Mohall-E-Guftgu - 7 in Hindi Fiction Stories by Deepak Bundela AryMoulik books and stories PDF | मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 7

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 7



7. मोहल्ला -ए -गुफ़्तगू

और बस वहीं से उन्होंने मुझ पर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि में नमिता को मानसिक प्रताड़ना दें रहा हूं फिर नमिता के एक भाई और हैं जो पेशे से लॉयर हैं उन्होंने मुझसे कहा कि मैं बिलकुल कायदे में रहूं..पहले तो मैं बिलकुल सादगी में ही कहता रहा उन्हें समझता रहा लेकिन जब वो लोग नहीं माने तो मैंने उन्ही से पूछ लिया अगर मेरे मानसिक प्रताड़ना से नमिता इतनी परेशान हैं तो फिर वो क्या हैं जो पिछले 8 सालों से उसका मनोचिकित्साक से इलाज चल रहा हैं.. इस बात पर वो मुकर गए बोले ऐसा कोई इलाज नहीं चल रहा हैं नमिता का ... जिस पर मैंने कहा था

फिर डॉ. ज्ञानेंद्र का मेडिसिन पेपर देकर मुझ से दवा मंगवाई थी वो किस लिए

उस बारे में हमें नहीं पता..लेकिन तुम कुछ ज्यादा ही समझदारी दिखा रहें हो..

कैसी समझदारी भईया जी आप ही मेरी हर सबाल पर रूडली जवाब दें रहें हो..

फिर उस दिन उन्होंने फोन काट दिया मैंने रिटर्न कॉल भी की पर उन लोगो ने रिसीव नहीं की मैंने घर पहुंचते ही मां और बाबा से ये सारी बातें शेयर की.. तो वो भी सकते में आ गए मैंने उन्हें पेपर भी बतलाया. तब मां बाबा को भरोसा हुआ.. ये हमारे लिए चिंता का विषय था जिसके चलते हम रात भर नहीं सो सकें मां बाबा को काफी पश्यताप भी हुआ मां बार बार मेरी पीठ पर साहनुभूति से हाथ फेर रही थी.. कुछ समझ नहीं आ रहा था के हम अब आगे क्या करें.. किससे कहें खैर मैंने मां बाबा से कहा के अब जो भी हैं ठीक ही हैं पर नमिता का इलाज तो कराना ही होगा अभी दोनों बच्चें भी छोटे हैं अभी समय रहते इलाज़ हो जाएगा तो सब के लिए ठीक रहेगा.

बेटा तुम कल ही किसी अच्छे डॉ से मिलो और नमिता का इलाज कराओ.. (मां ने मुझसे कहा था )

हां मां मैं कल सुबह ही पता करता हूं..

हम लोग बातों में लगें थे तभी नमिता भी आ गई थी

आप लोग किस के इलाज की बात कर रहें हैं..?

आ बहू बैठ.. तुम तो जल्दी सो गई थी इसलिए नहीं जगाया

हां वो मेरा सिर कुछ ज्यादा ही भारी हो रहा था.. अभी आप लोग इलाज की बात कर रहें थे.. किसका इलाज कराना हैं..?

मां ने मेरे कंधे को हौले से दवा कर मुझे बोलने के लिए इशारा किया था.

बैठो नमिता...

नमिता साइड में लगें सोफे पर बैठ गई थी

वो नमिता तुम्हारे ही इलाज के बारे में बात हो रही थी

क्यों मुझे क्या हुआ हैं..?

बेटा अगर हम बीमारी को छुपाएंगे तो आगे चल कर और बड़ी दिक्कत हो जाएगी.

किस बात की दिक्कत होंगी पापा जी मैं भी तो जानू..?

मैंने फ़ौरन नमिता को परचा दिखाते हुए कहा

फिर ये मेडिसन किस बात की लें रही हो तुम..?

नमिता चुप थी

बताओं बेटा चुप क्यों हो

ओह तो अब समझ आया आप लोग मुझे मेन्टल घोषित करना चाहतें हो ..

अरे ये तुम क्या कह रही हो बहू..?

