यात्रा विवरण - सारे तीर्थ बार बार गंगासागर एक बार
हमारी उम्र भी ढल रही थी . अपने मन के लगभग सारे तीर्थ कर चुकी थी , बस एक कैलाश मानसरोवर और दूसरा गंगासागर बाकी रह गए थे . मेरे स्वास्थ्य के चलते कैलाश की यात्रा की अनुमति मुझे नहीं मिल सकती थी .इसलिए हम पति पत्नी ने सोचा कि गंगासागर की तीर्थयात्रा कर लेते हैं . पर बचपन से ही दादी नानी के मुख से सुनती आयी थी - सारे तीर्थ बार बार गंगासागर एक बार , उनकी कथन में कुछ वजन जरूर रहा होगा सो अकेले जाने से मन डर रहा था . इसलिए हमने पति के एक मित्र और उनकी पत्नी से बात की . इत्तफ़ाक़ से उन्हें भी गंगासागर के लिए हमसफ़र की जरूरत थी . बस क्या था ? बात बन गयी .
गंगासागर की कथा - गंगासागर के बारे में स्कूल की किताब में हमने पढ़ा था और बुजुर्गों से भी काफी सुन रखा था . कहा जाता है कि अयोध्या के राजा सागर अश्वमेघ यज्ञ कर रहे थे . उनके यज्ञ को असफल बनाने के लिए इंद्र ने यज्ञ के घोड़ों को चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम में छुपा दिया . राजा की दो रानियां थीं एक से एक पुत्र असमंजस और दूसरी से 60, 000 पुत्र थे . काफी समय बाद भी जब यज्ञ के घोड़े वापस नहीं आये तो राजा सागर के सभी पुत्र उनकी तलाश करते हुए जब कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ों को देखा तो उन्हें मुनि पर बहुत क्रोध आया . उन्होंने मुनि का बहुत अपमान किया . कपिल मुनि भगवान् विष्णु के वंश अवतार थे उन्होंने भी श्राप द्वारा सभी 60, 000 राजकुमारों को तत्काल भस्म कर दिया .
वर्षों बाद तक जब न घोड़े आये न कोई पुत्र तब राजा सागर बहुत चिंतित हुए . उन्होंने अपने पोते अंशुमान को उन्हें ढूंढने को कहा . अंशुमान ने कपिल मुनि की बहुत प्रार्थना की तब वे प्रसन्न हो कर बोले “ यदि राजा सागर का कोई वंशज गंगाजी को इस स्थान पर लाने में सफल होता है तभी जा कर उनके पुत्रों को मोक्ष मिलेगा . अंशुमान और उसके बाद उनका पुत्र दिलीप ने भी अथक प्रयास किया पर उन्हें सफलता नहीं मिली . तब जा कर दिलीप के पुत्र भागीरथ ने घोर तपस्या कर माँ गंगा को प्रसन्न किया पर वे बोलीं “ मैं स्वर्ग से धरती पर आऊँगी पर मेरे प्रवाह को रोकने वाला कोई होना चाहिए . तब भागीरथ ने भगवन शिव की घोर तपस्या की और शिवजी ने गंगाजी को अपनी जटा में रोकने का वचन दिया . तब जा कर मकर संक्रांति के दिन गंगाजी धरती पर आयीं और राजा सागर के 60,000 पुत्रों को मोक्ष प्रदान करते हुए सागर में प्रवेश किया . इसलिए इस जगह का नाम सागर द्वीप और गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है .
वैसे तो कपिल मुनि का प्राचीन मंदिर सागर में समा गया था पर अब एक नया मंदिर उस स्थान पर बना है . संक्रांति के अवसर पर प्रसिद्ध सागर मेला लगता है जो 5 दिनों तक चलता है . इस दौरान सरकार और प्रशासन की ओर से विशेष प्रबंध किये जाते हैं क्योंकि इस बीच देश विदेश से लाखों लोग यहाँ पूजा , तप , श्राद्ध आदि करने आते हैं .
