कैंपिंग इन धी फोरेस्ट
जंगलबूक, एपोकलिप्स नाउ, किंगकोंग, टार्जन या जुमांजी वेलकम टू जंगल ये सारे जंगल से जुड़े मूवीज़ दिखने में कितने अच्छे लगते है ना? पर क्या जंगल में रहना इतना आसान होता है?
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महाराष्ट्र में हो और कैंपिंग के बेस्ट प्लेसिस को एक्सप्लोर न किया हो वो हो ही नहीं सकता। ऊपर से में तो पुणेकर। कैंपिंग के लिए पावना झील वो सबसे बड़ियां और मज़ेदार जगहों में से एक है। यहां भारत के अलग अलग राज्य से भिन्न भिन्न प्रांतों के भिन्न भिन्न लोग आते है खास करके मानसून में। यहां सिर्फ कैंपिंग ही नहीं पर बोटिंग, ट्रैकिंग, बॉनफायर, राफ्टिंग और भी बहुत अच्छी एडवेंचर एक्टिविटी की जा सकती है।
ये जगह वीकेंड में दोस्तों के साथ हैंगआउट करने के लिए एकदम बेस्ट प्लेस है। पावना एक विशाल झील है, जो चारो और हरियाली से पूर्ण है। आसपास दूर दूर तक पहाड़ और घने जंगल ही है। यहां रहने के लिए रिसॉर्ट और आसपास में खाने के लिए ढाबे का अरेंजमेंट ही। इस झील की खास बात यह है कि, यहां आपको लोनावला की तरह भीड़भाड़ नहीं दिखाई देगी। और आप शांति से अपनी छुट्टियों को अपने परिवार या दोस्तों के साथ एन्जॉय कर सकेंगे। रात के समय झील के करीब, चारों और पहाड़ों के बीच, प्रकृति मां की गोद में छोटे छोटे टेंट में रहने का बड़ा मज़ा आता है।
पिछले मानसून की ही बात है। में अपने फ्रेंड्स के साथ पावना झील कैंपिंग के लिए गई थी। हम वही टेंट में रात रुकने वाले थे। ट्रिप एक ही दिन का था। पर उस एक दिन में न जाने क्या क्या देख लिया।
शनिवार सुबह ५ बजे निकलकर हम पहले लोनावला गए। वहां हम ओवरफ्लो हो रहे भूशी डेम गए। उसके बाद लायन हील, फ़िर हम सीधे लोहगढ़ फोर्ट गए। वहीं रास्तें पर हमने खाना खाया और फ़िर हम फोर्ट जाकर सीधे पावना लेक चले गए।
बारिश ज़ोरो से चल रही थी। हमने बारिश में ट्रैकिंग और बोटिंग दोनों का मज़ा उठाया। वहीं झील के नज़दीक तंबू गाडकर बैठे हम सब बातें करने लगे और साथ में हमने साथ लिया था वो कुछ नाश्ता भी खा लिया। हम २० लोग थे। १० लड़कियां और १० लड़के। धीरे धीरे सूरज की रोशनी पर चांद की चांदनी ने अपनी ठंड की चादर बिछा दी। पहाड़ों के बीच पता ही नहीं चला कहां दिन बीत गया और रात हो गई। हम सब बहोत मज़ा कर रहे थे। खासकर में। मेरा ध्यान गेम्स खेलने में कम आसपास देखने में ज्यादा था।
हम मेगी, उपमा, पोहा जैसे कुछ रेडी टू कुक के पेकेट्स लाए थे बस वही बनाकर खाने लग गए। साथ में कोक, चिप्स, नमकीन और कुछ नाश्ता करके रात का खाना निपटा लिया। उसके बाद हम सबने चेंज करने के बाद बॉनफायर किया। और उसके आसपास सब बैठकर अंताक्षरी खेलने लगे। अंताक्षरी खेलते खेलते हम सब ऊब गए और कुछ थ्रिलिंग करने का सोचा। थ्रिलिंग करने के लिए कहीं दूर जाने की कहां जरूरत थी। जंगल पास में ही तो था। सब जाने को तैयार थे। पर मैंने मना कर दिया क्यूंकि पूरा दिन इतना चलने और लोहगढ़ फोर्ट पर ट्रैकिंग के बाद मुझमें हिम्मत ही नहीं थी की में थोड़ा भी चलूं। मेरा सुनकर प्राची और कहान ने भी