हम तीनों नमिता की बात सुनकर चकित थे उस दिन नमिता ने बेहद हंगामा किया मेरी हर बात को वो झुठलाती रही उसने यहां तक कह दिया के उसने मुझसे कोई दवा नहीं मांगई थी मैं उसके प्रति कोई साजिश रच रहा हूं
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सुबह थोड़ी मेरी झपकी लगी ही थी के मेरे कानों में जोर जोर से ओकने की आवाज़ से मेरी नींद टूट चुकी थी.मैं जल्दी से उठ कर पीछे वाले बैडरूम की तरफ भगा था जहां मां और बाबूजी पहले ही मौजूद थे..

क... क्या हुआ..?

क्या होना हैं देखलो..! बाबूजी अपना सिर पीटते हुए बोले थे

नमिता.... नमिता... क्या हुआ..?

देख बेटा ये क्या बोल रही हैं... बोल रही हैं इसने फिनाइल पी लिया हैं.. (मां ने रुंधे हुए गले से कहां था)

मैंने फोरन नमिता के चेहरे के पास अपना मुंह ले जाकर सूंघने की कोशिश की थी लेकिन फिनाइल की कोई स्मेल नहीं आ रही थी मैंने मां और बाबा को समझाया आप लोग चिंता नहीं करें नमिता को कुछ नहीं होगा मैं समझ गया था नमिता हम लोगों को डरा रही थी
और नमिता ने फिर एक चाल चली के वो निढल हो कर बेहोस सी हो गई थी मैंने फ़ौरन उसे उठा कर बैडरूम में ला कर बेड पर लिटाया था

देखना बेटा ये इसकी मुट्ठी मेसे गिरा हैं

पिताजी ने जल्दी से मां के हाथ से पेपर लिया और खोल कर पढ़ा

मैं नमिता... अपने पति और सास ससुर से तंग आ चुकी हूं ये लोग आए दिन मुझे टार्चर करते रहते हैं और दहेज के लिए प्रताड़ित करते रहते हैं जिस कारण से मैं अपना जीवन यही खत्म कर रही हूं

नमिता

मैंने बाबा से कहा

आप इस पेपर को सम्हाल कर रखो और चलो इसे हॉस्पिटल लें जाते हैं..

और हम लोग जल्दी से नमिता को हॉस्पिटल लेकर इमरजेंसी में दिखाया और मौजूद डॉ को हमें पूरी बात बताई... डॉ ने नमिता का चेकअप किया और ये पुष्टि की की ऐसी कोई भी ज़हरीली चीज का सेवन नहीं किया गया हैं इसी बीच नमिता को डॉ. एक इगजेक्शन दें चुके थे चेकअप और एब्जोर्वेसन में अबतक डेढ़ घंटा हो चुका था.. जिसके चलते नमिता अब कुछ नार्मल थी तब तक एक और डॉ. आ चुके थे जो नमिता से कुछ अलग अलग सवाल कर रहें थे.. जिसके जवाब नमिता आधे अधूरे जवाब दें रही थी.. तब डॉ. ने हम लोगों से पूछा था कि इससे पहले भी क्या कभी इन्होने ऐसा किया था कभी जिसका जवाब हम ने न में दिया तब डॉ ने खुद कहा इनकी मनोदसा ठीक नहीं हैं अभी मैं कुछ दवाए लिख देता हूं एक हफ्ते तक ये दवाए दो और एक हफ्ते बाद फिर दिखाना.. डॉ ने दवाए लिखी और हम नमिता को लेकर एमरजेंसी से बाहर आ गए. हम लोग अब थोड़ा हल्का महसूस सा कर रहें थे तभी मेरे दिमाग़ में आया क्यों न इसने जो दवा लाने के लिए पेपर दिया था एक बार डॉ को दिखा कर पूछ ही लूं और मैं बहाना करके डॉ के पास आया था.. जिस पेपर को देख डॉ. ने पुष्टि कर दी की हां ये पुराने मेन्टल रोगी के लिए ही मेडिसन हैं..

मतलब यहां ये बात तो साबित हो गई कि आप से आपकी ससुराल वालों ने झूठ ही बोल कर फसा दिया..

जी.. और ऐसा फसाया के इन दस सालों में सब कुछ चौपट हो गया झूठा दहेज का केस, प्रताड़ना का केस, झूठा मारपीट का केस हम सब पर लगा दिया मैंने जैसे तैसे तो अपने मां बाबा भाई, बहनो और छोटे भाई की वाइफ की जमानत तो करवा ली लेकिन मुझे 3 महीने तक अंदर रहना पड़ा था.. उसके बाद महीने में दो बार पेशीयों पर लखनऊ जाना पड़ता था जो ये सिलसिला पूरे 7 साल चला कोर्ट में इन्होने खर्चा हर्जा की भी पहले ही अर्जी लगा दी थी जिसके चलते 20'000/- रूपये मासिक भी कोर्ट में जमा करना पड़ता था.. बकीलों का खर्चा अलग.

