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भानुप्रताप, संजीव और गगन एक कमरे में थे। जब तीनों जांबूर की मीटिंग से निकल कर अपने घर जा रहे थे तब उन्हें रोक लिया गया था। एक गाड़ी में बैठाकर यहाँ लाया गया था। तबसे तीनों यहीं थे। पर गगन और संजीव समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्यों किया गया है। गगन ने कहा,
"सबको तो जाने दिया फिर हम लोगों को यहाँ लाकर रखने का क्या मतलब है ?"
संजीव ने भी यही सवाल दोहराया। पर भानुप्रताप ने उन दोनों के इस सवाल का जवाब नहीं दिया। वह खुश था कि उन लोगों को यहाँ लाकर रखा गया है। उस दिन रेस्टोरेंट में उसने उन दो आदमियों को बातें करते हुए सुना था तो वह डर गया था। उसे लग रहा था कि गगन और संजीव तो पुलिस की निगाह में आ चुके हैं। उनकी वजह से उस पर भी खतरा आ गया है। वैसे तो पुलिस उसके बारे में नहीं जानती है। लेकिन पुलिस की गतिविधियां बहुत तेज़ हो गई हैं। यदि पुलिस की टीम के किसी आदमी ने उसे उन दोनों के साथ देख लिया तो उस पर भी मुसीबत आ जाएगी।
जांबूर ने मीटिंग में बलि की व्यवस्था करने को कहा था। इस बात से उसके मन में संदेह आ गया था कि इस बार अनुष्ठान हो भी पाएगा या नहीं। इसलिए उसने तय कर लिया था कि घर पहुँचते ही गगन और संजीव को कहीं और अपने रहने की व्यवस्था करने को कहेगा। पर उसकी नौबत नहीं आई। उन्हें इस जगह पर लाकर रख दिया गया। उसे तसल्ली थी कि यहाँ पुलिस का खतरा नहीं होगा। गगन और संजीव की तरह उसके मन में भी यही बात आई थी कि सबको छोड़कर उन तीनों को यहाँ क्यों रखा गया है। उसे इस बात का कुछ कुछ अंदाज़ा लग गया था। वह सोच रहा था कि जांबूर ने ऐसा उसी डर से किया होगा जो उसके मन में था।
भानुप्रताप को कोई जवाब ना देते देखकर गगन ने अपना सवाल फिर दोहराया। भानुप्रताप ने कहा,
"तुम दोनों पुलिस की निगाह में आ गए थे। तुम्हारे साथ मुझे भी खतरा हो सकता था। इधर पुलिस बहुत तेज़ी से हरकत में आ गई है। उस दिन रेस्टोरेंट में जो सुना था तुम दोनों को बताया था ना। वैसे भी मैं तुम लोगों से अपनी व्यवस्था करने के लिए कहने वाला था। जांबूर ने व्यवस्था कर दी। अब चुपचाप बैठो।"
उसका जवाब सुनकर गगन और संजीव ने एक दूसरे की तरफ देखा। उसके बाद दोनों चुप हो गए। गगन के मन में आ रहा था कि क्या इस बार वो लोग ज़ेबूल की पूजा कर पाएंगे। उसे बलि की भेंट दे पाएंगे। अब सिर्फ दो दिन बचे थे। ऐसा होने की सूरत नज़र नहीं आ रही थी। यह बात उसे और अधिक परेशान कर रही थी। अनुष्ठान की श्रृंखला टूटने का अर्थ था ज़ेबूल की कृपा प्राप्त करने में देरी होना। वह ऐसा नहीं चाहता था। वह तो जल्दी से जल्दी शक्तियां प्राप्त करने के लिए अधीर हो रहा था।
गगन की तरह संजीव भी इसी बात को लेकर परेशान था। उसे लग रहा था कि कहीं ज़ेबूल को प्रसन्न कर शक्तियां प्राप्त करने का सपना टूट तो नहीं जाएगा। उसने धीरे से पास बैठे गगन से कहा,
"तुम्हें क्या लगता है ? इस बार हम ज़ेबूल की आराधना कर पाएंगे।"
गगन ने कहा,
"मेरे मन में भी यही चल रहा है। जैसे हालात हैं उनमें तो यह बहुत कठिन लग रहा है। लेकिन जांबूर ने जिस विश्वास से कहा था कि चाहे कुछ भी हो जाए वह पीछे नहीं हटेगा। उससे उम्मीद खत्म नहीं हुई है।"
संजीव कुछ सोचकर बोला,
