मानव मन भी विचित्र है और मानव तन भी!
हर इंसान वही ढूंढता है जो न मिले।
उन्नीस सौ चौवालीस में जन्म लेने वाली सायरा ने बचपन से ही अपने पिता को मिस किया क्योंकि वह हिंदुस्तान छोड़ कर पाकिस्तान जा बसे थे। जबकि उनकी मां हिंदुस्तान में ही थीं। उनके पिता भी फ़िल्मों से ही जुड़े थे। यहां तक कि एक बार उनके माता - पिता ने मिल कर एक फ़िल्म निर्माण कंपनी भी बनाई थी। पर शायद उन्हें इस उपलब्धि में आनंद नहीं आया। वो चले गए।
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि बहुत कामयाब या होनहार लड़कियों को मन से अपनाने वाला जीवन साथी मुश्किल से ही मिल पाता है। हां, तन और धन से अपनाने वालों की कमी कभी नहीं होती।
उस दौर की सुपरस्टार कही जाने वाली नसीम बानो ने अब अपना पूरा का पूरा ध्यान अपनी बेटी सायरा बानो के कैरियर पर लगा दिया। उन्होंने सायरा की शानदार शिक्षा के लिए उन्हें पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेजा था किंतु सायरा बानो केवल स्कूली शिक्षा ही वहां पूरी कर सकीं और उन्हें भारत में बहुत कम उम्र में ही फिल्मों की पेशकश हो जाने से उनके अभिनेत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया। उनमें अभिनय प्रतिभा चाहे जितनी भी हो, स्टार मैटेरियल तो भरपूर था ही।
लेकिन अब तक साधारण सफ़लता पाते आ रहे शम्मी कपूर को सायरा बानो का साथ रास आया और उनके साथ बनी फ़िल्म "जंगली" शम्मी कपूर के कैरियर की भी एक जबरदस्त हिट फ़िल्म साबित हुई। दर्जन भर से ज़्यादा फ़िल्में कर चुके शम्मी कपूर को सफ़लता अभी तक केवल "तुमसा नहीं देखा" और "दिल देके देखो" में ही मिली थी। जंगली ने भव्य कामयाबी के झंडे गाढ़ दिए।
सायरा बानो एक सफ़ल स्टार मानी जाने लगीं। उन्हें बड़ी फ़िल्में मिलने लगीं। देश की आज़ादी के बाद एक ट्रेंड ये भी चल पड़ा था कि अधिकांश मुस्लिम अभिनेत्रियों ने हिंदुस्तान के फ़िल्म जगत में रहते हुए अपने स्क्रीन नाम बदल लिए थे और हिंदूबहुल दर्शकों के मद्देनजर अपने हिंदू नाम रख लिए थे। सुपरस्टार की हैसियत रखने वाली मधुबाला और मीना कुमारी ऐसे ही नाम थे। किंतु सायरा बानो ने अपने नाम के साथ ऐसा कोई प्रयोग नहीं किया। वे अपने मूल नाम से ही विख्यात हो गईं।
लेकिन जॉय मुखर्जी, विश्वजीत जैसे नायकों के साथ नाच गाने वाली हल्की- फुल्की फ़िल्में करते हुए भी उनके मन में दिलीप कुमार जैसे धीर- गंभीर एक्टर के लिए सम्मान भी बढ़ता गया और एकतरफा प्यार भी।
ये एक संयोग ही था कि जिस साल सायरा बानो का जन्म हुआ उसी साल दिलीप कुमार की नायक के रूप में पहली फ़िल्म रिलीज़ हुई। "ज्वारभाटा" फ़िल्म से प्रवेश करने वाले दिलीप कुमार अंदाज़, पैग़ाम, उड़न खटोला, अमर, मधुमति, मुगले आज़म, कोहिनूर और गंगा जमना जैसी एक से बढ़कर एक बेहतरीन फ़िल्में करके फ़िल्म जगत के सिरमौर बने हुए थे। वे सायरा बानो से पूरे बाईस साल बड़े थे।
शायद उनकी छवि में पिता से दूर हो गई सायरा एक प्रेमी के साथ- साथ एक संरक्षक की छवि भी देखती थीं। एक "फादर फिगर" कहीं न कहीं उद्दाम प्रेमी की उनकी कल्पना में ठाठें मारता था, और उनके तन- मन को भिगोता था। मनोवैज्ञानिक विद्वतजन वैवाहिक रिश्तों में स्त्री पुरुष के बीच होने वाले अस्वाभाविक उम्र अंतराल के पीछे प्रायः ये कारण देते रहे हैं और इसी आधार पर बड़ी उम्र की महिलाओं के कम उम्र के युवकों से विवाह करने को भी "मदर फिक्सेशन" जैसी मानसिक ग्रंथि से जोड़ कर देखा जाता है।