को फोन कर दिया।
सारी बात सुनकर कांस्टेबल मनोज को इस बात का यकीन हो गया कि कान्हा का अपहरण बलि के लिए ही किया गया है। उसने फौरन इस बात की सूचना सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को दी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने उससे आसपास के लोगों से पूछताछ करने को कहा जिससे कोई सुराग मिल सके। कांस्टेबल मनोज ने मंदिर के पुजारी और उसके आसपास के लोगों से कान्हा के बारे में पूछताछ की। सबने एक ही बात कही कि वह मंदिर में आने वाले लोगों से भजन गाकर भीख मांगता था। मंदिर के आसपास ही रहता था। पर किसी ने उसे कहीं आते जाते या किसी से बात करते हुए नहीं देखा। कांस्टेबल मनोज ने मंगल के उस ग्राहक कुंदन का पता ले लिया। वह कुंदन के घर उससे मिलने गया। उसने कुंदन से उस दिन की घटना के बारे में पूछा।
कुंदन ने बताया कि उस दिन शाम को वह मंदिर के दर्शन करने के बाद अपने घर लौट रहा था। मंदिर के कुछ आगे जाने पर वह बाईं तरफ मुड़ गया। उस रास्ते पर कुछ फासले पर उसने एक लड़के को एक कार में बैठते हुए देखा। देखने में वह कान्हा ही लग रहा था। वह जब तक कार के पास जाता कार आगे बढ़ गई थी। कांस्टेबल मनोज ने कहा,
"तुमने इस बात की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी ?"
कुंदन ने जवाब दिया,
"पहली बात तो वह दूर से कान्हा जैसा ही दिख रहा था। पर मैं पक्का नहीं कह सकता हूँ कि वह कान्हा ही था। दूसरी बात वह अपनी मर्ज़ी से कार में बैठ रहा था। मुझे तो ऐसा नहीं लगा कि कोई जबरदस्ती उसे कार में बैठा रहा है।"
कुंदन की बात सुनकर कांस्टेबल मनोज कुछ सोच में पड़ गया। उसने पूछा,
"उस गाड़ी का नंबर याद है ?"
कुंदन ने सर हिलाकर मना कर दिया। कांस्टेबल मनोज ने कहा,
"कौन सी कार थी ? किस रंग की थी ? कुछ तो याद होगा।"
कुंदन ने कहा,
"शाम ढल रही थी। हल्का अंधेरा था। मैं सही से देख नहीं पाया।"
कुंदन बड़ी बेपरवाही से जवाब दे रहा था। उसकी बातों से ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे कान्हा के गायब हो जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। कांस्टेबल मनोज ने कुछ गुस्से से कहा,
"तुमने एक बच्चे को अंजान आदमी के साथ जाते देखा। लेकिन पुलिस को खबर तक नहीं की।"
यह सुनकर कुंदन भी कुछ गुस्से में बोला,
"वह लड़का मंदिर के आसपास भटकता रहता था। ना जाने कितने लोगों से बात करता था। मैं क्या जानता था कि क्या बात है। मुझे लगा कि अपनी मर्जी से किसी के साथ गया है। फिर मेरे पास अपनी ज़िम्मेदारियां भी हैं।"
कांस्टेबल मनोज को लगा कि कुंदन से बहस करने का कोई मतलब नहीं है। उसने उसे उस जगह ले चलने को कहा जहाँ कुंदन ने कान्हा को कार में बैठते देखा था। उस जगह पर पहुँचने पर कांस्टेबल मनोज ने देखा कि वह जगह कुछ सुनसान सी थी। जहाँ कुंदन ने कार खड़ी देखी थी उसके पास एक मैदान था। वहाँ कोई मकान या दुकान नहीं थी। वहाँ किसी से कोई पूछताछ नहीं हो सकती थी। वापस लौटकर कांस्टेबल मनोज ने सारी बात सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को बता दी। कान्हा का गायब होना इस बात का सूचक था कि शैतान ने अगली बलि की व्यवस्था कर ली है। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और उसकी टीम तुरंत हरकत में आ गई।

