६.ऑफिस में पहला दिन
रुद्र रात को अपनें दोस्तों के साथ मस्ती मज़ाक के बाद सुबह ऑफिस आया। उसकी सब से पहले ऑफिस आ जानें की आदत थी। लेकिन आज़ कोई उससे भी पहले यहां मोजूद था। मतलब की थी। क्यूंकि रूद्र से पहले आनेवाली अपर्णा थी। रुद्र उसे इस वक्त यहां देखकर चौंक गया।
"तुम तो बनारस जानेवाली थी। फिर इतनी सुबह यहां?" रुद्र ने हैरान होकर पूछा।
"जानेवाली थी लेकिन चाची ने कहा कि मुझे इतनी दूर जाने की जरूरत नहीं है। वो मेरा एक दोस्त मुंबई आ रहा है तो चाची उसके साथ ही मेरा बाकी का सामान भेज देगी। फिर कुछ दिनों बाद रक्षाबंधन आ रहा है तो तब जाना ही है। इसलिए मैं नहीं गई।" अपर्णा ने कहा।
"लेकिन इतनी सुबह में ऑफिस के बाहर क्या कर रही हो?" रुद्र ने फिर हैरानी से पूछा।
"पहले ही दिन लेट नहीं आना चाहती थी। इसलिए जल्दी आ गई। लेकिन यहां आकर पता चला कि शायद कुछ ज्यादा ही जल्दी आ गई।" अपर्णा ने नजरें झुकाए कहा।
"वैसे ऑफिस का टाइम तो साढ़े आठ बजे का ही है। लेकिन इस टाइम पर सिर्फ मैं ही आता हूं। बाकी के लोग पापा के आने के बाद आते है। क्यूंकि उनका टाइम नौ बजे का है।" रुद्र ने ऑफिस के दरवाज़े का लॉक खोलते हुए कहा। सिक्योरिटी गार्ड दोनों को बातें करते सुन रहा था। वह दोनों को साथ में देखकर मुस्कुरा रहा था। जो रूद्र ने देख लिया।
"तुम अंदर जाओ मैं अभी आता हूं।" रूद्र ने अपर्णा से कहा। वो अंदर चली गई तो रुद्र गार्ड की ओर बढ़ गया।
"तुम ऐसे क्यूं मुस्कुरा रहे हो?" रुद्र ने गार्ड के सामने खड़े होकर पूछा।
"क्यूंकि मैं बहुत सालों से यहां का गार्ड हूं। लेकिन आज़ से पहले सुबह-सुबह ही आपको किसी के साथ इतना शांति से बात करते नहीं सुना। फिर आपसे पहले किसी को ऑफिस में इतनी जल्दी आते नहीं देखा। इसलिए आज़ आपको अपर्णा मैम के साथ देखकर खुद को मुस्कुराने से रोक नहीं पाया।" गार्ड ने सहजता से कहा।
"वो जो अंदर गई ना वो मुझसे से भी ज्यादा खतरनाक है। ये अभी तुम्हें पता नहीं है। जब बोलना शुरू करें तो रुकती नहीं है और गुस्से में उसकी बड़ी-बड़ी आंखें और भी बड़ी हो जाती है।" रुद्र ने फुसफुसाते हुए कहा।
"क्या सर! आप भी क्या कह रहे है? वो बेचारी कितनी शांत है।" गार्ड ने रुद्र की बात हवा में उड़ाते हुए कहा।
"डेमो देखना है तुम्हें?" रुद्र ने बाहर की ओर आती अपर्णा को देखकर पूछा।
"दिखाईए।" गार्ड ने भी इंटरेस्ट दिखाते हुए कहा।
रुद्र गार्ड को वहीं छोड़ अपर्णा की ओर बढ़ गया। वह फोन में कुछ देखती हुई चली आ रही थी। रुद्र ने जान बुझकर उसके पैर के बीच अपना पैर रखा और अपर्णा फोन के साथ नीचे गिर गई। उसने कपड़ों पर लगी मिट्टी साफ करते हुए उल्टे पड़े फोन को हाथों में लिया तो पता चला फोन की स्क्रीन टूट गई थी। वो गुस्से से उठी तो रुद्र कहने लगा, "आई एम सॉरी, मैंने जान बूझकर नहीं किया था।"
