श्राप दंड - 3
कुछ देर सोचने के बाद तांत्रिक रुद्रनाथ नें बोलना शुरू किया।
" उस वक्त भी मैं उत्तर भारत में ही था। केदारघाटी को छोड़े हुए लगभग 8 महीनें हो गए थे। इस वक्त जहां पर हूं , वह जगह वसुधारा जलप्रपात से कुछ ही दूरी पर था। पत्थर से बना एक छोटा सा घर । उसके बाद थोड़ा सा पास जाकर देखा तो वह एक घर है लेकिन उस घर के अंदर बीच में एक नारायण शिला रखा हुआ है। मैं उसके अंदर जाकर बैठा। यहां से दाहिनी तरफ देखने पर बड़े - बड़े पहाड़ दिखाई देते। यहां से कुछ ही दूर जाने पर बाएं तरफ नीलकंठ पर्वत है। उसी पर्वत के दूसरी तरफ केदारघाटी है। और मैं जिस जगह पर इस वक्त हूं, वह जगह भारत के सबसे अंतिम गांव, माणा गांव से एक मील दूर है। इस जगह पर पहुंचने के लिए बद्रीनाथ पीछे छोड़कर उत्तर पूर्व की तरफ आगे बढ़ना पड़ता है। केदारनाथ में रहते वक्त अंतिम के कुछ दिन मुझे बार-बार ऐसा लग रहा था कि बहुत दूरी से एक आह्वान मिल रहा है। शब्द का कोई दिशा नहीं केवल अनुभूति ही अनुभूति।
जिस दिन केदारनाथ को छोड़ रहा हूं , उस दिन एक अद्भुत घटना घटी।
महादेव को प्रणाम कर मंदिर छोड़ वासुकी ताल की ओर कदम बढ़ाया ही था कि ठीक उसी वक्त नीला आसमान गरज उठा। अभी कुछ देर पहले ही धूप झिलमिल कर रहा था अचानक क्या हुआ। बार - बार आसमान गरज कर बिजली चमक उठता। यह देख आसपास के सभी लोग अचानक ही रुक गए हैं। मेरे से कुछ ही दूरी पर खड़े एक जटाधारी साधु बाबा बोलने लगे,
" कैलाश से बुलावा आया है। बाबा भोले केदारनाथ के जाने का समय हो गया। "
उसके बाद वह साधु चिल्लाने लगा ,
" जय भोले , बम - बम भोले। "
इसके बाद धीरे-धीरे आसमान साफ होकर सब कुछ शांत हो गया। लेकिन यहां आश्चर्य की दो बातें थी। पहला, उस साधु बाबा नें जो कहा और दूसरा यह कि आसमान से नजर हटा कर पीछे की ओर देखते ही वह साधु बाबा गायब हो गए थे। एक ऐसी खुली जगह से अचानक नजरों से ओझल हो जाना संभव नही है। लेकिन साधु बाबा सचमुच कहीं भी नहीं दिखे। मुझे पूरी तरह स्पष्ट याद है कि मैंने कुछ ही सेकेण्ड पहले उन्हें देखा था। शरीर पर भगवा कपड़ा, सिर पर जटा। आखिर वो इतनी जल्दी गए कहाँ। उन्होंने जिस बात को बोला था, मैं उस बारे में सोचने को मजबूर हो गया। सच बताऊँ तो हिमालय के पास रहते वक्त हिमालय से घनिष्ठ सम्बन्ध हो जाता है। उन बड़े - बड़े पहाड़ों से श्रद्धा व लगाव हो जाता है। केदारनाथ में रहते वक्त बहुत दिनों से सोच रहा था कि कैलाश की ओर यात्रा शुरू करूँ , लेकिन कुछ मुझे यह करने से रोक रहा था। आज वह अनुभूति पूरी तरह समाप्त हो गया। अगर उस साधु की बात पर गौर किया जाए तो महादेव भी आज केदारनाथ से कैलाश की ओर यात्रा शुरू कर रहे हैं। क्या इसलिए नीले आसमान में गर्जन व बिजली चमकने लगा? और वह अद्भुत साधु बाबा कौन हैं ? पहले तो उन्हें यहां कभी नहीं देखा ।
