Saheb Saayraana - 7 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | साहेब सायराना - 7

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साहेब सायराना - 7

हमारी फिल्मी दुनिया की ये फितरत है कि ढेर सारे फिल्मकार यहां सफ़ल होने के लिए तरह- तरह से ज़ोर आजमाइश करते रहते हैं। भांति- भांति के प्रयोग करते रहते हैं।
अगर कोई बहुत सफ़ल हीरो है और बड़ी कामयाब हीरोइन है तो लोगों को लगता है कि अब इन दोनों को एकसाथ मैदान में उतारा जाए ताकि कामयाबी के दुगुनी होने की आशा रहे। ऐसे में न तो उनकी उम्र देखी जाती है और न ये देखा जाता है दोनों अलग - अलग जोनर के लोग हैं, अलग - अलग मिजाज़ के एक्टर्स हैं। बस, फिल्मकारों को तो उनकी एकसाथ उपस्थिति से ही मतलब रहता है। उत्तर की हीरोइन और दक्षिण के हीरो, डांस करने वाला हीरो और फाइट करने वाली हीरोइन, उर्दू बोलने वाला हीरो और कन्नड़ बोलने वाली हीरोइन, सब एकसाथ हो जाते हैं।
अप्रैल फूल, दूर की आवाज़, आई मिलन की बेला जैसी फ़िल्मों ने सायरा का बाज़ार दमदार बना दिया था। आई मिलन की बेला तो अपने समय की बहुत कामयाब फ़िल्म थी। सायरा बानो को इसमें दो नायकों- राजेंद्र कुमार और धर्मेंद्र के साथ उतारा गया था। राजेंद्र कुमार तब लोकप्रिय नायक थे और धर्मेंद्र तब उभर रहे थे। सुंदर कर्णप्रिय गीतों से सजी इन फिल्मों को दर्शक पसंद भी खूब कर रहे थे।
उधर दिलीप कुमार की ब्लॉकबस्टर सफ़लता के बाद उनके लिए नए- नए कथानक, नए - नए चेहरे तलाशे जा रहे थे। ऐसे में एक निर्माता महाशय दिलीप कुमार को सायराबानो के साथ अनुबंधित करने के ख़्याल से दिलीप साहब के दर पर भी पहुंच गए।
लेकिन सायराबानो का नाम सुनकर दिलीप कुमार का कहना था कि वो??
वो तो बच्ची है अभी! उसके साथ क्या कहानी बनेगी भला?
निर्माता दिलीप साहब का इशारा समझ गया और मामला ठंडे बस्ते में चला गया। एक गीतकार को तो इस पूरे प्रकरण से एक पॉपुलर गीत लिखने का आइडिया मिल गया। उसने लिख डाला- तुम कमसिन हो, नादां हो, नाज़ुक हो, भोली हो... सोचता हूं मैं कि तुम्हें प्यार ना करूं।
लेकिन दिलीप साहब की जोड़ीदार मधुबाला जहां रोग से ग्रस्त होती जा रही थीं वहीं सायराबानो प्रेमरोग की गिरफ्त में थीं।
उनका कहना था- छोटी सी उमर में है लग गया रोग, कहते हैं लोग, मैं मर जाऊंगी!
निर्माता निर्देशकों ने भी मीडिया के ढोल- नगाड़ों से ये ताड़ लिया कि कुछ न कुछ तो होकर रहेगा। उन्होंने दिलीप कुमार और सायरा बानो को लेकर कहानियां तलाशने का जोश ठंडा नहीं होने दिया।
उधर सायराबानो एक से एक शोख़, चंचल और चुलबुली भूमिकाएं कर रही थीं इधर दिलीप कुमार को भी डॉक्टरों ने सलाह दे डाली कि जनाब, ट्रेजेडी किंग की गंभीर दुःखभरी भूमिकाओं से तौबा कीजिए वरना डिप्रेशन में जाने की नौबत आ सकती है।
लोगों ने देखा कि दिलीप साहब कॉमेडी भूमिकाओं में भी नज़र आने लगे हैं। लीडर, संघर्ष जैसी बोझिल फ़िल्मों के बाद दिलीप कुमार ने कुछ हल्की- फुल्की फ़िल्मों में भी काम किया और दर्शकों के जेहन में दिलीप सायरा के व्यक्तित्व के अलगाव की छवि कुछ धूमिल पड़ने लगी।
लेकिन ये बात भी अब तक जगजाहिर हो चुकी थी कि दिलीप कुमार अपने संकोची शर्मीले स्वभाव के कारण ज़्यादातर मुस्लिम अभिनेत्रियों के साथ ही ज़्यादा सहज अनुभव कर रहे थे। मधुबाला और मीना कुमारी के बाद उनकी जोड़ी वहीदा रहमान, मुमताज़ जैसी हीरोइनों के साथ भी जम रही थी। ऐसे में सायरा बानो के शुभचिंतक और ख़ुद मैडम सायरा भी चाहने लगे थे कि उन दोनों की कोई फ़िल्म साथ- साथ आए।
दिलीप कुमार की फ़िल्म गंगा जमना ज़बरदस्त हिट रही थी जिसमें उनके साथ वैजयंती माला थीं जिन्होंने मद्रासन होते हुए भी अवधी- भोजपुरी बोलकर दर्शकों का दिल जीत लिया था। उसी चाशनी का स्वाद कई निर्माताओं के जेहन में अब तक खलबली मचा रहा था। खिचड़ी पक रही थी, कहानियां ढूंढी जा रही थीं।
और तब आया वो मौक़ा...!