यह कहानी का भाग 6
इस्पेक्टर के निर्देशानुसार , रात भर पुलिस की टीम जिस्म के दलालों को गिरफ्तार करने में जुटी रहती है।
सुबह के वक्त,
इस्पेक्टर , " विकास चौधरी का क्या हुआ, वह मिला या नहीं"
हवलदार , " सर अभी तक उसका कोई अता-पता नहीं है"
अर्जुन , "सर मुझे जाने दीजिए , मैं भी उसे ढूंढने जाना चाहता हूं , शायद मैं उस तक पहुंच जाऊं"
इस्पेक्टर , " चुपचाप बैठा रह, आज तुझे कोर्ट में पेश करके तेरा रिमांड लूंगा , फिर देख तू , सब कुछ उगल देगा की तूने लड़कियों को कहां बेचा है"
अर्जुन,, " इस्पेक्टर आप मुझ पर भरोसा क्यों नहीं कर रहे" और गिड़गिड़ा उठता है।
इस्पेक्टर , " इसकी पुरानी फाइल निकालो, और मुझे दिखाओ मैं फिर से पढ़ना चाहता हूं"
और हवलदार , अर्जुन की 8 साल पुरानी फाइल निकाल कर देता है , इसमें उसके अपराध का काला चिट्ठा होता है,,,
इंस्पेक्टर , उसकी फाइल खोलकर पढ़ना शुरू करता है,,,
अर्जुन, " इस्पेक्टर उस फाइल को मत पढ़िए , मैं आपको खुद अपनी हिस्ट्री बताता हूं,,,"
इस्पेक्टर ,, उसकी तरफ नजर उठा कर देखता है , " यह बात तूने सही कही, चल अपने मुंह से ही बता अपनी कहानी"
अर्जुन , अपने पिछले घटनाक्रम में डूब जाता है , और इंस्पेक्टर को बताने लगता है,,,,
12 साल का ही था जब मैं, मेरे माता-पिता का साया मेरे सर से उठ गया ,, धीरे-धीरे मैं शहर के अपराधियों के नजदीक आता चला गया ,, शुरुआत में मैंने अफीम बेचना शुरू किया ,, पर जल्द ही पुलिस के हत्थे चढ गया और मुझे बाल सुधार गृह भेज दिया गया,, वहां 6 महीने रह कर मैं बाहर निकला और फिर से अपराधी लोगों के साथ मिलकर,, शराब की तस्करी मैं लग गया , बस ऐसे ही समय बीत रहा था, कभी जेल और कभी बाहर"
और जब मैं 16 साल का हुआ , जिस्म का आकर्षण मुझे जिस्मफरोशी के धंधे में ले आया , लड़कियों को उठाकर उनके जिस्म से खेलना और फिर उन्हें जिस्म के सौदागरों को बेचने का काम करने लगा"
और ऐसे ही एक दिन,,,,
अज्जू, उस कॉलोनी में एक सुंदर लड़की आई है, 10- 12 साल की है , अगर उसे उठा लेंगे तो काफी पैसा मिलेगा "
चंपक , " अगर ऐसी बात है तो, उस पर नजर रखते हैं मौका मिलते ही उसे उठा लेंगे"
भोला ," ठीक है हम तीनों समय-समय पर उसकी निगरानी करेंगे ,"
और तीनों मिल बांट कर उस पर नजर रखने लगते हैं,,,
अज्जू उर्फ अर्जुन , उस लड़की पर नजर रखना शुरू करता है जब घर से निकलती है , कहां जाती है, और इसी नजर रखने के चक्कर में , उसे वह लड़की अच्छी लगने लगती है, उस लड़की की नजर भी कई बार अज्जू से मिली ,, और दोनों के होठों पर मुस्कान आ जाती थी ,, शायद कुछ था दोनों के बीच में,, दूर से ही एक हल्का फुल्का प्यारा सा नजरों का रिश्ता",,,,,
और फिर 1 दिन,,,
भोला , " आज शाम को से पार्क से उठा लेंगे"
अज्जू , का मन नहीं होता ,पर फिर भी उसे साथ देना पड़ता है,,
और फिर तीनों उस लड़की को उठाकर , अपने अड्डे पर ले आते हैं,
चंपक, " यार यह तो बहुत सुंदर है , मेरा तो इस पर दिल आ गया है, इसे बेचने से अच्छा है पहले इसके साथ मस्ती कर ली जाए"
भोला , " हा ठीक कहते हो , मेरा भी यही इरादा है"
अज्जू, कुछ बोल नहीं पा रहा था ,,,
और फिर उन दोनों ने , उस लड़की को बुरी तरह से लूट डाला, वह लड़की कई बार अज्जू की तरफ देख रही थी , उसे लग रहा था वह वो उसे बचा लेना,,,
