The Lost Man (Part 53) in Hindi Fiction Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | हारा हुआ आदमी (भाग 53)

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हारा हुआ आदमी (भाग 53)

"दीवाली पर आगरा बुलाया है।"
देवेन पहले निशा के साथ आगरा जाता था।माया से अवैध सम्बन्ध स्थापित होने के बाद अकेला आगरा जाने लगा।पहले निशा के बिना जाना पसंद नही करता था।अब निशा को साथ ले जाना पसंद नही करता था।लेकिन चिट्टी आयी थी।इसलिए पत्नी की बात सुनकर बोला,"तुम्हारा क्या इरादा है?"
"मुझे आगरा गए काफी समय हो गया है।मम्मी भी हमारे साथ दीवाली मनाना चाहती है।तो हम जरूर चलेंगे।"
जब पत्नी जाना चाहती थी तो वह कैसे मना कर देता।वह भी उसके साथ जाने के लिए तैयार हक गया।
दिवाली हिंदुओ का सबसे बड़ा त्यौहार है।दीवाली पर दो दिन की छुट्टी थी।उसने दो दिन की छुट्टी और ले ली।
और देवेन पत्नी और बेटे के साथ दीवाली का त्यौहार मनाने के लिए अपनी ससुराल आगरा आ गया।
सुबह वे तीनों बैठे हुए बातें कर रहे थे।तब माया अचानक बोली,"कल गीता भी आयी थी।"
"अच्छा,"निशा अपनी ममी की बात सुनकर बोली,"क्या कह रही थी गीता?"
"मैने गीता को तुम्हारे आने के बारे में बताया था।तब वह कह रही थी।निशा आये तो मेरे से मिलने के लिए जरूर भेज देना।"माया ने गीता से हुई बात बताई थी।
"गीता अभी तो रुकेगी?"निशा ने पूछा था।
"शायद आज या कल चली जायेगी।"
"दीवाली यहाँ नही मनाएगी?"
"नही।ससुराल में ही मनाने के लिए कह रही थी।"
"तो मैं आज ही गीता से मिल आती हूँ।"
"जल्दी क्या है।कल चले जाना?"देवेन ने कहा था।
"हां।कल हो आना।"
"आज ही हो आती हूँ।हो सकता है।वह कल सुबह ही चली जाए।"
और निशा,गीता से मिलने जाने के लिए तैयार होने लगी।देवेन उसके जाने से मन ही मन मे खुश हो रहा था।निशा तैयार होते हुए पति से बोली,"तुम भी चलो।"
"मैं तुम दोनों सहलियो के बीच मे क्या करूँगा।"देवेन बोला,"तुम हो आओ।मैं तो सोऊंगा।"
"जैसी तुम्हारी मर्जी।"
और निशा जाने के लिए तैयार हो गयी।वह जाने लगी,तब माया उससे बोली,"राहुल को यहीं छोड़ जाओ।"
"नही मम्मी।निशा बोली,"अगर मुझे देर हो गयी तो यह नही रहेगा।""
"देवेन तो यहीं है न।"
"इसने अगर एक बार रोना शुरू कर दिया तो इसे चुप कराना इनके बस की भी बात नही है।"
"जल्दी लौट आना।"माया बोली थी।
"हां मम्मी।"और निशा अपने बेटे राहुल को गोद मे लेकर चली गयी।और निशा कुछ ही दूर पहुंची होगी कि देवेन ने माया को बाहों में भर लिया
"यह क्या कर रहे हो?"माया बोली थी।
"प्यार।"
"इतनी भी जल्दी क्या है?कुछ देर के लिए तो ठहरो।"
"प्यार में इंतज़ार कहाँ होता है।"देवेन ने माया को और अपने से सटा लिया।वह माया को अपनी गोद मे उठाकर बेडरूम में ले गया।उसने माया को बेड पर लेटा दिया और खुद भी उसकी बगल में लेट गया।
निशा,राहुल को लेकर सड़क पर आ गयी।वह सवारी का ििनतज़ार करने लगी।उसे कुछ देर बाद रिक्शा मिल गया था।वह रिक्शे में बैठ गयी तब उसे अपने पर्स का ख्याल आया।जल्दी जल्दी में वह अपना पर्स घर पर ही भूल आयी थी।वह रिक्शे वाले से बोली,"रोकना।"
"क्या हुआ मेडम।"
"मैं अपना पर्स भूल आयी हूँ।अभी लेकर आती हूँ।"
निशा,राहुल को रिक्शे वाले के पास छोड़कर पर्स लेने के लिए चली गयी।
देवेन और माया प्यार का खेल खेलने से पहले एक भूल कर गए थे।माया को बेडरूम में उठाकर लाने से पहले देवेन दरवाजा बंद करना भूल गया था।माया का भी ध्यान इस तरफ नही गया था