सागर द्वीप कैसे पहुंचे - गंगासागर जाने के लिए सबसे पहले आपको कोलकाता पहुंचना होगा . कोलकाता के किसी भी रेलवे स्टेशन , हावड़ा , सियालदाह या कोलकाता आदि ट्रेन से पहुँच सकते हैं .
हवाई यात्रा - इसके लिए कोलकाता एयरपोर्ट यानि नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंर्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुँच सकते हैं . कोलकाता से आगे आपके पास तीन विकल्प हैं - रोड , ट्रेन या स्टीमर . वैसे आजकल यहाँ से सीधे सागर द्वीप के लिए हेलीकॉप्टर की साप्ताहिक सेवा भी उपलब्ध है . इसे पहले से सुनिश्चित कर लें .
रोड - कोलकाता से आपको अपनी सुविधानुसार बस या टैक्सी द्वारा काकद्वीप या नामखाना जाना होगा . इन जगहों से आपको सागर द्वीप तक जाने के लिए फेरी बोट या स्टीमर मिलेगा . काकद्वीप करीब 90 Km और नामखाना करीब 104 Km है . वहां से आपको विशाल गंगा के उस पार जाने के लिए काचूबेरिया ( काकद्वीप ) या बेनुबन ( नामखाना ) से स्टीमर मिलेगा . इसके आगे सागरद्वीप जाने के लिए आपको बस या टैक्सी लेनी होगी .
ट्रेन -कोलकाता से लोकल ट्रेन द्वारा काकद्वीप या नामखाना पहुँच कर फिर वहां से फेरी द्वारा गंगा के उस पार जाना होगा . ध्यान रहे इस पार ठहरने की व्यवस्था नहीं है .
स्टीमर - हावड़ा स्टेशन के सामने फेरी स्टेशन है जहाँ से करीब 5 घंटे में सीधे सागर द्वीप भी जा सकते हैं .
निजी कार द्वारा - आप चाहें तो अपनी निजी कार से भी सीधा सागर द्वीप तक जा सकते हैं . इसके लिए अपनी कार से हार्डवुड पॉइंट या नामखाना पहुंचना होगा . यहाँ से आप और आपकी कार को फेरी द्वारा गंगा नदी ( जिसे वहां मुरीगंगा या हुगली भी कहा जाता है ) के उस पार जाना होगा . पर इसके लिए कोई निश्चित समय नहीं है . जब हाई टाइड ( ज्वार भाटा ) आएगा तभी फेरी को अनुमति मिलेगी .
अब हम चलें गंगासागर - हमने संक्रांति की भीड़ से बचने के लिए फरवरी महीने के पहले सप्ताह में अपनी यात्रा का प्लान बनाया . वैसे सितम्बर से अप्रैल तक का समय इस यात्रा के लिए उपयुक्त है . मेले के दौरान बस या टैक्सी वाले भी कुछ ज्यादा भाड़ा तो लेते ही हैं पर फेरी स्टेशन से काफी पहले ही छोड़ देते हैं . वहां से आगे फिर पैदल जाना होता है .
हमारी यात्रा का डे वन
हम चार बुजुर्गों ने मिल कर आसान रास्ता तय किया .हमने पहले ही एक रेंटल कार वाले से बात और रेट तय कर लिया था . रेंटल कार वालों की फिक्स्ड रेट है जो कार की चुनाव , घंटों और किलोमीटर तक आप चलते हैं - इन पर निर्भर है . पहले तो अपने शहर से ट्रेन द्वारा कोलकाता ( हावड़ा ) शाम को पहुंचे वहां से रेंटल कार द्वारा गेस्ट हाउस पहुंचे ,जिसे हमने बुक कर रखा था . उसी कार को तड़के सुबह भी आना था जिस से हमें काकद्वीप पहुंचना था .
