Pustake - 1 - Moh ke dhage in Hindi Anything by Pranava Bharti books and stories PDF | पुस्तकें - 1 - मोह के धागे

Featured Books
  • रहस्य - 4

    सकाळी हरी आणि सोनू गुजरात ला पोचले आणि पूढे बस ने संध्याकाळ...

  • आर्या... ( भाग १ )

    आर्या ....आर्या ही मुलगी तिच्या आई वडिलांची एकुलती एक मुलगी...

  • गया मावशी

    गया मावशी ....    दिवाळी संपत आली की तिची आठवण हमखास येते…. ...

  • वस्तीची गाडी

    वसतीची  गाडी     

       
                 जुन 78 ते  जुन 86 या  का...

  • भुलाये न बने

                  भुलाये न बने .......               १९७0/८0 चे...

Categories
Share

पुस्तकें - 1 - मोह के धागे

कहानी संग्रह

लेखिका - वीणा विज

----------

ज़िंदगी की उलझनों के दिन-रात, शामें बँट जाती हैं शब्दों में, चुप्पी साधी नहीं जा सकती यदि कोई संवेदनशील हो --कसमसाते हुए दिनों की आहट उसे परेशान करती ही तो रहती है जब तक भावों का पुलिंदा खुलकर उसमें से कतरे-कतरे लेखनी की नोक पर न आ बैठें | वे भाव बाध्य करते हैं कुछ न कुछ कहने के लिए, चुप बिलकुल ही नहीं रहने देते | पीड़ाओं को समेटे हृदय मानो एक कोठरी में साँसें लेने की मज़बूरी से कराहता रहता है |

ये कराहटें शब्दों के माध्यम से जब कागज़ पर उतर जाती हैं तब कहीं जाकर घुटी साँस खुलकर जीने का साहस बटोर पाती है| कुछ चरित्र तो इतना झँझोड़ते रहते हैं कि जब तक उन्हें कागज़ या कैनवास पर न उतारा जाए तब तक टिके ही नहीं रहते |

कलाकार वीणा विज इसी तबके से आती हैं जिन्होंने शब्द-चित्रों के माध्यम से इस संग्रह की अठारह कहानियों को लेखनी की तूलिका से चित्रित करके पाठक के समक्ष परोसा है | इस परोसे में विभिन्न बानगियाँ हैं जो कभी चटकारे भी देती हैं, कभी आँखों में समुन्दर भर देती हैं तो कभी बहुत सी चिंताओं से प्रबुद्ध पाठक के मस्तिष्क की चूलें हिला देती हैं। लेकिन इस सत्य से नकारा नहीं जा सकता कि अधिकांश कहानियाँ आँखें भरते हुए कुछ सोचने को विवश करती हैं।

सभी कहानियों के कैनवास गठे हुए हैं और उनके चित्र सीधे पाठक के मनोमस्तिष्क पर टहोके मारते हैं | कहानियों से गुज़रते हुए पाठक का ठिठक जाना इस बात को प्रमाणित करता है कि कहानियाँ चलचित्र हैं और वह ठगा सा निर्मिमेष दृष्टि से एक ओर पढ़ रहा है तो दूसरी ओर उन्हें एक चलचित्र की भाँति तक रहा है |

कहानियों में चित्रात्मकता का यह प्रभाव वीणा के फ़िल्मों, दूरदर्शन, आकाशवाणी आदि के अधिक संसर्ग का प्रभाव प्रतीत होता है।

पँजाब के दूरवर्ती, भीतरी इलाकों से लेकर पश्चिम की यात्रा तक कहानियों का विस्तार है। इसका कारण भी लेखिका का देश-विदेश का भ्रमण व संसर्ग ही समझा जा सकता है। इसी कारण इन कहानियों में हिंदु, मुस्लिम, सिख सभी पात्र अपने अपने हिस्से की ज़मीन से जुड़े नज़र आते हैं।

शैली सरल व रुचिकर है जो सहज ही पाठक को चरित्रों, दृश्यों, घटनाओं के साथ बाँध लेती है।हर कहानी का भिन्न वातावरण है जो मन पर सहज ही छाप छोड़ता है।

पहली कहानी 'मोह के धागे' से लेकर अंतिम कहानी 'सलेटी बदलियाँ' तक कथानक का सार्थक निर्वहन किया गया है।

'वक़्त की तपिश' व 'सलेटी बदलियाँ'

पाठक को सिहरन से भर देती हैं तो अन्य सभी कहानियाँ चिंतन से!

कहानियों का कैनवास बहुत विस्तृत नहीं है किंतु उनकी गहराई 'गहरे पानी पैठ' की सच्चाई से रूबरू कराती है।

संग्रह की एक भी कहानी ऐसी नहीं है जो चिंतन के लिए चिंतित न करती हो।

मुझे बहुत पहले यह संग्रह प्राप्त हो गया था किंतु कुछ व्यस्तताओं के चलते बहुत देर बाद इन कथाओं के भीतर उतर सकी।सभी पठनीय व विचारशील कथ्यों के लिए प्रिय वीणा विज को हृदय से अभिनंदन देती हूँ।

पूर्ण विश्वास है कि इनकी लेखनी में तारतम्यता बनी रहेगी व पाठकों को विभिन्न विषयों पर प्रभावशाली कहानियाँ प्राप्त होती रहेंगी।

सस्नेह

डॉ.प्रणव भारती

अहमदाबाद