Nafrat se bandha hua pyaar - 18 in Hindi Love Stories by Poonam Sharma books and stories PDF | नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 18

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नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 18

उसी रात, सबिता ने बस अपनी डॉक्यूमेंट्री "इंजीनियरिंग ऑन मार्वेल्स" सुनना खतम की थी। अपने कान में से इयर फोन्स निकाल कर उसने साइड में टेबल पर रख दिए। उसने अपने कमरे की लाइट्स बंद कर दी। अपने बिस्तर पर लेट कर उसने चादर ओढ़ ली और सोने के लिए अपनी आंखे बंद कर ली। बहुत थके होने के बावजूद भी उसका दिमाग शांत नहीं था जिस वजह से वो सो नही पा रही थी। उसे समझ नही आ रहा था की क्यों उसके दिमाग में इतनी बातें घूम रही है। जहां तक वो जानती थी आज का दिन काफी उतार चढ़ाव वाला ज़रूर था। हां, आज सिंघम परिवार आया ज़रूर था और उसकी बुआ ने बहुत हंगामा भी किया था, लेकिन सौभाग्य से, आज कोई खूनखराबा या किसी प्रकार का तनाव नहीं हुआ था।
दो आदमी, एक सिंघम का और प्रजापति का, उनमें थोड़ी बहस ज़रूर छिड़ गई थी किसी बात पर। लेकिन चूंकि उन्हें पहले से निर्देश दिया गया था, इसलिए उसके बाकी लोग बहस करने वाले पक्षों को रोकने और उन्हें एक तरफ ले जाने में सक्षम हो गए थे ताकि उन्हें चेतावनी दी जा सके कि या तो इस लड़ाई को रोक दें या परिणाम भुगतें।
केवल एक चीज जिसने सबिता को परेशान किया, वह थी फाइनेंसेस। रात के खाने के वक्त, संजय ने उसे आज के पूरे खर्चे के बारे में बताया था। कई महंगे तोहफे प्रजापति मैंशन से सिंघम मैंशन भेज गए थे। सबिथा चाहती थी कि इस तरह के अनावश्यक दिखावे के बारे में अधिक चिंतित होने के बजाय उसकी बुआ अपनी आँखें खोले और प्रजापति लोगों की बुनियादी जरूरतों के बारे में चिंतित हों। ऐसा नहीं था की सबिता नही चाहती हो की अनिका को यह सब तोहफे नही देना चाहिए थे। बल्कि वोह इसका उल्टा सोचती थी। सबिता जानती थी अनिका सच में एक अच्छी और दयालु लड़की है, वोह चाहती थी अनिका को वोह सब कुछ मिले जो वोह चाहती है। और सबिता यह भी जानती थी की अभय सिंघम इतना सक्षम है की वोह आसानी से वोह सब खरीद सकता है जो उसकी पत्नी अनिका का दिल चाहे। लेकिन अफसोस, प्रजापति ऐसा नहीं कर सकते थे। कम से कम जैसा सोचा है वैसा कैनल बनने और शुरू होने से पहले तक तो नही।
सबिता ने थकी थकी सांस लेते हुए अपना फोन उठाया। उसने पहले ही वो पिक्चर्स अनिका को भेज दी थी जो उसने नीलांबरी के कमरे में खींची थी। एक बार फिर वो अनिका की कही हुई बातों के बारे में सोचने लगी।
क्या यह सच हो सकता है की उसके पिता ने अरुंधती सिंघम को नही मारा हो? उसे अपने पिता की कुछ ही यादें याद थी, वोह भी यही कहती थी की उसके पिता ने नही मारा।
हर्षवर्धन प्रजापति प्रेम को महसूस कर सकते थे। वह अपनी बेटी से प्यार करते थे और वह अपनी बहन, भाई और पिता को भी बहुत प्यार करते थे। सबिता ने वोही चाकू अपने तकिए के नीचे से निकला। उसने बहुत ही प्यार से उसके हैंडल पर जड़े हुए पन्ना और माणिक के नागों को छुआ। उसके पिता ने उसे ये चाकू उसके पांचवे जन्मदिन पर दिया था। दूसरी की नजरों में यह एक अजीब तोहफा था लेकिन उसकी नज़रों से यह एक नायाब तोहफा था पांच साल की उम्र में भी और अब भी। सबिता को लगता था अगर उसके पिता निर्दोष साबित हो भी गए तो क्या हो जायेगा, उसकी जिंदगी तो ऐसे ही रहेगी जैसे आज है। हालांकि, अगर वह वास्तव में उस अपराध के लिए निर्दोष थे, तो वह लोगों के बीच अपने पिता के चरित्र और यादों को न्याय दिलाना चाहती थी।
