श्राप दंड - 5
मैं मंत्रमुग्ध होकर तांत्रिक बाबा के बातों को सुन रहा था। तांत्रिक बाबा के चुप होते ही मैंने अनुभव किया कि मेरे दाहिने गाल पर एक मच्छर बहुत देर से मेरा खून चूस रहा है। अपने गाल पर एक थप्पड़ मरूंगा यही सोच ही रहा था कि , उसी वक्त तांत्रिक बाबा ने एक फूँक से मेरे गाल पर बैठे मच्छर को उड़ा दिया। मच्छर काटने के बाद जो जलन व खुजली होती है तांत्रिक बाबा के फूँक के कारण ऐसा नहीं लग रहा।
तांत्रिक बाबा ने फिर से बताना शुरू कर दिया ,
" रात को अपने बनाए झोपड़ी के कोने में सिमटकर बैठा था। आसमान से बरसात रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। बीच-बीच में बिजली भी गरज रही है । मेरी झोपड़ी के कुछ ही सामने से जमीन थोड़ा ढलान वाला है। उसी ढलान वाले रास्ता को पार करते ही जंगल शुरू हो गया है। इसके अलावा जहां से ढलान शुरू हुआ है वहीं से पथरीली मिट्टी थोड़ा नर्म है। मैंने देखा कि जंगल के बाहर उस ढलान वाले रास्ते से कोई चलता हुआ आ रहा है। बार-बार बिजली चमकने की वजह से मुझे समझ आ गया कि जो भी चलता हुआ आ रहा है वह बहुत ही दीर्घ व शक्तिशाली शरीर वाला मानव है। बिजली चमकने की रोशनी में उस मानव के शरीर की मांसपेशी और भी शक्तिशाली लग रहे थे । वह जितना आगे आता रहा दृश्य उतना ही साफ होता गया। उस आदमी के पूरे शरीर पर कई जगह घाव के चिन्ह हैं। दूर से देख कर ऐसा लगा था कि उस आदमी के माथे से खून टपक रहा है लेकिन नहीं भी हो सकता। अंधेरे में ना जाने क्या देखा ? आसमान में चांद नहीं है इसीलिए आज मिट्टी से भी रोशनी नहीं निकल रही। लेकिन आज वह भीमकाय आदमी जंगल के बाहर है या फिर ऐसा भी कह सकते हो कि वह मेरे सामने से ही चलते हुए गया। शरीर बहुत ही विशालकाय है लेकिन वो शांत स्वभाव के थे। धीरे - धीरे चलते हुए सामने की जलधारा को पार करके फिर से पहाड़ों में कहीं गुम हो गए। मैंने आज भी देखा कि उस आदमी के कंधे पर एक थैली है। मुझे ऐसा लगा कि उस थैले के अंदर छोटे - छोटे पत्थर भरे हुए हैं। थैली भरा हुआ था इसी को देखकर मैंने अंदाजा लगाया । उस रात को मुझे नींद नहीं आई लेकिन भोर के वक्त मुझे थोड़ा नींद लगा था।
सुबह जब मैंने आँख खोला तो चारों तरफ का दृश्य पूरी तरह बदला हुआ था। इस वक्त चारों तरफ झिलमिल करता धूप चमक रहा था। जंगल की तरफ नजर पड़ते ही मैंने देखा कि दो हिरण चलते हुए जा रहे हैं। अपने झोपड़ी से मैं बाहर निकला फिर बाएं तरफ की प्राकृतिक दृश्य को देखकर मैं अचंभा रह गया। आसमान पर रुई जैसे बादल बिखरे हैं और आसमान के नीचे ऊंचे ऊंचे पर्वतों की श्रृंखलाएं खड़ी है। उन पर्वत श्रृंखलाओं के ऊपर जमे बर्फ का रंग इस वक्त हल्का नीला हो गया है। उसी वक्त जंगल के अंदर से एक और हिरण निकल कर सामने के ढलान रास्ते से जाता रहा। इस वक्त आंखों के सामने के सभी दृश्यों को देखकर मुझे ऐसा लगा कि मानो मैं स्वर्ग में हूं। आसपास परिवेश भी यही इशारा कर रहा है। हिमालय के ऊपर सूर्य देव चमक रहें हैं। उसी सूर्य का किरण उस हिरण पर पड़ते ही ऐसा लगा कि मानो वह सोने का हिरण है। दूर एक छोटा जलाशय इसी किरणों के कारण झिलमिल कर रहा है।
अचानक ही मेरी नजर जमीन के एक जगह पर अटक गई। मैं चलते हुए उस तरफ गया। मैंने वहां पर देखा कि एक बहुत ही बड़ा पैर का चिन्ह है। अपने पैर को उस चिन्ह के अंदर डालकर समझ आया कि मेरे जैसे दो-तीन पैर इसमें समा सकते हैं। अब उसी पैर के चिन्ह के पास गिरे हुए एक वस्तु पर नजर गई। मैंने उसे उठा लिया। पहले मुझे समझ नहीं आया कि आखिर वह क्या है। कुछ देर तक उसे देखने के बाद मुझे समझ आया कि यह एकमुखी रुद्राक्ष है। लेकिन यह थोड़ा नर्म था शायद यह पूरी तरह सूखा नहीं था। उसे हाथ में लेकर मैं लौट आया। मैं मन ही मन सोचने लगा कि क्या यहां आस-पास किसी जगह रुद्राक्ष का पेड़ है? कई दिनों के बाद आज बरसात रुकी है अब और यहां नहीं रुक सकता। मैं वहाँ से रवाना होने के लिए तैयार होने लगा। यह झोपड़ी बाद में एक दिशा चिन्ह की तरह काम आएगा। मैं जंगल छोड़ सामने उत्तर - पूर्व की ओर बढ़ता रहा।
शरीर में एक तेज का अनुभव हो रहा है। अभी चलते हुए बहुत दूर जाना है और आगे अभी ना जाने क्या मेरे लिए प्रतीक्षा कर रहा है ? मन में केवल एक ही दौड़ रहा है।
हर हर महादेव, हर हर महादेव। " ...
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प्रोफेसर उपाध्याय ने पृष्ठ से आंख उठाया और फिर आदित्य से बोले ,
" बहुत ही इंट्रेस्टिंग है। अच्छा हुआ कि तुम्हारे दोस्त के दादाजी ने इस डायरी को लिखा था। वरना आजकल ऐसी बातों को जानना संभव नहीं है। लेकिन वह भीम काय मनुष्य आखिर गया कहां ? "
आदित्य ने आंखों के इशारों से समझा दिया कि अभी बहुत सारा पढ़ना बाकी है। अभी पृष्ठ पर पृष्ठ पढ़ते रहिए।
प्रोफेसर उपाध्याय फिर से उन पन्नों में खो गए। उनके शरीर में एक उत्तेजना की लहर दौड़ रही है। आदित्य ने फिर से प्रोफेसर पौधे के पास में बैठ कर उन पन्नों पर नजर दौड़ाने लगा। घटना अभी बहुत सारा बाकी है। जब तक इसका अंत पता नहीं चलता शांति नहीं मिलेगा।
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क्रमशः....