फटाफट से भागते हुए, कोने के टेबल की सीट लेते हुए निया सिमरन को फोन घुमाती है।
"अब बता, ये सही में सच है, क्या??"
"हां.. तू तो जानती है, ऐसे मज़ाक मैं कहां करती हूं।"
"क्या वो.. सही में, ऐसे कैसे हो गया?"
"ये तो नहीं पता कैसे। पर क्या पता तेरे ही वजह से हो।"
"हां.. सही में", खिलखिलाते हुए फोन को हैडफोन से जोड़ कर निया बोली।
"मैंने कहा था ना तुझे, थोड़ा पागल है ये लड़का, पर टाइम रहते अक्ल आ ही जाती है इसे", अपने फोन में अपनी और अंकित की फोटो को निहारते हुए निया बोली।
"चल यार अब मुझे अब डिनर की तैयारी करनी है, तो मैं बाद में तुझसे आराम से बात करती हूं।", सिमरन बोली
"ठीक है", निया का बुझा सा चेहरा, आज अंकित के वापस आने की बात पे, १०० वॉट के बल्ब की तरह खिल गया था।
"सब ठीक तो होगा ना, लेकिन", एकबार फिर खुद से पूछते हुए निया बोली।
"हां.. सब ठीक है.. मैं ज्यादा ही सोच रही हूं। उसका मेरे बिना मन नहीं लग रहा होगा, इसलिए वापस आ गया होगा।", कुछ देर में खुद ही को दिलासा देते हुए निया बोली।
निया खुद से बात करते करते बस स्टैंड से अपनी सोसाइटी की तरफ़ बढ़ ही रही थी की अचानक उसका फोन बजता है।
"अंकित!!!", उछलते हुए निया फोन उठाने के लिए फटाफट बाहर निकालती है। "ध्रुव.. ", फोन पे ध्रुव का नाम पढ़ कर हल्की सी मायूसी से वो बोली।
"इसे बताना तो होगा ही, की पहली बारिश जैसा कुछ नहीं है। प्यार सच्चा हो तो वो खुद का खुद वापस आ जाता है। पर अभी नहीं, नहीं तो ये मुझ पे गुस्सा कर देगा।"
निया फोन को वापस अपनी जींस की जेब में रख देती है।
"मै"म आईडी?", सोसायटी के गेट पे पहुंची निया से गार्ड पूछता है।
"हां भैया.. एक मिनट।", निया आईडी निकालने के लिए बैग खोलते हुए बोली।
"भैया आपने देखा तो होगा ही ना कितनी बार, यही तो रहती हूं, बस आगे वाली बिल्डिंग में" , कुछ देर बाद, जब पूरा बैग खंगालने पे भी उसे आईडी नहीं मिली तो गार्ड भैया को मनाते हुए वो बोली।
"मैडम सब यही कहते है, अगर हम सबकी बात मान लेंगे तो हमारी नौकरी खतरे में आजाएगी ना।"
"पर भैया।"
"आप किसी को कार्ड लेकर बुला लीजिए ना, घर से।"
"पर अभी कोई होगा नहीं ना।"
"फिर तो हम और कुछ नहीं कर सकते, थोड़ा इंतजार कीजिए, टेंपररी पास बना कर जाएगा फिर।" गार्ड भैया अभी बोल ही रहे होते है, की इतने ध्रुव आ जाता है।
"ध्रुव!!", गेट पे अपनी आईडी दिखाते हुए ध्रुव को देख कर, निया उत्साह से बोली। "ध्रुव.. इन्हें प्लीज बताओ ना, की तुम मुझे जानते हो। मैं पड़ोसी हूं तुम्हारी।"
"एक्सक्यूज मी?", ध्रुव निया की ओर देख कर अनजानों सी शक्ल बनाते हुए बोला।
"यार.. तुम नाराज़ हो.. या गुस्सा हो, तो बाद में कर लेना, मुझे अंदर जाने दो।"
"देखिए मैं नहीं जानता आप कौन है? आप तो कहीं भी कुछ भी बोल कर चली जाएंगी, फिर भुक्ताना तो मुझे पड़ेगा ना।", ध्रुव रूखे स्वर में ये बोलता हुआ वहां से आगे बढ़ जाता है।
"ध्रुव यार!!!", निया धीरे से जाते हुए ध्रुव को देखते हुए बोली। "भैया कब आएंगे दूसरे भैया, बना दो ना कार्ड अंदर जाने का, ऐसे लग रहा है सज़ा में खड़ा कर रखा है।", निया गार्ड भैया को देखते हुए बोली।
पीछे छूटी हुई निया के छोटे से हुए चेहरे को, ध्रुव बार बार मुड़ मुड़ कर देख रहा होता है, की ना जाने एक दम से क्या सोच कर गेट पे जाता है और बोलता है।
"भैया.. ये मेरी पड़ोसी है। आप ये देख लीजिए, और फिर इसे जाने दीजिए।", कार्ड जैसा कुछ गार्ड भैया को देते हुए ध्रुव बोला।
"ठीक है। जाइए।", निया को जाने की इजाज़त देते हुए वो बोले।
"थैंक यू!!", नाराज़ ध्रुव को मनाने की कोशिश करते हुए निया अंदर जाते हुए बोली।
"उसकी ज़रूरत नहीं, बस ये बताओगी, की आज ये जो किया वो क्या था?"
"हां.. पता है, मुझे लगता तो था ऐसे, पर आज साबित हो गया, की तुम्हें सही में ये सब गलत फहमी ही हुई है..", निया सारी बात समझाते हुए ध्रुव को बोली।
"अंकित ने तुम्हें बोला की वो तुम्हारे लिए आया है?", ध्रुव निया से पूछता है।
"नहीं.. पर खुद ही सोचो ना, अभी ये हुआ, फिर वो इतनी जल्दी आ गया। और पता है, सिमरन को भी यही लगता है।"
"तुम्हें ना थोड़े समझदार दोस्तो की जरूरत है।"
"नहीं। अरे तुम्हे पता नहीं है ना, उस दिन मैं वहां गई थी तो क्या हुआ था.."
"रहने दो मुझे पता करना भी नहीं है। एक काम करते है, की तुम मेरे मामलो से दूर रहो और मैं तुम्हारे। मतलब की तुम मुझे ये बताना छोड़ दो की पहली बारिश का क्या है, और मैं तुम्हें तुम्हारे अंकित के बारे में कुछ बही कहूंगा।", ये बोलता हुआ, ध्रुव आगे बढ़ कर लिफ्ट में जाता है, और ९ प्रेस करके निया के अंदर आने से पहले ही, लिफ्ट बंद कर देता है।