"हां हां तुम तो कभी कुछ जान बुझकर करते ही नहीं हो। मैं ही बेवकूफ हूं जो तुमसे टकरा जाती हूं।" अपर्णा ने आंखें बड़ी-बड़ी करके गुस्से से कहा।
"अरे यार सच कह रहा हूं। मैंने कुछ जानबूझकर नहीं किया।" रूद्र ने मासुमियत से कहा।
"देखो मैं कोई तुम्हारी यार नहीं हूं। फिर पूरी दुनिया में क्या मैं एक ही तुम्हें परेशान करने के लिए मिलती हूं? जब से मिले हो मुझे इरिटेट ही कर रहे हों। तुम्हारी आखिर प्रोब्लेम क्या है? कभी खुद गिरते हों कभी मुझे गिरा देते हो। होटल से ये सोचकर निकली थी कि ऑफीस का पहला दिन है तो शांति से काम करुंगी। पहले ही दिन अच्छा इंप्रेसन पड़े इसलिए जल्दी उठकर ऑफिस आई। लेकिन तुमने सब कबाड़ा कर दिया। सुबह-सुबह ही ये सब हो गया तो पता नहीं आगे का दिन कैसा जायेगा?" कहकर अपर्णा ने जैसे ही दरवाजे पर खड़े गार्ड को देखा। वो आंखें फाड़े खड़ा था। अपर्णा पैर पटकते हुए तुरंत अंदर चली गई।
रुद्र ने गार्ड के पास आकर पूछा, "क्या बबूआ! कैसा लगा डेमो? अब पिक्चर देखना चाहोगे या इतने में चलेगा?"
"इतने में चलेगा और नाही देखना। वो कहते है ना जो जितना शांत उतना ही बड़ा बवाल मचाता है। ये भी कुछ वैसी ही है।" गार्ड ने कहा तो रुद्र हंसने लगा।
रुद्र के पापा के आते ही रुद्र अपनी केबिन में चला गया। उनके बाद सारे स्टाफ मेम्बर्स आने लगे। अपर्णा अपनी डेस्क पर जाकर बैठ गई। जो कि रुद्र की केबिन के बिल्कुल सामने था। केबिन का दरवाजा पूरा कांच का बना हुआ था। इसलिए रुद्र अपनी केबिन में बैठकर ही अपर्णा को देख सकता था। उसकी नाक अभी भी गुस्से से लाल थी। तभी रुद्र को कुछ याद आया तो उसने अपर्णा को ऑफिस के फ़ोन पर फोन करके अंदर बुलाया।
"जी, हम अंदर आ जाएं?" अपर्णा ने दरवाज़े पर खड़े होकर पूछा। उसका गुस्सा अभी तक उतरा नहींं था। ये उसकी आवाज से पता चल रहा था। रुद्र ने आने का इशारा किया तो वह अंदर आकर खड़ी हो गई।
"ये तुम्हारे अपार्टमेंट की चाबी है। हमारे यहां जो लोग काम करते है। उन सब को हम एक फ्लैट रहने के लिए देते है। तो तुम आज़ ही वहां शिफ्ट हो सकती हो।" रुद्र ने एक चाबी अपर्णा की ओर बढ़ा दी।
"ठीक है।" अपर्णा ने इतना कहकर चाबी ली और चलीं गईं।
"जे तो साला बहुते बड़ा कांड हो गया लगता है। गार्ड को इसका गुस्सा दिखाने के चक्कर में मैं खुद फंस गया। अब बस ये डैड के सामने कुछ ना ही बोले तो अच्छा है।" अपर्णा के जाते ही रुद्र बड़बड़ाने लगा।
अपर्णा पूरा दिन काम में लग रही। उसे इतनी शिद्दत से काम करता देख ऑफिस का सारा स्टाफ हैरान था। क्यूंकि आज़ तक किसी ने पहले ही दिन में इतना काम नहीं किया था। अपर्णा चाहें कितना भी गुस्सा क्यों ना करती हो। लेकिन रुद्र को भी उसका काम बडा पसंद आया था। अपर्णा ने उसे एक ही दिन में रियलाइज करवा दिया था कि उसने अपर्णा को काम पर रखकर कोई गलति नहीं की थी।
(क्रमशः)
_सुजल पटेल