Vo Pehli Baarish - 17 in Hindi Fiction Stories by Daanu books and stories PDF | वो पहली बारिश - भाग 17

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वो पहली बारिश - भाग 17

"बस बहुत हो गया!! इस बार तो मैं कहीं नहीं भूलने वाला कुछ।", गुस्से में दरवाज़ा खोलता हुआ ध्रुव बोला।

"हहमम..", कुनाल सुनते हुए बोला।

"हहमम.. तू पूछेगा भी की क्या हुआ की ऐसे ही कुछ भी बोले जाएगा।"

"मैं नहीं पूछूंगा, तो कौन सा तू नहीं बताएगा। कौन सी बात पे लड़ लिया आज, पुणे रहने की बात पे या काम की बात पे..."

"वो नहीं यार.. ये निया है वो ना मुझे पागल कर देगी, पता नहीं कौन सी महुरत में मिली थी.. जब से मिली है परेशान ही कर रखा है।"

"क्या किया निया ने??"

"उसने आज तो हद ही कर दी, वो कहीं जाकर बोल आई, की पहली बारिश वगरह सब बकवास है।"

"ओह..", कुनाल थोड़ा शांत सा होकर बोल ही रहा होता है, की उतने उसका फोन बज जाता है। "ओए.. मेरा फोन बज रहा है, ज़रूरी कॉल है एक, मैं बाद में बात करता हूं।"

ये बोलते ही कुनाल अपने कमरे से दूसरे कमरे में भाग जाता है।

***********************

"यार.. ये ध्रुव ना, तुझे सही लगता है क्या वो?"

"हां.. मतलब मैं समझी नहीं की तू ऐसा क्यों कह रही है?" रिया निया के सवाल का जवाब देते हुए बोली।

"ओह.. तूने उसकी वो पहली बारिश वाली बकवास नहीं सुनी होगी ना।"

"अअमम.. मुझे उसके बारे में पता है।"

"बस इतना ही, तुझे ये सब बकवास नहीं लगता क्या?"

"अ.अ.अ.. नहीं, उसके पास अपने पॉइंट्स है अपनी बात को प्रूफ करने के लिए।"

"यार.. इतना पढ़ने के बाद भी तू बता, तू ये बात कैसे मान सकती है, आई मीन.. बिल्कुल बकवास है ये, बारिश कैसे डिसाइड कर सकती है की हम क्या करेंगे.. और पता है..."

"निया.. निया.. ", रिया आंखों से पीछे की तरफ़ इशारा करते हुए बोली।

"रिया, तुम्हारा पार्सल, यहां रख के जा रहा हूं", पीछे खड़ा हुआ ध्रुव बोला और बाहर निकल गया।

"अब्बे.. तू पहले नहीं बोल सकती थी क्या?", निया ध्रुव के जाते ही बोली।

"बोल तो रही थी, तू सुने तो.."

"निया निया की जगह ध्रुव ध्रुव भी तो बोल सकती थी। और ये दरवाज़ा क्यों खुला हुआ था।"

"तू ही तो जा रही थी, बाहर डस्टबिन रखने।", निया के हाथ में उठाए हुए डस्टबिन की तरफ़ इशारा करते हुए रिया बोली।

"ओह हां।", डस्टबिन उठा कर बाहर रखने जाते हुए निया बोली।

***********************
अगले दिन ऑफिस में, निया को जहां नीतू का टेंशन सता रहा था, वहीं ध्रुव उसके पास आकर पूछता है।

"सोसायटी का एक्सेस कार्ड मिला?"

"नहीं.. कल तो जितनी बार भी आई हूं, छुपते छुपाते ही आए फिर।"

"ध्यान से देखो, मिल जाएगा।", अपना हाथ ऊपर दिखाते हुए ध्रुव बोला।

"हा.. हां, ये तो मेरा कार्ड है। तुम्हारे पास??..", उसके हाथ में चमचमाते हुए कार्ड को देख कर निया बोली।

"ओह.. मिल गया कार्ड। बहुत बढ़िया", ध्रुव निया को चिड़ाते हुए बोला।

"मुझे दो, मेरा कार्ड..", निया ध्रुव के हाथ की तरफ हाथ बढ़ाते हुए थोड़े ज़ोर से बोली।

"ऐसे कैसे!!", ध्रुव अपना हाथ और ऊपर करते हुए बोला।

"तो फिर?"

