Chaprakanati in Hindi Classic Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | चपरकनाती

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चपरकनाती

"चपरकनाती"- प्रबोध कुमार गोविल
दूरबीन से इधर- उधर देखता हुआ वो सैलानी अपनी छोटी सी मोटरबोट को किनारे ले आया। उसे कुछ मछुआरे दिखे थे। उन्हीं से बात होने लगी।
टोकरी से कुछ छोटी मछलियों को चुनकर अलग करते हुए लड़के से उसने पूछा- इन्हें अलग क्यों करते हो, वापस पानी में फेंकोगे क्या?
लड़का हंसा। फ़िर बोला- नहीं साहब, ये ही तो सबसे कीमती हैं, पैसा तो इनसे ही मिलेगा। बाकी तो खा डालेंगे।
उसे याद आया, पिछले साल वो मेघना ही के तट पर घूम रहा था तो वहां खेत में मौक़ा पाकर एक अकेली लड़की से बोला था- लाओ, ये फूल तुम्हारे बालों में लगा दूं? डेफोडिल सरीखे फूल चुनती लड़की ने लजाते हुए उसे बताया था- नहीं साब, हम गरीब लोग हैं। ये फूल बालों में लगा कर कहां घूमेंगे। ये फूल तो हम बेच देंगे। बहुत पैसा मिलता है इनका।
ओह, अद्भुत... तो तुम्हें पैसा चाहिए? लेकिन इन शब्दों के साथ आंखों में घुमड़ा चमक का इंद्रधनुष देख कर लड़की सिर पर टोकरी धरे हांफती हुई भाग गई थी।
और वो मुस्कुराता हुआ देखता रह गया था।
ब्रिटेन से हिंदुस्तान घूमने आया हुआ वो युवा पर्यटक वापस अपने देश लौट गया।
कुछ वर्ष बाद उसे पता चला था कि पिछले दिनों उसने फ्रांस के एक संग्रहालय में महारानी की जो पोशाक देखी थी वो छप्पन हज़ार पौंड्स प्रति फिट के कीमती कपड़े से बनी हुई थी। लेडी बोनापार्ट और कुछ दूसरे शाही रईसजादे भी अपने राजसी वस्त्रों के लिए यही कपड़ा चुनते थे।
इस कपड़े को मलमल कहते थे। ढाका की मलमल। ख़ास किस्म की कपास के इन्हीं सफ़ेद फूलों से कते सूत से ये कपड़ा बनता था।
युवक को सुखद आश्चर्य हुआ जब उसे पता चला कि ये वस्त्र तो हिंदुस्तान के उसी भाग में बनता है जहां वो एक बार घूमने आया था।
इतना ही नहीं, बल्कि उसने जाना कि ये कपड़ा उसी ख़ास किस्म की कपास से तो बनता है जिसके बड़े- बड़े फूल चुनते हुए उसने एक दिन जुलाहा परिवार की एक लड़की को देखा था। लड़की की याद से ही उसे रोमांच हो आया।
उसे दरियातट पर मछली पकड़ने वाले उस लड़के का भी स्मरण हो आया जिसने बताया था कि बोआल नाम की छोटी मछली बहुत महंगी बिकती है क्योंकि उसके दांतों से बनी कंघी से ही इस महीन कपड़े को बनाने के लिए कपास को सुलझाया जाता है।
कुछ साल बीते और युवक की पोस्टिंग फ़िर से हिंदुस्तान में ही हो गई क्योंकि उसने ईस्ट इंडिया कंपनी ज्वॉइन कर ली थी और ये कंपनी कारोबार के सिलसिले में हिंदुस्तान में अपना नेटवर्क फ़ैला रही थी।
कोलकाता के पास एक गांव में रात को डाक बंगले में अकेला बैठा हुआ वो युवक जो अब एक ज़िम्मेदार प्रौढ़ अफ़सर बन चुका था एकाएक हंस पड़ा था। उसकी कल्पना ही कुछ ऐसी थी। उसने सुना था कि मलमल का ये कपड़ा बेहद बारीक महीन होता है। ये इतना पारदर्शी होता है कि कभी - कभी तो ऐसा अहसास होता है कि कहीं कुछ पहना भी है या नहीं।
