Kaithrin aur Naga Sadhuo ki Rahashymayi Duniya - 15 in Hindi Fiction Stories by Santosh Srivastav books and stories PDF | कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 15

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 15

भाग 15

शाम को 5 बजे लॉयेना ने अपने को बिजी बताते हुए कैथरीन से आग्रह किया -" तुम चली जाओ न प्रवीण के ऑफिस। मैं तुम्हारी पसंद का डिनर तैयार करने में कुक की मदद करूँगी। अम्मा की दवाई, डिनर आदि भी देखना पड़ेगा। " समझ गई कैथरीन। प्रवीण के साथ वह उसे अकेला छोड़ना चाहती है। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है। अब ऐसा कुछ दोनों के बीच रहा नहीं। 

ऑफिस में कैथरीन को अकेले आया देख प्रवीण ने पूछा-" लॉयेना नहीं आई? सोचा था गोमती के किनारे थोड़ा वक्त गुजारेंगे। तुम चलना चाहोगी ?"

"चलो ताजी हवा में हम भी ताजादम हो जाएंगे। "

रास्ते में प्रवीण ने मानो गाइड की भूमिका अदा की-

"जानती हो कैथरीन, लखनऊ अपनी अदा, इतिहास और मीठी जुबां के लिए जाना जाता है। गोमती के किनारे अब काफी बदल गए हैं। पर अंदाज वही पुराना है। लखनऊ के बादशाहों ने अपने धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म के लिए भी कई धार्मिक इमारतों का निर्माण किया। 

"यानी हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है लखनऊ। "

"लेकिन तब भी विवाद तो होते ही रहते थे। "

दोनों नदी किनारे सीढ़ियों पर आ बैठे। घने दरख़्तों की हरियाली मन मोह रही थी। सूरज अभी-अभी डूबा था। शाम सुरमई थी। 

"उम्मीद करती हूँ तुम दोनों की जिंदगी सुकून भरी होगी। "

"हमने एक दूसरे के स्वभाव, रहन-सहन, खान-पान, धर्म, त्यौहार से समझौता कर लिया है। इन बातों को लेकर हमारे बीच कभी मनमुटाव नहीं होता लेकिन....." "लेकिन क्या प्रवीण। बताओ मुझे। कैथरीन की आँखों में जिज्ञासा थी। "प्यार को लेकर में समझौता नहीं कर पाया। तुम अब भी मेरे दिल के करीब हो। "

प्रवीण ने बहुत मुलामियत से कहा। "प्यार पर हमारा बस कहाँ रहता है प्रवीण। कभी कभी जिंदगी में एक के होते हुए भी दूसरा कब प्रवेश कर जाता है पता ही नहीं चलता। प्रवीण कैथरीन के मन की गहराई नहीं समझ पाया। 

"चलो चलते हैं लॉयेना इंतजार कर रही होगी। "

लौटते हुए प्रवीण ड्राइव करते हुए गुनगुनाता रहा। 

"होशवालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है

इश्क कीजिए फिर समझिए जिंदगी क्या चीज है"

कैथरीन आँखें मूंदे सुनती रही। एक तरन्नुम में रास्ता कट रहा था। सिग्नल पर गाड़ी रुकते ही प्रवीण ने कहा-" निदा फ़ाज़ली की गजल है। जगजीत सिंह ने गाई है। जगजीत सिंह के गीतों की सीडी घर चल कर सुनेंगे। तुम्हें पसंद आएगा उनका गायन। "

" श्योर"

सिग्नल के उस पार पान की दुकान थी -" पान लगवा लो न प्रवीण। पिछली बार जब लखनऊ आए थे तो प्रोफ़ेसर ने खिलाए थे। " पान की दुकान के पास कार रोकते हुए प्रवीण ने कहा-" तो मोहतरमा पान से परिचित हैं। अभी खाएंगी या पैक करवा लें?"

"पैक करवा लो मोहतरम। "

दोनों हँस पड़े। 

***

लॉयेना के साथ गपशप, डिनर और जगजीत सिंह की गाई गजलों पर देर तक चर्चा करके जब कैथरीन सोने के लिए कमरे में आई तो फोन पर नरोत्तम गिरी का मैसेज था -"क्या बहुत बिजी हो ?पहुँच कर फोन ही नहीं किया। "

उसने तुरंत फोन लगाया। 

" हाँ थोड़ी व्यस्त रही। अब तुम्हारी तबीयत कैसी है ?"

"बिल्कुल ठीक हूँ कैथरीन। कल से तप, साधना आरंभ करेंगे। 

" मैं भी कल प्रोफेसर शांडिल्य की यूनिवर्सिटी में शोधछात्रों से महिला नागा साधुओं पर चर्चा करूँगी। बड़ा रोमांचक और रहस्यमय है यह। "

"तुम सच में बहुत मेहनत कर रही हो कैथरीन...... एक व्यापक कथानक को लेकर सृजन रचने का हिमालयी कार्य। मैं अभिभूत हूँ। " "बहुत धन्यवाद नरोत्तम, किताब पूरी होने में समय बहुत ले रही है। " "उत्कृष्ट सर्जना समय साध्य होती है कैथरीन। काल की अग्नि में तपकर ही शिखर मिलता है। "

"तुम ऐसा कहते हो तो मुझे हौसला मिलता है नरोत्तम। तुम ही तो इस किताब के प्रेरक हो। "

सृजन की विराट साधना में निमग्न तुम मेरे लिए अकल्पनीय, अभिनंदनीय कैथरीन। "

"नरोत्तम .......चाहती हूँ तुम सदा स्वस्थ रहो। वरना मैं विचलित हो जाती हूँ। 

" नहीं कैथरीन, लिप्त मत हो मोह में। ईश्वर तुमसे विराट कार्य करा रहा है। शरीर के संग तो व्याधि लगी ही रहती है। "

"अब सो जाओ कैथरीन, कल लैक्चर भी तो देना है तुम्हें। शुभरात्रि। "

" शुभरात्रि नरोत्तम। "