"मेरी एक छोटी सी शर्त है।"

"क्या?"

"तुम्हें हमारे कंपटीशन में हार माननी होगी।"

कार्ड पकड़ने की कोशिश करती हुई निया अपने दोनो हाथों को मोड़कर कर ध्रुव के सामने खड़े होकर बोली।

"लड़ने से पहले ही हार मान ली। ऐसा कुछ नहीं करने वाली मैं, मिस्टर ध्रुव, अब तो मैं भी तुम्हें हरा कर ही दम लुंगी। तब फिर तैयार हो जाना ये कार्ड वापस करने के लिए।"

"ठीक है, कर लो तुम भी कोशिश। में दी बेस्ट पर्सन विन।", ध्रुव भी कार्ड को नीचे ला कर अपने पॉकेट में रखते हुए बोला।

"समझता क्या है ये अपने आप को, इसे तो मैं बताऊंगी..", ब्रेक आउट रूम से बाहर आती हुई निया खुद से बोल रही होती है, की तभी उसका कंधा नीतू को लग जाता है। "ओह.. सो.. सॉरी मै"म।"

"इट्स ओके.. वैसे बताती बहुत है आप मिस निया, आई हॉप इतना ही काम भी करती होंगी।"

"जी मै"म।"

अपनी लड़ाई के चक्कर में निया और ध्रुव नीतू के गुस्से को तो भूल ही गए थे। पर मीटिंग में जाने की बात सुन कर दोनो को पिछले दिन हुआ सब याद आ गया था।

मुंह लटकाए दोनो मीटिंग रूम में जाकर बैठ गए।

"यहां बैठे लोग, मुझे कभी नाराज़ नहीं करते है।", नीतू एक बार चंचल और सुनील और फिर निया और ध्रुव की तरफ़ देखते हुए बोली। "खैर मैं आपको बताना चाहती हूं, की अब आपके पास एक महीने का समय है, अच्छे से कमर कस लीजिए और काम पे ध्यान दीजिए। आज से हर दो दिन में मेरे साथ एक मीटिंग होगी, और सारे अपडेटस दिए जाएंगे। क्योंकि एक महीने बाद वाली मीटिंग में मेरे बॉस भी होंगे, तो मैं नहीं चाहती की कुछ गड़बड़ हो।"

**********************

"एक कॉफी प्लीज..", ऑफिस में कॉफी खत्म हो गई थी, तो निया नीचे की कॉफी शॉप पे जाकर बोलती है।

"सॉरी मै'म.. कॉफ़ी की मशीन में कोई दिक्कत है, तो आपको 10-15 मिनट वेट करना होगा।"

"ठीक है।", निया साइड में जाकर बैठी ही थी, की अचानक उसने सामने से कुनाल को जाते हुए देखा।
वो एक लड़की के साथ जा रहा था, या अगर सही से बोला जाए तो उस लड़की के पीछे, पर क्योंकि उसने हाथ में उसका बैग पकड़ा हुआ तो पता लग रहा था, की वो साथ है।

5 मिनट बाद जब कॉफी ढूंढते हुए ध्रुव भी वहां पहुंचा तो निया ने पूछा।

"कुनाल से मिलने आए हो?"

"उससे क्यों मिलूंगा, उससे तो मैं रोज़ ही मिलता हूं। और वैसे भी उसकी नाइट शिफ्ट है, तो मजाल है किसकी की उसे सुबह उठा दे।"

"हां, किसी की तो है।"

"मतलब?"

"मतलब, अभी देखा मैंने उसे, किसी के साथ था वो यही था।"

"कुछ भी, मैडम चश्मा लगवाओ तुम।"

"वो देखो.. वो देखो ना।", ध्रुव का हाथ पकड़ कर निया उसे बाहर ले जाने के लिए भागती है। बेशक फासला बस दो ही कदम था, पर बिना कुछ समझे ध्रुव भी, निया की ओर देखते हुए साथ भागता है।

"वो देखो।", हाथ से इशारा करके निया ध्रुव को दिखाती है।

"क्या?", आंखे बड़ी करके ध्रुव देखता है, और जेब से फोन निकाल कर कुनाल को फ़ोन करने लगता है।

पहली दो बार कुनाल जहां फोन उठता नहीं है, और तीसरी बार उसके फोन उठाते ही, ध्रुव पूछता है।

"कहां है तू?"

"घर पे, क्यों कोई और ऑर्डर आना है??"