कहते हैं कि एक बार तो औरंगज़ेब की लड़की भरे दरबार में इस कपड़े की पोशाक पहन कर चली आई। यद्यपि उसकी पोशाक इस वस्त्र की सात परतों से बनी थी फ़िर भी वो इतनी पारदर्शक थी कि औरंगज़ेब ने अपनी बेटी को ऐसे कपड़े पहनने के लिए भरे दरबार में डांट दिया।
सुबह जब डाक बंगले की सफ़ाई करने एक लड़का आया तो उसने चाय पीते हुए साहब का मूड अच्छा देख कर उन्हें ये कहानी ही सुना डाली - आपको पता है साहब, एक बार तो हमारे राजा को किसी जुलाहे ने ये कह कर पोशाक पहना दी कि ये दुनिया का सबसे कीमती और महीन कपड़ा है। जबकि राजा जी को कुछ भी पहनाया ही नहीं गया था।
- फ़िर? फ़िर क्या हुआ? उन्होंने मुस्कराते हुए पूछा।
लड़का बोला- होना क्या था साहब। किसमें हिम्मत थी कि राजा को असलियत बताए। जो बोलता, राजा उसे ही कहता कि तुम मूर्ख हो, तुम्हें उम्दा कपड़े की पहचान ही नहीं है।
तब कहीं से एक बच्चा वहां आया और चिल्लाने लगा- राजा नंगा, राजा नंगा। हड़बड़ा कर राजा साहब ओट में हो गए। उस जुलाहे को उम्रकैद की सज़ा हुई जिसने राजाजी का ये श्रृंगार किया था।
शहर के एक नामचीन शायर ने तो इस नायाब कपड़े को बुनी हुई हवा की संज्ञा दी थी।
ये कपड़ा था बहुत खूब। इसे खरीदने वाले साठ फिट कपड़े के थान को सुंघनी की डिबिया में रख लेते थे। तर्जनी अंगुली की अंगूठी से थान के थान निकल जाते थे इसके।
कुछ साल गुज़रे और हिंदुस्तान की सरहदों पर आवारा घूमने वाला वो लंपट सा अंग्रेज़ युवक ईस्ट इंडिया कंपनी में एक बड़ा हाकिम बन गया। ये कंपनी हिंदुस्तान में व्यापार करने आई थी और उसकी तैनाती भी बंगाल में ही थी।
कहते हैं कि इस कंपनी का व्यापार तो बस एक बहाना था। असल में तो ये कुटिल महत्वाकांक्षी लोग हिंदुस्तान पर कब्ज़ा करना चाहते थे। साम दाम दण्ड भेद के सहारे यहां के रईसों, अमीर- उमरावों और रजवाड़ों- रियासतों को आपस में मनमुटाव पैदा करके एक दूसरे से अलगाया जाने लगा।
डाक बंगलों और जबरन हथियाए गए महलों- हवेलियों में बेशकीमती शराब बहाते ये अफ़सर देर रात तक बैठते और एक से एक कुटिल चालें सोचते ताकि धीरे- धीरे इस संपन्न देश के व्यापार को चौपट किया जा सके और यहां के लोगों को दाने- दाने का मोहताज बना कर अपनी सेनाओं में भर्ती के लिए विवश किया जा सके।
एक शाम एक रजवाड़े के राजा से मिलने के लिए कंपनी के इन हाकिम साहब को भी आमंत्रित किया गया।
हिंदुस्तान में बार- बार आकर घाट- घाट का पानी पी चुके इस अफ़सर के दिमाग़ में तो ढाके की मलमल का ये कारोबार किसी फांस की तरह चुभ रहा था। इसके भारी मुनाफे से उसे जलन होती थी।
उस इलाक़े के राजा साहब ने टर्की की एक बड़ी कंपनी से लाखों अशर्फियों का ये सौदा करने के लिए उस अंग्रेज़ अफ़सर को एक शाम उनके महल में तशरीफ़ लाने की दावत दी। इसी अफ़सर ने राजा को टर्की की इस मालदार कंपनी से मिलवाने का आश्वासन दिया था। राजा को उम्मीद थी कि यूरोप का ये बड़ा सौदा हाथ आने से भारी मुनाफा होगा और इस क्षेत्र की पौ- बारह हो जाएगी। राजा ने अपने इलाके के जुलाहों को इस सप्लाई के लिए माल तैयार करने हेतु बेशुमार रकम भी बांट दी ताकि लोग अपने गोदामों में कपास का भंडारण कर लें और दिन- रात मलमल के थान बनाने में जुट जाएं। बच्चा- बच्चा इस मुहिम में जुटा हुआ था।