"जांबूर पर यकीन तो है। लेकिन इस बार अभी तक बलि का इंतज़ाम भी नहीं हो पाया है। अनुष्ठान के लिए कोई उचित जगह भी नहीं है। इतनी जल्दी सब कैसे होगा।"
गगन ने कहा,
"हम सब ज़ेबूल की आराधना करते हैं। हमें उसे प्रसन्न कर शक्तियां प्राप्त करनी हैं। जिससे हम अपने मन के मुताबिक जीवन जी सकें। इसलिए मैं चाहता हूँ कि हमारी अराधना का क्रम ना टूटे। तुम भी तो इसी कारण से हमारे साथ जुड़े हो। तुम भी तो यही चाहते हो ना। इसलिए यही मनाओ कि जांबूर ने जो कहा है वह हो।"
दोनों धीरे धीरे बात कर रहे थे पर भानुप्रताप सब सुन रहा था। गगन की बात सुनकर भानुप्रताप को भी इस बात की चिंता होने लगी। वह भी अपने मन की इच्छाएं पूरी करने के लिए ही तो ब्लैक नाइट ग्रुप में शामिल हुआ था। इकलौती संतान होने के कारण उस पर बहुत सी उम्मीदें थीं। लेकिन वह उन पर खरा नहीं उतर पा रहा था। उसे लोगों से बहुत कुछ सुनना पड़ता था। इसलिए एक दिन अपने घर से भाग गया था। इधर उधर भटकते हुए समझ आया कि ज़िंदगी इतनी आसान नहीं है।
जब वह थक गया तो उसने अपने घर वापस लौटने का मन बनाया। घर जाकर वह खोती बाड़ी संभालने की बात सोच रहा था। पर उसी समय उसकी मुलाकात महिपाल से हुई। महिपाल ने उसे ग्रुप में शामिल कर लिया। वह ज़ेबूल को प्रसन्न कर उन सब चीज़ों को पाने के सपने देखने लगा जिन्हें वह पा नहीं सका था। अनुष्ठान के लिए किशोर उम्र के लड़के की ज़रूरत थी। उसे अपने पिता की याद आई। वह जानता था कि उसके पिता एक स्कूल में गार्ड हैं। वह चुपचाप उनसे मिला। उसने अपने पिता दिनेश को सारी बात बताई। दिनेश लालच में आ गया और उसकी मदद के लिए तैयार हो गया।
दिनेश ने ना सिर्फ अमन को अगवा करने में उनकी मदद की। पर वह उनके ग्रुप की सहायता करने के लिए भी तैयार हो गया। जब अहाना को अगवा करके बसरपुर बलि के लिए लाया गया था तब उसने ही उत्तर वाली पहाड़ी के खंडहरनुमा मकान तक उसे पहुंँचाने में उनकी मदद की थी। उस रात भानुप्रताप भी वहाँ पहुँचा था। दिनेश ने उसे बताया था कि पुलिस को उस पर शक हो गया है। इसलिए सादे कपड़ों में एक पुलिस वाला उस पर नज़र रखने आया है। वह मंदिर के पुजारी के साथ ठहरा है।
भानुप्रताप ने उस पुलिस वाले को अपने पिता पर नज़र रखते देख लिया। उसने उसके सर पर वार करके बेहोश कर दिया। अपने पिता के कहने पर वह उसे जंगल में ले गया। अहाना को पहुँचाने के बाद दिनेश ने उस पुलिस वाले के बारे में बताया। उसे आदेश मिला कि उसे भी अहाना के पास पहुँचा दिया जाए। इसलिए वह घर लौटने के बाद जंगल में गया। उसने भानुप्रताप को कुछ आदमियों के साथ पुलिस वाले को उत्तरी पहाड़ी पर पहुँचाने को कहा। जब वह लौट रहा था तो उसके भाई ने उसकी हत्या कर दी। भानुप्रताप को अपने पिता के मरने का अफसोस नहीं था। ना ही अपने चाचा के लिए कोई गुस्सा था। वह भी गगन और संजीव की तरह उस दिन की राह देख रहा था जब उसे ज़ेबूल से शक्तियां प्राप्त होंगी।
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह एक कुर्सी पर लगभग लेटी हुई अवस्था में बैठा था। उसने अपने दोनों पैर फैला रखे थे। उसका मुंह छत की तरफ था। इस अवस्था में वह गंभीर विचार में खोया हुआ था। वह सोच रहा था कि जांबूर ने कह तो दिया कि अनुष्ठान में कोई व्यवधान पैदा नहीं होगा। लेकिन वर्तमान परिस्थिति में यह काम कठिन जान पड़ता है। पर उसे जांबूर पर पूरा भरोसा था। वह इतने दिनों से उसके साथ जुड़ा हुआ था। वह जानता था कि जांबूर का काम करने का अपना तरीका है। वह उसके इतने नज़दीक है। फिर भी बहुत सी बातों की भनक वह उसे नहीं लगने देता था।