शाम ढल चुकी थी। अंधेरे की सुरमई चादर ने हर चीज़ को अपने भीतर समेट लिया था। दूर जंगल में एक खंडहर इसी सुरमई चादर को ओढ़े किसी रहस्यमई हैवानी ताकत सा लग रहा था। यह खंडहर जंगल में बहुत भीतर था। जल्दी किसी की पहुँच यहाँ होना संभव नहीं था। प्रकृति ने भी जैसे उसे दुनिया से छुपाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यह खंडहर पेड़ों के झुरमुट के बीच में था।
उस खंडहर के भीतर कान्हा बैठा सिसक रहा था। वह तो कुछ पैसों और अच्छे खाने के लालच में उस आदमी के बहकावे में आ गया था। वह जब दोपहर को मंगल चाचा की दुकान पर गया तो उसने दुकान बंद पाई। उसे लगा कि शायद कुछ देर के लिए घर गए होंगे। थोड़ी देर में लौट आएंगे। कुछ देर बाद वह फिर लौट कर आया। दुकान अभी भी बंद थी। वह उदास हो गया। थोड़ी थोड़ी देर में वह दुकान पर आकर देखता रहा। शाम हो गई पर दुकान नहीं खुली। वह बहुत दुखी था।
उसे मंगल चाचा के पास जाना अच्छा लगता था। इसलिए नहीं कि उसके भजन के बदले में मंगल चाचा उसे पैसे देते थे। उसका तो काम ही भजन गाकर भीख मांगना था। उसे तो उनका प्यार से उसके सर पर हाथ फेरना अच्छा लगता था। अपने बच्चे की तरह मंगल चाचा उसे अच्छी अच्छी चीज़ें खिलाते थे। उसकी माँ के अलावा मंगल चाचा ही थे जो उसे प्यार करते थे। बाकी सबके लिए तो वह एक अनाथ भिखारी था।
मंगल चाचा की दुकान बंद पाकर वह बहुत दुखी हो गया था। उसका मन अब भजन गाकर भीख मांगने का नहीं था। उनकी दुकान से निकल कर वह टहलता हुआ मंदिर से कुछ आगे बढ़ गया। तभी किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा। वह यह सोचकर मुड़ा कि शायद मंगल चाचा होंगे। पर एक उसके सामने एक अपरिचित व्यक्ति खड़ा था। उसने कहा,
"सुना है तुम बहुत अच्छा भजन गाते हो।"
कान्हा ने कोई जवाब नहीं दिया। वह आगे बढ़ गया। वह आदमी आगे बढ़कर आया और उसका रास्ता रोककर बोला,
"मैंने तुम्हें गाते हुए सुना है। मेरी माता जी तुम्हारा भजन सुनना चाहती हैं। मेरे साथ चलकर उन्हें भजन सुना दो।"
कान्हा ने कुछ सोचकर कहा,
"आप उन्हें यहाँ ले आइए। मैं मंदिर में ही रहता हूँ। मैं उन्हें भजन सुना दूँगा।"
उस आदमी ने कहा,
"मेरी माता जी बूढ़ी हैं। चलने फिरने में असमर्थ हैं। तुम मेरे साथ चलो। वहाँ आराम से उन्हें भजन सुनाना। मैं हर भजन के लिए तुम्हें अलग अलग पैसे दूँगा। बढ़िया खाना भी मिलेगा।"
कान्हा सोच में पड़ गया। उस आदमी ने कहा,
"मैं तुम्हें अपनी कार में बैठाकर ले चलूंँगा। बाद में तुम्हें यहीं छोड़ दूंँगा।"
उस आदमी ने कान्हा को एक साथ बहुत से लालच दिए थे। अच्छे पैसे, अच्छा खाना, कार में बैठकर घूमना। सड़क पर रहने वाले कान्हा के लिए यह लालच बहुत था। वह मान गया। उस आदमी ने कहा कि उसकी कार थोड़ी दूर मैदान के पास खड़ी है। कान्हा उसके साथ चला गया। उसे एक घर में ले जाया गया। वहांँ उसे खाने को दिया गया। खाना खाने के बाद वह गहरी नींद सो गया।
जब आँख खुली तो वह इस जगह पर कैद था। उसके हाथ पैर बंधे हुए थे। वह रो रहा था। रोते हुए उसे अपनी माँ की याद आ रही थी। यहाँ उसे डर लग रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि अचानक कहाँ आ गया। लेकिन इस बात का जवाब देने के लिए उसके आसपास कोई नहीं था। वह अब अपने निर्णय पर पछता रहा था कि क्यों उस आदमी के साथ जाने को तैयार हो गया था।
रोते हुए उसे कुछ आवाज़ सुनाई पड़ी। फिर उस जगह पर रौशनी दिखी। उसने अपने सामने टॉर्च लिए उसी आदमी को देखा जो उसे धोखा देकर यहाँ लाया था।