लेकिन जिस दिन टर्की के सौदागर से मीटिंग होनी थी उस दिन तमाम लाव- लश्कर के साथ राजा जी मेहमानों का इंतजार ही करते रहे। न सौदागर वहां पहुंचा और न वो कुटिल काइयां अंग्रेज़ अफ़सर ही पहुंचा।
इंतजार करते राजा साहब ने आगबबूला होकर अपने आप को अपमानित महसूस किया। तमाम दरबारियों और शुभचिंतकों के सामने उनकी बेइज्जती हुई। राजा ने तिलमिला कर अपने इस अपमान का बदला तत्काल ही लिया और वो बहुचर्चित सौदा रद्द कर दिया। हज़ारों जुलाहों की महीनों की मेहनत पर पानी फिर गया।
पूरे इलाके में मातम पसर गया। राजा जी मुंह छिपा कर अपने महल में बैठ गए।
इस नुक़सान से आहत होकर जुलाहों का जोश मलमल के इस कारोबार से हट गया और धीरे- धीरे इस व्यवसाय ने दम तोड़ दिया। जुलाहों के गोदामों में कपास पड़ी सड़ती रही और उनके बच्चे, युवा, प्रौढ़ सब बेकार होकर कंपनी की सेना में भर्ती होने के लिए कतारें लगाते रहे। अंग्रेज़ अफ़सर ने मौक़ा देख कर ठीक उसी समय फ़ौज में भर्ती चालू होने के बड़े - बड़े इश्तहार छाप दिए।
जब इंगलैंड से आए कंपनी के आला अफसर बड़े साहब बहादुर ने अपने मातहत अफ़सर से पूछा कि इन लाखों रुपए कमाने वाले लोगों के बच्चे अपना पुश्तैनी धंधा छोड़ - छोड़ कर हमारी फ़ौज में भर्ती होने के लिए आ रहे हैं, ये करिश्मा तुमने कैसे किया? तो उसने गर्व से बताया - सर! ये सब चूहे बिल्ली का खेल है।
- हम कुछ समझे नहीं! साहब बहादुर सिर खुजाते हुए बोले।
- सर, जैसे हमारे लोग डॉग पालते हैं, इस इलाक़े के लोग बिल्लियां बहुत पालते थे। घर - घर में बिल्ली। एक दिन यहां के राजा ने मुझे मिलने के लिए बुलाया। वो टर्की से ढाके की मलमल का एक बहुत बड़ा डील करना चाहता था। पर मैं उससे मीटिंग के लिए गया ही नहीं। वो मेरा इंतजार करते - करते बहुत नाराज़ हो गया और उसने डील कैंसिल किया।
राजा के लोग जब मुझसे इस बेअदबी का सबब जानने के लिए आए तो मैंने उन्हें बताया कि तुम्हारे इलाक़े की बिल्लियां बहुत बदतमीज हैं। मैं तुम्हारे राजा की शान में उस शाम हाज़िर होने के लिए घर से निकला ही था कि एक बिल्ली मेरे घोड़े से तेज़ चलती हुई उसके सामने से निकल गई। इस बेअदबी से मेरा घोड़ा बिगड़ गया और वहीं अड़ गया। मैं उस पर चाबुक फटकारता रहा पर वो आगे खिसका ही नहीं। मैंने सबको कहा कि बिल्ली ने मेरे घोड़े के सामने से निकल कर अपशगुन कर दिया, इससे सारा काम बिगड़ गया।
तत्काल सारे इलाक़े में ये खबर जंगल की आग की तरह फ़ैल गई। लोगों ने अपनी बिल्लियों को मारना या भगाना शुरू कर दिया। देखते - देखते पूरा क्षेत्र बिल्ली विहीन हो गया। नतीजा ये हुआ कि घर- घर में चूहों की भरमार हो गई और उन्होंने कीमती कपास के फूल कुतर डाले।
- ग्रेट! कहकर आला कमान ने बेहतरीन शराब का प्याला टकरा कर उस अफ़सर का इस्तकबाल किया और भरी पूरी आवाज़ में कहा- चीयर्स!!!
सदियां गुज़र गईं पर तभी से इस देश के लोग बिल्ली के रास्ता काटने को बुरा शगुन समझते हैं।
- प्रबोध कुमार गोविल