***

कैथरीन और लॉयेना नियत समय पर यूनिवर्सिटी पहुंच गईं। प्रोफेसर शांडिल्य के केबिन में दाखिल होते ही दोनों ने प्रोफेसर को खुद का इंतजार करते पाया। 

"आईए मिस बिलिंग, वेलकम मिसेज़ लॉयेना। पंक्चुअल हैं आप दोनों। चलिए सीधे चलते हैं कॉन्फ्रेंस रूम। "

कॉन्फ्रेंस रूम में शोध छात्र उनका इंतजार कर रहे थे। प्रोफेसर शांडिल्य ने मिस बिलिंग का सबसे परिचय कराया। फिर छात्रों को संबोधित करते हुए कहा -"जैसा कि मैंने आपसे बताया था मिस बिलिंग नागा साधुओं पर बेहद गहन पड़ताल करके किताब लिख रही हैं। आज इसी विषय पर आपके प्रश्नों, जिज्ञासाओं का समाधान करेंगी। "

छात्रों ने ताली बजाकर कैथरीन का स्वागत किया। प्रश्न के लिए कुछ हाथ उठे। कैथरीन ने शुरुआत छात्रा से की -

"जी, पूछिए। नाम भी बताएं अपना। "

" आशालता, मैं समाजशास्त्र में रिसर्च कर रही हूँ। जानना चाहती हूँ, क्या महिलाएं भी नागा साधु हैं?"

"लॉयेना और प्रोफेसर शांडिल्य सामने ही बैठे थे। 

"जी हाँ आशालता जी, अब महिलाएं भी नागा साधु की दीक्षा लेकर सनातन धर्म के लिए समर्पित हैं। "

"मैडम नागा साधु बनने के लिए तो कई साल लग जाते हैं। कठिन प्रक्रिया से गुजरना होता है। क्या उस प्रक्रिया से महिलाएं भी गुजरती हैं?"

"बिल्कुल उन्हें भी 6 से 12 साल तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. इसके बाद गुरु यदि इस बात से संतुष्ट हो जाते हैं कि महिला ब्रह्मचर्य का पालन कर सकती है तो उसे दीक्षा देते हैं.

महिला नागा सन्यासिन बनाने से पहले अखाड़े के साधु-संत महिला के घर परिवार और पिछले जीवन की जांच-पड़ताल करते हैं.

महिला को भी नागा सन्यासिन बनने से पहले स्वयंं का पिंडदान और तर्पण करना पड़ता है। "

"मैडम क्या उन्हें अपना अखाड़ा, अपना गुरु निर्धारित करने की स्वतंत्रता रहती है?"

"हाँ, जिस अखाड़े से महिला सन्यास की दीक्षा लेना चाहती है, उसके आचार्य महामंडलेश्वर ही उसे दीक्षा देते हैं। "

" मैडम विस्तार से संपूर्ण प्रक्रिया पर प्रकाश डालें हम सब उनकी रहस्यमयी, रोचक दुनिया को जानने के इच्छुक हैं। "

"अच्छी लगी कैथरीन को छात्रों की जिज्ञासा। वह भी तो इस जिज्ञासा से गुजर चुकी है। 

उसने संबोधित किया-

"प्रिय छात्रों, 

महिला को नागा साधु बनाने से पहले उसका मुंडन किया जाता है। और नदी में स्नान करवाते हैं। 

महिला नागा साधु पूरा दिन भगवान का जप करती है। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना होता है। इसके बाद नित्य कर्मो से निवृत्त होकर शिवजी का जाप करना होता है। दोपहर में वे भोजन करती हैं और फिर से शिवजी का जाप करती हैं। शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैंं और इसके बाद शयन। 

सिंहस्थ और कुम्भ में नागा साधुओं के साथ ही महिला साधु जो सन्यासिन कहलाती हैं शाही स्नान करती हैं। अखाड़े में सन्यासिन को भी पूरा सम्मान दिया जाता है। 

जब महिला नागा सन्यासिन बन जाती हैंं तो अखाड़े के सभी साधु-संत उन्हें माता कहकर सम्बोधित करते हैं। 

सन्यासिन बनने से पहले महिला को ये साबित करना होता है कि उसका परिवार और समाज से कोई मोह नहीं है। वह सिर्फ भगवान की भक्ति करना चाहती है और सनातन धर्म के लिए समर्पित है। इस बात की संतुष्टि होने के बाद ही दीक्षा दी जाती हैं। "

कैथरीन कुछ पल रुकी। दो तीन हाथ प्रश्न पूछने के लिए उठे। उसने एक छात्र से कहा -"हाँ पूछिए। "

"मैम, पुरुष नागा साधु और महिला नागा साधु में क्या फर्क है ?"

" केवल इतना ही है कि महिला नागा साधु को एक पीला वस्त्र अपने शरीर से लपेटकर रखना पड़ता है और यही वस्त्र पहनकर स्नान भी करना पड़ता है। नग्न स्नान की अनुमति नहीं है। यहाँ तक कि कुम्भ मेले में भी नहीं। "

"मेम कुछ नागा अखाड़ों के बारे में भी बतलाएं। क्या समय के साथ उन अखाड़ों में कुछ परिवर्तन दिखाई देता है?"

"बहुत बढ़िया सवाल है आपका। परिवर्तन सृष्टि का नियम। समय बीतता जाता है, स्थितियाँ भी बदलती जाती हैं। 

समय के साथ अखाड़ों में साधना के लिए साधनों में बदलाव हुआ है। प्रयागराज यानी इलाहाबाद में 1989 में लगे कुंभ के बाद हाथी-घोड़ा, ऊंट, बैलगाड़ी से पेशवाई पर प्रतिबंध लगने के बाद अब वाहनों का प्रयोग भी होने लगा है। जहाँ एक ओर भगवाधारी साधु बाइक चलाते नजर आएंगे वहीं नागा साधु भी अखाड़े की कार चलाते दिखेंगे। 

"मैंने कभी किसी नागा साधु को कार चलाते नहीं देखा। मैंने तो उन्हें कभी अस्पतालों में भी नहीं देखा। "

हाँ कार से यात्रा करने और कार चलाने की परंपरा नागा साधुओं में अभी कम ही है। अस्पताल वे कभी नहीं जाते। जड़ी बूटियों से ही अपना इलाज करते हैं। "

"मेम कुछ नागा अखाड़ों के बारे में भी बतलाएं। क्या समय के साथ उन अखाड़ों में कुछ परिवर्तन दिखाई देता है?"

"बहुत बढ़िया सवाल है आपका। परिवर्तन सृष्टि का नियम। समय बीतता जाता है, स्थितियाँ भी बदलती जाती हैं। 

समय के साथ अखाड़ों में साधना के लिए साधनों में बदलाव हुआ है। प्रयागराज यानी इलाहाबाद में 1989 में लगे कुंभ के बाद हाथी-घोड़ा, ऊंट, बैलगाड़ी से पेशवाई पर प्रतिबंध लगने के बाद अब वाहनों का प्रयोग भी होने लगा है। जहाँ एक ओर भगवाधारी साधु बाइक चलाते नजर आएंगे वहीं नागा साधु भी अखाड़े की कार चलाते दिखेंगे। 

"मैंने कभी किसी नागा साधु को कार चलाते नहीं देखा। मैंने तो उन्हें कभी अस्पतालों में भी नहीं देखा। "

"हाँ कार से यात्रा करने और कार चलाने की परंपरा नागा साधुओं में अभी कम ही है। अस्पताल वे कभी नहीं जाते। जड़ी बूटियों से ही अपना इलाज करते हैं। "

" मैम उनका अंतिम संस्कार कैसे होता है?"

कैथरीन के लिए यह प्रश्न अप्रत्याशित था। लेकिन वो उत्तर के लिए तैयार थी। उसकी अपनी जिज्ञासा ने नरोत्तम से इस बात की जानकारी भी पहले ही ले ली थी। 

" आप सब यह तो जानते ही होंगे कि हिन्दू धर्म में अग्नि से ही अंतिम संस्कार होता है। लेकिन नागाओं का अंतिम संस्कार अग्नि से नहीं होता। उनके शव को पहले जल समाधि दी जाती थी। लेकिन नदियों का जल प्रदूषित होने के नाते अब पृथ्वी पर समाधि दी जाती है। शव को सिद्ध योग में बैठाकर भू-समाधि दी जाती है। धरती के अंदर उन्हें तप करने जैसी अवस्था में बैठाया जाता है और ढक दिया जाता है मिट्टी से। "

"यह तो कैथलिक परंपरा हुई, है न मैम?" एक छात्र ने आश्चर्य प्रगट करते हुए कहा। 

" इस्लाम में भी इसी तरह से शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। "

"परंपरा तो धर्म के अनुसार ही बनती है, बनी भी हैं। हम केवल उसका निर्वाह करते हैं। "कैथरीन ने कहा। 

"मैम नागा साधुओं के समुदाय को अखाड़ा क्यों कहते हैं? अखाड़ा तो वह होता है जहाँ कुश्ती लड़ी जाती है। "

"आप ठीक कह रहे हैं लेकिन जहाँ भी दांवपेंच की गुंजाइश होती है वहाँ इस शब्द का प्रयोग होता है। पहले आश्रमों के अखाड़े को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। तब अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगल काल से शुरु हुआ था। हालाँकि कुछ ग्रंथों के मुताबिक अलख शब्द से ही अखाड़ा शब्द की उत्पत्ति हुई है जबकि कुछ धर्म के जानकारों के अनुसार साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के कारण उनके समुदाय को अखाड़ा कहा जाता है। 

"मैम क्या नियम भंग करने वालों के लिए सजा का भी प्रावधान है?"

"प्रत्येक अखाड़े के अपने-अपने नियम और कानून है। अपराध करने वाले साधुओं को अखाड़ा परिषद सजा देता है। छोटी चूक के दोषी साधु को अखाड़े के कोतवाल के साथ गंगा में 5 से लेकर 108 डुबकियाँ लगाने के लिए भेजा जाता है। डुबकी के बाद वह भीगे कपड़ों में ही देवस्थान पर आकर अपनी गलती के लिए क्षमा माँगता है। फिर पुजारी पूजा स्थल पर रखा प्रसाद उसे देकर दोष मुक्त करते हैं। विवाह, हत्या या दुष्कर्म जैसे मामलों में उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है। अखाड़े से निकल जाने के बाद ही

उन पर भारतीय संविधान में वर्णित कानून लागू होता है। अगर अखाड़े के दो सदस्य आपस में लड़ाई करें, कोई नागा साधु विवाह कर ले या दुष्कर्म का दोषी हो, छावनी के भीतर से किसी का सामान चोरी करते हुए पकड़े जाया, देवस्थान को अपवित्र करे या वर्जित स्थान पर प्रवेश करे। कोई साधु किसी यात्री यजमान से अभद्र व्यवहार करे, अखाड़े के मंच पर कोई अपात्र चढ़ जाए तो उसे अखाड़े की अदालत सजा देती है। अखाड़ों के कानून मानने की शपथ उन्हें नागा प्रक्रिया के दौरान दिलाई जाती है। जो नागा इस कानून का पालन नहीं करता उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है। "

"मैम क्या अखाड़ों में भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनाव होते हैं। " सवाल एक जिज्ञासु छात्र का था। 

" अब शुरू हो गए हैं अखाड़ों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनाव। 

निर्मोही अखाड़ा हो या जूना अखाड़ा, इनके अलावा कई अन्य अखाड़ों में भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक खास प्रणाली है। यह अखाड़ा एक पूरा समाज है जहाँ अखाड़ों के सभी बड़े सदस्यों की एक कमेटी बनती है। ये सभी लोग अखाड़े के लिए सभापति का चुनाव करते हैं। एक बार चुनाव होने के बाद यह पद जीवन भर के लिए चुने हुए व्यक्तियों का हो जाता है। 

"अर्थात अखाड़ों में लोकतंत्र का बहुत महत्व है मैम। "

"अखाड़े लोकतंत्र से ही चलते हैं। जूना अखाड़े में 6 साल में चुनाव होते हैं। कमेटी बदल दी जाती है। हर बार नए को चुनते हैं। यह इसलिए ताकि सभी को नेतृत्व का मौका मिले। सभी संतो में भी अच्छी नेतृत्व क्षमता आए। कुछ अखाड़ों में बाकायदा चुनाव प्रक्रिया होती है। आवश्यकता पड़ने पर वोटिंग भी होती है। अच्छा काम करने वाले को दोबारा चुना जाता है। नहीं करने पर बदल दिया जाता है। कुछ अखाड़े ऐसे भी हैं जहाँ चुनाव नहीं होता। इसी तरह अखाड़ा परिषद में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव सहित 16 लोगों की कमेटी चुनी जाती है। इसे कैबिनेट कहते हैं। कमेटी यानी कैबिनेट की समय समय पर बैठक होती है। आपात बैठक का भी प्रावधान है। सिंहस्थ या कुंभ में जब भी धर्म ध्वज की स्थापना होती है कमेटी स्वतः भंग हो जाती है। सारे अधिकार दो प्रधान के पास आ जाते हैं। ये मिलकर पूरे सिंहस्थ या कुंभ की व्यवस्था संभालते हैं। कुंभ सिंहस्थ के बाद कमेटी वापस अस्तित्व में आ जाती है। 

"ओह, विस्तृत विषय है यह और हमारे पास समय कम है। मैम आपने जितना बताया उसके लिए हम आपके शुक्रगुजार हैं। आप

दो घंटे तक हमारे साथ रहीं और हमारी जिज्ञासाओं को शांत करती रहीं। आपका बहुत बहुत आभार। "

छात्र खुश थे। उन्होंने कैथरीन और प्रोफ़ेसर शांडिल्य का बार बार शुक्रिया अदा किया। 

कॉन्फ्रेंस रूम से बाहर आकर प्रोफेसर शांडिल्य ने कैथरीन और लॉयेना को पूरी यूनिवर्सिटी घुमाई। पुस्तकालय में किताबों के बीच थोड़ा वक्त गुजारा और उन्हें किसी रेस्त्रां में चलकर कॉफी पीने की दावत दी। 

" मिस्टर प्रवीण को भी बुला लीजिए। गपशप में शाम गुजरेगी। "

लॉयेना ने प्रवीण को फोन लगाकर प्रोफेसर शांडिल्य को फोन दिया-" लीजिए आप ही बात कर लीजिए। "

" यस मिस्टर प्रवीण, आइए हम रेस्त्रां में मिलते हैं। कुछ देर गर्म कॉफी के साथ चर्चा करेंगे। बौद्धिक शाम गुजारेंगे। "

कहते हुए उन्होंने रेस्तरां का नाम बताया और फोन लॉयेना की ओर बढ़ाया। 

" चलिए। "

रेस्तरां काफी खूबसूरत जगह पर था। जिस टेबिल का प्रोफेसर शांडिल्य ने चयन किया वहाँ की खिड़की से बाहर का नजारा हरे भरे पेड़ों और उन पर चहचहाते पक्षियों वाला था। 

"जब तक मिस्टर प्रवीण आते हैं एक राउंड कॉफी हो जाए ?"

लॉयेना ने फिर फोन लगाया -

"नहीं आ सकूंगा लॉयेना प्रोफेसर से माफी मांग लो। काम में इतना उलझा हूं कि रात के 10 बज सकते हैं। "

प्रवीण के नहीं आ सकने की खबर सुनकर प्रोफ़ेसर ने तुरंत कहा-

"कोई बात नहीं, व्यापार में इसी तरह अचानक काम आ जाते हैं। तो बताइए आप लोग, क्या खाना पसंद करेंगे?"

"मैं तो कुछ नहीं लूंगी। "लॉयेना ने कहा। 

कैथरीन ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाई -"बिल्कुल भी खाने की इच्छा नहीं है। आप चाहे तो अपने लिए आर्डर कर दें। "

" कॉफी चलेगी दोबारा ?"

"हाँ बिल्कुल। "

प्रवीण की इंकारी से लॉयेना डिस्टर्ब हो गई थी, माहौल भी गंभीर हो गया था। रेस्त्रां में एक घंटा तीनों के बीच खामोशी से गुजरा। रेस्त्रां से बाहर आकर पार्किंग की ओर बढ़ते हुए कैथरीन ने कहा-

"सुबह समय पर आ जाईएगा जिससे हम अयोध्या समय पर पहुँच जाएं। वैसे भी 9:00 बजे निकलेंगे तो अयोध्या पहुँचते रात हो जाएगी। "

"चिंता न करें। समय का बहुत पाबंद हूँ। ठीक 8:00 बजे आपके यहाँ की डोर बेल बजाऊँगा। "

"हम भी एकदम तैयार रहेंगे। तो मिलते हैं सुबह, शुभ रात्रि। "

***

गाड़ी चलाती लॉयेना अब भी खामोश थी। 

"बहुत डिस्टर्ब हो गई तुम। "

"हाँ कैथ, प्रवीण को मैं समझ नहीं पाती। हमेशा दूसरों के सामने सीन क्रिएट कर देते हैं। उन्हें मेरी तौहीन करने में मजा आता है। "

"यह सब सोचना बंद कर दो लॉयेना। जीवन का कोई उद्देश्य ढूंढो। दुष्यंत, शांतनु को लायकवर बनाओ। अपने ढंग से जिंदगी जियो। सच कहती हूँ बहुत आनंदित रहोगी तुम। "

"मैं भी ऐसा ही सोचती हूँ कैथ, पर मुझसे हो नहीं पाता। अपने देश, अपने लोग, अपना परिवेश छोड़ने का दुख पीछा नहीं छोड़ता। " कैथरीन को लॉयेना के चेहरे पर एक अदृश्य डर की परछाई भी नजर आई। लॉयेना के इस दुख की, डर की जिम्मेवार वह ही है। एकमात्र वह वरना लॉयेना की जिंदगी कुछ और होती। 

रात के किसी वक्त प्रवीण लौटा। तब तक लॉयेना और कैथरीन अयोध्या जाने की तैयारी करती रहीं। 

" कहाँ रह गए थे प्रवीण ? डिनर तक भी नहीं लौटे। "

कैथरीन ने प्रवीण को थका हुआ देख पूछा। 

" तुम दोनों ने डिनर ले लिया न? मैंने अपने एक मित्र के साथ खा लिया था। फिर मैं तुम्हारे लिए जगजीत सिंह की सीडी तलाशता रहा। कल तुम दिल्ली जा रही हो न। लखनऊ फिर पता नहीं कब आओगी। "

"भूल गए प्रवीण। कल तो हम लोग हनुमानगढ़ी जा रहे हैं। " लॉयेना ने टोका। 

"अरे हाँ। हो गई तुम लोगों की तैयारी? सुबह ही तो निकल रही हो। "

"हाँ प्रवीण, काश तुम भी साथ चलते। "

प्रवीण ने कैथरीन को भर नजर देखा। 

"अब तुम लोग आराम करो। मैं भी थक गया हूँ। शुभरात्रि। "

कहते हुए वह अपने कमरे में चला गया। 

पलंग पर लेटे हुए कैथरीन ने नरोत्तम को फोन लगाया वह उसके फोन की प्रतीक्षा कर रहा था। 

"कैसा रहा तुम्हारा लेक्चर ?"

"बहुत अच्छा, छात्रों में नागाओं को लेकर, बहुत जिज्ञासा है। मेरी जितनी जानकारी थी वह सब मैंने उन्हें दी। बहुत खुश हुए वे। "

"तुम्हारी जानकारी तो संपूर्ण है। अब बाकी क्या रह गया है ?"

ज्ञान तो हमेशा अधूरा रहता है। बहुत जानने को शेष रहता है अब देखो न प्रोफ़ेसर ने अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी की बात बताई। वहाँ भी नागा साधु निवास करते हैं। हम जा रहे हैं कल प्रोफ़ेसर शांडिल्य के साथ हनुमानगढ़ी। "

"सदियों पुराना है हनुमानगढ़ी का हनुमान मंदिर। वहाँ कई नागा निवास करते हैं। सचमुच में और भी अधिक जानकारी मिलेगी तुम्हें। बहुत अच्छा निर्णय लिया तुमने। " "सुबह-सुबह ही निकलना है। आज दिन भर लेक्चर से थक भी बहुत गई। अब तुम भी सो जाओ। तुम्हें भी तीन बजे उठना होता है। शुभ रात्रि "

, शुभरात्रि कैथरीन, हनुमानगढ़ी से लौटकर फोन करना। "

*****

सुबह 8:00 बजे प्रोफेसर शांडिल्य प्रवीण के घर पहुँच गए। खाने पीने के सामान की डलिया, छोटा सा सूटकेस ड्राइंग रूम में रखा देख प्रोफेसर शांडिल्य ने कहा -"काफी तैयारी कर ली लॉयेना जी ने। "

"13 घंटे का सफर है प्रोफेसर। वहाँ 2 दिन रुकना भी तो पड़ेगा। " ड्राइवर समय पर पहुँच गया था। कार ने लखनऊ 9:00 बजे तक पार कर लिया था। कहीं रास्ता समतल मिलता तो कहीं उबड़ खाबड़। रास्ते भर अधिकतर बातें प्रोफेसर और कैथरीन में ही हुईं। लॉयेना खामोश रही। अपने में सिमटी सी। हमेशा चहकने वाली लॉयेना अपनी जिंदगी के रूखेपन से एकदम बदल गई है। कैथरीन ढूँढ रही है उस चुलबुली लड़की को ........खिड़की के बाहर खेतों में, लहलहाती फसलों में, ठंडी चंचल हवाओं में, आसमान पर धुँए के गुबार से लगते बादलों में, पर.......

"मिस बिलिंग, कोई गीत सुनाइए न आप अपनी भाषा में। "

"गीत? गीत तो लॉयेना गाती है। "

"अब कहाँ? वैसा गला ही नहीं रहा। " लॉयेना ने उदास स्वरों में कहा। 

"कोई बात नहीं, सुनाइए न। " प्रोफ़ेसर के आग्रह पर लॉयेना ने धीमे स्वरों में गीत के सूत्र को पकड़ा और फिर ऊँचाई तक ले गई। गीत के बोल थे-" मेरे पास एक अधूरा इंद्रधनुष है। जिसके खोए हुए रंगों को मैं जीवन भर खोजती रही। "गीत मार्मिक था। समाप्ति पर थोड़ी देर कार में सन्नाटा रहा। कैथरीन के हृदय में लॉयेना के लिए पीड़ा उमड़ आई। उसने उसे गले से लगा लिया

" आई एम सॉरी। "

लॉयेना की आँखें भीग गईं। 

रात 10 बजे वे अयोध्या स्थित पहले से ही बुक किये होटल पहुँचे। " हम फ्रेश होकर अपने अपने कमरों में ही डिनर मंगवा लेते हैं। सुबह मिलेंगे। शुभरात्रि। "

कैथरीन और लॉयेना एक ही कमरे में रुकीं। कमरे की बालकनी की ओर खुलती खिड़की से शहर की जगमगाती बत्तियाँ दिख रही थीं। 

***

सुबह तीनों मंदिर की ओर रवाना हुए। मौसम खुशगवार था। हमेशा ही मौसम ने कैथरीन का साथ दिया है। हनुमानगढ़ी के परिसर में प्रवेश करते ही कैथरीन की नजरें चमक उठीं। इमली के छतनारे दरख़्तों के बीच लाल सफेद कँगूरे दार और दीपस्तंभों वाला हनुमान जी का भव्य मंदिर सामने था। दसवीं शताब्दी में निर्मित मंदिर का सौंदर्य देखते ही बनता था। मंदिर ऊँचाई पर था। कैथरीन और लॉयेना तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ रही थीं। प्रोफेसर पीछे रह गए। वे एक-एक सीढ़ी संभालकर चढ़ रहे थे। 76 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर का द्वार आ गया। 

विदेशी महिलाओं को देख मंदिर का पुजारी उनके पास आया-" वहाँ से पूजा की थाली ले लीजिए माता जी, हम पूजा संपन्न करा देंगे। "

"हम दर्शन करने आए हैं पंडित जी। आप हमें इस मंदिर के इतिहास की जानकारी देंगे तो बेहतर है। "

कहते हुए कैथरीन ने सिर पर स्कार्फ बाँध लिया। ताकि बाल बिखरे न। लॉयेना ने तो बाल बढ़ा रखे हैं। चोटी करती है वह लंबी सी और चोटी में खूब प्यारी लगती है। 

"हाँ, हाँ हम बताते हैं। कम से कम ये पत्र पुष्प चढ़ाकर संकट मोचन का स्मरण कर लीजिए। आपके सब कार्य सफल होंगे। "

कैथरीन समझ गई पंडित पहले दक्षिणा चाहता है। उसने सौ सौ के दो नोट पंडित की ओर बढ़ाए। "चलिए वहाँ बैठते हैं। "

"अवश्य। "

खुश होकर पंडित ने बैठने के लिए मंदिर का कोना चुना। प्रोफ़ेसर शांडिल्य भी मंदिर की परिक्रमा कर आ चुके थे। पंडित आसन जमा चुका था -"माताजी पवनपुत्र हनुमान को समर्पित इस मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादिय द्वारा दसवीं शताब्दी में करवाया गया था जो आज हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है| ऐसी मान्यता है कि पवनपुत्र हनुमान यहाँ रहते हुए कोतवाल के रूप में अयोध्या की रक्षा करते हैं| मंदिर के प्रांगण में हनुमान जी की माता अंजनी के गोद में बैठे बाल हनुमान को दर्शाया गया है|

हनुमान गढ़ी भारत के उत्तर प्रदेश में है। अयोध्या में स्थित, यह शहर के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों के साथ-साथ अन्य मंदिरों जैसे नागेश्वर नाथ और निर्माणाधीन राम मंदिर में से एक हैं। उत्तर भारत में हनुमान जी का यह मंदिर सबसे लोकप्रिय मंदिर परिसरों में से एक हैं। यह एक प्रथा है कि राम मंदिर जाने से पहले सबसे पहले भगवान हनुमान मंदिर के दर्शन करने चाहिए। मंदिर में हनुमान की माँ अंजनी रहती हैं, जिसमें युवा हनुमान जी उनकी गोद में बैठे हैं। 

जब लंकापति रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे, तो हनुमानजी यहीं निवास करने लगे। इसीलिए इसका नाम हनुमानगढ़ या हनुमान कोट रखा गया। यहीं से हनुमानजी रामकोट की रक्षा करते थे। यह विशाल मंदिर और इसका आवासीय परिसर 52 बीघा जमीन पर फैला हुआ है। वृंदावन, नासिक, उज्जैन, जगन्नाथपुरी सहित देश के कई मंदिरों में इस मंदिर की संपत्ति, अखाड़े और बैठकें हैं। हनुमान गढ़ी मंदिर राम जन्मभूमि के पास स्थित है। 1855 में, अवध के नवाब ने मंदिर को मुसलमानों द्वारा विनाश से बचाया। मुसलमानों को लगा कि हनुमानगढ़ी एक मस्जिद के ऊपर बनाई गई है। इतिहासकार कहते है कि 1855 का विवाद बाबरी मस्जिद - राम मंदिर स्थल के लिए नहीं बल्कि हनुमान गढ़ी मंदिर के लिए था। "

" बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने पंडित जी। आपका बहुत-बहुत आभार। " कैथरीन ने हाथ जोड़े। "यह तो हमारा सौभाग्य है कि हम आपको कुछ बता सके। आप हमारे देश की मेहमान हैं, हमारी अतिथि हैं। अतिथि देवो भव हमारी संस्कृति है। "

पंडित ने बहुत विनम्रता से कहा कैथरीन जिस जानकारी के लिए आई थी वह अभी अधूरी थी। उसने पंडित से पूछा-" यहाँ नागा साधु भी तप साधना करते हैं। उनसे कैसे मिला जाए ?"

"माता जी मैं ले चलता हूं उनके पास। यहाँ तो 500 नागा साधु रहते हैं। "

"वाह किस अखाड़े के हैं वे?"

" कोई एक नहीं। "पंडित ने कैथरीन की जानकारी पर गौर किया-"आप जानती हैं नागा अखाड़ों को ?"

"जी हाँ और अधिक जानकारी के लिए यहाँ आई हूँ। "

"चलिए हम आपको गिरिराज गिरि महंत जी के पास ले चलते हैं। " पंडित उन्हें जिस स्थान पर लाया वहाँ जलती हुई धूनी के आसपास कुछ नागा साधु बैठे थे। उन्हीं में से एक वयोवृद्ध नागा साधु से पंडित ने कहा -"महंत जी आपसे मिलने ये विदेश से आई हैं, माताजी यही गिरिराज गिरि महंत हैं। "

कैथरीन प्रणाम करके एक ओर बैठ गई। लॉयेना प्रोफेसर शांडिल्य के साथ मंदिर के परिसर में घूमने चली गई। गिरिराज गिरि महंत ने पूछा -

"आने का उद्देश्य बताएं माता। "

"मैं नागा साधुओं पर किताब लिख रही हूँ। उसी के लिए जानकारी इकट्ठा करने आई हूँ। "

"सही समय आई हैं माता। कल हम तप, साधना के लिए अमरकंटक चले जाएंगे। आइए मेरे साथ इधर बैठते हैं। "

गिरिराज गिरी के संग कैथरीन एक छोटे से कक्ष में आ गई। दोनों भूमि पर बिछी चटाई पर बैठ गए। एक नागा साधु कैथरीन के लिए पानी ले आया। 

"पूर्व जानकारी तो होगी माता, नागा अखाड़ों की। "

"जी इस परिसर, हनुमानगढ़ी और आपके यहाँ निवास की जानकारी चाहती हूँ। "

"माता आप बहुत जिज्ञासु लगती हैं और बहुत अच्छी हिंदी बोल रही हैं। काफी विदुषी लगती हैं। " कैथरीन मुस्कुराने लगी। 

माता, जिस जगह हनुमानगढ़ी किला है ठीक उसी जगह पहले एक इमली का पेड़ हुआ करता था। उसके नीचे बाबा अभय रामदास वहीं से निकली हनुमान जी की मूर्ति की पूजा अर्चना किया करते थे। उस समय अयोध्या नवाब शुजाउद्दौला के राज का हिस्सा था। नवाब कुष्ठ रोग से पीड़ित था। बाबा अभय रामदास की ख्याति उन्होंने सुनी थी। वे उनके पास गये। बाबा के आशीर्वाद से नवाब ठीक हो गए। नवाब ने बाबा से कहा कि

"बाबा मैं अवध का नवाब हूँ। आपको कोई समस्या हो तो बताएं। बाबा ने कहा-"हम तो साधु हैं, साधु की न कोई समस्या और न कोई इच्छा। आप अगर हनुमान जी के लिए एक मंदिर बनवा सकें तो हनुमान जी की कृपा भी आपको प्राप्त हो जाएगी। "

और शैव सन्यासी आक्रमण न कर पाए इसका भी इंतजाम देख लीजिए। "

शुजाउद्दोला ने बाबा की इच्छा को सम्मान देते हुए 52 एकड़ भूमि पर हनुमानगढ़ी किला बनवाया। इसकी बनावट बेहद खूबसूरत थी बिल्कुल किले तरह। हनुमान जी का मंदिर भी बेहद खूबसूरत स्थापत्य का नमूना है। 

कुछ लोग कहते हैं कि नवाब शुजाउद्दौला को कुष्ठ रोग नहीं हुआ था बल्कि वे बाबा अभय रामदास को घायल पड़े मिले थे। वे उन्हें अपने डेरे में ले गए जहाँ एक खोह में हनुमान जी का मंदिर था। वहाँ उन्होंने शुजाउद्दौला का उपचार करके उन्हें स्वस्थ कर दिया। 

इस हनुमानगढ़ी से साधु संतों को दिए जाने वाले राशन का एक हिस्सा किसी मुस्लिम संत फकीर को मिलता रहा है। क्योंकि उसी जगह पर एक फकीर का भी डेरा था। उन्हें हटाने की शर्त यही रखी गई कि हनुमानगढ़ी को मिलने वाले राशन का एक हिस्सा रोज एक मुस्लिम फकीर को भी मिलेगा। इस किले से नागा साधु भी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में उतरे थे। 

हनुमानगढ़ी का संविधान 1937 का बना हुआ है। उस समय से ही यहाँ के शिलालेख पर लिखा गया था कि बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, चिलम या किसी भी तरह का नशा पूरी तरह वर्जित है यहां के संविधान में। यह भी लिखा है कि कोई भी साधु, नागा साधु, महंत, या किसी पद पर कार्यरत गैर मज़हबी कार्य नहीं कर सकता। अगर वह ऐसा करता है तो पंचों को अधिकार होगा कि उसे पद और अखाड़े से हटा दें। आज भी हनुमानगढ़ी में स्थित गर्भ गृह की ओर उसी जमाने का एक पत्थर लगा है। उस पर लिखा है कि यहाँ हिंदुओं के अलावा दूसरे धर्म के लोगों का प्रवेश वर्जित है। 

माता, नागा साधु कभी प्रवचन नहीं करते। अखाड़े के नागा साधुओं का काम है अधर्मियों से लड़ना और अपनी धार्मिक परंपराओं और अनुष्ठानों का 12 महीने पालन करना। प्रतिदिन यहाँ मौजूद सभी नागाओं की हाजिरी ली जाती है। नागाओं के मुख्तार या कोठारी का काम है कि बाकायदा हाज़िरी को रजिस्टर में नोट करें। जो गैर हाजिर होता है उसके लिए कोई न कोई सजा मुकर्रर की जाती है। 

सन्यासियों, शैवों और वैष्णव में नागा बनने की प्रक्रिया में काफी अंतर है। सन्यासियों में जो नागा बनते हैं वे शाही स्नान के लिए नग्न रूप में जाते हैं। बैरागी यानी वैष्णव नागा इसके विरोधी हैं। वे गंगा को अपनी माँ मानते हैं इसलिए वे गंगा में नग्न होकर स्नान करने को उचित नहीं मानते। वैष्णव नागाओं के पास हथियार भी होते थे। प्राचीन समय में सवारी का साधन नहीं होने के कारण हाथी, ऊंट को सवारी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इसे हम नागा जमात कहते हैं। 

"लेकिन यह जमात बनी कैसे? "

एक वह समय था जब शैव संप्रदाय का अत्याचार वैष्णव संप्रदाय पर बढ़ता जा रहा था। 

अयोध्या और वृंदावन बैरागियों का गढ़ कहा जाता है। शैव संप्रदाय में लच्छोगिरी और भैरव गिरी नाम के दो सन्यासी थे जो प्रतिदिन पाँच वैष्णव हत्या करके ही जल ग्रहण करते थे। जब वैष्णव नहीं मिलते थे तो आटे का वैष्णव बनाकर उसे काटते थे। उसके बाद ही जल ग्रहण करते थे। उस समय जब वैष्णव संप्रदाय के लोग कुंभ में जाते थे तो उन्हें मारपीट कर अपमानित किया जाता था। 

उन्हें कुंभ में प्रवेश करने भी नहीं दिया जाता था उसी समय जयपुर राजघराने से बाल आनंद जी ने वैष्णव धर्म स्वीकार किया और बाल आनंद आचार्य हुए। बाल आनंद आचार्य ने 18 वैष्णव अखाड़ों का निर्माण किया। जैसे निर्वाणी अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा। इसकी बैठक यानी केंद्र वृंदावन में बनाया गया और वहाँ देश भर के सभी वैष्णव संप्रदाय के आश्रमों से अखाड़े में एक शिष्य देना अनिवार्य था। 

जब कोई साधु बनने के लिए जाता तो दीक्षा दे कर उसे 12 साल के लिए देश काल के भ्रमण के लिए भेजा जाता था। जब 12 साल में वह पूरी तरह से निपुण हो जाता और वापस अपने गुरु के पास आता तब उसे अखाड़े में भेजा जाता। वहाँ उन्हें साधक शिष्य बनाया जाता। भगवान शालिग्राम, तुलसी दल और गंगाजल हाथ में लेकर वह अखाड़े के किसी संत महात्मा को गुरु मानने की कसम खाता था। 

आजकल तो मंत्र देने की परंपरा है। पहले नागा की उपाधि दी जाती है। फिर युद्धकला में प्रवीण किया जाता है। महंत जी के अनुसार नागा होने का अर्थ नग्न होना नहीं है। नागा का काम धर्म की स्थापना करना है। उसका भोजन सात्विक होना चाहिए। सात्विक विचारधारा होनी चाहिए। बाल आनंद आचार्य जी का उद्देश्य धर्म की स्थापना करना था। उनकी बनाई नागा सेना सन्यासियों के अत्याचार के खिलाफ लड़ती या फिर जो वैष्णव संप्रदाय आश्रम के रास्ते से भटक गये हैं उन्हें समझा-बुझाकर रास्ते पर लाना था। यह सेना लाठी, बल्लम, तलवार, फरसा आदि से लैस रहती। उसी दौरान जब हरिद्वार का कुंभ नजदीक आया तो देशभर के वैष्णवों का आव्हान किया गया। सब लोग इकट्ठा हुए और साजो सामान के साथ हथियारों से लैस होकर हरिद्वार पहुँचे। वहाँ हमारे पूर्वजों का शैव सन्यासियों से बहुत बड़ा युद्ध हुआ। गंगा खून से लाल हो गई। उस युद्ध के बाद ही हमें वहाँ स्नान करने की जगह मिली। 

महंत गौरी शंकर दास के मुताबिक आज भी हरिद्वार में उस युद्ध में मारे गए नागाओं की समाधियाँ हैं। 

गुजरात में धोलका, धंधुका, वीरमगांव और मेहसाणा जिले में भी समाधियाँ हैं। वैष्णव और शैव सन्यासियों के बीच इतने युद्ध हुए कि शैव संयासी आज भी वहाँ का पानी नहीं पीते। देशभर में जिन चार जगह पर कुंभ लगते हैं उन सभी जगहों पर वैष्णवों का सन्यासियों से भयंकर युद्ध हुआ। वैष्णवों ने कुंभ स्नान का अधिकार इन युद्धों में जीत कर हासिल किया। नागाओं पर ऐसेटिक गेम्स किताब लिखने वाले धीरेंद्र झा का कहना है कि हरिद्वार कुंभ में लड़ाई होने वाली बात सही है। वहाँ दशनामी और बैरागियों में बहुत लड़ाई हुई थी। दशनामी अखाड़ा सिखों का है। बाकी जगहों के बहुत सारे ऐसे युद्ध अधिकतर सुनी सुनाई कथाओं से लिए गए हैं। उन्होंने बताया कि यह सच है कि सन्यासियों और बैरागिओं में कुंभ के बहुत पहले से ही भिड़ंत होती रही है। 

वैष्णव संप्रदाय से संबंधित जो भी फैसले लिए जाते हैं वह या तो वृंदावन या फिर कुंभ में लिए जाते हैं। इनके अखाड़े की बैठकें यानी कि केंद्र हर तीर्थ स्थान में है। जैसे नासिक, हरिद्वार, चित्रकूट, उज्जैन, वृंदावन। यहाँ से वे देशभर के वैष्णव आश्रमों का संचालन करते हैं। वैष्णव नागाओं के यहाँ मल्लयुद्ध की पुरानी परंपरा है। आज सन्यासियों और वैष्णव संतो में पहले जैसी दुश्मनी नहीं रही। अखाड़ा परिषद बना और सब साथ उठने बैठने लगे। लेकिन एक समय था जब वैष्णव साधु सन्यासियों के हाथ का छुआ पानी तक नहीं पीते थे। "

"ओह, लेकिन अब तो स्थिति ऐसी नहीं है न। "

"नहीं माता समय के साथ परिवर्तन आ ही जाता है। "

"तो आज्ञा दे महंत जी। आपका बहुमूल्य समय लेने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। इतनी विस्तृत जानकारी के लिए आभार। "

"क्षमा कैसी ?आपसे मिलकर तो मुझे प्रसन्नता ही हुई। आप हमारे देश के महत्वपूर्ण नागा पँथ पर किताब लिख रही हैं। आगे भी हमारी आवश्यकता हो तो याद करिएगा। हमारा मोबाइल नंबर नोट कर लीजिए। "

"जी अवश्य। " कैथरीन ने नंबर नोट किया और गिरिराज गिरी को प्रणाम कर कक्ष से बाहर निकल आई। 

हनुमानगढ़ी का काम समाप्त हो चुका था और वे होटल जाकर वहाँ की औपचारिकताएं निपटा कर सीधे लखनऊ की ओर रवाना हो गए। 

काफी रात को वे सब लखनऊ पहुँचे। कार सीधी प्रवीण के घर आकर रुकी। 

"अब इतनी रात को आप अपने घर न लौट कर यहीं रुक जाईए। सुबह नाश्ता करके चले जाइएगा। "

कैथरीन ने प्रोफेसर शांडिल्य से कहा। 

"अरे यह तो अपना लखनऊ है। यहाँ रात कैसी और दिन कैसा। आराम से अभी 15 मिनट में घर पहुँच जाऊँगा। आप लोग आराम करिए। "

"कल मैं दिल्ली चली जाऊँगी। 

ईश्वर ने चाहा तो जल्दी ही दोबारा मुलाकात होगी। "

"आपका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ। आपने मेरे विद्यार्थियों की जिज्ञासा शांत की, अपना कीमती वक्त दिया। और मेरे एकाकी जीवन में थोड़ा सा रस घोल दिया मुझे हनुमानगढ़ी ले जाकर। "

" आप के लिए मैं हमेशा उपस्थित हूँ प्रोफेसर। गुड बाय शुभरात्रि। "

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