हमारी यात्रा का डे टू
हमलोगों ने सुबह फ्रेश हो कर मॉर्निंग टी लिया और फिर छः बजे ही कार से काकद्वीप के लिए चल पड़े . करीब साढ़े तीन घंटे के सफर के बाद कार से काकद्वीप पहुंचे . कार हमने उस दिन रात 12 बजे तक के लिए बुक कर लिया था . कार इसके आगे नहीं जा सकती थी . फेरी से कार के साथ ही हम गंगा नदी पार कर सकते थे . पर इसके लिए घंटों हाई टाइड का इंतजार करना पड़ता जिसके लिए पहले से ही ज्वार भाटा की तिथि और समय की सूचना होनी चाहिए .
कार को वहां रेंटल पार्किंग लॉट में पार्क कर ड्राइवर को शाम तक हमारे लौटने तक इन्तजार करने को कहा . हमने एक पैसा भी एडवांस पेमेंट नहीं किया था पर उस कम्पनी से पहले भी तीन चार बार कार बुक किया था और अच्छे संबंध थे .
करीब 40 मिनट के बाद हम गंगा के उस पार पहुंचे . इसके बाद सागर आइलैंड से गंगासागर तक करीब 32 Km का सफर रोड द्वारा तय करना था . इसके लिए बस और टैक्सी या प्राइवेट कार की सुविधा जरूर है पर टैक्सी फेयर पहले से ही तय कर लें क्योंकि यहाँ मोलभाव होता है . रेट पीक या ऑफ सीजन पर भी निर्भर करता है . हमने एक मारुती वैन दोनों तरफ के लिए ठीक किया . करीब 45 मिनट बाद हम चारो गंगासागर के निकट बस टर्मिनल पहुंचे जहाँ से आगे कोई कार या टैक्सी आदि नहीं जाती है . गंगासागर तीर्थ स्थल अभी 2 Km दूर था . यहाँ से हमने रिक्शा वैन लिया जो करीब आधा किलोमीटर पहले छोड़ देता है . वहां से बालू पर चल कर सही गंगासागर स्थल पहुंचना था .
हम थक गए थे इसलिए बस टर्मिनस पर हमने डाब ( नारियल पानी ) पी लिया था . धीरे धीरे चल कर कुछ ही मिनटों में हम अपने गंतव्य स्थल पहुँच ही गए . चूंकि कोई पीक सीजन या मेला सीजन नहीं था इसलिए भीड़ नहीं थी फिर भी छिटपुट करीब करीब 200 यात्री तट पर थे . वहां कुछ पंडे या पंडित एक अस्थायी टेंट का शेड डाल कर एक चौकी रखते हैं . हमने अपना डेरा वहीँ जमाया , एक छोटे बैग में एक सेट ड्रेस रखा था गंगा स्नान के बाद पहनने के लिए बाकी सामान कार में ही छोड़ दिया था , सामान के नाम पर एक सेट कपड़े टूथ पेस्ट ,साबुन आदि थे . हमने पता कर लिया था कि सामान ज्यादा होने से खुद कैरी करना पड़ता है .
यही वह जगह है जहाँ माँ गंगा सागर में यानि बंगाल की खाड़ी में मिलती है .गंगा नदी और सागर के पानी के अलग अलग रंग स्पष्ट देखा जा सकता है . हमने कुछ डुबकियाँ लगायीं पर मुंह का स्वाद पानी के खारापन के चलते बहुत नमकीन हो गया .इसके लिए हमने बैग में पानी की बोतलें पहले ही रख ली थी . पूजा पाठ की रस्म जल्द समाप्त कर हमें वापसी यात्रा पर निकलना था . हमें पांच बजे के पहले ही वापस काकद्वीप कार पार्किंग पहुंचना था .
