बाला
बाला का दिल बहुत जोर से धड़़क रहा था। अविरल उसकी प्रतीक्षारत था। उसे बहुत कोफत हो रही थी। अपनी बुजदिली पर मगर वह विवष थी। एक सप्ताह बाद उसकी बारात आनी थी। उसने अविरल से वादा किया था, कि वह सब कुछ छोड़कर उससे विवाह कर दूर चली जाएगी। मगर दिल बैचेन था। अपनी पंरपराओं के चलते वह हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। उसके घर में एक बड़ी शादी योग्य क्वांरी बहन शैला, एक भाई अंबर और विधवा मां सगुनीदेवी थीं। जब वह छोटी थी तभी उसके बाबूजी का देहांत हो गया था।
सब कुछ किसी चलचित्र सा प्रतीत हो रहा था। अविरल से उसकी मुलाकात ऑफिस में काम के दौरान हुई थी। चंद ही मुलाकातों में वह ओर अविरल करीब आ गए। यहां तक कि सुनहरे भविष्य के सपने बुनने लगे थे। तभी अचानक एक दिन घर में हलचल होने लगी। पता चला कि उसकी बड़ी बहन शैला के रिष्ते की बात चल रही है। रिष्ता बुआजी की ओर के ससुराल पक्ष से आया था। उन्हें बिजली विभाग में कार्यरत एक अधिकार्री देवराम के लिए घरेलु सुयोग्य कन्या की तलाष थी। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से एक दिन पहले ही बुआजी मेहमानों को लेकर आ धमकी। दरवाजा बाला ने ही खोला और फिर वह किचिन में चली गई। आनन-फानन के शैला को तैयारकर लड़के के सामने लाया गया। उन्होंने जमकर की गई खातिरदारी का लुत्फ उठाया और फिर आने का कहकर चले गए।
थोड़े समय बाद बुआजी की मार्फत कहलवा भेजा कि उन्हें शैला नहीं बल्कि चंचल बाला पसंद आई है। शादी भी जल्दी ही करना चाह रहे थे। घरवालों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दिया जाए। बाला और अविरल भी अचानक आए भूचाल से परेषान थे। अविरल अभी सेटिल नहीं था, उसके घर में भी वह इकलौता कमानेवाला बेटा था। घर में तीन बहने और विधवा मां थीं। ऐसे में बहनों की जिम्मेदारी पूरी किए बिना खुद का विवाह करने की चुनौती सामने आ खड़ी थी। फिर भी वह बाला को खोने को तैयार ना था। दूसरी ओर बुआजी पीछे़ पड़ी थी कि जिसका रिष्ता मिला है, उसी का विवाह कर दिया जाए। देर सबेर बड़ी का विवाह भी हो ही जाएगा। एक की जिम्मेदरी तो कम होगी। मजबूरी में बाला की मां ने हथियार डाल दिए और कलेजे पर पत्थर रखकर बाला का विवाह तय कर दिया।
उधर अविरल ने अपने दोस्तों की मदद से बाला के साथ मंदिर में शादी की तैयारी कर ली। आज बाला को अपने घरवालों को चकमा देकर सहेली के साथ मंदिर पहुंचना था। तय हुआ था कि बाला की सहेली कुसुम ही विवाह की सूचना दोनो के घरवालों को पहंुचा देगी। बाला और अविरल बाहर चले जाएंगे और थोड़े समय बाद सब सामान्य होने के बाद आकर माफी मांग लेंगे। बाला जाने को तैयार भी थी कि अचानक मां और बहन के चेहरे पर छाई उदासी और कर्ज लेकर उसका विवाह किया जा रहा था। यह देखकर उसकी हिम्मत टूट गई और उसने घरवालों की मरजी से विवाह करने का फैसला कर लिया। कुसुम जब बाला को लेने पहंुची तो बाला ने उसके साथ जाने से इंकार करते हुए कहा कि वह उसका संदेष अविरल तक भेज दे कि वह उसके साथ विवाह नहीं कर सकती और उसे वह भूल जाए। वहां अविरल का दिल बैठा जा रहा था कि अभी तक बाला क्यों नहीं पहुंची। अचानक कुसुम को अकेला आया देखकर अविरल समझ गया कि अब बाला नहीं आने वाली। यूं भी वह इतने दिन से खामोष और सहमी हुई थी। ऐसे में कुसूम का संदेष पाकर अविरल की आंखों से आंसू बह निकले और वह एकदम खामोष हो गया।