जांबूर के दिमाग में क्या चल रहा है यह उसके लिए भी जानना मुश्किल था। जैसे कि वह समझ नहीं पाया था कि जांबूर ने शिवराम हेगड़े को क्यों जीवित रखा है ? जबकि शिवराम हेगड़े को मार देना बहुत आसान था।
वह पुलिस डिपार्टमेंट में रहकर जांबूर के लिए काम कर रहा था। गुरुनूर के कहने पर शिवराम हेगड़े को शांति कुटीर में जासूसी करने के लिए भेजा गया था। वह अपना काम कर रहा था। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने गुरुनूर से कह कर इस बात की व्यवस्था कर ली कि शिवाराम हेगड़े शांति कुटीर की गतिविधियों के बारे में उसे सूचना देगा। वह सूचना सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह गुरुनूर तक पहुँचा देगा।
एक रात जब दीपांकर दास और शुबेंदु शांति कुटीर से बाहर निकल कहीं जाने की योजना बना रहे थे तो शिवराम हेगड़े ने इस बात की सूचना उसे दी। दरअसल शिवराम के बारे में जांबूर को पहले से ही पता था। उसने जानबूझकर उसे शांति कुटीर के बाहर निकलने दिया था। वह जानता था कि गुरुनूर को शांति कुटीर पर शक है। वह उसके शक को पक्का करके उसे उलझाना चाहता था। जांबूर की योजना के अनुसार ही सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने शिवराम हेगड़े के साथ दीपांकर दास की कार का पीछा किया। शिवराम हेगड़े उस मकान के पास पहुँचा जिसमें दीपांकर दास की कार घुसी थी।
शिवराम हेगड़े सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को मकान के बाहर छोड़कर खुद अंदर चला गया। दोनों फोन के ज़रिए संपर्क में थे। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने एक दूसरे फोन से शिवराम हेगड़े के मकान में घुसने का संदेश भेज दिया। फिर इस तरह दिखाया कि जैसे खुद मुसीबत में है। उसके बाद फोन काट दिया। प्लान के हिसाब से सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को भी पकड़ कर शिवराम हेगड़े के साथ पालमगढ़ के बाहर बने मकान में ले जाया गया। उन्हें एक ही कमरे में कैद कर दिया गया। प्लान के हिसाब से सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह के हाथ इस तरह बांधे गए थे कि वह खुद को खोल सके। उसकी जेब में एक मास्क और बेहोश करने वाला स्प्रे था।
शिवराम हेगड़े कुछ देर तक उससे बातें करता रहा। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को आश्चर्य हो रहा था कि उस मुसीबत में भी वह अपना दिमाग चला रहा था। उसे जो कुछ हुआ उसके पीछे षड्यंत्र समझ आ रहा था। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह जानबूझकर चुप हो गया और आँखें बंद करके बैठ गया। कुछ समय बाद शिवराम हेगड़े भी सुस्त हो गया। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने महसूस किया कि वह ऊंघ रहा है। उसने मौका देखकर अपने हाथ खोले। जेब से मास्क निकाल कर अपनी नाक पर लगा लिया। फिर शिवराम हेगड़े के मुंह के सामने बेहोशी का स्प्रे मार दिया।
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह वापस नहीं गया। उसके वापस जाने पर पुलिस बहुत सारे सवाल पूछती। जो खतरनाक हो सकता था। जांबूर ने उससे कहा था कि वह यहीं रहे। पुलिस को लगेगा कि वह भी शिवराम हेगड़े के साथ मारा गया या कैद में है।