चंपक, " जा अज्जू,, अब तू भी ऐश कर ले ,, फिर इसे बेचने ले चलेंगे"
अज्जू ,,माना कर देता है, उसका दिल रो रहा था,,,
भोला , " यह तो बड़ा शरीफ बन रहा है ,चल फिर लड़की को ले चलो"
वह लड़की तो उठाते हैं , पर लड़की मर चुकी थी,,,
अज्जू को तो जैसे प्राण सूख गए थे , वह ना चाहते हुए भी, इस दरिंदगी में शामिल हो गया था,,,
भोला , " अबे यह तो मर गई ,अब ठिकाने लगाना पड़ेगा "
चंपक ,, " तो क्या हुआ ,पहले भी कितनी ऐसी लड़कियों को हमने दफनाया है , आज एक और सही , चल बे अज्जू लड़की को बोरे में भर"
अज्जू उसकी बात सुनकर हिला तक नहीं,, तीनों ने मिलकर कई अपराध किए थे ,,, कई बार मासूम बच्चियों को दफनाया था ,, पर आज अज्जू के अंदर हिम्मत नहीं हो रही थी ,,,,जाने क्यों वह लड़की उसे अब भी अपनी तरफ देखती नजर आ रही थी ,,,,इस आशा से की वह उसे बचा लेगा ,,,,,पर अज्जू ने उसे नहीं बचाया ,,,उसने उसे लूटने दिया, मरने दिया दरिंदों के हाथों ,,,वह मूकदर्शक बना देखता रहा,,,,
भोला और चंपक उसे ठिकाने लगाने निकल जाते हैं,,,
और पीछे अज्जू बुरी तरह रो पड़ता है ,,," मैं यह क्या काम कर रहा हूं,, कितना नीचे गिर चुका हूं मैं ,,,पर अब नहीं,,,, मैं पुलिस को सब कुछ बता दूंगा",,,,,,
और वहां से निकलकर ,,पागलों की तरह भागता हुआ पुलिस स्टेशन पहुंच जाता है,,,,
और वहां चीख -चीख कर ,सबको इस हैवानियत के बारे में बता देता है।
सब पुलिस वाले उसकी बात सुनकर दंग रह जाते हैं,,,
इस्पेक्टर उसे सरकारी गवाह बना लेता है,,,
अज्जू उन्हें शहर के अलग-अलग ठिकानों के बारे में बताता चले गया, और उन लोगों की पहचान भी कर देता है,, फिर शहर से जिस्मफरोशी के उस धंधे का नामोनिशान मिटा दिया जाता है,,,
अज्जू को भी बाल सुधार गृह भेज दिया जाता है ,,, और 2 साल की सजा होती है ,,,जेल में ही उसने मोटर मैकेनिक का कोर्स कर लिया था"
और जब वह जेल से बाहर आया ,, तब 18 साल का था,, सरकार ने उसे अच्छा जीवन जीने में मदद की,, उसे बैंक से लोन दिला कर, बाइक सर्विस सेंटर खुलवाया"
अज्जू अब अर्जुन बन चुका था , और समाज के बीच में समाज सेवा का काम भी करने लगा था , और वह यह काम छोटी बच्चियों के लिए ही कर रहा था, क्योंकि उसके मन में आत्मग्लानि थी कि एक छोटी बच्ची का अपहरण करके उन्होंने उसका मर्डर कर दिया था,,
और इसी बात का प्रायश्चित करने के लिए उसने अर्जुन संस्था का निर्माण किया , जो इस महानगर में गुम हुई बच्चियों को उनके मां-बाप तक पहुंचाती थी , ताकि ऐसी बच्चियां बुरे लोगों के हाथ में ना लगे , और गलत धंधों में ना धकेल दी जाए"
और पिछले 4 साल से उसने , सैकड़ों बच्चों को उनके मां-बाप से मिलवाया था,,,
अर्जुन अपने ख्यालों से बाहर आ जाता है ,, " बस इस्पेक्टर यही है मेरी जिंदगी"
इंस्पेक्टर , उसकी बात सुनकर , जाने किन भावनाओं में बह जाता है , और
" चल मेरे साथ , अगर तुझे विकास चौधरी पर शक है तो उसे ही पकड़ते हैं , तुझे मैं अकेला नहीं जाने दे सकता , क्योंकि पब्लिक तुझे नुकसान पहुंचा सकती है , शायद मार भी दे"
अर्जुन, " ठीक है इस्पेक्टर साहब चलिए , मेरे साथ,,, मैं उसे कहीं से भी ढूंढ निकाल लूंगा"
क्रमशः
विकास चौधरी ने बच्चियों का क्या किया जाने के लिए बने रहे