"ज्यादा तारीफ मत करी।ऐसा कुछ नही है।"
"अगर ऐसा न होता तो लाखों दीवानन होते आपके।"
"यह सब शंकरजी की मेहरबानी है।"
संगीता, राजन के व्यक्तित्व से प्रभावित हुई और राजन तो उसकी आवाज का दीवाना था।पहली मुलाकात में ही दोनो दोस्त बन गये।और धीरे धीरे उनकी दोस्ती बढ़ने लगी।संगीता जब फ्री होती राजन के घर अगर उसकी शूटिंग चल रही होती तो फ़िल्म के सेट पर पहुंच जाती।
शंकर को संगीता की राजन से बढ़ती नजदीकियों से दिल को ठेस लगी।वह संगीता को चाहने लगा।प्यार करने लगा था।वह संगीता को अपनी बनाना चाहता था।लेकिन उचित समय पर वह अपने दिल की बात बताना चाहता था।पर वह अपने प्यार का इजहार कर पाता उससे पहले संगीता, राजन को चाहने लगी थी।
राजन के सम्पर्क में आने के बाद संगीता के व्यहार में भी परिवर्तन आया था।पहले वह शंकर से रोज मिलती थी।अगर व्यस्त होने की वजह से मिल नहीं पाती तो फोन जरूर करती थी।अब ऐसा नही होता था।संगीता का समय अब राजन के साथ गुज़रने लगा।आदमी की स्वभाविक मनोवृति है,जिसे वह चाहे,प्यार करे उसे दूसरे मर्द के साथ देखना नहीं चाहता।संगीता जिसे शंकर ने फर्श से उठाकर अर्श तक पहुंचाया।वो ही संगीता अब राजन को चाहने लगी थी।
संगीता की बेवफाई से शंकर के दिल को गहरी ठेस लगी।संगीता को भुलाने के लिए शंकर ने शराब का सहारा लिया।शराब की लत बुरी होती है।अगर एक बार लग जाये तो आदमी इसमें डूबता चला जाता है।और एक दिन उसने अखबार में पढ़ा।संगीता ने राजन से सगाई कर ली है।इससे इतना व्यथित हुआ कि पागल सा हो गया।वह रात दिन शराब के नशे में डूबा रहने लगा। बेटे की हालत देखकर मां को बड़ा दुख हुआ।वह बेटे के गम में मर गयी।मां के मरने के बाद एक दिन शंकर मुम्बई से चला गया।शंकर के इस तरह चले जाने पर संगीता को भी आश्चर्य हुआ।
राजन कलकत्ता का रहने वाला था।वे राजन की शादी कलकत्ता से करना चाहते थे।उन्होंने संगीता और राजन की शादी की तारीख निकलवा ली।राजन शादी से कई दिन पहले कलकत्ता चला गया।संगीता ने शादी से दो दिन पहले ट्रेन से कलकत्ता पहुंचने का प्रोग्राम बनाया।और वह निश्चित दिन रवाना हो गयी।
आगे ट्रेन एक्सीडेंट हो जाने के कारण कलकत्ता मेल एक छोटे से स्टेशन पर रुकी थी।तभी संगीता को गाने की आवाज सुनाई पड़ी
ए दुनिया वालो
औरत होती है बेवफा
मतलब निकल जाने पर
संगीता को आवाज कुछ सुनी सी लगती है।
"यह कौन गा रहा है?"संगीता ट्रेन से उतरकर एक आदमी से पूछती है।
"कोई प्यार का मारा है।किसी औरत की बेवफाई ने उसे तोड़ दिया और यहां चला आया।कोई नहीं जानता कौन है?"
संगीता आवाज की दिशा में चली जाती है।गाने की आवाज आ रही है।वह एक झोंपड़ी के पास पहुंचती है।बाहर पेड़ के नीचे एक आदमी बैठा गाना गा रहा है।बड़े बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी औऱ गन्दे फ़टे कपड़े।बदला हुआ हुलिया फिर भी संगीता उसे पहचान जाती है,
"शंकर,"संगीता उस से लिपट जाती है,"मैने तुम्हे कितना ढूंढा।यह ठुमने क्या हाल बना रखा है"
"तुम अब राजन की हो।"
"नही शंकर।मैं आज जो भी हूं।ठुमने ही मुझे उस मुकाम पर पहुंचाया है।तुम अगर प्यार का इजहार कर देते तो मैं राजन से
और काफी देर तक गिले शिकवे होते रहते है।कलकत्ता जाने वाली ट्रेन छूट जाती है।
मुम्बई जाने वाली टर्न आ जाती है।संगीता, शंकर के साथ उसमे आकर बैठ जाती है।