तो क्या आपने अपना केस यहां ट्रांसफर कराने के लिए कोशिश नहीं की..?

बहुत की थी सर यहां के बकीलों को इसीलिए तो कर रखा था.. और लखनऊ में भी दो बकील कर रखें थे नमिता का प्लस पॉइंट ये था की उसका एक बड़ा भाई भी वहीं कोर्ट में बकील हैं जिसके चलते उसने सब को सेट कर रखा था यहां तक की जज को भी एक बार तो जज ने मुझे और पिताजी को अपने चेम्बर में बुला कर काफ़ी बुरा भला कहां.

क्यों ऐसा क्यों...?

पहले तो नमिता यहां आना नहीं चाहती थी फिर ये लोग पलट गए और जब मैं साथ नहीं रखने को इस डर से तैयार नहीं था के जब वो हम लोगों को उलझने के लिए झूठा केस कर सकती हैं तो जब वो यहां रहती तो और क्या करती. इसलिए जज ने जबरन नमिता को मेरे साथ भेजा.. जब उसे हम यहां लेकर आए तो भाई और बहनो ने घर में रखने से साफ मना कर दिया यहां तक कि मां बाबा ने भी तब मैंने किराए का एक फ्लेट लिया और इसको साथ में रखा ऊपर से उसके दिमाग़ की हालत भी दिन पर दिन बिगड़ रही थी..उसके इलाज करवाया.. यहां दोनों बच्चें मां बाबा के पास ही थे जिसके चलते घर पर भी खर्चा देना होता था तो मैंने सोचा अब जब नमिता मेरे पास रह ही रही हैं तो अब खर्चा हर्जा लख़नऊ कोर्ट में इसके लिए क्यों भरु इस एवज में मैंने एक नए बकील से सलाह ली तो उसने भी यही कहा आप को तो जम के लूटा जा रहा हैं ये क्या वेबकूफी हो रही हैं मतलब ये कि आपके साले सहाब बेहद चतुर हैं जो बकीली पैसे का दुरूपयोग कर रहें हैं.. उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया के वो इस केस को ज्यादा से ज्यादा 6 पेशी में मेरे पक्ष में करके मुझे हमेशा हमेशा के लिए छुटकारा दिला देंगे जिसके लिए उन्होंने पूरे दो लाख रूपये मांगे थे जिस में एडवांस एक लाख और पचास हज़ार तीसरी पेसी में और आखिरी किस्त आखिरी यानि छठी पेशी में देने को कहां था..

फिर आप ने किया क्यों नहीं..?

कैसे करता सर इन सात आठ सालों में तो में पैसों पैसे के लिए मोहताज हो चुका था फिर भी मेरे पास एक रास्ता था जिसके सहारे मै थोड़ा अस्वस्थ था एक प्लाट था जिसे मैंने बेचने का प्लान बना लिया था जिसकी रजिस्ट्री मेरे और मां के नाम साझा थी.. सोचा था चलो इसे बेच कर केस से छुटकारा पा लूंगा तो बिजनेस करूंगा..

और बाकी की प्रॉपर्टियां भी तो थी आपके पास..?

हां थी तो लेकिन इस लफड़े के चलते घर के सब लोग मेरा साथ देने से मुकर गए थे क्योंकि मैंने जितनी भी प्रॉपर्टी बनाई थी सब मां और बाबूजी के नाम ही की थी साथ ही मां और बाबूजी के बैंक में उस समय लगभग मैंने साठ लाख रूपये भी जमा करवा दिया था जिसमे से उन्होंने मेरी सहायता न करने के बजाय भाई बहू बहनों और बहनोईयों के नाम और उनके बच्चों के नाम सब को बांट चुके थे जो मेरे पास तीस चालीस लाख था वो इस केस में लग गया था..

फिर उस प्लाट को आपने बेचा..

इतना सुनते ही अविनाश ने एक लंबी और गहरी सांस भरी थी...

क्रमशः 8