किसने मारा होगा अरुंधती सिंघम को अगर सबिता के पिता निर्दोष हैं तो? सबिता जानती थी अनिका यही साबित करना चाहती है की जरूर नीलांबरी उस मंदिर हत्याकांड के बारे में कुछ जानती है या फिर वोह खुद उसमे शामिल है। सबिता यह भी जानती थी की नीला के लिए किसी को मरना या मरवाना कोई बड़ी बात नहीं है।
लेकिन कई वर्षों तक सुनने और विजय सिंघम के साथ नीला के जुनून का सबूत देखने के बाद, सबिता ने नहीं सोचा था कि नीला कभी विजय सिंघम को चोट पहुंचा सकती है। नीला ने प्रजापतियों को आदेश दिया था कि वे विजय सिंघम के बच्चों को नुकसान न पहुँचाएँ और न ही उन्हें छूएँ।
सबिता ने एक लंबी आह भरी। उसने चाहा था की काश वो अनिका की और मदद कर सकती पता लगाने की, लेकिन वो नही चाहती थी। कम से कम अभी तो नही कर सकती थी। जब तक वोह नही मिल जाते। सबिता की जिंदगी का सबसे पहला मकसद इस वक्त उसे ढूंढना था। उस काम को पूरा करने के लिए उसे बाकी काम इस वक्त नज़रंदाज़ करने पड़ेंगे।
सबिता अपने हाथ में पकड़े फोन की स्क्रीन को देख रही थी। हालांकि वो पढ़ नही सकती थी लेकिन उस में लिखे हुए अक्षरों को वोह ज़ूम कर के देख रही थी। वोह सोच रही थी की विजय सिंघम की ने उन खातों में क्या लिखा होगा। सालों से नीलांबरी सबिता के सामने विजय सिंघम के बारे में बात करती आई थी लेकिन सबिता को विजय सिंघम के बारे में जानने में कभी इतनी उत्सुकता नही हुई जितनी आज हो रही थी। पर अब वो जानना चाहती थी की ऐसा क्या है उस विजय सिंघम में जो इतने सालों से नीलांबरी के सिर पर जुनून सवार है।
सबिता ने याद किया कि कैसे उसकी बुआ ने यूहीं अपना नज़रिया दिया था कि देव सिंघम भी अपने पिता की तरह ही दूसरों का और महिलाओं का भी ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने में सक्षम है। सबिता को देव सिंघम के चार्म को देखना अभी बाकी था लेकिन वोह उसके अंदर महिलाओं को आकर्षित करने की खूबी को नकार नहीं सकती थी। उससे नफरत करने के बावजूद भी, सबिता इनकार नहीं कर सकती थी एक वक्त वोह भी उस पर मोहित हो गई थी। जबकि उसने अपने आगे एक अनदेखी दीवार खड़ी कर रखी थी जिसे किसी को भी तोड़ कर उस तक आने की इजाज़त नहीं थी। लेकिन आज जब देव ने नाराज़गी जताई थी जब उसे पता चला था की नीलांबरी ने उससे भेदभाव किया था क्योंकि उसकी मां एक छोटी जाति की थी तो सबिता ने अपने सामने बनाई उस अनदेखी दीवार में एक बड़ी सी दरार महसूस की। शायद वोह इतना भी बुरा नही है। हो सकता है की वोह एक सिंघम्स का राजकुमार है जिसे एक ढाल में रहना पढ़ता हो लेकिन अंदर से वोह नरम दिल का प्यार करने वाला या फिर सहानभूति रखने वाला अच्छा इंसान हो। शायद देव सिंघम सच में कमीना इंसान न हो जैसा वोह समझती थी।





















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(कहानी जारी है.....कॉमेंट करना न भूले)