जाने से इन्कार कर दिया। हम तीनों के अलावा सब मोबाइल की टॉर्च लेकर निकल पड़े। गार्ड ने साफ़ मना कर दिया था की वहां जाना मना है और रात को सांप या जंगली जानवर से खतरा भी हो सकता ही पर सबको भूत सवार था थ्रिलिंग का और निकल पड़े। में अपने टेंट में जाकर लेट गई। में जानती थी प्राची और कहान सिर्फ़ रंगरलिया मनाने रुके है तो प्राची के पास जाने का कोई मतलब नहीं था। आख़िर वो दोनों सबके सामने ही एक टेंट में अंदर गए थे। ऑफिशियल बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड जो ठहरे। मैं तो जाकर घोड़े बेचकर सो गई।
कुछ ही देर में मैंने बाहर किसीके खटखटाने की आवाज़ सुनी और मैंने उठकर दरवाजा खोला तो सामने यजुर था। यजुर और मेरे सामने? मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था उस वक्त। हम सब कॉलेज में साथ में पढ़ते थे। यजुर हमारी कॉलेज का ही नहीं पर शायद पूरे पुणे का एकदम हेंडसम, होशियार और अमीर लड़का था। मुझे कॉलेज के पहले दिन से सिर्फ यजुर पर ही क्रश रहा था। पर वो किसी लड़की को भाव नहीं देता था। उसकी वजह तो कोई नही जानता। पर वो सबसे अलग था। इस कैंपिंग के लिए आने का एक मात्र मकसद यजुर ही था। यजुर को जानने का और उसके करीब रहने का और कोई मौका नहीं था। पूरी टूर दौरान मैं यजुर की गाड़ी में ही बैठी थी। और उसके इर्दगिर्द ही घूम रही थी।
"अंदर आ सकता हूं।" यजुर ने मीठी मुस्कान देकर कहा।
"हां।" दो मिनिट उसे घूरने के बाद मैं सिर्फ इतना बोल पाई।
यजुर ठीक मेरे सामने खुर्शी पर बैठा था। पता नहीं उसे इतना करीब अकेले में देखकर मुझे बड़ी शरम आ रही थी। उसकी गहेरी काली आंखें, सुर्ख होंठ, चेहरे का तिल, हाथ में कड़ा, ऊंचा कद, गोरा रंग और सिल्की काले घने बाल। उससे नज़र हटती ही नहीं थी। मेरा उसे घूरता देख उसने खांसने का नाटक किया। चुप्पी तोड़ते हुए वो बोला।
"अंदर ही बैठे रहे तो... बहार टहलने चले?" यजुर ने शरमाते हुए कहा।
मैंने झटसे हामी भरदी। पहले तो मैं जंगल में थ्रिलिंग के लिए जाना नहीं चाहती थी और यजुर के साथ जाने को तुरंत तैयार हो गई।
मौसम वाकेहि बहोत अच्छा था। खास कपल्स के लिए। बारिश के बाद वाली ठंडी हवा, खुला आसमान और घना जंगल, दूर दूर तक कोई नहीं।
"पर तुम तो सबके साथ गए थे ना?"
"गया तो था फ़िर मन नहीं माना तो आ गया वापस।"
"मतलब?"
"मतलब ये कि प्राची और कहान तो साथ में थे पर तुम अकेली। तो..."
उसकी बात सुनकर दिल में इतना सुकून मिल रहा था कि क्या बतलाऊ।
हम बहार थोड़े आगे निकले ही थे कि हमें सब सामने से आते हुए दिखे। और उन्होंने बताया कि गार्ड ने आगे जाने से मना कर दिया। जंगल में रात के समय खतरा हो सकता है इस लिए। उनकी बात सुनकर मेरा मुंह उतर गया क्यूंकि में यजुर के साथ अकेले में जाना चाहती थी। पर मेरा मूड यजुर भांप गया और उसने सबसे कहा कोई बात नहीं हम दोनों बस आगे थोड़ी रोशनी है वहां तक जाकर वापस आते है। सब जा रहे थे तब रोशनी और शीतल ने मुझे अंगूठा दिखाकर बेस्ट विशीस दिए। यह देख आगे चलते हुए यजुर ने हस्ते हुए पूछा, "तो कबसे चल रहा है ये सब।"
"क्या?"