निर्धारित दिन बाला की बारात आई विवाह संपन्न हुआ और उलझे मन से बाला विदा हो गई। जहां अविरल से वादा तोड़ने की तकलीफ थी वहीं नए और अनजाने परिवेष में कैसे लोग होंगे इस आष्ंाका में उसका मन डूब रहा था। नए परिवार ने उसे दूसरे दिन से ही चूल्हे-चौके में झोंक दिया। नए घर में न कोई सुख सुविधा के साधन थे और न कोई घरेलु सहायक आदि। पूरे घर के काम उसे अकेले करने पड़ते। कर्कषा सास और नखरीली ननद और उज्ड् गंवार देवर घर में महाभारत मचाए रखते। वहीं ससुर भी कम आतंकी नहीं थे। पति देवराम सीधा तो था मगर अधिकरी नहीं र्क्लक निकला। बाला खामोष रह गई। धीरे-धीरे सब हकीकत बाला के सामने खुलती गई। मायके तक भी खबरें पहंुची मगर अब क्या हो सकता था।
उधर बाला की बड़ी बहन शैला रूप में तो साधारण थी मगर गुणों से भरपूर थी। पड़ोस के एक परिवार के यहां विवाह कार्यक्रम में शामिल होने गई तो वहां उसे एक परिवार ने अपने होनहार बेटे सौरभ जो कि राजस्व विभाग में शासकीय अधिकारी था। उसके लिए पसंद कर लिया। जल्दी ही उसका भी विवाह संपन्न हो गया। सौरभ प्रगतिषील विचारों का युवक था। उसने अपनी पत्नी को प्रतियोगी परिक्षाएं देने के लिए प्रोत्साहित किया। शैला ने भी कडे़ परिश्रम के बाद षिक्षा विभाग में नियुक्ति प्राप्त कर ली।
बाला के दुखों की सीमा न थी। वह तिल तिल कर जी रही थी। अक्सर देवराम भी अपने परिजनों का साथ देने लगता। या चुप्पी साध लेता। एक बार बाला ने किसी बात का प्रतिकार किया तो सभी ने मिलकर उसे इतना मारा कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ गया। उसके बाद कभी मायके जाने की नौबत आती भी तो उसे डरा धमकाकर दो दिन को भेजा जाता। वक्त गुजरता रहा बाला एक बेटी की मां बन गई। उधर अविरल ने भी हालात को स्वीकार कर अपनी पारवारिक जिम्मेदारियों को पूरा किया और अपनी मां की पसंद की एक लड़की से शादी कर ली।
यूं ही दिन गुजरते रहे और बाला ने बड़ी मुष्किल से अपने पति को राजी कर एक दो जगह नौकरी के लिए आवेदन दिया। इंटरव्यू कॉल भी आए मगर सफलता नहीं मिली। एक दिन किसी ऑफिस में इंटरव्यू के दौरान उसका परिचय वहीं एक ओर साक्षात्कार देने आई एक लड़की अनामिका से हुआ। अनामिका नारी स्वतंत्रता की पक्षधर और आत्मविषवास से भरपूर महिला थी। पहली ही मुलाकात में उसकी बाला से दोस्ती हो गईं। अनामिका जिस ऑफिस में विभागाध्यक्ष पदस्थ थी, वहां कुछ पद ओर खाली थे। उसने तुरंत बाला को अपने कार्यलय में आवेदन करने को कहा। बाला ने हामी तो भर दी मगर आवेदन देने की अनुमति उसे ससुराल वालों से नहीं मिली। इसी तरह कोई छह माह का अंतराल गुजर गया। फिर एक बार अनामिका के ऑफिस में खाली पदों की रिक्ति को भरने का विज्ञापन जारी हुआ। इस बार भी अनामिका ने बाला को फोन कर आवेदन देने का कहा। तब तक बाला अपने पति को आवेदन देने के लिए मना चुका थी।
