अभी तक आपने पढ़ा बार-बार 'आई विल किल यू' की पर्चियाँ चिपकी हुई मिलने से नवीन को लगने लगा कि यह काम उसके साथ कॉलेज में पढ़ने वाली लड़की निकिता ही कर रही होगी। निकिता वही जिसे उसने प्यार के साथ घूमाया फिराया पर विवाह की बात आने पर उसने दहेज की लालच में निशा के साथ विवाह कर लिया था और निकिता को धोखा दे दिया। अब तो नवीन को भी डर लगने लगा था।
निशा के यह कहने पर कि कोई उन्हें मार डालेगा नवीन ने कहा, “नहीं-नहीं निशा तुम डरो नहीं।"
उसके बाद वे दोनों घर आ गए. डोर बेल बजाई तब कजरी ने दरवाज़ा खोला। नवीन अब तो कजरी की तरफ़ आँख उठाकर भी नहीं देख पाता था। उसकी हिम्मत ही नहीं होती थी। वे अंदर आ गए, कजरी ने जल्दी से दोनों को पानी दिया और चाय बनाकर ले आई। चाय पीने के बाद निशा ने बैग खाली करने के लिए जैसे ही उठाया, उसे वही पर्ची दिखाई दे गई, जो एयरपोर्ट पर नवीन ने देखी थी पर निकालने की कोशिश करने के बाद भी उसे निकाल नहीं पाया था। निशा की ज़ोर से चीख निकल गई।
"नवीन यह देखो वही पर्ची लेकिन यह पुरानी लग रही है। बहुत ज़्यादा गम से चिपकाई गई है। यह कब और किसने लगाई होगी? बोलो नवीन?"
"पता नहीं निशा, मुझे लगता है जाने के वक़्त ही किसी ने चिपकाई होगी शायद एयरपोर्ट पर किंतु मुझे दिखाई नहीं दी । वह तो आते वक़्त मेरे हाथ से सूटकेस गिरा तब ही मैंने देखा। निशा मेरे पीछे बुर्के में दो औरतें खड़ी थीं। शायद …!"
नवीन को झकझोरते हुए निशा गुस्से में चिल्लाई, "किस से दुश्मनी है तुम्हारी? क्या भूतकाल में तुम्हारे जीवन का कोई राज़ है, जो तुम मुझसे छुपा रहे हो? क्या पहले किसी से प्यार व्यार का चक्कर? तुमने मुझसे क्या-क्या छुपा कर अपने सीने में दफ़न कर रखा है बताओ मुझे? क्या तुम सच में नहीं जानते कि यह कौन कर रहा है? इतनी बड़ी दुश्मनी और तुम्हें याद ही नहीं। याद करो नवीन, याद करो?"
"इस तरह लिखते-लिखते कहीं किसी दिन सही में कोई…!"
"नहीं निशा कहने और करने में बहुत फ़र्क होता है।"
"क्या कॉलेज में तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड थी नवीन?"
नवीन उलझन में पड़ गया, जवाब देने के बदले उसने कहा, "छोड़ो, आने दो पर्चियाँ, कुछ नहीं होने वाला . . .।"
"नहीं नवीन पहले मेरी बात का जवाब दो?"
"हाँ निशा कॉलेज में एक लड़की थी निकिता। हम दोनों प्यार करते थे।"
"फिर-फिर क्या हुआ नवीन? तुमने उससे शादी क्यों नहीं की? सच-सच बताना नवीन, तुम्हें मेरी कसम ।"
नवीन सकपकाया, उसका गला सूख रहा था, वह चुप था।
"बोलो नवीन चुप क्यों हो? क्या तुमने उसे धोखा दिया? उसके साथ सब कुछ. . ."
"नहीं-नहीं निशा ऐसा कुछ नहीं हुआ, यह झूठ है।"
". . . तो फिर सच क्या है नवीन?"
"तुम्हारे पापा कार और बहुत सारा दहेज दे रहे थे। बस उसी लालच ने मुझे. . ."
"तुम्हें मजबूर कर दिया प्यार उससे, शादी मुझसे. . ."
"नहीं निशा वह तो टीन-एज का प्यार था। प्यार क्या आकर्षण मात्र था, उसमें कोई गहराई, कोई ठहराव नहीं था। प्यार तो मैं तुमसे ही करता हूँ।"
"तो क्या यह सब वही कर रही है, तुम्हें ऐसा लगता है?"
"पता नहीं निशा, जब कोई सामने आएगा तब देखा जाएगा।"
इसी बीच एक दिन नवीन जब ऑफिस से घर आया और उसने बेल बजाने के लिए जैसे ही हाथ उठाया उसे अंदर से कजरी की आवाज़ सुनाई दी। नवीन ने कान लगाकर सुनने की कोशिश की। कजरी किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी। कजरी कह रही थी, "नहीं आज नहीं आ सकती, आज मुझे बहुत काम है।"
उसने फिर कजरी को कहते हुए सुना, "तुम समझते क्यों नहीं हो? अच्छा बताओ, वह काम हो गया जो मैंने तुम्हें करने को कहा था।"
उस तरफ़ से क्या कहा गया, यह तो नवीन नहीं सुन पाया लेकिन वह यह अवश्य ही समझ गया कि कजरी का कोई बॉयफ्रेंड भी है। लेकिन कजरी उसे क्या काम करने को कह रही थी। शक़ करने के लिए नवीन को यह एक नया कारण मिल गया। वह सोचने लगा, इसका मतलब कजरी बदला लेने के लिए. . . पर यह बात वह निशा से तो कह ही नहीं सकता था।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः