भाग 9
मौसम ने करवट बदली। कोहरे की गाढ़ी परत ने कर्णप्रयाग के जंगलों पर अपना आसन जमा लिया।
सुबह-सुबह गुरु जी ने फोन पर सूचना दी-" प्रयागराज में महाकुंभ का मेला लगना शुरू हो गया है। आप लोग सभी बालकों सहित हरिद्वार आ जाओ। कर्णप्रयाग में हम बस भेज रहे हैं। "
नियत समय पर सभी ने प्रशिक्षण केंद्र से कर्णप्रयाग की ओर प्रस्थान किया।
प्रस्थान से पहले नरोत्तम गिरी ने बालकों को समझा दिया था कि "हम एक महत्वपूर्ण कार्य के लिए जा रहे हैं। जिस मिशन की तैयारी के लिए आप इतने दिनों तक प्रशिक्षित होते रहे अब वह समय आ गया है कि आप सब नागा पँथ में नागा होने के लिए दीक्षित किए जा सकें। इसलिए आज की दैनिक क्रियाएं ईश्वर की अनुमति से स्थगित की जाती हैं। क्योंकि यात्रा विशेष पर हमें ध्यान देना होगा। "
बालकों में गजब का उत्साह था। सभी बालक उछलते कूदते कर्णप्रयाग के जंगल और पहाड़ों पर से उतर रहे थे। नरोत्तम गिरी अपने साथी प्रशिक्षकों के साथ कुंभ पर चर्चा करते हुए उतर रहा था।
"प्रयागराज महाकुंभ का बहुत महत्व है। बारह वर्षों बाद गंगा यमुना और सरस्वती के संगम पर यह आयोजित किया जाता है। सोम गिरी ने कहा तो तपाक से कैलाश गिरी बोला -
"पूस मास की पूर्णमासी से आरंभ होता है कुंभ। "
" हमारे नरोत्तम गिरी तो बर्फानी नागा हैं। इन्हें हरिद्वार के कुंभ में दीक्षा मिली है। " गीतानन्द गिरि ने नरोत्तम गिरी की ओर श्रद्धा भाव से देखते हुए कहा।
"बहुत ही दृढ़ लेकिन भीतर से कोमल भी। इसकी टीम के सभी बालक इसे बहुत प्यार करते हैं। " अखंडानंद गिरि ने कहा।
" पर तुम से डरते हैं। "
" हाँ मैं खूनी नागा( उज्जैन में दीक्षित )जो हूँ। क्रोध हमारा विशेष गुण है। "
बालकों की फौज चलते चलते रुकी-" गुरु जी हमारी बस। "
सड़क के उस पार बस खड़ी थी। बस डमरू, त्रिशूल, मोर पंख, तलवार, रुद्राक्ष, कमंडल आदि नागा चिन्हों से अंकित थी।
" बम बम भोले। जय शिव भंडारी। "
ड्राइवर ने सभी को प्रणाम किया। और नुक्कड़ की हलवाई की दुकान से सभी बालकों के लिए जलेबी समोसे के दोने भिजवाए।
"खाओ बालको, आज का दिन सभी दैनिक क्रियाओं से परे केवल यात्रा विशेष है। "
घंटे भर बाद बस हरिद्वार के लिए रवाना हुई।
रास्ते भर कड़कड़ाती ठंड ने पीछा किया। घने कोहरे में बस चलाना भी चुनौती था। आती-जाती गाड़ियां टिमटिमाती ढिबरियों सी नजर आ रही थीं। शाम होते होते बस हरिद्वार आश्रम पहुँच गई।
बालक बहुत उत्साह में थे। गुरुओं की आज्ञा अनुसार उन्होंने सँध्या वंदन किया और भोजन कक्ष में चले गए। नरोत्तम गिरी भी गीतानंद गिरी और अन्य प्रशिक्षकों के साथ सँध्या वंदन आदि करके भोजन कक्ष में चला गया। भोजन के उपरांत धूनी के सामने बैठे ही थे कि स्वामी घनानंद गिरी का बुलावा आ गया। सभी मीटिंग कक्ष में इकट्ठे हों। आवश्यक बातों पर निर्देश देने हैं।
गुरुजी ने मीटिंग की शुरुआत नरोत्तम गिरी से की-"नागा नहीं बनते तो तुम खगोल शास्त्री बनते। तुम्हें तो जानकारी होगी चँद्रमा वृश्चिक राशि में और बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब महाकुंभ में स्नान का योग बनता है। मकर संक्रांति के दिन इस खगोलीय उलटफेर का हम नागाओं के लिए बहुत महत्व है। विभिन्न अखाड़ों के अलग-अलग दिन शाही स्नान और नए नागाओं को दीक्षा दी जाती है। इस वर्ष जूना अखाड़ा के करीब 250 से अधिक नए नागा दीक्षा लेंगे। यह बहुत कल्याणकारी होगा। आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से होगी। कुंभ स्नान साक्षात स्वर्ग के दर्शन कराता है। साधना तपस्या से प्रकाशवान हुआ हमारा शरीर माँ गंगा की मनुष्यों द्वारा फैलाई समस्त गंदगी को साफ कर देता है। हमारे पूर्वजों ने ऋषि भागीरथी को वचन दिया था। माँ गंगा हमारे स्नान से प्रसन्न हो औषधि युक्त अमृतमयी हो जाती हैं। शाही स्नान की तिथियाँ भी आ गई हैं।
14 जनवरी मकर संक्रांति
27 जनवरी पौष पूर्णिमा
10 फरवरी मौनी अमावस्या
15 फरवरी वसंत पंचमी
25 फरवरी माघी पूर्णिमा
और 10 मार्च 2013 को महाशिवरात्रि के दिन हमारा छठवां और अंतिम शाही स्नान होगा। ध्यान रहे 55 दिनों के इस मेले में विदेशी पर्यटकों के लिए हम खास आकर्षण के केंद्र होंगे। अतः अपने पर पूर्ण संयम रखें। अपनी साधना तपस्या को क्रोध करके मलिन न होने दें। 11 जनवरी को हम प्रयागराज के लिए प्रस्थान करेंगे। आपकी यात्रा और वहाँ निवास की तैयारी में कोई त्रुटि न हो, कमी न रह जाए, इसका पूरा प्रयास रहेगा। अब आप विश्राम कीजिए। "
गुरुजी के आदेश कमांडो के हेड की तरह होते हैं। जिसमें किसी प्रकार के संदेह या प्रश्न की गुंजाइश नहीं। धर्म के कमांडो नागा सदैव तत्पर रहते हैं अपने गुरु की आज्ञा पालन करने के लिए।
सभी गुरुजी को प्रणाम कर अपने कमरों में चले गए। नरोत्तम गिरी महाकुंभ के बारे में सोचते हुए काफी देर तक जागता रहा। शायद कैथरीन आए। आ भी सकती है। यह नागाओं के बारे में और भी अधिक जानने का अच्छा अवसर है। क्या पता किताब पूरी कर ली हो उसने।
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