"वहीं जिसके लिए अभी इशारे हो रहे थे मेरी पीठ पीछे।"
मुझे शरम भी आ रही थी और हसीं भी निकल रहती। समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोलूं। यजुर मेरे करीब आया और हवा में लहरा रहे मेरे सारे बालों को समेटकर मेरे दाएं कंधे पर एक और कर दिया। उसकी छुअन से मेरी आंखें बंद हो गई। मैं उसकी और करीब गई और मैं तो हवाई किल्ला बना रही थी कि अभी कुछ होगा पर थोड़े आगे खड़े होकर यजुर ने आवाज़ दी।
"ख्याली पुलाऊ खा लिए हो तो अब चले या कुछ करके ही मानोगी?"
उसकी बातें सुन रोमरोम में स्फ्रुति हो रही थी। यजुर पहले से बहोत कॉमेडी करता था। ये सब जानते थे पर वो मेरे साथ सिर्फ़ बाकी दोस्तों की तरह बात करता था पर उस दिन उसका बदला रूप मुझे बड़ा भा गया था। कॉमेडी करने में यजुर के बाद मेरा नंबर ही आता था। मैंने सोचा अगर ये इतना खुलकर बोल सकता है तो मैं कब तक शरमाऊ?"
"ख्याली पुलाऊ पिछले २ साल से बना रहे है और खा भी रहे है यजुर अब कुछ हकीकत में हो जाए?"
मेरा जवाब सुन यजुर मेरे करीब आया और बोला। "तुम जानती हो यामी मैं बनारस के एक छोटे से गांव से हूं। हां पिछले कितने सालों से हम यहां पुणे में ही रहते है पर मेरे घर के रीति रिवाज तौर तरीके अभी भी बनारस वाले ही है। टाइमपास करके बात निपटा दो वैसा लड़का में नहीं हूं। जानता हूं पहले दिन से तुम हमें ताड़ रही हो पर का है ना हम सिर्फ़ घूम फिरके छोड़ दे वैसे नही है। समझ रही हो ना?"
उसकी ज़ुबान बोल कुछ रही थी और आंखें कुछ और बता रही थी। साफ़ दिख रहा था उसकी आंखों में कि उसके दिल में मेरे लिए क्या जगह है पर फेमिली हर दूसरी प्रेमकहानी में विलन बनी है और अब बारी मेरी थी।
मेरा दिमाग सोच की गहराई में डूबने ही वाला था कि एक अनजान आवाज़ ने हमारा ध्यान उस और केन्द्रित किया। हम बातों बातों में काफ़ी दूर तक आ गए थे। उसकी वजह थी गार्ड। वो खुर्शी पर बैठ सो रहा था और हम दबे पांव आगे निकल गए। अब हम जहां थे वहां से ना गार्ड दिख रहा था ना ही हमारे टेंट। मोबाइल के नेटवर्क्स तो पहले से नहीं थे। बस आसपास पेड़ दिख रहे थे। और आसपास से रात के किड, छोटे जीवजंतु, चूहे और मेंढकों की आवाज़ें सुनाई दे रही थी। पर उस बीच हमने फ़िर से एक अजीब सी आवाज़ सुनी।
हम दोनों को बड़ा अजीब लग रहा था क्यूंकि आसपास कोई नहीं था फ़िर वो अजीब सी आवाज़ कैसी थी। हमने वहां से वापस जाना ही ठीक समझा। पर वो आवाज़ हमारे कानों में ज़ोर ज़ोर से गूंजने लगी।
मैं यजुर के गले लग गई और मैंने उसे कहा कि हमने यहां आकर गलती करदी। हमें वापस जाना चाहिए। तब वो आवाज़ बढ़ने लगी जैसे वो हमें पुकार पुकारकर कुछ कह रही हो।
यजुर ने मेरा हाथ पकड़ा और हम दोनों धीरे धीरे आगे बढ़े। अंधेरे में एक अजब सी रोशनी ने हमारा ध्यान उस और केन्द्रित किया। हमने आगे बढ़कर देखा तो वहां एक बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे दो लोग बैठे हुए थे। लड़के ने दुल्हे का जोड़ा और लडकी ने दुल्हन का जोड़ा पहना था। दोनों अजीब से लग रहे थे। गोरा चमकता बदन और उनके आसपास की रोशनी और भयानक से उनके चेहरे। वो दोनों आपस में बात कर रहे थे।
"नीति गलती हमारी ही थी। हमने बस सोच लिया कि हमारे जात धर्म अलग ही तो हमारे घरवाले हमारी शादी को नहीं स्वीकार करेंगे। ये सोच तुमने अपनी शादी के दिन आत्महत्या कर ली और जब ६ दिन बाद मेरी शादी थी और मुझे पता चला कि तुम नहीं रही तो मेरे जीने का क्या फ़ायदा ये सोचकर मैंने भी अपना जीवन ख़त्म कर दिया। हम यहां एकसाथ तो है पर शायद अपने परिवार से बोल देते तो यहां भटकते नहीं पर अपनों के साथ अपनों के बीच रह पाते।
तुम ठीक कह रहे रिषभ। पर अब क्या? ना मुझे न तुम्हें शांति मिलती यूं अलग रहकर और हमने ये फ़ैसला ले लिया। शायद घर पर बता देते तो आज बात कुछ और होती। और घर में रहते इस पेड़ में नहीं।"
इतना बोलकर वो लड़की और लड़का दोनों वो बड़े से बरगद के पेड़ के अंदर चले गए। हम समझ गए थे कि उनका ध्यान हमारी और नहीं है। अगर उन्हों ने हमें देख लिया होता तो न जाने क्या होता? बस इतना देख आगे कुछ सोचने समझने की हम में शक्ति नहीं थी इस लिए हम दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर वहां से भाग निकले। और सीधे जाकर हमारे टेंट में घुस गए। डरके मारे कम्बल में घुस गए और कब नींद आ गई वो पता भी नहीं चला।
सुबह जब आंख खुली तो मैंने देखा सब मेरे सामने खड़े थे और मुझे उठा रहे थे। वहां फॉरेस्ट से एक डॉक्टर को भी बुलाया था। मुझे जागा हुआ देख धारा ने कहा, "कहां सो गई थी घोड़े बेचकर मैडम? यही रुकने का इरादा है क्या? यहां ज़मीन लेकर घर बनाना है क्या?"
तब ही पीछे से यजुर आया और उसने कहा, "क्या हुआ यामी? नींद में इतनी कांप क्यूं रही थी? तुम्हारा बदन गरम है? तुम ठीक तो हो?"
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि रात को जो हुआ वो हकीकत थी या सपना। पर मैं इतना जरूर जानती थी कि मुझे कोई सिख ही मिली थी उससे। डरावना वो सपना बहोत कुछ कह गया था। मैंने एक मिनिट का भी विलंब न करते हुए सबके सामने यजुर को पुछ लिया, "यजुर मुझसे शादी करोगे? तुम्हारा जवाब हां हो या ना वो पहले अपने परिवार से बात करने के बाद बताना। कोई जल्दबाजी नहीं है। वो नहीं मानेंगे ये सोच मना अभी से करके में नहीं चाहती के हम हमारी पूरी जिंदगी खराब कर दे।"
मेरा साहस देख सब ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगे। सौमी, कायरा और मनाली तो जल रही थी। यजुर मुस्कुरा रहा था। यजुर ने मुझसे कहा कि, इस बारे में वो भी मुझसे बात करना चाहता था। समझ नही आ रहा था की वो सपना था या हकीकत पर आज मेरी और यजुर की सगाई है। जंगल की उस एक रात ने मेरा पूरा जीवन बदल दिया था।
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