श्राप दंड -1
चारों ओर का अंधेरा हल्के नीले रंग सा दिखाई दे रहा है। आज से दो दिन पहले पूर्णिमा थी इसीलिए गोल आकृति के चाँद की महिमा पृथ्वी पर उतर आई है।
कटीलें झाड़ियों को पार कर सूखे पत्तों पर आवाज
करते हुए एक बड़ा सा आदमी , पास के जल धारा से चलता हुआ जा रहा है । उसके कंधे पर एक कपड़े की थैली है। हल्के रोशनी में देखने से ऐसा लग रहा है कि उस थैली में छोटे - बड़े पत्थरों का टुकड़ा भरा हुआ है। जल धारा को पार कर वह आदमी पहाड़ के नीचे की ओर बने रास्तों पर कहीं खो गया।
पूरा आसमान झिलमिलाते तारों से भरा हुआ है। पूरे वातावरण में तृप्ति की सुगंध फैला हुआ है।
दूर पहाड़ों से गिरते झरने चाँद की रोशनी में चमक रहें हैं। ऐसा लग रहा है कि मानो किसी नें पहाड़ को ब्लेड द्वारा बीच - बीच काट दिया है।
जिस मनुष्य को अभी जंगल पार करके जाते देखा गया, उन्होंने उसे पहले भी देखा है। एक दिन बहुत पास से वह आदमी जा रहा था । वह बड़े से शरीर वाला आदमी अक्सर जंगल - झाड़ी के बीच से ही आता - जाता रहता है।
लेकिन लगभग दस दिन पहले एक रात तेज बारिश हो रही थी। चारों ओर बिजली चमकने और बार - बार बादल टकराने की आवाज से पहाड़ का पूरा परिवेश भयावह हो गया था। उसी रोशनी में उन्होंने उस बड़े आदमी को बहुत ही पास से देखा था। उसके पूरे शरीर पर कई सारे घाव हैं लेकिन शरीर इतना बलशाली है कि वो सभी घाव ऐसे दिख रहे थे कि मानो किसी नें रूई से चित्र बनाया है। वैसे बिजली चमकने की रोशनी में ऐसा ही लगा था तथा उस वक्त उसके पूरे शरीर से बारिश की पानी टपक रही थी। उस आदमी के लम्बाई को देखकर कोई भी आश्चर्य हो जाए। इतने लम्बे और सुदृढ़ किसी आदमी को उन्होंने पहली बार देखा था । उस आदमी के शरीर से मानो एक हल्का ज्योति भी निकल रहा था या फिर शायद वह ज्योति भीगे शरीर पर बिजली चमकने की रोशनी भी हो सकती है। हालांकि उस आदमी के अंदर क्रूरता नहीं है। इसके बाद वह जल धारा को पार कर पहाड़ के खाई वाले रास्ते पर कहीं खो गया।
अगले दिन सुबह गीले मिट्टी पर उस आदमी के बड़े - बड़े पैरों का निशान दिखाई देता। उन्होंने अपने पैर को उस बड़े आदमी के पैरों के निशान पर रखा । उन्हें ऐसा लगा कि उनके जैसे और दो पैर उस निशान में समा सकते हैं। वो पैर के निशान के पास पड़े एक वस्तु को देखकर थोड़ा आश्चर्य चकित हुए । हाथ में उठाकर इधर - उधर से देखने पर उन्हें पता चला कि यह एकमुखी रुद्राक्ष है लेकिन बाकी रुद्राक्ष से यह कुछ अलग था । यह रुद्राक्ष की तरह कड़ा नहीं बल्कि मुलायम है। अब उन्हें समझ आया कि यह रुद्राक्ष अभी भी पूरी तरह सूखा नहीं है। वह अभी कच्चा है। कच्चा रुद्राक्ष ? उन्हें लगा कि तो क्या यहां आसपास ही कहीं......?
वो उस रुद्राक्ष को हाथ में लेकर चले गए।....
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दोपहर का खाना खाकर गढ़मुक्तेश्वर के घाट पर आकर बैठा हूं। मेरे पास से ही कई लोग नाव पकड़ने के लिए जा रहें हैं। कुछ लोग आ भी रहें हैं।
आज सुबह जिस कहानी को सुना था उसी के बारे में सोच रहा हूं। हिमालय क्या कोई आम बात है।
इस आदमी के अंदर और भी बहुत कुछ छुपा हुआ है। दिन पर दिन जैसे - जैसे उनके बारे जान रहा हूं , आश्चर्य व श्रद्धा दोनों ही बढ़ता जा रहा है।
मैंने सोचा कि अभी शाम का अंधेरा होने में काफी वक्त बचा है एक बार उस आदमी से मिल आता हूं ।
यहां आने के बाद दो प्रकार के साधु - संत दिखे हैं । एक जो महादेव की पूजा करते हैं और एक जो महादेव की साधना करते हैं। यहां देवी साधक भी हैं लेकिन गढ़मुक्तेश्वर में महादेव के भक्त ही सबसे ज्यादा हैं।
एक और आदमी है लेकिन वो थोड़ा अद्भुत प्रकृति के हैं। वो भी एक साधु हैं यह मुझे पहले पता ही ना चला।
कुछ दिन पहले ऑफिस से लौट रहा था। शाम हो गया है। आम के बगीचे से जब आगे बढ़ रहा हूं ठीक उसी वक्त मैंने देखा कि पास के झाड़ी वाले पर्णकुटी के पास एक आदमी खड़ा है। वह आदमी बहुत ही लम्बा है। कोई साधारण मनुष्य झाड़ी के उस पार खड़े होने पर दिखाई नहीं देता था लेकिन इनकी लम्बाई कुछ ज्यादा ही है। शायद इसलिए उन पर मेरी नजर पड़ी। दो दिन बाद किसी नें बताया कि वहाँ पर कुछ दिनों से एक साधु नें अपना डेरा डाला है । वह साधु ज्यादातर किसी से बात नहीं करते। जो भी हो इसमें कोई विशेष बात नहीं है ।
एक और मनुष्य है , जोकि सबसे अलग है। किसी मंदिर में जाकर कुछ देर बैठने पर जैसे मन शीतल व शांत हो जाता है। उस मनुष्य को सामने पाकर भी ठीक वैसा ही होता है।
कुछ दिनों से अपने अंदर एक मनोभाव का अनुभव कर रहा हूं। एक दिन से ज्यादा अगर उस मनुष्य से नहीं मिलता तो मन खराब सा रहता है। सुनकर ऐसा लगेगा कि मैं अपने किसी प्रेमिका की बात कर रहा हूं लेकिन ऐसा नहीं है। वह मनुष्य बहुत ही आसानी से सभी को अपना बना लेता है। उनके आँख में कुछ तो है। उनके दोनों आँख इस गंगा जल की तरह है ।
ठीक जैसे इस वक्त सूर्य के किरणों से गंगा नदी की पानी झिलमिला रही है और उसके किनारे खड़े होकर कुछ लड़के मछली पाने के लिए नदी में जाल डाल रहे हैं। वो सभी नदी के अंदर से जीवित मछलियों को बाहर निकालना चाहते हैं। इसी तरह मैं भी उस मनुष्य के अंदर से अद्भुत घटनाओं को निकाल कर जानना चाहता हूं।
इसी घाट पर मैं उनसे पहली बार मिला था। भगवान शायद यही चाहते थे। और ज्यादा देर नहीं कर पाया। मैं नदी के घाट को छोड़ तांत्रिक रुद्रनाथ अघोरी के घर की ओर चल पड़ा।.....
क्रमशः...