कुछ ही मिनटों में हम कपिल मुनि के नए मंदिर में थे . वहां औपचारिक पूजा पाठ की रस्में पूरी कर फिर वापस रिक्शा वैन से ISCON मंदिर गए . यह कपिल मुनि मंदिर से करीब आधा किलोमीटर दूर है . यहाँ हमने पहले से लंच बुक किया था . यहाँ उचित मूल्य पर अच्छा खाना उपलब्ध है . भोजन के बाद हम फिर मारुती वैन तक गए और वहां से फेरी स्टेशन .
एक बार फिर गंगा पार कर काकद्वीप फेरी पॉइंट आये . वहां तक पहुँचते पहुँचते शाम के साढ़े चार बज गए थे . फिर उसी रेंटल कार से हावड़ा स्टेशन पहुँचते पहुँचते रात के नौ बज गए . हमने कार का बिल पे किया और स्टेशन परिसर में प्रवेश किया . अभी भी हमारे पास दो घंटे थे क्योंकि हमारी वापसी की ट्रेन रात के 11 बजे के बाद थी . हावड़ा स्टेशन कैफेटेरिया में ही हमलोगों ने डिनर किया और फिर अपने ट्रेन का इंतजार करने लगे. जैसे ही ट्रेन लगी अपनी कोच में जा कर हम सभी अपनी अपनी बर्थ पर बेड खोल कर बेसुध जा गिरे . बेचारे टी टी को भी शायद हमलोगों पर दया आयी होगी . उसने हमें जगा कर टिकट नहीं माँगा .
हमारी यात्रा का डे थ्री - जब हमारी नींद खुली यात्रा का तीसरा और अंतिम दिन था . बस दो घंटे में हमारा शहर आने वाला था . हमने ब्रश कर मॉर्निंग टी लिया और बाकी की दैनिकचर्या अपने घर पहुँचने पर ही पूरा किया
सारे तीर्थ बार बार गंगासागर एक बार क्यों ? - आजकल आवागमन की सुविधा बढ़ जाने से गंगा सागर यात्रा उतना कठिन नहीं है .पहले यहाँ तक पहुँचने के लिए लोगों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था . मेला के दिनों में काफी भीड़ हो जाती है जिसे नियंत्रित करना आसान नहीं है . गंगा सागर देश का अंतिम पूर्वी क्षेत्र है , बंगाल की खाड़ी के पार बंगला देश है . समुचित खानपान , रख रखाव और सफाई की व्यवस्था करना भी भी बहुत कठिन है . सागर द्वीप और ख़ास कर गंगासागर के आसपास समुचित सुविधाएं नहीं हैं . मेले के दौरान भगदड़ , नाव दुर्घटना या मेले में संक्रमण फैलने की आशंका रहती है . कहा जाता है कि कुम्भ मेले के बाद सबसे ज्यादा भीड़ भी यहीं होती है .
फिर भी आपको पूरी यात्रा एक दिन में पूरी कर लेना ही बेहतर है . काकद्वीप या नामखाना में ठहरने या खाने पीने की समुचित व्यवस्था नहीं है . वैसे अगर आपके पास ज्यादा समय है तो पहले से प्लान कर सुंदरवन की सैर कर सकते हैं . सुंदरवन का एक हिस्सा बंगलादेश में पड़ता है . यह गंगा डेल्टा ( मुहाने - नदी का त्रिभुजाकार क्षेत्र जो तीन तरफ से नदी से घिरा हो और नदी के सागर में विलय के पहले होता है ) का एक भाग है . यहाँ नेशल पार्क , टाइगर रिजर्व और बायोस्फेयर रिजर्व पार्क और विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव ( सदाबहार ) फारेस्ट हैं जो दर्शनीय हैं . इनके अतिरिक्त जगह जगह ऊँचे ऊँचे वाच टावर बने हैं जिन पर चढ़ कर सुंदरवन की सुंदरता का आनंद ले सकते हैं . इसके लिए विशेष तैयारी और यात्रा किट की जरूरत पड़ती है .
समाप्त
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