महादेव को शरण कर वासुकी ताल की ओर बढ़ चला। फिर 3 दिन बाद पहाड़ पार करके मैं बद्रीनाथ पहुंचा। इसके बाद माणा गांव को पीछे छोड़ कर वसुधारा जलप्रपात की ओर आगे बढ़ रहा हूं। कहते हैं कि बहुत समय पहले केदारनाथ से बद्रीनाथ चलकर जाया जा सकता था। सामने जो बड़े - बड़े पहाड़ खड़े हैं ठीक उसी के पार केदारनाथ है। बहुत समय पहले की बात है , केदारनाथ मंदिर में जो पुजारी पूजा करते थे वही पुजारी बद्रीनाथ में भी पूजा करते थे। नियम था कि केदारनाथ मंदिर में पूजा के बाद दीया जलाकर, चलते हुए जंगल पार करके बद्रीनाथ में पूजा की दीया ना जलाने तक पुजारी कुछ भी खा नहीं सकते। एक पुजारी बहुत सालों से इसी प्रकार पूजा कर रहे थे इसलिए उनके अंदर अहंकार पैदा हो गया। उस पुजारी को ऐसा लगने लगा कि उसके अलावा और कोई भी इतने ज्यादा सम्मान के योग्य नहीं है। ऐसे ही एक दिन केदारनाथ में पूजा के बाद पुजारी जंगल के रास्ते से बद्रीनाथ की ओर बढ़ रहे थे। उसी वक्त जंगल में एक जगह पके हुए बेर के सुगंध से पुजारी के मुंह में पानी आ गया। कुछ आगे जाते ही उन्होंने देखा कि पेड़ पर बहुत सारे पके हुए बेर हैं। तुरंत ही एक बेर तोड़कर मुंह में डालने ही वाले थे कि उसी वक्त ना जाने कहाँ से एक आदमी आ गया। उस आदमी ने पुजारी से कहा कि आपने तो अभी भी बद्रीनाथ की पूजा समाप्त नहीं की है। आप तो अभी खा नहीं सकते। इससे प्राचीन नियम भंग हो जाएगा। तब उस पुजारी नें अंहकार में बोला कि ,, आप कौन हैं? आपको पता है मैं कौन हूँ? मेरे अलावा महादेव व विष्णु कोई भी पूजा स्वीकार नहीं करेंगे। मैं जो चाहूँ वो कर सकता हूं। पूजा पाने के लिए भगवान भी प्रतीक्षा करेंगे। मैं कोई नियम नहीं तोड़ रहा , अब मैं अपने लिए एक नया नियम बना रहा हूं। ज़ब मैं चाहूंगा, जैसा चाहूंगा वैसा ही केदारनाथ व बद्रीनाथ में पूजा होगी। यह कहते ही पुजारी के सामने खड़े आदमी के चेहरे का भाव बदलने लगा। वह आदमी बोला, बहुत अंहकार है न तुम्हारे अंदर, तुम मुझे पहचान नहीं पा रहे। अगर तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो यही होगा। आज से तुम्हारे पथ पर मैं बैठा रहूंगा। मैं भी देखता हूं कि तुम कैसे मुझे पार करके जाते हो। फिर वह आदमी धीरे - धीरे विशाल होने लगा। उन्होंने आधे विष्णु व आधे शिव का रूप धारण किया और फिर हिमालय के एक समूह बर्फ से ढँके पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गए। इसके बाद से उस पुजारी की पूजा ईश्वर नें स्वीकार नहीं किया। इस घटना के बाद केदारनाथ मंदिर लगभग 350 वर्ष तक हिमप्रपात के कारण बर्फ के नीचे दबा हुआ था। लेकिन उस मंदिर में स्वयं देवादिदेव महादेव रहते हैं इसलिए मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ। वैसे मंदिर के बाहर दीवारों पर बर्फ के घर्षण का दाग अब भी है लेकिन मंदिर के अंदर का दीवार देखने पर ऐसा लगता है कि जैसे कल ही पॉलिश किया है। इस घटना के कुछ ही दिन बाद पुजारी की मौत हो गई थी।
ऐसा भी कहते हैं कि वसुधारा जलप्रपात का पानी पापीयों के ऊपर नहीं गिरता। पापी के माथे से ऊपर की ओर जाकर हवा में मिल जाती है। कई दिव्यपुरुष इसी जलप्रापत से स्नान करके स्वर्ग के रास्ते गए हैं।.........
क्रमशः......