इस बार बाला को इंटरव्यू कॉल मिला और अनामिका ने भरपूर कोषिष की तो बाला को नियुक्ति पत्र मिल गया। अब बारी थी बाला की नौकरी ज्वाइन करने की पहले ही दिन मांग में सिंदूर, हाथ भरकर चूड़ियां पहने और सिर पर पल्ला लिए बाला अपने पर्स को लिए खड़ी थी। अनामिका ने बाला को ध्यान से देखा और मुस्कुरा दी। धीरे-धीरे बाला और अनामिका की दोस्ती गहराती चली गई। बाला को बिना साड़ी के बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। पति, ससुर या देवर कोई छोड़ने आता और लेने भी। संयोग से बाला का घर अनामिका के घर के रास्ते में ही पड़ता था। अनामिका ने उसे लेने और छोड़ने का प्रस्ताव रख दिया। गनीमत थी कि बाला के ससुराल में इस बात पर किसी को आपत्ति नहीं थी। खैर नौकरी की शुरूआत में बाला के पूरी तनख्वाह ससुराल वाले रख लेते। फिर भी वह इस बात पर ही प्रसन्न थी कि इस बहाने उसे चंद घंटे ससुराल के आंतक से तो छुटकारा मिलता है।
थोडे़ अंतराल के बाद अनामिका ने बाला के पति से कहा कि आप लोग इसे एक मोबाइल दिला दे। बहुत दूर आने जाने के साथ कभी देर हो या कोई ओर काम तो आप लोग भी बाला से संपर्क कर सकते हं और जरूरत पड़ने पर बाला भी संर्पक कर सकती है। इससे आसानी ही होगी। जाने क्या सोचकर उसे एक पुराना मोबाइल दे दिया गया। लगभग एक साल के बाद अनामिका ने फिर बाला के पति से कहा कि मुझे इसे लेने और छोड़ने में कोई दिक्कत नहीं मगर जब कभी में अवकाष पर जाती हूं या किसी काम से जल्दी या देर से जाना हो तो बाला को गाड़ी चलानी तो आती ही है। आप क्यों नहीं इसे एक वाहन दिला दे। जिससे यह अपना आना-जाना सुविधाजनक तरीके से कर सकती है। खैर कुछ समय उपरांत उसे वाहन भी दिला दिया गया।
धीरे धीरे अनामिका बाला में आत्मविष्वास के बीज बोती चली गई। फिर बाला ने अपनी तनख्वाह में से कुछ पैसा बचा कर जोड़ना प्रारंभ किया। यह अल्प बचत काम आई और उसने अपने हिसाब से काम करने शुरू किए। पहले बाला को ससुराल वाले मायके भेजते थे सिर्फ एक या दो दिन के लिए। बाद में बाला ने स्वयं निष्चित किया कि वह कब और कितने समय के लिए जाना चाहेगी। अपनी बचत से उसने एक प्लाट भी खरीदा और छोटा सा आषियाना भी बनाया। मगर ईष्वर सब की सुध लेने वाला है। सब दिन होत न एक समान की तर्ज पर ईष्वर ने उसकी मूक प्रार्थना सुनी और हल करने के लिए साधन तैयार कर दिए। अब अगर आप बाला से मिलेंगे तो पहचान नहीं पाऐंगे कि यही वो बाला है जो किसी समय सब दुखों को नियति मानकर सह रही थी। आज खुषी से लबरेज अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर है।
कीर्ति चतुर्वेदी