The Lost Man (Part 54) in Hindi Fiction Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | हारा हुआ आदमी (भाग 54)

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हारा हुआ आदमी (भाग 54)

निशा जाते समय जिस तरह दरवाजा छोड़ गई थी।वैसे ही दरवाजा भिड़ा था।निशा दरवाजा खोलकर अंदर आ गयी।रात को पर्स निशा ने बेडरूम में लटका दिया था।पर्स लेने के लिए वह बेडरूम में चली गयी।
निशा बेडरूम में पहुंची तो उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई।उसने कभी स्वप्न में भी भूल से भी नही सोचा था।निशा बेड रुम का दृश्य देखकर दंग रह गयी।माया और देवेन आलिंगनबद्ध थे।इस दृश्य को देखकर निशा समझ गयी कि उनके सम्बन्ध सिर्फ सास दामाद तक ही सीमित नही रहे।उनके बीच अवैध शारिरिक सम्बन्ध स्थापित हो चुके है।और यह बात मन मे आते ही वह समझ गयी कि क्यो देवेन बार बार अकेला आगरा आता है।
देवेन और माया की नज़र निशा पर पड़ी तो हड़बड़ाकर दोनो अलग हो गए।
निशा उन दोनों को आपत्तिजनक सिथति में देखकर मुंह से तो कुछ भी नही बोली।हिराकत की नज़रो से उन्हें देखा और बाहर निकल गयी।
निशा के अचानक वापस लौट आने से देवेन और माया दोनो ही हक्के बक्के रह गए थे। निशा के चले जाने के काफी देर बाद वे सामान्य हुए तब माया बोली,"अब क्या होगा?"
"क्या होगा अब?"देवेन भी बोला।
दोनो का प्रश्न एक ही था लेकिन जवाब किसी के भी पास नही था।
निशा गयी तो गीता से मिलने थी लेकिन वह वहां गयी नही।वापस घर लौट आयी।वह घर आते ही अपने कपड़े जमाने लगी।निशा आगरा दीवाली मनाने के लिए आयी थी।यहां आते समय वह कितनी खुश थी।हर औरत अपने मायके जाते समय बहुत खुश होती है।जहां वह पैदा हुई और जहां उसका बचपन बीता वहां आकर औरत को कितनी खुशी मिलती है यह वो ही जान सकती है।
शादी के बाद निशा पहली बार माँ के पास दीवाली मनाने के लिए आई थी।चार दिन के लिए आई थी।लेकिन मां का असली रूप देखकर वह एक पल भी यहां अब और नही रुकना चाहती थी।निशा को कपड़े जमाते देखकर उससे पूछने का साहस न देवेन में था और न ही माया में।लेकिन देवेन समझ गया था।निशा अब यहां रुकने वाली नही है।और देवेन को चुपचाप पत्नी के साथ वापस आना पड़ा।माया में भी इतना साहस नही था जो उसे जाने से रोकती।कहना तो दूर माया,निशा से आंख तक नही मिला पा रही थी।
पत्नी को वापस लौटने की तैयारी करते देखकर देवेन भी कुछ बोलने का साहस नही जुटा पाया।और चुपचाप उसके साथ चला आया।पूरे रास्ते ट्रेन के सफर में पति पत्नी में कोई बात नही हुई।देवेन चाहता था।वह कुछ तो कहे।
गए तो वे चार दिनों के लिए थे लेकिन लौट आये दूसरे ही दिन।
दिल्ली अपने घर आकर भी निशा ने मुंह नही खोला था।निशा का स्वभाय चंचल था।वह चुप नही रहती थी।हंसना खिलखिलाना उसकी आदत थी।हंसी मजाक करना उसका स्वभाव था।जो निशा एक पल के लिए भी चुप नही रह सकती थी।उस निशा ने चुप्पी ओढ़ ली थी।
शादी से पहले वह इस घर मे अकेला रहता था।तब घर खाली खाली सूना सूना लगता था।निशा के आने पर घर गुलज़ार हो गया था।क्योंकि निशा हमेशा चहकती रहती थी।वो ही घर अब निशा के रहते भी।सूना और खाली खाली सा लग रहा था।घर मे सन्नाटा से पसरा हुआ था।अनाम खामोशी।